Book Title: Mata Pita Aur Bachho Ka Vyvahaar
Author(s): Dada Bhagwan
Publisher: Mahavideh Foundation
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादा भगवान प्ररूपित माता-पिता और बच्चों का व्यवहार डाँट कर नहीं, प्रेम से सुधारो माँ-बाप बच्चों को सुधारने के लिए सब फ्रेक्चर कर डालते हैं। हमें बच्चों के लिए भाव करते रहना है कि बच्चों को सद्बुद्धि प्राप्त हो। ऐसा करते करते असर हए बिना नहीं रहता। वे तो धीमे-धीमे समझेंगे।तुम भावना करते रहो। उन पर जबरदस्ती करोगे तो वे उलटे चलेंगे।और बच्चों को कभी मारना मत।कोई भूलचूक हो तो धीरे से सिर पर हाथ फेर कर उन्हें समझाना ज़रूर। प्रेम दें तो बच्चा समझदार होता है, तरंत समझ जाता है। तात्पर्य यह कि यह संसार जैसे-तैसे निभालेने जैसा है। - दादाश्री ISEANPTER-WIL.160 ONSTISआहे. Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादा भगवान प्ररूपित प्रकाशक : अजित सी. पटेल महाविदेह फाउन्डेशन 'दादा दर्शन', 5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कॉलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद - ३८००१४, गुजरात फोन - (०७९) २७५४०४०८, २७५४३९७९ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार All Rights reserved - Shri Deepakbhai Desai Trimandir, Simandhar City, Ahmedabad-Kalol Highway, Post - Adalaj, Dist.-Gandhinagar-382421, Gujarat, India. प्रथम संस्करण : प्रत ३०००, अप्रैल, २००९ मूल गुजराती पुस्तक 'माबाप छोकरांनो व्यवहार' (संक्षिप्त ) का हिन्दी अनुवाद भाव मूल्य : 'परम विनय' और 'मैं कुछ भी जानता नहीं', यह भाव! द्रव्य मूल्य : २० रुपये लेसर कम्पोझ : दादा भगवान फाउन्डेशन, अहमदाबाद मूल गुजराती संकलन : डॉ. नीरूबहन अमीन अनुवाद : महात्मागण मुद्रक : महाविदेह फाउन्डेशन (प्रिन्टिंग डिवीज़न), पार्श्वनाथ चैम्बर्स, नई रिज़र्व बैंक के पास, उस्मानपुरा, अहमदाबाद-३८० ०१४. फोन : (०७९) २७५४२९६४, ३०००४८२३ Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ त्रिमंत्र समर्पण अनादि काल से, माँ-बाप बच्चों का व्यवहार, राग-द्वेष के बंधन और ममता की मार । न कह सकें, न सह सकें, जाएँ तो जाएँ कहाँ? किस से पूछे, कौन बताये उपाय यहाँ? उलझे थे राम, दशरथ और श्रेणिक भी, श्रवण की मृत्यु पर, माँ-बाप की चीख निकली थी। शादी के बाद पूछे 'गुरु' पत्नी से बार-बार, इस त्रिकोण में क्या करूँ, बतलाओ तारणहार ! आज के बच्चे, उलझें माँ-बाप से, बड़ा अंतर पड़ा, 'जनरे शन गेप' से। मोक्ष का ध्येय है, करना पार संसार, कौन बने खिवैया? नैया है मझधार ! अब तक के ज्ञानियों ने, बतलाया बैराग, औलादवाले पड़े सोच में, कैसे बनें वीतराग? दिखलाया नहीं किसी ने, संसार सह मोक्षमार्ग, कलिकाल का आश्चर्य, 'दादा' ने दिया अक्रममार्ग! संसार में रहकर भी, हो सकते हैं वीतराग, खुद होकर दादा ने, प्रज्वलित किया चिराग। उस चिराग की रौशनी में मोक्ष पाएँ मुमुक्षु, सच्चा खोजी पाए यहाँ, निश्चय ही दिव्यचक्षु । उस रौशनी की किरणें, प्रकाशित हैं इस ग्रंथ में, माता-पिता बच्चों का व्यवहार सुलझे पंथ में। दीपक से दीपक जले, प्रत्येक के घट-घट में, जग को समर्पित यह ग्रंथ, प्राप्त करो अब झट से। Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दादा भगवान कौन ? जून १९५८ की एक संध्या का करीब छः बजे का समय, भीड़ से भरा सूरत शहर का रेल्वे स्टेशन, प्लेटफार्म नं. 3 की बेंच पर बैठे श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल रूपी देहमंदिर में कुदरती रूप से, अक्रम रूप में, कई जन्मों से व्यक्त होने के लिए आतुर 'दादा भगवान' पूर्ण रूप से प्रकट हुए। और कुदरत ने सर्जित किया अध्यात्म का अद्भुत आश्चर्य । एक घण्टे में उनको विश्वदर्शन हुआ। 'मैं कौन? | भगवान कौन ? जगत कौन चलाता है? कर्म क्या? मुक्ति क्या?' इत्यादि जगत के सारे आध्यात्मिक प्रश्नों के संपूर्ण रहस्य प्रकट हुए। इस तरह कुदरत ने विश्व के सन्मुख एक अद्वितीय पूर्ण दर्शन प्रस्तुत किया और | उसके माध्यम बने श्री अंबालाल मूलजीभाई पटेल, गुजरात के चरोतर क्षेत्र के भादरण गाँव के पाटीदार, कान्ट्रेक्ट का व्यवसाय करने वाले, फिर भी पूर्णतया वीतराग पुरुष ! उन्हें प्राप्ति हुई, उसी प्रकार केवल दो ही घण्टों में अन्य मुमुक्षु जनों को भी वे आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे, उनके अद्भुत सिद्ध हुए ज्ञानप्रयोग से उसे अक्रम मार्ग कहा। अक्रम, अर्थात् बिना क्रम के, और क्रम अर्थात् सीढ़ी दर सीढ़ी, क्रमानुसार ऊपर चढ़ना । अक्रम अर्थात् लिफ्ट मार्ग, शॉर्ट कट ! वे स्वयं प्रत्येक को 'दादा भगवान कौन?' का रहस्य बताते हुए कहते थे कि "यह जो आपको दिखाई देते है वे दादा भगवान नहीं है, वे तो 'ए. एम. पटेल' है। हम ज्ञानी पुरुष हैं और भीतर प्रकट हुए हैं, वे 'दादा भगवान' हैं दादा भगवान तो चौदह लोक के नाथ हैं। वे आप में भी हैं, सभी में हैं। आपमें अव्यक्त रूप में रहे हुए हैं और 'यहाँ' हमारे भीतर संपूर्ण रूप से व्यक्त हुए हैं। दादा भगवान को मैं भी नमस्कार करता हूँ।' 'व्यापार में धर्म होना चाहिए, धर्म में व्यापार नहीं, इस सिद्धांत | से उन्होंने पूरा जीवन बिताया। जीवन में कभी भी उन्होंने किसी के पास ( से पैसा नहीं लिया बल्कि अपनी कमाई से भक्तों को यात्रा करवाते थे। 5 आत्मज्ञान प्राप्ति की प्रत्यक्ष लिंक मैं तो कुछ लोगों को अपने हाथों सिद्धि प्रदान करनेवाला हूँ। पीछे अनुगामी चाहिए कि नहीं चाहिए? पीछे लोगों को मार्ग तो चाहिए न?" - दादाश्री परम पूज्य दादाश्री गाँव-गाँव, देश-विदेश परिभ्रमण करके मुमुक्षु जनों को सत्संग और आत्मज्ञान की प्राप्ति करवाते थे । आपश्री ने अपने जीवनकाल में ही पूज्य डॉ. नीरूबहन अमीन (नीरूमाँ) को आत्मज्ञान प्राप्त करवाने की ज्ञानसिद्धि प्रदान की थीं। दादाश्री के देहविलय पश्चात् नीरूमाँ वैसे ही मुमुक्षुजनों को सत्संग और आत्मज्ञान की प्राप्ति, निमित्त भाव से करवा रही थी । पूज्य दीपकभाई देसाई को दादाश्री ने सत्संग करने की सिद्धि प्रदान की थी। नीरूमाँ की उपस्थिति में ही उनके आशीर्वाद से पूज्य दीपकभाई देश-विदेशो में कई जगहों पर जाकर मुमुक्षुओं को आत्मज्ञान करवा रहे थे, जो नीरूमाँ के देहविलय पश्चात् आज भी जारी है। इस आत्मज्ञानप्राप्ति के बाद हज़ारों मुमुक्षु संसार में रहते हुए, जिम्मेदारियाँ निभाते हुए भी मुक्त रहकर आत्मरमणता का अनुभव करते हैं। ग्रंथ में मुद्रित वाणी मोक्षार्थी को मार्गदर्शन में अत्यंत उपयोगी सिद्ध होगी, लेकिन मोक्षप्राप्ति हेतु आत्मज्ञान प्राप्त करना ज़रूरी है। अक्रम मार्ग के द्वारा आत्मज्ञान की प्राप्ति का मार्ग आज भी खुला है। जैसे प्रज्वलित दीपक ही दूसरा दीपक प्रज्वलित कर सकता है, उसी प्रकार प्रत्यक्ष आत्मज्ञानी से आत्मज्ञान प्राप्त कर केही स्वयं का आत्मा जागृत हो सकता है। 6 Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रस्तावना निवेदन आत्मविज्ञानी श्री अंबालाल मलजीभाई पटेल, जिन्हें लोग 'दादा भगवान' के नाम से भी जानते हैं, उनके श्रीमुख से अध्यात्म तथा व्यवहार ज्ञान संबंधी जो वाणी निकली, उसको रिकॉर्ड करके, संकलन तथा संपादन करके पुस्तकों के रूप में प्रकाशित किया जाता हैं। माता-पिता और बच्चों के बीच वर्तमान तनावपूर्ण व्यवहार को सहजता प्रदान करने हेतु, संपूज्य सर्वज्ञ दादाश्री के पास आए श्रेयार्थियों को जो मार्गदर्शन दिया गया उसका संकलन, जगत्कल्याण के लिए, इस संक्षिप्त ग्रंथ में किया है। दादाश्री ने जो कुछ कहा, चरोतरी ग्रामीण गुजराती भाषा में कहा। इसे हिन्दी भाषी श्रेयार्थियो तक पहुँचाने का यह यथामति, यथाशक्ति नैमितिक प्रयत्न है। 'ज्ञानीपुरुष' के जो शब्द है, वह भाषाकीय दृष्टि से सीधे-सादे है किन्तु 'ज्ञानीपुरुष' का दर्शन निरावरण है, इसलिए उनके प्रत्येक वचन आशयपूर्ण, मार्मिक, मौलिक और सामनेवाले के व्य पोइन्ट को एक्जैक्ट (यथार्थ) समझकर निकलने के कारण श्रोता के दर्शन को सुस्पष्ट खोल देते है और अधिक ऊँचाई पर ले जाते है। ज्ञानी की वाणी को हिन्दी भाषा में यथार्थ रूप से अनुवादित करने का प्रयत्न किया गया है किन्तु दादाश्री के आत्मज्ञान का सही आशय, ज्यों का त्यों तो, आपको गुजराती भाषा में ही अवगत होगा। जिन्हें ज्ञान की गहराई में जाना हो, ज्ञान का सही मर्म समझना हो, वह इस हेतु गुजराती भाषा सीखें, ऐसा हमारा अनुरोध है। प्रस्तुत पुस्तक में कई जगहों पर कोष्ठक में दर्शाये गये शब्द या वाक्य परम पूज्य दादाश्री द्वारा बोले गये वाक्यों को अधिक स्पष्टतापूर्वक समझाने के लिए लिखे गये हैं। जबकि कुछ जगहों पर अंग्रेजी शब्दों के हिन्दी अर्थ के रूप में रखे गये हैं। दादाश्री के श्रीमुख से निकले कुछ गुजराती शब्द ज्यों के त्यों रखे गये हैं, क्योंकि उन शब्दों के लिए हिन्दी में ऐसा कोई शब्द नहीं है, जो उसका पूर्ण अर्थ दे सके। हालांकि उन शब्दों के समानार्थी शब्द अर्थ के रूप में दिये गये हैं। अनुवाद संबंधी कमियों के लिए आप से क्षमाप्रार्थी हैं। माता-पिता बच्चों का हुआ व्यवहार, अनंत काल से, न आया तो भी पार। 'मैंने पाले, पढ़ाये' न कह सकें; 'तुम्हें किस ने पढ़ाया?' तब क्या कहें? अनिवार्य है फर्ज बच्चों के प्रति सभी; किया था पिता ने ही तुम्हारा भी सभी। यूं ही डाँट-डपट कर, ना देना संताप; बड़े होकर ये बच्चे, देंगे दुगना ताप! मेरे बच्चे ऐसे हों, ऐसा सदा चाहें; खुद दोनों कैसे झगड़े यह ना कभी सोचें। माँ मूली और बाप हो गाजर! बच्चे फिर सेब होंगे क्यों कर? एक बच्चे की परवरिश की जिम्मेदारी; है भारत के प्रधानमंत्री से भी भारी। तुझ से अधिक मैंने देखी दीवाली: बच्चे कहें, 'आप दीये मिट्टी के, हम हैं बिजली।' माता-पिता के झगड़े, बिगाड़े बाल मन, पड़े गांठें, समझें उनको बोगस, मन ही मन। डाँटने से नहीं सुधरते आज के बच्चे कभी, प्रेम से ही है प्रकाशमान इक्कीसवीं सदी। मारने-डाँटने पर भी घटता नहीं प्रेम जहाँ, प्रेम के प्रभाव से बच्चे बने महावीर वहाँ। नयी पीढ़ी है हैल्दी माइण्डवाली; भोगवादी तो है, मगर नहीं कषायवाली। Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ गुस्से की मार को बालक न भूलेंगे; पिता से भी सवाये गुस्सैल बनेंगे। घर-घर प्राकृतिक खेत थे सतयुग में; भिन्न भिन्न फूलों के बाग़ हैं कलियुग में। माली बनो तो, बाग ये सुन्दर सजे; वर्ना बिगड़कर कषायों को भजे। करना नहीं कभी भी बेटी पर शंका, वर्ना सुनना पड़ेगा, बरबादी का डंका। उत्तराधिकार में बच्चों को दें कितना? अपने पिता से मिला हो हमें जितना। फिजूलखर्च बनेगा जो दोगे ज्यादा; होकर शराबी छोड़ देगा मर्यादा। करोगे बच्चों पर राग जितना, बदले में होगा द्वेष फिर उतना! राग-द्वेष से छूटने को हो जाओ वीतराग; भवपार करने का बस एक यही मार्ग! मोक्ष हेतु निःसंतान होना महापुण्यशाली; गोद नहीं खाली परन्तु है बही खाली! किस जन्म में, जन्मे नहीं बच्चे? अब तो शांत हो, बनो मुमुक्षु सच्चे। माता-पिता संतान के संबंध हैं संसारी; वसीयत में दिया नहीं कुछ, आई कोर्ट की बारी। डाँटो दो ही घण्टे तो टूटे यह संबंध! ये तो हैं स्मशान तक के संबंध! नहीं होते कभी अपनी नज़र में बच्चे एक समान राग-द्वेष के बंधन का यह है सिर्फ लेन-देन। आत्मा सिवा संसार में कोई नहीं है अपना, दुःखे देह और दाँत, हिसाब अपना-अपना। हिसाब चुकाने में जोश न होवे मंदा, समझकर चुका दे, वर्ना है फाँसी का फंदा! कहते हैं, माँ को तो बच्चे सभी समान; राग-द्वेष हैं मगर, लेन-देन के प्रमाण। माता-पिता एक, पर बच्चे अलग-अलग; वर्षा तो है समान पर बीज अनुसार फसल। कुदरत के कानून से एक परिवार में मिलाप; समान परमाणु ही खिंचें अपने ही आप! मिलते हैं, द्रव्य-क्षेत्र-काल और भाव; घटना घटे 'व्यवस्थित'का वही स्वभाव! श्रेणिक राजा को पुत्र ने ही डाला जेल में; पुत्र के डर से ही हीरा चूसकर मरे वे! आत्मा का कोई नहीं पुत्र यहाँ; छोड़कर माया परभव सुधारो यहाँ! Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संपादकीय किस जन्म में बच्चे नहीं हुए? माता-पिता के बगैर किसका अस्तित्व संभव है? सभी भगवान माँ के पेट से ही जन्मे थे! इस प्रकार मातापिता और बच्चों का व्यवहार अनादि अनंत है। यह व्यवहार आदर्श किस प्रकार बने, इसके लिए सब दिन-रात प्रयत्न करते दिखते हैं। उसमें भी इस कलियुग में तो हर बात पर माता-पिता और बच्चों के बीच जो मतभेद देखने में आते हैं, उन्हें देखकर लोग घबरा जाते हैं। सत्युग में भी भगवान राम और लव-कुश का व्यवहार कैसा था? ऋषभदेव भगवान से अलग संप्रदाय चलानेवाले मरीचि भी तो थे। धृतराष्ट्र की ममता और दुर्योधन की स्वच्छंदता क्या अनजानी है? भगवान महावीर के समय में श्रेणिक राजा और पुत्र कोणिक मुगलों की याद नहीं दिलाते क्या?! मुगल बादशाह जगप्रसिद्ध हुए, उनमें एक ओर बाबर था, जिसने हुमायूँ के जीवन की खातिर, अपना जीवन बदले में देने की अल्लाह से दुआ की थी, तब दूसरी ओर शाहजहाँ को कैद में डालकर औरंगजेब गद्दीशीन हुआ था। भगवान राम पिता के कारण ही बनवास गए थे। श्रवण ने माता-पिता को कावड़ में बिठाकर यात्रा करवाई थी (मुखपृष्ठ)। ऐसे राग-द्वेष के बीच झलता हुआ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रत्येक काल में होता है। वर्तमान में द्वेष का व्यवहार विशेष रूप से देखने में आता है। ऐसे काल में समता में रहकर आदर्श व्यवहार के द्वारा मुक्त होने का रास्ता अक्रम विज्ञानी परम पूज्य दादा भगवान (दादाश्री) की वाणी के द्वारा यहाँ प्ररूपित हुआ है। आज के युवावर्ग का मानस, पूर्ण रूप से जानकर, उसे जीतने का रास्ता दिखाया है। विदेश में स्थित भारतीय मातापिता और बच्चों की, दो देशों की भिन्न भिन्न संस्कृतियों के बीच, जीवन जीने की कठिन समस्या का संदर निराकरण प्रसंगानुसार बातचीत करके बताया है। ये सुझाव वरिष्ठ पाठकों को और युवावर्ग को बहुत-बहुत उपयोगी सिद्ध होंगे, एक आदर्श जीवन जीने के लिए। प्रस्तुत पुस्तक दो विभागों में संकलित होकर प्रकाशित हो रही है। पूर्वार्ध : माता-पिता का बच्चों के प्रति व्यवहार उतरार्ध : बच्चों का माता-पिता के प्रति व्यवहार पूर्वार्ध में परम पूज्य दादाश्री के कईं माता-पिता के साथ हुए सत्संगों का संकलन है। माता-पिता की कईं मनोव्यग्रताएँ परम पूज्य दादाश्री के समक्ष अनेक बार प्रदर्शित हुई थीं। जिनके सटीक हल दादाश्री ने दिये हैं। जिनमें माता-पिता को व्यवहारिक समस्याओं के समाधान मिलते हैं। उनके अपने व्यक्तिगत जीवन को सुधारने की चाबियाँ मिलती हैं। उसके अलावा बच्चों के साथ दैनिक जीवन में आनेवाली मुश्किलों के अनेक समाधान प्राप्त होते हैं, जिससे संसार व्यवहार सुखमय रूप से परिपूर्ण हो। माता-पिता और बच्चों के बीच जो पारस्परिक संबंध हैं, तात्विक दृष्टि से जो जो वास्तविकताएँ हैं, वे भी ज्ञानीपुरुष समझाते हैं, जिससे मोक्ष मार्ग पर आगे बढ़ने में माता-पिता की मूर्छा दूर हो जाए और जागृति आ जाए। जब कि उत्तरार्ध में परम पूज्य दादाश्री के बच्चों और यवा लडकेलड़कियों के साथ हुए सत्संगों का संकलन है, जिसमें बच्चों ने अपने जीवन की व्यक्तिगत मनोव्यग्रताओं के समाधान प्राप्त किए हैं। माता-पिता के साथ कैसा व्यवहार करना चाहिए, वह समझ प्राप्त होती है। शादी करने संबंधी ऐसी उत्तम समझ प्राप्त होती है कि युवा पीढ़ी अपने जीवन में सच्ची बात समझकर, व्यवहार में पूर्णरूप से निराकरण ला सके। बच्चे अपने माता-पिता की सेवा का माहात्म्य और परिणाम समझें। माता-पिता की समस्याएँ जैसे कि बच्चों के लिए इतना कुछ किया, फिर भी बच्चे अवज्ञा करते हैं, इसकी क्या वजह है? बच्चे बड़े होकर ऐसे संस्कारी होंगे, वैसे होंगे वगैरह वगैरह सपने जब नष्ट होते देखते हैं, तब जिस आघात का अनुभव होता है, उसका समाधान कैसे करें? कुछ बच्चे तो माता-पिता के परिणित जीवन का सुख (!) देखकर शादी से इन्कार कर देते हैं तब क्या करें? माता-पिता संस्कारों का सिंचन कैसे करें? खुद उसका ज्ञान कहाँ से प्राप्त करें? कैसे प्राप्त करें? बिगड़े बच्चों Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ को किस प्रकार सुधारें? बातों-बातों में माता-पिता और बच्चों के बीच होता टकराव कैसे टले? बच्चों को माता-पिता बॉसीज़म करते लगते हैं और माता-पिता को बच्चे पथभ्रष्ट होते लगते हैं: अब इसका रास्ता क्या? बच्चों को अच्छा सिखाने के लिए कुछ कहना पड़े और बच्चे उसे किटकिट समझकर सामने तर्क करें तब क्या करें? छोटे बच्चे और बड़े बच्चों के साथ किस प्रकार अलग-अलग व्यवहार करें? घर की भिन्न-भिन्न प्रकृतियों का सच्चा माली किस प्रकार बनें? उसका लाभ किस समझ से उठा पाएँ? कोई लोभी, तो कोई फिजूलखर्च, कोई चोर, तो कोई औलिया (सन्त-स्वभावी), घर के बच्चों की ऐसी भिन्न भिन्न प्रकृतियाँ हों तो, घर के वरिष्ठ क्या समझें और क्या करें? पिता को शराब, बीड़ी का व्यसन हो तो उससे किस प्रकार छुटकारा हो, जिससे बच्चों को उनके बुरे असर से बचा सकें? बच्चे दिन और रात देर तक टी.वी.-सिनेमा देखते रहें तो, उससे उन्हें किस प्रकार बचायें? नयी पीढ़ी (जनरेशन) की कौन-सी अच्छी बातों को ध्यान में रखकर उनका लाभ कैसे उठायें? कल की कषायपूर्ण और वर्तमान की भोगवादी पीढ़ियों के अंतर को किस प्रकार दूर करें? एक ओर आज की पीढ़ी का हैल्दी माईन्ड (तंदुरुस्त दिमाग) देखकर गर्दन झुक जाए, ऐसा लगता है और दूसरी ओर विषयांध दिखते हैं, वहाँ क्या हो सकता है? देर से उठनेवाले बच्चों को किस प्रकार सुधारें? पढ़ने में कमजोर बच्चों को किस प्रकार सुधारें? उन्हें पढ़ने के लिए किस प्रकार प्रोत्साहित करें? बच्चों के साथ व्यवहार करते समय संबंध टूट जाएँ तो किस प्रकार उन्हें काउन्टर पुली के द्वारा जोड़ें? बच्चे भीतर ही भीतर लड़ें, तब तटस्थ रहकर न्याय किस प्रकार करें? बच्चे रूठे तब क्या करें? बच्चों का क्रोध शांत करने के लिए क्या करें? बच्चों को क्या गलती महसूस करवा सकते हैं? क्या बच्चों को डाँटना जरूरी है? डाँटें या महसूस करवाएँ, किस प्रकार से? बच्चों को डाँटें तो 13 कौन-सा कर्म बंधता है? उनको दुःख हो तो क्या उपाय है? बच्चों को पीटना चाहिए? पीट दिया तो क्या उपाय है? काँच के समान बालमानस को किस प्रकार से हैण्डल करें? माता-पिता कठोर परिश्रम करके कमाई करें और बच्चे फिजूल खर्च करते हों तो क्या एडजस्टमेन्ट (समाधान) लें? बच्चों को स्वतंत्रता देनी चाहिए? अगर देनी चाहिए तो किस हद तक? लड़का शराबी हो तो क्या कदम उठायें? बहुत गालियाँ दे तो क्या करें? मोक्ष का ध्येय रखकर अध्यात्म एवं माता-पिता और बच्चों के व्यवहार का किस प्रकार समन्वय करें? माता-पिता लड़के से अलग हों तो क्या करना चाहिए? लड़कियाँ रात को देर से आएँ तो? कुसंगती हो गई हो तब क्या करें? लड़की ने विजातीय से शादी की हो तो क्या करें? लड़की पर शंका रहा करती हो तो क्या करना चाहिए? विल-वसीयतनामा करना चाहिए? कैसा करना चाहिए? किसे कितना देना चाहिए? मरने से पहले दें या बाद में? लड़के पैसा माँगे तब क्या करें? घरजवाई रखने चाहिए या नहीं? बच्चों पर कितना मोह रखें? लगाव, ममता का क्या रहस्य है? ये कितने फायदेमंद हैं? गुरु (पत्नी) आते ही बेटा बदल जाए तो क्या करें? जिसे बच्चे न हों उनके कर्म कैसे हैं? बच्चे नहीं हों तो, श्राद्ध कर के मुक्ति कौन दिलायेगा? छोटी उम्र में बच्चों की मृत्यु हो तो मातापिता किस प्रकार सहन करें? उनके लिए क्या करें? जब दादाश्री के बच्चे मर गए तब उन्होंने क्या किया था? रिलेशन (संबंध) ट रहे हों तो किस तरह जोड़ें ? ज्ञानी किस ज्ञान से भव सागर को पार करने का रास्ता दिखाते हैं? कली को खिलाने की कला ज्ञानी की कैसी होती है, वह यहाँ देखने को मिलती है। यहाँ पर दो साल से लेकर बारह साल के बच्चों को खिलते देखते हैं, तब बहुत-कुछ सीखने को मिलता है, प्रेम, समता और आत्मीयता के रंग से। Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बच्चों को किस प्रकार पढ़ाना-लिखाना चाहिए और गढ़ना चाहिए? बच्चे शादी करने योग्य हों, तब बड़ा प्रश्न आकर खड़ा होता है, पात्र कौन हो और किस प्रकार पसंद करें? दादाश्री लडके और लड़कियों को बहत ही सुन्दर मार्गदर्शन देते हैं, जिससे माता-पिता और बच्चों की सहमति से पात्र का चुनाव हो। ___ लड़कियों को ससुराल में सबको प्रेम से वश में करने की सुन्दर चाबियाँ दादाश्री ने प्रदान की हैं। माता-पिता की सेवा, विनय से उनके आशीष प्राप्त करने का महत्व क्या है और वह कैसे प्राप्त हो? अंत में, वृद्धों की व्यथा और उसे हल करने के लिए वृद्धाश्रम की आवश्यकता और आध्यात्मिक जीवन कैसे जीएँ, इसका सुन्दर मार्गदर्शन यहाँ संकलित हुआ है। जिसे पढ़कर समझने से माता-पिता और बच्चों दोनों का व्यवहार आदर्श होगा। - डॉ. नीरुबहन अमीन सूचिपृष्ठ पेज नं. माता-पिता का बच्चों के प्रति व्यवहार (पूर्वार्ध) १. सिंचन, संस्कार के... २. फर्ज़ के गीत क्या गाना? ३. नहीं झगड़ते, बच्चों की उपस्थिति में... ४. अनसर्टिफाइड फादर्स एण्ड मदर्स ५. समझाने से सुधरें, बच्चे ६. प्रेम से सुधारो नन्हे मुन्नों को ७. 