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________________ १० सं०० ०० एकेकानि० परमा गागृहस्थ सं० देशविति गागृहम्पस सपलाई मायासविरत्तिरुपसंयम पचारित्रकरित्रयीन रेशनताको प्रधान निम्नतुथी 5 (4) मंत्तिएगे हिंनिस्कू हिरडा मंत्रमत्तरारथे इस चे हिंसा हवा मंथमुत्तरार चार जे.जटाधारिमलकंथारंभ एक्प्रेषधारी पपिएल उ· कुराचाररूपप• अमाग *मृतिर्मनि नयपरा मुक्तक रुप दुर्गतिज्ञानाचा एमरन हुई प्रापितवान वीराति शांति शिजमी संघा मिहिर गएँया निर्वित्रतायेतीलमरियागया२१॥ एनादिकमात्र निकिता वा नागि निरक्तित्वा खत अंगारा २२ श्राग जीव काकराचानुचली नरकथकान से गृहस्था अथवा रुगण्जा इदि देवलेोकडू पिमोलेर कार्ड म्सीलान गाउनच शनिखाएवामिह ठेवा मञ्च भईदिवांशा माणिकनार मकार(नासम्म क सथर्मकर राशीचकर नई पो पोषक ते २. एक रजिनापौ भनी निक असमायिक सामान काण्याई करिफा व आठ प्रदितिथि पोषक कदाचार्य कुमार इंट्रियम इ माधिक करदेसनिरतिरूपसा= दोन रामकविणकर २ हो र १२३ रामन हो वशी मु.मुकाइला चर्मभयप· राचएम 10जायन • देवलेोकइ निधि एवं कदारि कसरि रतै स्थी मा. स बंगालम्पु रिसामाभ्यगाय समीका एकास एपिस एकासिम गि-हसानासल इंपिएफ. फित्ताकरीस साहिल ते फ एवंशिखासमान ने गिहवा से बिक चमुच इनिवाडाजख स्लोगसं Jain Education International प्राकृत - पाण्डुलिपि चयनिका For Private & Personal Use Only 9m (५२) www.jainelibrary.org
SR No.002730
Book TitlePrakrit Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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