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________________ पाठ १३ उत्तराध्ययन हिंसे बाले मुसावाई। माइल्ले पिसणे सढे। भुंजमाणे सुरं मस्सं। सेय मेयं ति मन्नइ ॥९॥ कायसा वयसा मित्ते। चित्ते गिद्धे य इत्थिसु दुहओ मल संचिणइ। सिसुणागु ब्व मदियं ॥१०॥ तओ पुट्ठो अयंकेण। गिलाणो परितप्पइ पभाओ परलोगस्स। कम्मणुप्पेहि अप्पणो॥११॥ सुया मे नरए ठाणा॥ असीलाणं च जा गइ॥ बालाणं कूर कम्माणं। पगाढ़ा जत्थ वेयणा ॥१२॥ तत्थोवआहुयं वाण। जह मेतमणुस्सुयं। आहाकम्मेहि गछंतो। सो पच्छा परितप्पइ॥१३॥ जहा सागडिउ जाणं। समहिच्च च्चा महापहं। विसम मगामोइन्नो अक्खे भणमि सोयइ ॥१४॥ एवं धम्म विउक्कमं। अहम्मं पडिवजिया। वाले मच्चु मुहं पत्ते। अक्खे भग्गे व सोयइ ॥१५॥ तओ से मरणंतंमि। वाले संतस्सइ भया। अकाम मरणं मरइ धुत्ते वा कलिणा जिए॥१६॥ एवं अकाम मरणं । बालाणं तु प्पवेइयं । इत्तो सकाम मरणं । पंडियाणं सुणेहम्मे ॥१७॥ मरणं पि सपुन्नाणं। जहा मेत्तमणुस्सुयं। विप्पसन्नमणाघाय। संजयाणं वुसीमओ ॥१८॥ न इमं सव्वेसु भिक्खुसु। न इमं सव्वेसु गारिसु। नाणा सीला अगारत्था। विसमेसीला य भिक्खुणो॥१९॥ संति एगेहिं भिक्खूहिं। गारत्था संजमुत्तरा। गारथे इह सव्वेहिं । साहवो संयमुत्तरा ।।२०।। वीराजिणंति गणिणं। जडी संघाडि मुडिणं। एयाणि विन्न तायंत्ति। दुस्सीलं परियागये ॥२१॥ पिडोलंए वा दुस्सीले। नरगाउ न मुच्चई । भिक्खाए वा गिहत्थे वा सुव्वइ गमई दिवं॥२२॥ अगारि सामाइयंगाय। सड्डी काएण फासए। पोसहं दुहवो पक्खं। एगराय न हावए ॥२३॥ एवं शिखा समावने। गिहवासे वि सुव्वए। मुच्चइ छवि पव्वाओ। गछे जखस्सलोगयं ॥२४॥ अह जे संवुडे भिक्खु। दुण्हं अण्णयरे सिया। सव्वदुख पहिणेवा। देवे वावि महिड्डिए॥२५॥ उत्तराइ विमोहाइ। जुइमंताणुपुव्वसो। समाइंनांहिं जखेहिं। आवासाइं जसंसिणो॥२६॥ दीहाउया इड्डिमन्ता। समीद्धा काम रुविणो। अहुणोववन्न संकासा भुजो अच्चिमासमयभा॥२७॥ ताणि वाणणि गच्छंति सिक्खित्ता संजमं तवं। भिक्खाए वा गिहत्थे वा जे संति परिनिवुडा ॥२८॥ तेसि सुच्चा सपुजाणं संजयाण वुसीमओ। न संत संति मरणंते॥ प्राकृत-पाण्डुलिपि चयनिका (८१) Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002730
Book TitlePrakrit Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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