'विपरीतता ऐसे छूट जाय' ८. नयी जनरेशन, हेल्दी माईन्डवाली ९. माता-पिता की शिकायतें १०. शंका के शूल ११. वसीहत में बच्चों को कितना? १२. मोह के मार से मरे अनेकों बार १३. भला हुआ जो न बंधी जंजाल... १४. नाता, रिलेटिव या रिअल? १५. वह है लेन-देन, नाता नहीं बच्चों का माँ-बाप के प्रति व्यवहार (उतरार्ध) १६. 'टीनेजर्स' (युवा उम्रवालों) के साथ 'दादाश्री' १७. पत्नी का चुनाव १८. पति का चयन १९. संसार में सुख की साधना, सेवा से Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार माता-पिता का बच्चों के प्रति व्यवहार ( पूर्वार्ध) १. सिंचन, संस्कार के... प्रश्नकर्ता : यहाँ अमरीका में पैसा है, लेकिन संस्कार नहीं हैं और आसपास का वातावरण ही ऐसा है, तो इसके लिए क्या करें? दादाश्री : पहले तो माता-पिता को संस्कारी होना चाहिए। फिर बच्चे बाहर जाएँगे ही नहीं। माता-पिता ऐसे हों, कि उनका प्रेम देखकर बच्चे वहाँ से दूर ही न जाएँ। माता-पिता को ऐसा प्रेममय होना चाहिए। बच्चों को अगर सुधारना है तो तुम जिम्मेदार बनो। बच्चों के साथ तुम फर्ज से बंधे हुए हो। हमें बच्चों को उच्च स्तर के संस्कार देने चाहिए। अमरीका में कई लोग कहते हैं कि हमारे बच्चे मांसाहार करते हैं और ऐसा बहुत कुछ करते हैं। तब मैंने उनसे पूछा, 'तुम मांसाहार करते हो?' तो बोले, 'हाँ, हम करते हैं।' तब मैंने कहा, 'तब तो बच्चे करेंगे ही।' हमारे ही संस्कार! और अगर हम नहीं करते हों तो भी वे करेंगे, मगर दूसरी जगह पर जा कर। अगर हम उन्हें संस्कारी बनाना चाहते हैं तो हमें अपना फर्ज नहीं चूकना चाहिए। अब बच्चों का हमें ध्यान रखना चाहिए कि ऐसा-वैसा, यहाँ का खाना न खाएँ। और यदि हम खाते हों तो अब यह ज्ञान प्राप्त होने के बाद हमें सब बंद कर देना चाहिए। अतः वे हमारे जैसे संस्कार देखेंगे वैसा करेंगे। पहले हमारे माता-पिता संस्कारी क्यों कहलाते थे? वे बहुत माता-पिता और बच्चों का व्यवहार नियमवाले थे और तब उनमें संयम था। और आजकल के माता-पिता तो बिना संयमवाले होते हैं। प्रश्नकर्ता : बच्चें बड़े हों तब हमें उन्हें धर्म का ज्ञान किस तरह देना चाहिए? दादाश्री : हम धर्म स्वरूप हो जाएँ, तो वे भी हो जाएँगे। हमारे जैसे गुण होंगे, बच्चे वैसा ही सीखेंगे। इसलिए हमें ही धर्मिष्ठ हो जाना है। हमें देख-देख कर सीखेंगे। यदि हम सिगरेट पीते होंगे तो वे भी सिगरेट पीना सीखेंगे। हम शराब पीते होंगे तो वे भी शराब पीना सीखेंगे। माँस खाते होंगे तो माँस खाना सीखेंगे। जो हम करते होंगे वैसा ही वे सीखेंगे। वे सोचेंगे कि हम इनसे भी बढ़कर करें। प्रश्नकर्ता : अच्छे स्कूल में पढ़ाने से अच्छे संस्कार नहीं आते? दादाश्री : लेकिन, वे सब संस्कार नहीं हैं। बच्चों के संस्कार तो माता-पिता के सिवा किसी और से नहीं आते। संस्कार माता-पिता और गुरु के ही होते है और थोड़े-बहुत संस्कार मित्रों तथा आसपास के लोगों से मिलते है। सबसे अधिक संस्कार माता-पिता से मिलते है। माता-पिता संस्कारी हों, तो बच्चे भी संस्कारी होते हैं वरना संस्कारी नहीं होते। प्रश्नकर्ता : हम बच्चों को पढ़ाई के लिए 'इन्डिया' भेज दें, तो हम अपनी जिम्मेदारी नहीं चूक जाते? दादाश्री : नहीं, हम नहीं चूकते। हम उनका सब खर्च दे दें। वहाँ पर तो ऐसे स्कूल हैं कि जहाँ हिन्दुस्तान के लोग भी अपने बच्चों को पढ़ाई के लिए भेजते हैं। खाना-पीना वहाँ और रहने का भी वहाँ, ऐसे बहुत से अच्छे स्कूल हैं। प्रश्नकर्ता : दादा, घर-संसार शांतिपूर्ण रहे और अंतरात्मा का भी जतन हो ऐसा कर दीजिए। दादाश्री : घर-संसार शांतिपूर्ण रहे इतना ही नहीं, बच्चे भी हमें देखकर ज्यादा संस्कारी हों, ऐसा हो सकता है। यह तो माता-पिता का Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार पागलपन देखकर बच्चे भी पागल हो गए हैं। क्योंकि माता-पिता के आचार-विचार उपयुक्त नहीं है। पति-पत्नी भी, बच्चे बैठे हों, तब मर्यादाहीन चेष्टाएँ करते हैं, फिर बच्चे बिगड़ें नहीं तो और क्या होगा? बच्चों पर कैसा असर पड़ेगा? मर्यादा तो रखनी चाहिए न । यह अग्नि का कैसा प्रभाव है? छोटा बच्चा भी अग्नि का सम्मान रखता है न? माता-पिता के मन फ्रेक्चर हो गए हैं। मन विव्हल हो गए हैं। दूसरों को दुःखदायी हो ऐसी भाषा बोलते हैं। इससे बच्चे बिगड़ जाते हैं। पत्नी ऐसा बोलती है कि पति को दुःख हो और पति ऐसा बोलता है कि पत्नी को दुःख हो । हिन्दुस्तान के माता-पिता कैसे होने चाहिए? वे बच्चों को सिखाकर, इस प्रकार तैयार करें कि सभी संस्कार उन्हें पंद्रह साल की उम्र तक दे दें। प्रश्नकर्ता : अब यह जो संस्कार का स्तर है वह नीचा जाने लगा है। इसी की यह सब समस्या है। दादाश्री : नहीं, नहीं। संस्कार ही खत्म होने लगे है। इसमें अब दादा मिले इसलिए फिर से मूल संस्कार लायेंगे। सत्युग में थे, ऐसे संस्कार फिर से लायेंगे। इस हिन्दुस्तान का एक बच्चा सारे विश्व का बोझ उठा सके, इतनी शक्ति का धनी है। केवल उसे पुष्टि देने की ज़रूरत है। ये तो भक्षक निकले ! भक्षक यानी अपने सुख के लिए जो दूसरों को सभी तरह से लूट लें। जो अपना सुख त्याग कर बैठा है, वही दूसरों को समस्त सुख दे सकता है। लेकिन यहाँ तो सेठजी सारा दिन केवल लक्ष्मी के ही विचारों में रहते हैं। तब मुझे सेठजी से कहना पड़ता है कि 'सेठ, तुम लक्ष्मी के पीछे पड़े हो और यहाँ घर बिखर गया है!' लड़कियाँ मोटर लेकर एक तरफ जाती हैं, लड़के दूसरी तरफ और सेठानी कहीं और ही गई हो ! सेठ, तुम तो हर तरह से लुटे जा रहे हो! तब सेठ ने पूछा, 'मैं क्या करूं?' मैंने कहा, 'बात को समझो और किस प्रकार जीवन जीना है, यह समझो। केवल पैसों के पीछे मत पड़ो। शरीर का ध्यान रखो, नहीं तो हार्ट फेल हो जाएगा। शरीर का ध्यान, पैसे का ध्यान, लड़कियों के संस्कार का ध्यान, सभी कोने साफ़ करने के है। तुम एक कोना बुहारते रहते हो । ४ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार अब बंगले का एक कोना साफ़ करें और बाकी सब जगह कूड़ा पड़ा रहे तो कैसा लगे? सब कोने साफ़ करने हैं। इस तरह तो जीवन कैसे जी सकते हैं? इसलिए उनके साथ अच्छा बर्ताव करो, उच्च संस्कार दो। इन लड़कों को उच्च संस्कारी बनाओ। खुद तप करो, पर उन्हें संस्कारी बनाओ।' प्रश्नकर्ता: हम उन्हें सुधारने के प्रयत्न तो सभी करते हैं, फिर भी वे नहीं सुधरें तो फिर क्या आदर्श पिता को उसे प्रारब्ध मान कर छोड़ देना चाहिए? दादाश्री : नहीं, लेकिन प्रयत्न तो तुम अपनी तरह से करते हो न? तुम्हारे पास सर्टिफिकेट है? मुझे बताओ। प्रश्नकर्ता : हमारी बुद्धि के अनुसार प्रयत्न करते हैं । दादाश्री : तुम्हारी बुद्धि अर्थात्, एक मनुष्य खुद जज हो, खुद ही गुनहगार हो और वकील भी खुद हो, तो वह कैसा न्याय करेगा? बच्चा अपने संस्कार लेकर ही आता है। उसमें तुम्हें मदद कर के उन संस्कारों को रंग देने की ज़रूरत है। उसे छोड़ नहीं देना चाहिए कभी भी उनका ध्यान रखते रहना चाहिए। छोड़ दें तो फिर सब खत्म हो जाता है। प्रश्नकर्ता: हाँ, ऐसा करते हैं, पर आखिर में क्या उन्हें प्रारब्ध पर छोड़ देना चाहिए? दादाश्री : ना, नहीं छोड़ सकते। ऐसे छोड़ना पड़े तब मेरे पास लाना। मैं ऑपरेशन करके सुधार दूँगा। ऐसे छोड़ नहीं सकते, जोखिम है । एक लड़का बाप की मूँछें खींच रहा था, तो बाप खुश हो गया। कहने लगा, 'कैसा बेटा! देखो, मेरी मूँछें खींची!' लो, अब उसका कहा करें तो लड़का मूँछ पकड़े और बार-बार खींचे तब भी वह कुछ न बोले तो परिणाम क्या हो फिर ? और कुछ ना करें तो बच्चे को जरा चिमटी भर लें, चिमटी भरने से वह समझेगा कि यह गलत बात है। मैं जो कर Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार रहा हूँ, वह गलत है, ऐसा उसे ज्ञान होगा। उसे बहुत मारना मत, सिर्फ धीरे से चिमटी भरना। बाप ने बच्चे की मम्मी को बुलाया, तब वह रोटी बेल रही थी। उसने कहा, 'क्या काम है? मैं रोटी बेल रही हूँ।' 'तू यहाँ आ, जल्दी आ, जल्दी आ, जल्दी आ!' वह दौड़ती दौड़ती आकर पूछती है, 'क्या है?' तब वह बोला, 'देख, देख, बेटा कितना होशियार हो गया है ! देख, पैर की एडियाँ ऊँची कर के जेब में से पच्चीस रुपये निकाले।' बच्चा यह देखकर सोचता है, 'अरे! मैंने आज बहुत अच्छा काम किया। ऐसा काम मैं आज सीख गया।' और फिर वह चोर हुआ, तब क्या हो? उसे 'जेब से पैसे निकालना अच्छा है' ऐसा ज्ञान प्रकट हो गया। तुम्हें क्या लगता है? क्यों बोलते नहीं? क्या ऐसा करना चाहिए? ऐसे घनचक्कर कहाँ से पैदा हुए? ये बाप बन बैठे हैं! शर्म नहीं आती? इससे बच्चे को कैसा प्रोत्साहन मिला, यह समझ में आता है? उसने देखा कि मैंने बहुत बड़ा पराक्रम किया! इस प्रकार लुट जाना क्या हमें शोभा देता है? क्या बोलने से बच्चों को 'एन्करेजमेन्ट' (प्रोत्साहन) मिलेगा और क्या बोलने से नुकसान होगा, इतनी समझ तो होनी चाहिए न? ये तो 'अनटेस्टेड फादर' (अयोग्य पिता) और 'अनटेस्टेड मदर' (अयोग्य माता) हैं। बाप मूली और माँ गाजर, बच्चे फिर सेब थोड़े ही होंगे? इसलिए कलियुग के इन माता-पिताओं को यह सब आता ही नहीं और गलत 'एन्करेजमेन्ट' देते हैं। कुछ तो उन्हें ले लेकर घूमते हैं। पत्नी कहती है, 'इसको उठा लो,' तो पति बच्चे को उठा लेता है। क्या करे? यदि वह अकड़वाला हो और न ले तो पत्नी कहेगी, 'क्या मेरे अकेली का है? मिलकर रखने हैं।' ऐसा वैसा कहे तो पति को बच्चे को उठाना पड़ता है, क्या इससे छुटकारा है? कहाँ जाए वो? बच्चों को उठा उठाकर सिनेमा देखने जाना, दौड़धूप करना। फिर बच्चों को संस्कार किस तरह मिलें? एक बैंक मेनेजर ने मुझसे कहा, 'दादाजी, मैंने तो कभी भी वाइफ या बच्चों को एक अक्षर भी बोला नहीं है। चाहे कितनी भी भूल करें, माता-पिता और बच्चों का व्यवहार कुछ भी करे पर मैं बोलता नहीं हूँ।' वह ऐसा समझा होगा कि दादाजी मेरी बहुत तारीफ करेंगे। वह क्या आशा करता था समझ में आया न? और मुझे उसके ऊपर बड़ा गुस्सा आया कि तुम्हें किस ने बैंक का मैनेजर बनाया? तुम्हें बाल-बच्चे सम्हालना नहीं आता और बीबी सम्हालना नहीं आता! तब वह तो घबरा गया बेचारा। उल्टा मैंने उसे कहा, 'तुम अंतिम कक्षा के बेकार मनुष्य हो! तुम इस दुनिया में किसी काम के नहीं हो!' वह आदमी मन में समझता था कि मैं ऐसा कहूँगा तो 'दादा' मुझे बड़ा इनाम देंगे। पगले, इसका इनाम होता होगा? बच्चा गलत करता हो तब हमें 'तूने ऐसा क्यों किया? फिर ऐसा मत करना।' इस तरह नाटकीय रूप से कहना चाहिए; नहीं तो बच्चा समझेगा कि वह जो कुछ कर रहा है वह 'करेक्ट' (सही) ही है, क्योंकि पिता ने 'एक्सेप्ट' (स्वीकार किया है। ऐसा नहीं बोलने के कारण ही घरवाले मुँह फट हो गये। सबकुछ कहना, मगर नाटकीय! बच्चों को रात को बिठाकर समझाओ, बातचीत करो। घर के सभी कोनों से कूड़ा बुहारना पड़ेगा न? बच्चों को थोड़ा हिलाने की जरूरत है। वैसे संस्कार तो होते ही हैं, पर हिलाना पड़ता है। उनको हिलाने में कुछ गुनाह है? नन्हें बेटे-बेटियों को समझाना कि सुबह नहा-धोकर भगवान की पूजा करो और रोज़ संक्षिप्त में बोलो कि 'मुझे और सारे जगत् को सद्बुद्धि दो, जगत् का कल्याण करो।' इतना बोलें तो उनको संस्कार मिले हैं, ऐसा कहलाएगा और माता-पिता का कर्म-बंध छूट जाएगा। दूसरा, तुम्हें बच्चों से 'दादा भगवान के असीम जय जयकार हो' हर रोज़ बुलवाना चाहिए। हिन्दुस्तान के बच्चे तो इतने सुधर गए हैं, कि सिनेमा भी नहीं जाते। पहले दो-तीन दिन थोड़ा अटपटा लगेगा पर बाद में दो-तीन दिन के बाद अभ्यस्त होने पर, अंदर स्वाद उतरने पर, उल्टे खुद याद करेंगे। २. फर्ज़ के गीत क्या गाना? स्वैच्छिक कार्य का इनाम होता है। एक भाई फर्ज़ के तौर पर किए गए कार्य का इनाम खोजना चाहते थे! सारा संसार इनाम खोज रहा है Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार हैं कि मेरा गुलाब, लेकिन गुलाब तो यही समझ रहा है कि मैं खुद ही हूँ। किसी और का नहीं हूँ। सभी अपने खुद के स्वार्थ से प्रेरित हैं। ये तो हम पगला अहंकार करते है, पागलपन करते हैं। प्रश्नकर्ता : यदि हम गुलाब को पानी न दें, तो गुलाब तो मुरझा जाएगा। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार कि 'मैंने इतना-इतना किया, तुम्हें पता नहीं? तुम्हें मेरी कीमत नहीं है'। अरे मुए, क्यों कीमत खोजता है? यह जो कुछ किया वह तो फर्ज निभाया! एक आदमी अपने लड़के के साथ बहस कर रहा था, बाद में मैंने उसे डाँटा। वह कहता था, 'कर्ज कर के मैंने तुझे पढ़ाया। अगर मैं कर्ज न लेता तो क्या तू पढ़ सकता था? भटकता रहता।' मुए, बिना वजह बकवास क्यों कर रहा है? यह तो तुम्हारा फर्ज है, ऐसा नहीं कह सकते। यह तो लड़का समझदार है। अगर आपको किस ने पढ़ाया?' ऐसा पूछता तो क्या जवाब देते? ऐसा पागल की तरह बोलते रहते हैं न लोग? मूर्ख लोग, नासमझ, कुछ पता ही नहीं। ___बच्चों के लिए सब कुछ करना चाहिए। लेकिन बच्चे कहें कि 'नहीं पिताजी अब बहुत हो गया।' तो भी पिता उसे छोड़ता नहीं, तब क्या करें? बच्चे लाल झंडी दिखायें तो हमें समझना नहीं चाहिए? तुम्हें कैसा लगता है? फिर वह कहे कि मुझे व्यवसाय करना है, तो हमें व्यवसाय के लिए कुछ रास्ता कर देना चाहिए। इससे ज्यादा गहराई तक जानेवाला पिता मूर्ख है। यदि वह नौकरी में लग गया हो तो अपने पास जो कुछ हो, उसे गांठ बाँधकर रख देना चाहिए। किसी वक्त मुसीबत में हो, तब हज़ारदो हज़ार भेजना चाहिए। किन्तु यह तो हमेशा पूछता ही रहता है। तब लड़का कहता है 'आपको मना करता हूँ न कि मेरी बात में दखल मत करना।' तब यह क्या कहता है, 'अभी उसमें अक्ल नहीं है, इसलिए ऐसा कहता है।' अरे, यह तो आप निवृत्त हो गए; अच्छा ही हुआ, जंजाल से छूटे। लड़का खुद ही आपको मना कर रहा है न! __ प्रश्नकर्ता : सही रास्ता कौन-सा? हम वहाँ बच्चे संभालें या हमारे कल्याण के लिए सत्संग में आएँ? दादाश्री : बच्चे तो अपने आप संभल रहे हैं। बच्चों को तुम क्या संभालोगे? अपना कल्याण करना वही मुख्य धर्म है। बाकी ये बच्चे तो संभले हुए हैं न! बच्चों को क्या तुम बड़े करते हो? बाग में गुलाब के पौधे लगाये हों तो रात में बढ़ते हैं या नहीं बढ़ते? वह तो हम मानते दादाश्री : न दें ऐसा होता ही नहीं न! लड़के को अच्छी तरह न रखें तो लड़का काटने को दौड़ेगा या तो ढेला मारेगा। अब सांसारिक फर्ज निभाते समय धर्म कार्य का समन्वय किस प्रकार हो? लड़का उल्टा बोल रहा हो तो भी हमें अपना धर्म चूके बगैर, फर्ज पूरा करना चाहिए। आपका धर्म क्या? लड़के को पाल-पोष कर बड़ा करना, उसे सही रास्ते पर चलाना। अब वह टेढा बोल रहा है, और आप भी टेढ़ा बोलो तो परिणाम क्या होगा? वह बिगड़ जाएगा। इसलिए आपको प्रेम से उसे फिर से समझाना चाहिए कि बैठो भाई, देखो, ऐसा है, वैसा है। यानी सभी फर्जी के साथ धर्म होना चाहिए। धर्म नहीं होगा तो उसकी जगह अधर्म आ जाएगा। कोठरी खाली नहीं रहेगी। अभी यहाँ हमने कोठरियाँ खाली रख छोड़ी हों तो लोग ताला खोलकर घुस जाएँगे कि नहीं घुस जाएँगे? घर में स्त्रियों का सच्चा धर्म क्या? आसपास के सभी लोग ऐसा कहें कि वाह ! क्या कहना! फर्ज़ ऐसा निभायें कि आसपास के लोग खुश हो जाएँ। इसलिए स्त्री का सच्चा धर्म है कि बच्चों की परवरिश करना, उन्हें अच्छे संस्कार देना; पति में संस्कार कम हों तो संस्कार सींचना। सबकुछ अपना सुधारना, इसका नाम धर्म। सुधारना नहीं पड़ता? कुछ लोग तो क्या करते हैं? भगवान की भक्ति में तो तन्मय रहते हैं, मगर बच्चों को देखकर चिढ़ते हैं। जिनमें भगवान प्रकट हुए ऐसे बच्चों को देखकर चिढ़ता है और वहाँ भगवान की भक्ति करता रहता है, उसका नाम भगत ! इन बच्चों पर चिढ़ना चाहिए क्या? अरे ! इनमें तो भगवान प्रकट है! Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ठोक कर कहता है कि 'कढ़ी खारी कर दी है।' अरे! सीधा होकर खाना खा ले न! घर का मालिक, वहाँ कोई उसके ऊपर नहीं। वह खुद ही बॉस, इसलिए डॉट-डपट शुरू कर देता है। बच्चे डर जाते हैं कि पापा ऐसे पागल क्यों हो गए? पर बोल नहीं सकते। क्योंकि बेचारे दबे हुए हैं, लेकिन मन में अभिप्राय बांध लेते हैं कि पापा पागल लगते हैं। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ३. नहीं झगड़ते, बच्चों की उपस्थिति में.. अगर हम मांसाहार न करें, शराब न पीयें और घर में पत्नी के साथ झगड़ा न करें तो बच्चे देखते हैं कि पापाजी बहुत अच्छे हैं। दूसरों के पापा-मम्मी झगड़ते है, मेरे मम्मी पापा नहीं झगड़ते। इतना देखें तो फिर बच्चे भी सीखते हैं। रोज़ाना पति पत्नी के साथ झगड़े तो बच्चे यों देखते रहते हैं। यह पापा है ही ऐसे' कहेंगे। क्योंकि भले इतना छोटा-सा हो फिर भी इसका न्याय करनेवाली न्यायाधीश बुद्धि उसमें होती है। लड़कियों में न्यायाधीश बुद्धि कम होती है। लड़कियाँ हर वक्त उनकी माँ का ही पक्ष लेती हैं। लेकिन ये लड़के तो न्यायाधीश बुद्धिवाले, जानते हैं कि पापा का दोष है ! फिर दो-चार व्यक्तियों को पापा का दोष बताते-बताते, निश्चय भी करता है कि बड़ा होकर सिखाऊँगा! बाद में बड़ा होने पर वैसा करता भी है। तेरी ही अमानत तुझे वापस! बच्चों की मौजूदगी में लड़ना नहीं चाहिए। हमें संस्कारी होना चाहिए। तुम्हारी गलती हो तो भी पत्नी कहे, 'कोई बात नहीं।' और उसकी गलती हो तो तुम कहो, 'कोई बात नहीं।' बच्चे ऐसा देखते हैं तो ऑलराइट (अच्छे) होते जाते हैं। और अगर लडना हो तो इन्तजार करना, जब बच्चे स्कूल जाएँ तब जितना लड़ना हो उतना लड़ना। लेकिन बच्चों की उपस्थिति में ऐसा लड़ाई-झगड़ा हो, तो वे देखते हैं और फिर उनके मन में बचपन से पापा और मम्मी के लिए विरोध भावना बनने लगती है। उनका सकारात्मक भाव छूटकर नकारात्मक शुरू हो ही जाता है। अर्थात् बच्चों को बिगाड़नेवाले इस समय माता पिता ही हैं! अत: हमें लड़ना हो तो एकांत में लड़ें, बच्चों की मौजूदगी में नहीं। एकांत में दरवाजा बंद करके दोनों आमने-सामने लड़ना है तो लड़ो। महंगे आम लाये हों और उस आम का रस, साथ में रोटियाँ तैयार कर के सब पत्नी ने परोसा हों, और भोजन की शुरूआत हुई। थोड़ा खाया और जैसे ही कढ़ी में हाथ डाला, थोड़ी खारी लगी कि डाइकनग टेबल अत: बच्चे सब ऊब गए हैं। वे कहते हैं कि फादर-मदर शादीशुदा हैं, उनका सुख (व्यंग में) देखकर हम ऊब गए हैं। मैंने पूछा, 'क्यों? क्या देखा?' तब वे कहते हैं कि रोजाना क्लेश होता है। इसलिए हम समझ गये है कि शादी करने से दु:ख मिलता है। अब हमें शादी नहीं करनी। ४. अनसर्टिफाइड फादर्स एण्ड मदर्स एक बाप कहता है, 'ये सारे बच्चे मेरे विरोधी हो गए हैं।' मैंने कहा, 'तुम्हारे में योग्यता नहीं यह स्पष्ट हो जाता है। तम्हारे में योग्यता हो तो लड़के क्यो विरोध करें? इसलिए इस प्रकार अपनी आबरु मत बिगाड़ना। और बच्चों को डाँटते रहें तो बिगड़ जाते हैं। उन्हें सुधारना हो तो हमारे पास बुलाकर कुछ बातचीत करवायें तो वे सुधर जाएँ! इसलिए मैंने पुस्तक में लिखा है कि 'अनक्वालिफाइड फादर्स एण्ड अनक्वालिफाइड मदर्स' (बिना योग्यतावाले माता-पिता) तब बच्चे भी वैसे ही हो जाएगें न! इसलिए मुझे कहना पड़ा, फादर बनने की योग्यता का सर्टिफिकेट लेने के बाद शादी करनी चाहिए। इन्हें तो जीवन जीना भी नहीं आता, कुछ भी नहीं आता! यह संसार-व्यवहार किस तरह चलाना, यही नहीं आता। इसलिए फिर बच्चों की धुलाई करता है! अरे उन्हें पीटता है तो क्या वे कपड़े हैं, जो धुलाई करता है? बच्चों को इस तरह सुधारें, मारपीट करें, यह कहाँ की रीत है? जैसे पापड का आटा गूंध रहे हों! मगरी से पापड़ का आटा गूंधते हैं, इस तरह एक आदमी को धुलाई करते मैंने देखा। Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ११ माता-पिता तो वे कहलायें कि अगर लड़का बुरी लाईन पर चला गया हो, फिर भी एक दिन जब माता-पिता कहें, 'बेटा, यह हमें शोभा नहीं देता, यह तूने क्या किया?' तो दूसरे दिन सब बंद हो जाए। ऐसा प्रेम ही कहाँ है? यह तो बगैर प्रेम के माता-पिता ! यह जगत् प्रेम से ही वश होता है। इन माता-पिता को बच्चों पर कितना प्यार है? गुलाब पौधे पर माली को जितना होता है उतना ! इन्हें माता - पिता कैसे कह सकते हैं? प्रश्नकर्ता : बच्चों की पढ़ाई के लिए या संस्कार के लिए हमें कुछ विचार ही नहीं करना चाहिए? दादाश्री : विचार करने में हर्ज नहीं । प्रश्नकर्ता : पढ़ाई तो स्कूल में होती है लेकिन संस्कार - चारित्र कैसे दें? दादाश्री : गढ़ाई सुनार को सौंप दो। उनके गढ़नेवाले हों, वे गढ़ेंगे। लड़का पन्द्रह साल का हो तब तक उसे कह सकते हैं, तब तक हम जैसे हैं, वैसा उसे बना दें। बाद में उसकी पत्नी उसे गढ़ेगी। यह तो बच्चे को गढ़ना आता नहीं फिर भी लोग गढ़ रहे हैं! इससे गढ़ाई ठीक से नहीं होती। मूर्ति अच्छी नहीं बनती। नाक ढाई इंच के बजाय साढ़े चार इंच की कर डालें ! बाद में जब बेटे की पत्नी आयेगी, वह उसकी नाक को काटकर ठीक करने जाएगी, तब बेटा भी उसकी नाक काटने जायेगा। इस तरह दोनों आमने-सामने आ जाते हैं। प्रश्नकर्ता: 'सर्टिफाइड फादर - मदर की परिभाषा क्या है? दादाश्री : 'सर्टिफाइड' माता-पिता, अर्थात् खुद के बच्चे खुद के कहने के मुताबिक चलें, अपने बच्चे अपने पर श्रद्धा रखें, माता-पिता के परेशान न करें। ऐसे माता-पिता 'सर्टिफाइड' ही कहलाएँगे न? वर्ना बच्चे ऐसे होते ही नहीं, बच्चे आज्ञाकारी होते हैं। ये तो मातापिता का ही ठिकाना नहीं। ज़मीन ऐसी है, जैसा बीज है माल (फल) १२ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार भी वैसा है! ऊपर से कहता है कि 'मेरे बच्चे महावीर होनेवाले हैं।' महावीर होते होंगे? महावीर की माँ तो कैसी हो !! बाप ऐसा-वैसा हो तो चलेगा, पर माँ तो कैसी हो? ! है। इसमें से कोई बात तुम्हें पसंद आई ? प्रश्नकर्ता : यह बात पसंद आती हैं, तब उसका असर हो ही जाता दादाश्री : बहुत से लोग लड़के से कहते हैं, 'तू मेरा कहा नहीं मानता।' मैंने कहा, 'तुम्हारी वाणी उसे पसंद नहीं है, अगर पसंद हो तो असर हो ही जाए।' और बाप कहता है, 'तू मेरा कहा नहीं मानता।' अरे !, तुझे बाप होना नहीं आया। इस कलियुग में लोगों की दशा तो देखो ! नहीं तो सतयुग में कैसे माता-पिता थे ! मैं यह सिखाना चाहता हूँ कि तुम ऐसा बोलो कि बच्चों को तुम्हारी बातों में इन्टरेस्ट (रुचि) आये, तब वे तुम्हारा कहा हुआ करेंगे ही। तुमने मुझसे कहा न कि मेरी बात तुम्हें पसंद आती है। तो तुम से इतना होगा ही । प्रश्नकर्ता: आपकी वाणी का असर ऐसा होता है कि जिस पजल (पहेली) का बुद्धि हल ना खोज सके, उसका हल यह वाणी ला सकती है। दादाश्री : हृदयस्पर्शी वाणी। वह मदरली (मातृत्ववाली ) कहलाती है । हृदयस्पर्शी वाणी यदि कोई बाप अपने बेटे से कहे, तो वह सर्टिफाइड़ फादर (सक्षम पिता) कहलाए ! प्रश्नकर्ता: इतनी आसानी से बच्चे नहीं मानते ! दादाश्री : तो क्या हिटलरीज़म ( जबरदस्ती) से मानते हैं? यदि हिटलरीज़म करें तो वह हेल्पफुल (सहायक) नहीं है। प्रश्नकर्ता: वे मानते हैं पर बहुत समझाने के बाद । Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार १३ दादाश्री : उसमें कोई हर्ज नहीं वह न्यायसंगत है। बहुत समझाना पड़ता है, इसका कारण क्या है? कि तुम खुद समझते नहीं, इसलिए ज्यादा समझाना पड़ता है। समझदार मनुष्य को एक बार समझाना पड़ता है वह हम ही न समझ जाएँ? बहुत समझाते हो, पर बाद में समझते हैं न? प्रश्नकर्ता: हाँ। दादाश्री : वह सबसे अच्छा रास्ता है। यह तो मार ठोक कर समझाना चाहते हैं। यूँ बाप बन बैठा, जैसे अब तक दुनिया में कभी कोई बाप ही नहीं हुआ हो! अर्थात् जो समझा-बुझाकर इस तरह काम लेते हैं, उन्हें मुझे अन्क्वालिफाइड (अक्षम) नहीं कहना । 'बाप होना' वह सद्व्यवहार कैसा होना चाहिए? लड़के के साथ दादागीरी तो नहीं, किन्तु सख्ती भी नहीं होनी चाहिए, वह बाप कहलाता है। प्रश्नकर्ता: बच्चे परेशान करें तब बाप को क्या करना चाहिए? तब भी बाप को सख्ती नहीं बरतनी चाहिए? दादाश्री : बच्चे बाप के कारण ही परेशान करते हैं। बाप में नालायकी हो, तभी बच्चे परेशान करते हैं। इस दुनिया का कानून ऐसा ही है। बाप में योग्यता न हो तो बच्चे परेशान किए बगैर नहीं रहते। प्रश्नकर्ता लड़का बाप का कहा न माने तो क्या करें? दादाश्री : 'अपनी भूल है' ऐसा समझकर छोड़ देना! अपनी भूल हो तब नहीं मानते न! बाप होना आया हो, उसका लड़का बात न माने ऐसा होता होगा? पर बाप होना आता ही नहीं न ! प्रश्नकर्ता: एक बार फादर बन गये तो पिल्ले छोड़ेंगे क्या ? दादाश्री : छोड़ते होंगे क्या? पिल्ले तो सारा जीवन 'डॉग' और 'डॉगीन' दोनों को देखते ही रहते हैं कि ये भौं भौं करे और यह (डॉगीन ) काटती रहे। 'डॉग' भौं भौं किए बिना नहीं रहता। पर आखिर में दोष उस 'डॉग' का ही निकलता है। बच्चे उनकी माँ की ओर होते हैं। इसलिए १४ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार मैंने एक आदमी से कहा था, 'बड़े होकर ये बच्चे तुझे मारेंगे। इसलिए घरवाली के साथ सीधा होकर रहना।' यह तो बच्चे देखते हैं उस समय, उनके बस में न हो तब तक और जब बस में हो तब कोठरी में बन्द कर के पिटाई करते हैं। लोगों के साथ ऐसा हुआ भी है ! लड़के ने उस दिन से मन में ठान लिया होता है कि बड़ा होकर मैं बाप को वापस लौटाऊँगा । मेरा कुछ भी हो लेकिन उनको तो सबक सीखाऊँगा ही ऐसा ठान लेता है। यह भी समझने जैसा है न? प्रश्नकर्ता : अर्थात् पूरा दोष बाप का ही? दादाश्री : बाप का ही! दोष ही बाप का है। बाप में बाप बनने की योग्यता न हो, तभी उसकी पत्नी उसके सामने हो जाती है। बाप में योग्यता नहीं हो तभी ऐसा होता है न! ये तो बड़ी मुश्किल से जैसेतैसे अपना संसार निभाते हैं। लेकिन पत्नी कब तक समाज के डर से डर कर रहे? - प्रश्नकर्ता : क्या हमेशा बाप की ही भूल होती है ? दादाश्री : बाप की ही भूल होती है। उसे बाप होना नहीं आया, इसलिए यह सब बिगड़ गया है। घर में यदि बाप बनना हो, तो उसकी स्त्री उसके पास विषय की भीख माँगे, ऐसी दृष्टि हो तब बाप बन सकता है। प्रश्नकर्ता: बाप घर में रुआब न रखे, बापपना न रखे तब भी उसकी भूल कहलाती है ? दादाश्री : तब तो सब ठीक हो जाए। प्रश्नकर्ता: फिर भी बच्चे बाप का कहा मानेंगे, इसकी क्या गारंटी है? दादाश्री : है न! अपना 'केरेक्टर' (चरित्र) अच्छा हो, तो सारा संसार केरेक्टरवाला (चरित्रवान) है। Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : बच्चे निम्न-कोटि के निकलें, उसमें बाप क्या करे? दादाश्री : मूल दोष बाप का ही होता है। वह क्यों भगत रहा है? पहले से आचरण बिगाड़े हैं, उसकी वजह से यह दशा हुई है न? जिसका अपने आचरण का कंट्रोल (अंकुश) किसी जन्म में बिगड़ा न हो उसको ऐसा नहीं होता, हम यह कहना चाहते हैं। पूर्व कर्म कैसे हुए? अपना मूल कंट्रोल नहीं है तभी न? अर्थात् हम कंट्रोल में मानते हैं। कंट्रोल मानने के लिए तुम्हें उसके सभी नियम समझने चाहिए। ये बच्चे अपना आईना हैं। हमारे बच्चों पर से मालूम होता है कि अपनी कितनी गलतियाँ हैं! जो हम में शील नामक गुण हो तो बाघ भी हमारे वश में रहें, तो बच्चों की क्या मजाल? हमारे शील का ठिकाना नहीं है, उसकी यह सब गड़बड़ है। शील समझ गए न? प्रश्नकर्ता : शील किसे कहना? उसके बारे में जरा विस्तार से सब समझ सकें, इस प्रकार कहिए न! दादाश्री : किंचित्मात्र दुःख देने के भाव न हों। अपने दुश्मन को भी जरा-सा दुःख पहुँचाने का भाव न हो। उसके अन्दर 'सिन्सियारिटी' (निष्ठा) हो, 'मोरालिटी' (नैतिकता) हो, सारे गुण सम्मिलित हो। किंचित् मात्र हिंसक भाव न हो, वह 'शीलवान' कहलाता है। प्रश्नकर्ता : आज-कल के माता-पिता ऐसा सब कहाँ से लायें? दादाश्री : तो भी हमें उसमें से थोडा बहत, पच्चीस प्रतिशत चाहिए कि नहीं चाहिए? लेकिन हम काल (समय) के कारण आईसक्रीम खाते रहें ऐसे मौज़ी हो गए हैं। प्रश्नकर्ता : पिता का चरित्र कैसा होना चाहिए? दादाश्री : बच्चे रोज कहें कि पापा, हमें बाहर अच्छा नहीं लगता। आपके साथ बहुत अच्छा लगता है। ऐसा चरित्र होना चाहिए। १६ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : यह तो उल्टा होता है, बाप घर में हो तो लड़का बाहर जाए और बाप बाहर जाए तो लड़का घर में हो। दादाश्री : लड़के को पापा के बगैर अच्छा न लगे ऐसा होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : तो ऐसा होने के लिए पापा क्या करें? दादाश्री : जब मुझे बच्चे मिलते हैं न, तो बच्चों को मेरे बगैर अच्छा नहीं लगता। बुड्ढे मिलते हैं, तो बुड्ढों को भी मेरे बगैर अच्छा नहीं लगता। जवान मिलते हैं तो जवानों को भी मेरे बगैर अच्छा नहीं लगता। प्रश्नकर्ता : हमें भी आपके जैसा ही होना है। दादाश्री : हाँ, यदि आप मेरे जैसा करो तो वैसे हो जाओगें। आप कहें, 'पेप्सी लाओ।' तो वे कहेंगे, 'नहीं है।' कोई हर्ज नहीं, पानी ले आओ। ये तो कहें, 'पेप्सी क्यों लाकर नहीं रखी?' ये हुई गड़बड़ फिर से। हमें तो दोपहर को भोजन का समय हुआ हो और कहें कि 'आज तो खाना नहीं बनाया'। तो मैं कहूँगा कि 'ठीक है, लाओ थोड़ा पानी पी लें, बस।"तुमने क्यों नहीं पकाया?' कहा कि फौजदार हो जाते हैं। वहाँ पर फौजदारी करने लगते है। ५. समझाने से सुधरें, बच्चे यह किट-किट करने के बजाय मौन रहना अच्छा, नहीं बोलना अच्छा। बच्चे सुधरने के बजाय बिगड़ते हैं, इसलिए एक अक्षर भी मत कहना। बिगड़े उसकी जिम्मेदारी अपनी है। यह समझ में आये ऐसी बात है न? हम कहें कि ऐसा मत करना, तब वह उल्टा ही करता है। करूँगा, जाइए जो करना है करो।' उल्टा वह ज्यादा बिगड़ता है। बच्चे अपनी आबरू मिट्टी में मिला देते हैं। ये भारतीयों को जीना भी नहीं आया ! बाप होना नहीं आया और बाप बन बैठे हैं। इसलिए ऐसे-वैसे मुझे समझाना Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार पड़ता है, पुस्तकें प्रकाशित करनी पड़ती हैं। वर्ना जिसने अपना ज्ञान लिया है, वे तो बच्चों को बहुत अच्छा बना सकते हैं। उसे बिठाकर, हाथ फेरकर पूछो कि 'बेटा, तुझे, यह भूल हुई, ऐसा नहीं लगता!' यह इन्डियन फिलॉसॉफी (भारतीय तात्विक समझ) कैसी होती है? माता-पिता में से एक डाँटने लगे तब दूसरा, बच्चे का बचाव करता है । इसलिए वह कुछ सुधर रहा हो, तो सुधरना तो एक ओर रहा, उपर से लड़का समझता है कि 'मम्मी अच्छी है और पापा बुरे है, बड़ा होऊँगा तब उन्हें मारूंगा।' बच्चों को सुधारना हो तो हमारी आज्ञानुसार चलो। बच्चों के पूछने पर ही बोलना और उन्हें यह भी कह देना कि मुझे नहीं पूछो तो अच्छा। बच्चों के संबंध में उल्टा विचार आये तो तुरन्त उसका प्रतिक्रमण कर डालना। किसी को सुधारने की शक्ति इस काल में ख़तम हो गई है। इसलिए सुधारने की आशा छोड़ दो। क्योंकि मन-वचन-कर्म की एकात्मवृति हो, तभी सामनेवाला सुधर सकता है। मन में जैसा हो, वैसा वाणी में निकले और वैसा ही वर्तन हो, तभी सामनेवाला सुधरेगा। इस काल में ऐसा नहीं है। घर में प्रत्येक के साथ कैसे व्यवहार हो, उसकी 'नोर्मालिटी' (समानता) ला दो। आचार, विचार और उच्चार में सीधा परिवर्तन हो तो खुद परमात्मा हो सकता है और उल्टा परिवर्तन हो तो राक्षस भी हो सकता है। लोग सामनेवाले को सुधारने के लिए सब फ्रेक्चर कर डालते हैं। पहले खुद सुधरे तो ही दूसरों को सुधार सकता है। पर खुद के सुधरे बगैर सामनेवाला कैसे सुधरेगा ? हमें बच्चों के लिए भाव करते रहना है कि बच्चों की बुद्धि सीधी हो। ऐसा करते करते बहुत दिनो के बाद, असर हुए बिना नहीं रहता । वे तो धीमे-धीमे समझेंगे, तुम भावना करते रहो। उन पर जबरदस्ती करोगे तो उल्टे चलेंगे। तात्पर्य यह कि संसार जैसे-तैसे निभा लेने जैसा है। