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________________ पाठ १० कुम्मापुत्तचरियं री तस्सरीरंमि॥३५॥ पुव्वभवंतरभजा लज्जाइ विमुत्तु भुंजए भोए। एवं विसयसूहाई दुन्नि वि विलसंति तच्छ ठिआ॥३६॥ चतुर्विधभोगस्वरूपं स्थानांगेप्युक्तं चउहिं ठाणेहि ठाणेहि देवाणं संवासपन्नत्तेतं जहा। देवे नामं एगे देवीए सद्धिं संवासंमागछिज्जा १. देवे नामं एगे छवीए सद्धिं संवसंमागछिजा २. छवीए नाम एगे देवीए सद्धिं संवासंमागछिज्जा ३. छवीए नामं एगे छवीए सद्धिं संवासंमागछिज्जा ४. इओ अह तस्स अम्मापिअरो पुत्तविओगेण दुक्खिया णिच्वं । सव्वच्छ वि सोहंति अ लहंति न हि सुद्धिमत्तं पि॥३७॥ देवेहि अवहरियं इअर नरेहि पाविछए कहं चत्थु । जेण नराण सुराणं सत्तीए अंतरं गुरुअं॥३८॥ अह तेहिं दुक्खिएहिं अम्मापिअरेहि केवली पुट्ठो। भयवं कहेह अम्हं सो पुत्तो अत्थि कत्थ गओ॥३९॥ तो केवली पयंपइ णेह सवणेहिं सावहाणमणो। तुम्हाणं सो पुत्तो अवहरिओ वंतरिए अ॥४०॥ ते केवलिवयणेणं अइव अछरिअविम्हिआ जाया। साहंति कहं देवा अपवित्तनरं अवहरंति ॥४१॥ ॥ यदुक्तमागमे॥ चत्तारि पंच जोयणसयाइ गंधो अ मणुअलोगस्स। उड्ढे वच्चइ जेणं न हु देवा तेण आवति ॥४२॥ तओ केवलिना भणियं पंचसू जिणल्लाणेसु चेव महरिसितवाणुभावाओ। जम्मंतरणेहेण य आगछंति सूराइहयं ॥४३॥ तो केवलिणा कहियं तीसे जम्मंतरसिणेहाइ। ते बिंति तओ सामिअ अइबलिओ कम्मपरिणामो॥४४॥ भयवं कया वि होहि अम्माणं कुमारसंगमो कह वी। तेणुतं होहि पुण जयेइ हवमागमिसामो ॥४५॥ इय संबंधं सूणिओ संविग्गा कुमरमा अपि अपिअरो अ। लहूपुत्त ठविअ रज्जे तयंतिए चरणमावन्ना ॥४६॥ दुक्करं तवचरणपरा परा प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका (७८) Jain Education Internat For Private & Personal use only www.ainelibrary
SR No.002730
Book TitlePrakrit Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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