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________________ राजस्थान में प्राकृत-अपभ्रंश पाण्डुलिपियाँ : परिचय [राजस्थान के जैन शास्त्र-भण्डारों की ग्रन्थ सूची] डॉ. कस्तूरचन्द कासलीवाल पं. अनूपचन्द न्यायतीर्थ राजस्थान प्राचीन काल से ही साहित्य का केन्द्र रहा है। इस प्रदेश के शासकों से लेकर साधारण जनों तक ने इस दिशा में प्रशंसनीय कार्य किया है। कितने ही राजा-महाराजा स्वयं साहित्यिक थे तथा साहित्य निर्माण में रस लेते थे। उन्होंने अपने राज्यों में होने वाले कवियों एवं विद्वानों को आश्रय दिया तथा बड़ी-बड़ी पदवियाँ देकर सम्मानित किया। अपनी-अपनी राजधानियों में हस्तलिखित ग्रंथ संग्रहालय स्थापित किये तथा उनकी सुरक्षा करके प्राचीन साहित्य की महत्त्वपूर्ण निधि को नष्ट होने से बचाया। यही कारण है कि आज भी राजस्थान में कितने ही स्थानों पर विशेषत: जयपुर, अलवर, बीकानेर आदि स्थानों पर राज्य के पोथीखाने मिलते हैं जिनमें महत्त्वपूर्ण साहित्य संगृहीत किया हुआ है। यह सब कार्य राज्य-स्तर पर किया गया। इसके विपरीत राजस्थान के निवासियों ने भी पूरी लगन के साथ साहित्य एवं साहित्यिकों की उल्लेखनीय सेवायें की हैं और इस दिशा में जैन यतियों एवं गृहस्थों की सेवा अधिक प्रशंसनीय रही है। उन्होंने विद्वानों एवं साधुओं से अनुरोध करके नवीन साहित्य का निर्माण करवाया। पूर्व निर्मित साहित्य के प्रचार के लिये ग्रंथों की प्रतिलिपियाँ करवायी तथा उनको स्वाध्याय के लिये शास्त्र भण्डारों में विराजमान की। प्राचीन साहित्य का संग्रह किया तथा जीर्ण एवं शीर्ण ग्रंथों का जीर्णोद्धार करवा कर उन्हें नष्ट होने से बचाया। जैन संघ की इस अनुकरणीय एवं प्रशंसनीय साहित्य सेवा के फलस्वरूप राजस्थान के गाँवों, कस्बों एवं नगरों में ग्रंथ संग्रहालय स्थापित किये गये तथा उनकी सुरक्षा एवं संरक्षण का सारा भार उन्हीं स्थानों पर रहने वाले जैन श्रावकों को दिया गया। साहित्य संग्रह की दिशा में राजस्थान के अन्य स्थानों की अपेक्षा जयपुर, नागौर, जैसलमेर आदि स्थानों की भण्डार संख्या, प्राचीनता, साहित्य-समृद्धि एवं विषय-वैचित्र्य आदि की दृष्टि से उल्लेखनीय हैं। राजस्थान के इन भण्डारों में ताड़पत्र, कपड़ा और कागज इन तीनों पर ही ग्रंथ मिलते हैं किन्तु ताड़पत्र के ग्रंथ तो जैसलमेर के भण्डारों में ही मुख्यतया संगृहीत हैं। अन्य स्थानों में उनकी संख्या नाममात्र की है। कपड़े पर लिखे हुये ग्रंथ भी बहुत कम संख्या में मिलते हैं। अभी जयपुर के (५५) Jain Education International For Private & Personal use only www.jainelibrary.org
SR No.002730
Book TitlePrakrit Pandulipi Chayanika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKamalchand Sogani
PublisherApbhramsa Sahitya Academy
Publication Year2006
Total Pages96
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size5 MB
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