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार लड़का शराब पीकर आये और तुम्हें दुःख दे, तब तुम मुझे कहो कि यह लड़का मुझे बहुत दुःख देता है तो मैं कहूँ कि गलती तुम्हारी है, इसलिए शांति से चुपचाप भुगत लो, बिना भाव बिगाड़े। यह भगवा महावीर का नियम है और संसार का नियम तो अलग है। संसार के लोग कहेंगे कि 'लड़के की भूल है।' ऐसा कहनेवाले तुम्हें आ मिलेंगे और तुम भी अकड़ जाओगे कि 'लड़के की ही भूल है, यह मेरी समझ सही है।' बड़े आये समझवाले! भगवान कहते हैं, 'तेरी भूल है।' १८ तुम फ्रेन्डशिप (मित्रता) करोगे तो बच्चे सुधरेंगे। आपकी फ्रेन्डशिप होगी तो बच्चे सुधरेंगे। लेकिन माता-पिता की तरह रहोगे, रौब जमाने जाओगे, तो जोखिम है। फ्रेन्ड (मित्र) की तरह रहना चाहिए। वे बाहर फ्रेन्ड खोजने न जाए इस प्रकार रहना चाहिए। अगर आप फ्रेन्ड हैं, तो उसके साथ खेलना चाहिए, फ्रेन्ड जैसा सब करना चाहिए! तेरे आने के बाद हम चाय पियेंगे, ऐसा कहना चाहिए। हम सब साथ मिलकर चाय पियेंगे। तुम्हारा मित्र हो इस प्रकार व्यवहार करना चाहिए तब बच्चे तुम्हारे रहेंगे। नहीं तो बच्चे तुम्हारे नहीं होंगे, सचमुच कोई बच्चा किसी का होता ही नहीं। कोई आदमी मर गया, उसके पीछे उसका लड़का मरता है कभी? सब घर आकर खाते-पीते हैं। ये बच्चे बच्चे नहीं हैं, ये तो केवल कुदरत के नियमानुसार (संबंध के तौर पर) दिखाई देते हैं इतना ही। 'योर फ्रेन्ड' (तुम्हारा मित्र) के तौर पर रहना चाहिए। तुम पहले तय करो तो फ्रेन्ड के तौर पर रह सकते हो। जैसे फ्रेन्ड को बुरा लगे ऐसा नहीं बोलते, वह उल्टा कर रहा हो तो हम उसे कहाँ तक समझाते हैं कि वह मान जाए तब तक और न माने तो फिर उसे कहते हैं कि 'जैसी तेरी मरजी ।' फ्रेन्ड होने के लिए मन में पहले क्या सोचना चाहिए? बाह्य व्यवहार में मैं उसका पिता हूँ, परंतु अंदर से मन में हमें मानना चाहिए कि मैं उसका लड़का हूँ। तभी फ्रेन्डशिप होगी, नहीं तो नहीं होगी। पिता मित्र कैसे होगा? उसके लेवल (स्तर) तक आने पर उस लेवल तक किस प्रकार आएँ ? वह मन में ऐसा समझे कि 'मैं इसका पुत्र हूँ।' यदि ऐसा कहे तो काम निकल जाए। कुछ लोग कहते हैं और काम हो भी जाता है। Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता: आपने कहा कि सोलह साल की उम्र के बाद बच्चे का फ्रेन्ड होना, तो क्या सोलह साल पहले भी उसके साथ फ्रेन्डशिप ही रखनी चाहिए? दादाश्री : तब तो बहुत अच्छा। लेकिन दस-ग्यारह साल की उम्र तक हम फ्रेन्डशिप नहीं रख सकते। तब तक उससे भूलचूक होती है। इसलिए उसे समझाना चाहिए। एकाध चपत भी लगानी पड़ती है, दसग्यारह साल तक। वह बाप की मूंछ खींच रहा हो तो चपत भी लगानी पड़ती है। बाप बनने गए थे न, वे तो मार खाकर मर गए। प्रत्येक मनुष्य के द्वारा अपने बच्चों को सुधारने के सभी प्रयत्न होने चाहिए। लेकिन प्रयत्न सफल होने चाहिए। बाप हुआ और बच्चे को सुधारने के लिए वह बापपना छोड़ सकता है? 'मै पिता हूँ' क्या यह छोड़ देता है? प्रश्नकर्ता : अगर वह सुधरता है तो अहम् भाव, द्वेष, सब छोड़कर उसे सुधारने के प्रयत्न करने चाहिए? दादाश्री : तुम्हें बाप होने का भाव छोड़ देना होगा। प्रश्नकर्ता : 'यह मेरा पुत्र है' ऐसा नहीं मानें और 'मैं बाप हूँ' ऐसा नहीं मानें? दादाश्री : तो उसके जैसा तो और कुछ भी नहीं। मेरा स्वभाव प्रेम भरा इसलिए ऐसे दो-चार लोग थे, वे मुझे प्रेम से 'दादा' कहते थे। और अन्य सभी तो 'दादा कब से आये हो?' ऐसा ऊपर-ऊपर से पूछते। मैं कहूँ कि परसों आया। उसके बाद कुछ भी नहीं, दिखावटी सलाम! लेकिन वे तो 'रेग्युलर' (नियम से) सलाम करते थे। मैंने खोज निकाला कि वे मुझे 'दादा' कहें तब मैं मन से उन्हें 'दादा' मानूँ। वे मुझे जब 'दादा' कहें तब मैं मन से उन्हें 'दादा' कहूँ अर्थात् प्लसमाइनस करता रहूँ, भेद उड़ाता रहूँ। मैं उन्हें मन से दादा कहता इसलिए मेरा मन बहुत अच्छा रहने लगा, हलका होने लगा। वैसे वैसे उन्हें 'अट्रेक्शन' (लगाव) ज़्यादा होने लगा। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ___मैं उन्हें मन से 'दादा' मानता इसलिए उनके मन को मेरी बात पहुँचती न! उन्हें लगे कि 'अहोहो! उन्हें मुझ पर कितना भाव है!' यह गौर से समझने योग्य बात है। ऐसी सूक्ष्म बात कभी ही निकलती है, तो यह आपको बता देता हूँ। यदि तुम्हें ऐसा करना आए तो कल्याण हो जाए ऐसा है। फिर क्या किया? ऐसा व्यवहार हमेशा चलता इसलिए उनके मन में ऐसा ही लगता कि दादा जैसा कोई और नहीं मिलेगा। प्रश्नकर्ता : बाप ऐसा सोचता है कि लड़का एडजस्ट (अनुकूल) क्यों नहीं होता? दादाश्री: यह तो उसका बापपना है इसलिए। भान ही नहीं है। बापपना यानी बेभान-पना। जहाँ 'पना' शब्द आया वहाँ बेहोशी है। प्रश्नकर्ता : यह तो उल्टा बाप कहता है कि 'मैं तेरा बाप हूँ, तू मेरा कहा नहीं मानता? मेरा मान नहीं रखता?' दादाश्री : 'तुझे मालूम नहीं, मैं तेरा बाप लगता हूँ?' एक आदमी को तो मैंने ऐसा कहते सुना था। ये तो किस तरह के घनचक्कर पैदा हुए हैं? ऐसा भी कहना पड़ता है? जो बात सारा संसार जानता है, वह बात भी कहनी पड़ती है? प्रश्नकर्ता : दादा, उसके आगे का डायलोग (संवाद) भी मैंने सुना है कि तुम्हें किस ने कहा था कि हमें पैदा करो! दादाश्री : ऐसा कहें तब हमारी आबरू क्या रह गई फिर? ६. प्रेम से सुधारो नन्हे मुन्नों को प्रश्नकर्ता : उनकी भूल होती हो तो टोकना तो पड़ेगा न? दादाश्री : तब हमें उनसे ऐसा पूछना चाहिए कि यह सब तुम जो करते हो, वह तुम्हें ठीक लगता है? तुमने यह सब सोच-समझ कर किया है? तब यदि वह कहे कि मुझे ठीक नहीं लगता। तो हम कहें कि बेटा तो फिर हमें व्यर्थ क्यों ऐसा करना चाहिए? ऐसा सोच-विचार कर कहो Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ २२ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार जैसे अंगारे के लिए हम क्या करते हैं? चिमटे से पकड़ते हैं न? चिमटा रखते हो न? अब यों ही हाथ से अंगारे पकड़ें तो क्या होगा? प्रश्नकर्ता : जल जाएँगे। दादाश्री : इसलिए चिमटा रखना पड़ता है। प्रश्नकर्ता : तब किस प्रकार का चिमटा रखना चाहिए? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार न! सभी समझते हैं। सभी खुद ही न्याय करनेवाले होते हैं, गलत हो रहा हो तो खुद समझता तो है ही! 'तूने ऐसा क्यों किया?' ऐसा कहें तो उल्टा पकड़ता हैं। मैं करता हूँ वही सही है।' ऐसा कहता है और उल्टा करता है फिर। कैसे घर चलाना वह नहीं आता। जीवन कैसे जीना यह नहीं आता। इसलिए जीवन जीने के सभी गर यहाँ बताये हैं कि किस प्रकार जीवन जीना चाहिए! सामनेवाले का अहंकार खड़ा ही ना हो। हमारी सत्तापूर्ण आवाज नहीं हो। अर्थात् सत्ता नहीं होनी चाहिए। बच्चों से तुम कुछ कहो तो आवाज़ सत्तापूर्ण नहीं होनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : संसार में रहते हैं तो कितनी ही जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं, और जिम्मेदारियाँ निभाना एक धर्म है। यह धर्म निभाते हुए कारण-अकारण कटु वचन बोलने पड़ें तो यह पाप या दोष है? दादाश्री : ऐसा है न, कटु वचन बोलते समय हमारा मुँह कैसा हो जाता है? गुलाब के फूल जैसा? अपना मुँह बिगड़े तो समझना कि पाप लगा। अपना चेहरा बिगड़े ऐसी वाणी निकले तब समझना कि पाप हुआ। कटु वचन मत बोलना। थोड़े शब्द कहो पर आहिस्ता से समझकर कहो। प्रेम रखो तो एक दिन जीत सकोगे। कडुवाहट से नहीं जीत सकोगे। उल्टा वह विरुद्ध जाएगा और परिणाम विपरीत होगा। वह लड़का उल्टे परिणाम के बीज डालता है। 'अभी तो मैं छोटा हूँ, इसलिए डाँटते हो लेकिन बड़ा होकर देख लूँगा।' ऐसा अभिप्राय अन्दर बना लेगा। इसलिए ऐसा मत करो, उसे समझाओ। एक दिन प्रेम की जीत होगी। दो दिन में ही उसका परिणाम नहीं आयेगा। दस दिन, पंद्रह दिन, महीना भर उसके साथ प्रेम रखते रहो। देखो, इस प्रेम का क्या नतीजा आता है, यह तो देखो! प्रश्नकर्ता : हम अनेक बार समझायें पर वह ना समझे तो क्या करें? दादाश्री : समझाने की जरूरत ही नहीं। प्रेम रखो, फिर भी धीरज से आप उसे समझाओ। अपने पड़ौसी को भी हम ऐसे कटु वचन बोलते हैं कभी? दादाश्री : अपने घर का एक आदमी चिमटे जैसा है, वह खुद जलता नहीं और सामनेवाले को, जलते हए को पकडता है. हमें उसे बुलाकर कहना चाहिए कि 'भैया, मैं जब इसके साथ बात करूँ तब तू साथ देना।' इसके बाद वह सब ठीक कर देगा। कुछ रास्ता निकालना चाहिए। खाली हाथ अंगारे पकड़ने जाएँ तो क्या हालत होगी? अपने कहने का परिणाम न आता हो तो हमें चुप हो जाना चाहिए। हम मूर्ख हैं, हमें बोलना नहीं आता, इसलिए चुप हो जाना चाहिए। अपने कहने का परिणाम न हो और उल्टा अपना मन बिगड़े, आत्मा बिगड़े ऐसा कौन करेगा? प्रश्नकर्ता : माता-पिता अपने बच्चों के प्रति जो लगाव रखते हैं. उसमें कई बार लगता है कि कुछ ज्यादा ही होता है। दादाश्री : वह सब इमोशनल (भावुक) है। कम दिखानेवाला भी इमोशनल है। नोर्मल (सामान्य) होना चाहिए। नोर्मल यानी सिर्फ दिखावा, 'ड्रामेटिक' (नाटकिय)। 