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________________ पाठ १२ उत्तराध्ययन तिमहेजबनमक एमश्विामिनीवचन इनिविनय माध्यम मानार्यसं ! सु०मानसोनि०मश्राव्हे भाव || पहिलननेवि विनयकरिवोकले नशानवता नए एनिनसासननेंविधार तिहाविनानेमरीमउमजेलसम्पगसहिवा म वावासपरीक्ष ___ कायगोत्रायप। प्रकारामको विवावासापपरीमह ARIES जानशानन मन्त्रीमा वारदेवर करमाका प्रकलयवकेवल। एवमहामारहरपलवावीपरीसह समानरायणमहाबारेणंकासवेरगपवे जेजेमा निजाती, अपरीसह निगोचशविर्ष पहिलसाफिर पुरीमफरविनारेन || सो.परीसहयुरू कर परिचानक नजातीन "बिह संयमविवानही समी सामान शिम्मsar मानिससोचानचा जिवनियाग्निरकायरियाण्यरित्रयेतोयुकोनोविस्नेजil के ऊरण स• सपरिसह श्रवण परवीनामा मामाया काकापपगोत्रीय प० प्रकके नज्ञानवंत रदेवई ने साक्षात्यमेवघ्यापा कमरेखनातेवाबासंपरीमहासमोणंगवयामसवारणकासनेणंपवेश्याजेनि नियनि-मामिह पनि नेपरीस निगोजरीनविन पाहीतीफिरती १०परीमफरोतिबारेतो लिंग समषि-मां नजाने हाताने वि०संयमविनाशनही करें॥ २५ रिकासोबानबाजियाबानियालिरकायरियाएपरिचयंतोयुकोनोविल्लोलासेख] यास्यापयरिया मिलता प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका (४७) Jain Education Internations For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002730
Book TitlePrakrit Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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