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________________ Jain Education International प्रति सबसे प्राचीन है जो सम्वत् १४०७ में चन्द्रपुर दुर्ग में लिखी गई थी। यहाँ प्राकृत के गोम्मटसार जीवकांड, समयसार आदि महत्त्वपूर्ण ग्रन्थ उपलब्ध है। अपभ्रंश भाषा के ग्रंथों में लक्ष्मण देव कृत णेमिणाह चरिउ, नरसेन की जिनरात्रिविधान कथा, मुनिगुणभद्र का रोहिणी विधान एवं दशलक्षण कथा तथा विमल सेन की सुगंधदशमीकथा यहाँ उपलब्ध है। जयपुर से बाहर के शास्त्र भण्डार शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन बड़ा मंदिर, डीग - भण्डार में प्राकृत की भगवती आराधना सबसे प्राचीन पाण्डुलिपि है। जिसका लेखन काल संवत् १५११ है । इसके अतिरिक्त अपभ्रंश काव्य भविसयत्त चरिउ ( श्रीधर ) की प्रति भी यहाँ उपलब्ध है। शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मन्दिर पार्श्वनाथ, टोडारायसिंह - यहाँ अपभ्रंश के णायकुमार चरिउ ( सम्वत् १६१२) जम्बू स्वामी चरिउ ( सम्वत् १६१०) आदि ग्रन्थों के नाम उल्लेखनीय है। शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मन्दिर संभवनाथ, उदयपुर - यहाँ अपभ्रंश का यश कीर्ति द्वारा रचित हरिवंशपुराण ग्रन्थ उपलब्ध है। शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन पंचायती मंदिर, बसवा - महाकवि श्रीधर की अपभ्रंश कृति भविसयत्त चरिउ की संवत् १४६२ की पाण्डुलिपि यहाँ उपलब्ध है। शास्त्र भण्डार दिगम्बर जैन मन्दिर, करौली - यहाँ दो मंदिर है और दोनों में ही शास्त्रों का संग्रह है। दिगम्बर जैन पंचायती मन्दिर एवं दिगम्बर जैन सोगाणी मन्दिर । अपभ्रंश भाषा की वरांग चरित्र की पाण्डुलिपि यहाँ उपलब्ध है। प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका For Private & Personal Use Only (५८) www.jainelibrary.org
SR No.002730
Book TitlePrakrit Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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