'ड्रामा' (नाटक) में, किसी औरत के साथ ड्रामा करना पड़े, तो वह वास्तविक, एक्जेक्ट हो ऐसा लोगों को लगता हैं, कि 'रिअल' (सच) है। लेकिन कलाकार बाहर निकल कर कहें कि 'चल मेरे साथ तो?' वह साथ में नहीं जाती, कहेगी कि यह तो ड्रामे तक था। समझ में आया न? इस संसार को सुधारने का रास्ता ही प्रेम है। संसार जिसे प्रेम कहता है वह प्रेम नहीं, वह तो आसक्ति है। इस बच्ची से प्रेम करते हो, लेकिन Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार २३ वह गिलास फोड़े तब प्रेम रहता है? तब तो तू चिढ़ता है। इसलिए वह आसक्ति है। बच्चे प्रेम खोजते हैं, लेकिन प्रेम मिलता नहीं। इसलिए फिर उनकी मुश्किलें वे ही जानें, न कह सकें, न सह सकें। आज के जवानों के लिए हमारे पास रास्ता है। इस जहाज का सुकान (मस्तूल) किस तरह संभालना, इसका मार्गदर्शन मुझे भीतर से मिलता है। मेरे पास ऐसा प्रेम उत्पन्न हुआ है कि जो बढ़े नहीं और घटे भी नहीं। बढ़े-घटे, वह आसक्ति कहलाती है। जो बढ़े-घटे नही वह परमात्म-प्रेम है। सभी प्रेम के वश रहा करते हैं। जिसे सच्चा प्रेम कहते हैं न, वह तो देखने को भी नहीं मिलता। प्रेम जगत् ने देखा ही नहीं। किसी समय ज्ञानीपुरुष अथवा भगवान हों तब प्रेम देख पाते हैं। प्रेम कम-ज्यादा नहीं होता, अनासक्ति होती है। वही प्रेम है, ज्ञानियों का प्रेम ही परमात्मा है। छोटे बच्चों के साथ हमारी खूब जमती है। मेरे साथ फ्रेन्डशिप (मित्रता) करते हैं। अभी जब यहाँ अन्दर आ रहे थे न, तब एक इतनासा बच्चा था, वह लेने आया और बोला कि 'चलिए'। यहाँ आते ही लेने आया। हमारे साथ फ्रेन्डशिप की। तुम तो लाड़ लड़ाते हो। हम लाड़ नहीं लड़ाते, प्रेम करते हैं। प्रश्नकर्ता : यह ज़रा समझाइए न दादाजी, लाड़-लड़ाना और प्रेम करना। कुछ उदाहरण देकर समझाइए। दादाश्री : अरे, एक आदमी ने तो अपने बच्चे को छाती से ऐसा दबाया! दो साल से उसे मिला नहीं था और उठाकर ऐसे दबाया! तब बच्चा बहुत दब गया तो उसके पास कोई चारा नहीं रहा, इसलिए उसने काट लिया। यह तो कोई तरीका है? इन लोगों को तो बाप होना भी नहीं आता! प्रश्नकर्ता : और जो प्रेमवाला हो, वह क्या करता है? दादाश्री : हाँ, वह ऐसे गाल पर हाथ फेरता है, ऐसे कंधा थपथपाता है। इस प्रकार खुश करता है। पर क्या उसे ऐसे दबा देने चाहिए? फिर वह बेचारा साँस न ले पाए तब काट ही लेगा न! नहीं काटेगा, साँस रुके तो? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार और बच्चों को कभी मारना मत। कोई भूलचूक हो तो समझाना ज़रूर, धीरे से माथे पर हाथ फेरकर उन्हें समझाना ज़रूर। प्रेम दें तो बच्चा समझदार होता है। ७. 'विपरीतता ऐसे छूट जाय' क्या कभी ड्रिंक्स (शराब) वगैरह लेते हो? प्रश्नकर्ता : कभी-कभी। जब घर में झगड़ा होता है तब। यह मैं सत्य कहता हूँ। दादाश्री : बंद कर देना। उससे परवश हो गया! अपने को यह सब नहीं चलता, हमें यह सब नहीं चाहिए। लेना मत त, छना भी मत तू। दादा की आज्ञा है, इसलिए ऐसी चीजों को छना मत। तभी तेरा जीवन अच्छा व्यतीत होगा। क्योंकि अब तुझे उसकी ज़रूरत नहीं होगी। यह चरण विधि आदि सब पढ़ेगा तो तुझे उसकी ज़रूरत नहीं पड़ेगी और आनंद भरपूर रहेगा, बहुत आनंद रहेगा। समझ में आया कि नहीं? प्रश्नकर्ता : व्यसन से मुक्त किस प्रकार रहें? दादाश्री : व्यसन से मुक्त होने के लिए 'व्यसन बुरी चीज़ है' ऐसी हमें प्रतीति होनी चाहिए। यह प्रतीति ढीली नहीं होनी चाहिए। अपना निश्चय हिलना नहीं चाहिए। ऐसा हो तो मनुष्य व्यसन से दूर रहता है। 'इसमें कोई हर्ज नहीं' ऐसा कहा तो व्यसन और मज़बूत हो जाता है। प्रश्नकर्ता : लम्बे अरसे तक किसी ने शराब पी हो अथवा 'ड्रग्स' (नशीले पदार्थ) लिए हों, तो कहते हैं उसका असर उसके दिमाग पर पड़ता है। फिर बंद कर दें तो भी उसका असर तो रहता है। तब उन असरों से मुक्त होने के लिए आप क्या कहते हैं? किस प्रकार बाहर निकलें, उसके लिए कोई रास्ता है? दादाश्री : बाद में रिएक्शन आता है उसका। जो सभी परमाणु हैं। वे सभी शुद्ध तो होने चाहिए न ! पीना बंद कर दिया है न? अब उसे Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार क्या करना है? 'शराब पीना बुरा है ऐसा हमेशा कहते रहना है। हाँ, छोड़ने के बाद भी ऐसा कहते रहना। मगर 'अच्छी है' ऐसा कभी मत कहना। नहीं तो फिर से असर हो जाएगा। २५ प्रश्नकर्ता: शराब पीने से दिमाग पर किस प्रकार नुकसान होता है? दादाश्री : एक तो सुध भुला देता है। उस समय भीतर की जागृति पर आवरण आ जाता है। फिर सदा के लिए वह आवरण नहीं जाता। हमें मन में ऐसा लगता है कि हट गया, मगर नहीं हटता। ऐसा करते करते आवरण आते आते फिर...... मनुष्य पूरा जड़ जैसा हो जाता है। फिर उसे अच्छे विचार भी नहीं आते। जो डेवलप (विकासशील ) हुए हैं, उनका इसमें से बाहर निकलने के बाद ब्रेन (दिमाग) बहुत अच्छा डेवलप होता है। उसे फिर से बिगाड़ना नहीं चाहिए। प्रश्नकर्ता: शराब पीने से दिमाग जो डेमेज (नुकसान) हुआ हो, दिमाग के परमाणु जो डेमेज हुए हों, तो वह डेमेज हिस्सा फिर से रिपेयर (ठीक) किस प्रकार हो? दादाश्री : उसका कोई रास्ता ही नहीं। वह तो समय के साथ धीरे धीरे चला जायेगा । पिये बगैर जो टाइम व्यतीत होगा, वैसे-वैसे सब निरावरण होता जाएगा। एकदम से नहीं होगा। शराब और मांसाहार से जो नुकसान होता है, शराब और मांसाहार में से जो सुख भोगता है, वह सुख 'रीपे' करते (चुकाते) वक्त पशु योनि में जाना पड़ता है। ये जितने भी सुख तुम लेते हो, उन्हें 'रीपे' करने पड़ेंगे, ऐसी अपनी जिम्मेदारी हमें समझनी चाहिए। यह जगत् गप्प नहीं है।' यह चुकता करना पड़े ऐसा जगत् है! केवल यह आंतरिक सुख ही 'रीपे' (चुकते) नहीं करने पड़ते । अन्य सभी बाहर के सुख 'रीपे' करने के है। जितना हमें जमा करना हो वो करना और फिर वापस देना पड़ेगा ! प्रश्नकर्ता: अगले जन्म में जानवर होकर 'रीपे' करना पड़ेगा, वह तो ठीक, लेकिन इस जन्म में क्या होगा? इस जन्म में क्या परिणाम हैं? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : इस जन्म में उसे खुद को आवरण आ जाते हैं, इसलिए जड़ जैसा, जानवर जैसा ही हो जाता है। लोगों में 'प्रेस्टिज' (इज्जत) नहीं रहती, लोगों में सम्मान नहीं रहता, कुछ भी नहीं रहता । २६ अण्डे हों और बच्चे हों, दोनों एक ही हैं। किसी का अण्डा खाना और किसी का बच्चा खाना उसमें फर्क नहीं है। तुझे बच्चे खाना पसंद है क्या? तुझे किसी के बच्चे खा जाना पसंद है ? प्रश्नकर्ता: अण्डों में भी शाकाहारी अण्डे होते हैं ऐसी लोगों की मान्यता होती है। दादाश्री : नहीं, वह तो गलत मान्यता है। जिन अण्डों को निर्जीव अण्डे कहते हैं, वे बिना जीव की चीज़ है। जिसमें जीव न हो, वह चीज़ नहीं खा सकते। प्रश्नकर्ता : यह बात कुछ अलग लगती है। कृपया विस्तार से समझाइये | दादाश्री : अलग है लेकिन बात 'एक्ज़ेक्ट' (यथार्थ) है। यह तो 'सायन्टिस्टों' (वैज्ञानिकों) ने भी कहा था कि नितांत निर्जीव चीज़ नहीं खाई जा सकती और जीवित ही खाई जाती है। उसमें जीव तो है, मगर भिन्न प्रकार का जीव । यह तो लोगों ने गलत लाभ उठाया है। उसे तो छूना भी नहीं चाहिए और लड़कों को अण्डे खिलाने से क्या होता है? शरीर इतना आवेशमय हो जाता है कि कंट्रोल में नहीं रहता। अपना 'वेजीटेरियन फूड' (शाकाहारी भोजन) तो बहुत अच्छा होता है, कच्चा भले हो। डॉक्टरों का इसमें दोष नहीं होता। वे तो उनकी समझ और बुद्धि के अनुसार कहते हैं। हमें अपने संस्कार की रक्षा करनी है न हम संस्कारी घरों के लोग हैं। प्रश्नकर्ता: अमरीका में दादा ने कई लड़कों को एकदम 'टर्न' (बदल) कर दिया है। दादाश्री : हाँ, उनके माता-पिता शिकायत लेकर आये थे कि हमारे Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार लड़के बिगड़ते जा रहे हैं, उनका क्या करें? मैंने कहा, 'तुम कब सुधरे थे कि लड़के बिगड़ गए ! तुम मांसाहार करते हो?' तब बोले, 'हाँ, कभी कभी।'' शराब पीने का?' तो बोले, 'हाँ, कभी कभी।'। इसलिए ये लड़के समझते हैं कि हमारे पिताजी कर रहे हैं इसलिए यह करने जैसी चीज है। हितकर हो वही हमारे पिताजी करते हैं न? यह सब तुम्हें शोभा नहीं देता। फिर उन लड़कों से मांसाहार छुड़वा दिया। उन लड़कों से कहा कि 'क्या यह आलू तू काट सकता है? क्या यह पपीता तू काट सकता है? क्या ये 'एप्पल' (सेब) काट सकता है? ये सब काट सकता है ?" 'हाँ, सब काट सकता हूँ।' मैंने कहा, 'कद्दू इतना बड़ा हो तो?' 'अरे ! उसे भी काट सकता हूँ।' "ककड़ी इतनी बड़ी हो तो उसे भी काट सकता हूँ।'' उस वक्त 'हार्ट' (हृदय) पर असर होगा?' तब बोला, 'नहीं।' फिर मैंने पूछा, 'बकरी काट सकता है?' तब बोला, 'नहीं।' 'मुर्गी काट सकता है?' तब बोला, 'नहीं, मुझसे नहीं कटेगी।' इसलिए जो तेरा हार्ट काटने को 'एक्सेप्ट' (स्वीकार) करे, उतनी ही चीजें तू खाना तेरा हार्ट एक्सेप्ट न करता हो, हार्ट को पसंद न हो, रुचे नहीं वे चीज़े मत खाना नहीं तो उनका परिणाम विपरीत होगा और वे परमाणु तुझे हार्ट पर असर करेंगे। परिणाम स्वरूप, लड़के सब अच्छी तरह समझ गए और छोड़ दिया। २७ (प्रसिद्ध लेखक) 'बर्नाड शॉ' से किसी ने पूछा, 'आप माँसाहार क्यों नहीं करते?' तब बोले, 'मेरा शरीर कब्रिस्तान नहीं है, यह मुर्गीमुर्गों का कब्रिस्तान नहीं है।' लेकिन उसका क्या फायदा? तब उन्होंने कहा, 'आई वॉन्ट टु बी ए सिविलाइज्ड मेन' (मैं सुसंस्कृत इन्सान होना चाहता हूँ)। फिर भी कहते हैं, क्षत्रियों को यह अधिकार है, लेकिन उसमें क्षत्रियता हो तो अधिकार है। प्रश्नकर्ता: इन छोटे बच्चों को मगदले (एक प्रकार की अधिक घी वाली मिठाई) खिलाया करते है, वह खिला सकते हैं? दादाश्री : नहीं खिला सकते, मगदल नहीं खिला सकते। छोटे बच्चों को मगदल, गोंदपाक, पकवान ज़्यादा मत खिलाना। उन्हें सादा भोजन देना माता-पिता और बच्चों का व्यवहार २८ और दूध भी कम देना चाहिए। बच्चों को यह सब नहीं देना चाहिए। हमारे लोग तो दूध से बनी चीजें बार-बार खिलाते रहते हैं। ऐसी चीजें मत खिलाना। आवेग बढ़ेगा और बारह साल का होते ही उसकी दृष्टि बिगड़ेगी। आवेग कम हो ऐसा भोजन बच्चों को देना चाहिए। यह सब तो विचार में ही नहीं। जीवन कैसे जीना, इसकी समझदारी ही नहीं है न! प्रश्नकर्ता: हमें कुछ कहना न हो, लेकिन मान लीजिए कि हमारा लड़का चोरी करता हो तो क्या चोरी करने दें? दादाश्री : दिखावे के लिए विरोध करो, पर अंदर समभाव रखो । बाहर देखने में विरोध और वह चोरी करे उस पर निर्दयता जरा भी नहीं होने देनी चाहिए। यदि अन्दर समभाव टूट जाएगा तो निर्दयता होगी और सारा जग निर्दय हो जाता है। उसे समझाओ कि 'जिसके वहाँ चोरी की, उसका प्रतिक्रमण ऐसे करना और प्रतिक्रमण कितने किए यह मुझे बताना । तब फिर ठीक हो जाए। बाद में तू चोरी नहीं करने की प्रतिज्ञा कर दुबारा चोरी नहीं करूँगा और जो हो गई उसकी क्षमा चाहता हूँ।' ऐसे बार-बार समझाने से यह ज्ञान फिट हो जाता है। इसलिए अगले जन्म में फिर चोरी नहीं होगी । यह तो सिर्फ इफेक्ट (परिणाम) है, दूसरा नया हम न सिखायें तो फिर नया खड़ा नहीं होगा। यह लड़का हमारे पास सब भूलें कबूल करता है। चोरी करे वह भी कबूल कर लेता है । आलोचना तो गज़ब का पुरुष हो वहीं हो सकती है। अगर ऐसा सब होगा तो हिन्दुस्तान का आश्चर्यजनक परिवर्तन हो जाएगा! ८. नयी जनरेशन, हेल्दी माईन्डवाली दादाश्री : रविवार के दिन नजदीक में सत्संग होता है, तो क्यों नहीं आते? प्रश्नकर्ता: रविवार के दिन टी.वी. देखने का होता है न, दादाजी ! Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार २९ दादाश्री : टी.वी. और तुम्हारा क्या संबंध? यह चश्मा आ गया है फिर भी टी.वी. देखते हो? हमारा देश ऐसा है कि टी.वी. देखना न पड़े, नाटक देखना न पड़े, वो सब यहीं का यहीं रास्तों पर होता रहता है न! प्रश्नकर्ता: उस रास्ते पर पहुँचेंगे तब बन्द होगा न? दादाश्री : कृष्ण भगवान ने गीता में कहा है कि मनुष्य व्यर्थ समय बिगाड़ रहे हैं। कमाने के लिए नौकरी पर जाना अनर्थ नहीं कहलाता। जब तक वह दृष्टि नहीं मिलती तब तक यह दृष्टि नहीं छूटती । लोग भी जानवर की तरह बदन पर बदबूवाला कीचड़ कब मलते हैं? उन्हें जलन हो तब। ये टी.वी., सिनेमा, सब बदबूवाले कीचड़ जैसे हैं। उसमें से कुछ सारतत्व नहीं निकलता। हमें टी.वी. का कोई विरोध नहीं हैं। प्रत्येक चीज़ देखने की छूट होती है पर एक ओर पाँच बजकर दस मिनिट को टी.वी. का कार्यक्रम हो और दूसरी ओर पाँच बजकर दस मिनट पर सत्संग हो, तो क्या पसंद करोगे? ग्यारह बजे परीक्षा हो और ग्यारह बजे भोजन करना हो तो क्या करोगे? ऐसी समझ होनी चाहिए। प्रश्नकर्ता: रात देर तक टी.वी. देखा करते हैं, इसलिए फिर सोते ही नहीं न? दादाश्री : लेकिन टी.वी. तो तुम खरीद लाए तब देखते हैं न? तुमने ही इन सब बच्चों को बिगाड़ा है। इन माता-पिता ने ही बच्चों को बिगाड़ा है, ऊपर से टी.वी. लाये घर में! पहले ही क्या कम मुसीबत थी, जो एक और बढ़ाई ? नयी पेन्ट पहन कर बार-बार शीशा देखते हैं। अरे, आइना क्या देख रहा है? यह किसकी नक़ल करते हो, यह तो समझो! अध्यात्मवालों की नक़ल की या भौतिकवालों की नक़ल की? जो भौतिकवालों की नक़ल करनी हो तो वे आफ्रीकावाले हैं, उनकी नक़ल क्यों नहीं करते? लेकिन यह तो साहब जैसे लगते हैं, इसलिए नक़ल करनी शुरू की। पर तुझ में योग्यता तो नहीं है। काहे का साहब बनने फिरता है? पर साहब माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ३० होने के लिए ऐसे शीशे में देखता है, बाल सँवारता है और समझता है कि अब ‘ऑलराइट' हो गया है। ऊपर से पतलून पहनकर पीछे ऐसे थपथपाता फिरता है। अरे, क्यों बिना वजह थपथपाता है? कोई देखनेवाला नहीं है, सब अपने-अपने काम में लगे हैं! सब अपनी-अपनी चिंता में पड़े हैं! तुझे देखने की फुरसत किसे है? सब अपनी-अपनी झंझट में पड़े हैं। लेकिन अपने आपको न जाने क्या समझ बैठे हैं ? पुरानी पीढ़ी वाले बच्चे के साथ अगर झिकझिक करते हों तो मैं उनसे पूछूं कि आप छोटे थे तब आपके बाप भी आपको कुछ कहते थे ? तब कहते हैं कि, वे भी झिकझिक करते थे। उनके बाप से पूछें कि आप छोटे थे तब ? तब कहेंगे हमारे बाप भी झिकझिक करते थे। इसलिए यह 'आगे से चली आई है।' लड़का पुरानी बातें स्वीकार करने को तैयार नहीं। इसलिए ये परेशानियाँ खड़ी हुई हैं। मैं मा-बाप को मॉडर्न (आधुनिक) होने को कहता हूँ तो वे होते नहीं। और कैसे हों ? मॉडर्न होना कोई आसान बात नहीं है। हमारा देश यूजलेस (निकम्मा) हो गया है! कुछ जातियों का बहुत तिरस्कार करते हैं। एक-दूसरे के साथ नहीं बैठते, भेदभाव रखते हैं। ऊपर हाथ रखकर प्रसाद देता है! लेकिन यह नई पीढ़ी हैल्दी माईन्डवाली है, बहुत अच्छी है! बच्चों के लिए अच्छी भावना करते रहो। सभी अच्छे संयोग आ मिलेंगे। नहीं तो इन बच्चों में कोई सुधार होनेवाला नहीं। बच्चे सुधरेंगे पर अपने आप कुदरत सुधारेगी। बच्चे अच्छे से अच्छे हैं। किसी काल में नहीं थे ऐसे बच्चे हैं आज ! इन बच्चों में ऐसे कौन से गुण होंगे कि मैं ऐसा कहता हूँ कि किसी काल में नहीं थे ऐसे गुण इन बच्चों में हैं! बेचारों में किसी प्रकार का Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार तिरस्कार नहीं है, कुछ भी नहीं है। केवल मोही हैं। उसी कारण सिनेमा में और दूसरी जगह भटका करते हैं। पहले तो इतना तिरस्कार कि ब्राह्मण का लडका दूसरों को छुए तक नहीं। क्या अब है ऐसी माथापच्ची? प्रश्नकर्ता : ऐसा कुछ नहीं। जरा-सा भी नहीं। दादाश्री: सब माल शुद्ध हो गया और लोभ भी नहीं है. मान की भी परवाह नहीं। अब तक तो सब अशुद्ध माल था, मानी-क्रोधी-लोभी! और ये तो मोही बेचारे हैं! प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि वर्तमान जनरेशन 'हैल्दी माइन्डवाली' है और दूसरी ओर देखें तो सब व्यसनी हो गये हैं, और न जाने क्या क्या हैं? दादाश्री : भले वे व्यसनी दिखते हों पर उन बेचारों को रास्ता ना मिले तो क्या करें? उनके माईन्ड हैल्दी हैं। प्रश्नकर्ता : हैल्दी माईन्ड यानी क्या? दादाश्री : हैल्दी माईन्ड यानी मेरी-तेरी की बहुत परवाह नहीं करते और हम तो छोटे थे तब, बाहर किसी का कुछ पड़ा हो, कुछ देखें तो ले लेने की इच्छा होती थी। किसी के वहाँ भोजन करने गए हों तो घर में खाते हों उससे थोड़ा ज्यादा खा लेते थे। छोटे बच्चों से लेकर बुड्ढों तक सब ममतावाले होते थे। अरे! ये 'डबल बेड' का सिस्टम हिन्दुस्तान में होता होगा? किस प्रकार के जानवर जैसे लोग हैं? हिन्दुस्तान के स्त्री-पुरुष कभी साथ में एक रूम (कमरे) में नहीं होते! हमेशा अलग रूम में रहते थे! इसके बदले आज यह देखो तो सही! वर्तमान में तो बाप ही बेडरूम बना देता है, 'डबल बेड' खरीदकर! इससे बच्चे समझ गए कि यह दुनिया इसी प्रकार चलती है शायद। तुम्हें मालूम है कि पहले स्त्री-पुरुषों के बिस्तर अलग रूमों में रहते थे। तुम्हें मालूम नहीं? वह सब मैंने देखा था। आपने अपने ज़माने में डबल बेड देखे थे? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ९. माता-पिता की शिकायतें एक भाई मुझसे कहता है, मेरा भतीजा हर रोज़ नौ बजे उठता है। घर में कोई काम नहीं करता। फिर घर के सभी सदस्यों से पूछा कि यह जल्दी नहीं उठता यह बात आप सबको पसंद नहीं क्या? तब सभी ने कहा, 'हमें पसंद नहीं, फिर भी वह जल्दी उठता ही नहीं।' मैंने पूछा, 'सूर्यनारायण आने के बाद उठता है कि नहीं उठता?' तब कहा, 'उसके बाद भी एक घण्टे के पश्चात् उठता है।' इस पर मैंने कहा कि 'सूर्यनारायण की भी मर्यादा नहीं रखता, तब तो वह बहुत बड़ा आदमी होगा! नहीं तो लोग सूर्यनारायण के आने से पहले खुद जाग जाते हैं, लेकिन यह तो सूर्यनारायण की भी परवाह नहीं करता।' फिर उन लोगों ने कहा, आप उसे थोड़ा डाँटो। मैंने कहा, 'हम डाँट नहीं सकते। हम डाँटने नहीं आये, हम समझाने आये है। हमारा डाँटने का व्यापार ही नहीं हैं, हमारा तो समझाने का व्यापार है।' फिर उस लड़के से कहा, 'दर्शन कर ले और रोज़ बोलना कि दादा मुझे जल्दी उठने की शक्ति दो।' इतना उससे कराने के बाद घर के सभी लोगों से कहा, अब वह चाय के समय पर भी उठे नहीं तो उससे पूछना कि, 'भई, ये ओढ़ा दूँ तुझे? जाड़े की ठंड है, ओढ़ना हो तो ओढ़ा दूं।' इस प्रकार मजाक में नहीं, पर सही में उसे ओढ़ा देना। घर के लोगों ने ऐसा किया। परिणाम स्वरूप केवल छह महिने में वह लड़का इतना जल्दी उठने लगा, कि घर के सभी लोगों की शिकायत चली गई। प्रश्नकर्ता : आज के लड़के पढ़ने के बजाय खेलने में ज्यादा रुचि रखते हैं, उन्हें पढ़ाई की ओर ले जाने के लिए उनसे कैसे काम लिया जाए, जिससे लड़कों के प्रति क्लेश उत्पन्न न हो? दादाश्री : इनामी योजना निकालिए न! लड़कों से कहो कि पहला नंबर आयेगा उसे इतना इनाम दूंगा और छठा नंबर आयेगा, उसे इतना इनाम और उत्तीर्ण होगा उसे इतना इनाम। कुछ उनका उत्साह बढ़े ऐसा करो। उसे तुरन्त फायदा हो ऐसा कुछ दिखाओ, तब वह चुनौती स्वीकारेगा। दूसरा क्या रास्ता करने का? वर्ना उन पर प्रेम रखो। प्रेम हो Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ३३ तो लड़के सब कुछ मानते हैं। मेरा कहा सब लडके मानते हैं। मैं जो कहूँ वह करने के लिए तैयार हैं, यानी हमें उन्हें समझाते रहना चाहिए। फिर जो करे वह सही। प्रश्नकर्ता : मूल समस्या यह है कि पढ़ने के लिए लडकों को हम कई तरह से समझाते हैं लेकिन हमारे कहने पर भी वे लोग समझते नहीं, हमारी सुनते नहीं। दादाश्री : ऐसा नहीं कि वे नहीं सुनते, पर तुम्हें माँ होना नहीं आया इसलिए। अगर माँ होना आता तो क्यों नहीं सुनते? क्यों बेटा नहीं मानता? क्योंकि 'अपने माता-पिता का कहा खुद उसने कभी माना ही नहीं था न!' प्रश्नकर्ता : दादा, उसमें वातावरण का दोष है कि नहीं? दादाश्री : नहीं, वातावरण का दोष नहीं है। माता-पिता को सही मानो में माता-पिता होना आया ही नहीं। माता-पिता की सबसे बड़ी जिम्मेदारी है। प्रधानमंत्री होना भी उससे कम जिम्मेदारी है। प्रश्नकर्ता : वह कैसे? दादाश्री : प्रधानमंत्री होने में तो लोगों का ऑपरेशन है। यहाँ तो अपने लडके का ही ऑपरेशन होना है। घर में दाखिल हों तो बच्चे खुश हो जाएँ ऐसा होना चाहिए और आजकल तो बच्चे क्या कहते हैं? 'हमारे पिताजी घर में न आयें तो अच्छा।' अरे, ऐसा हो तब फिर क्या हो? इसलिए हम लोगों से कहते हैं, 'भैया, बच्चों को सोलह साल के होने बाद 'फ्रेन्ड' (मित्र) के रूप में स्वीकार लेना'. ऐसा नहीं कहा? 'फ्रेन्डली टोन' (मैत्रीपूर्ण व्यवहार) में हो न, तो अपनी वाणी अच्छी निकले, वर्ना हर रोज़ बाप बनने जाएँ तो कोई सार नहीं निकलता। लड़का चालीस साल का हुआ हो और हम बापपना दिखाएँ तो क्या हो? प्रश्नकर्ता : लेकिन दादा, बुड्ढे लोग भी हमारे साथ ऐसा व्यवहार करें, उनके विचार पुराने हो गए हों, तो हमें उन्हें कैसे हैन्डल करना चाहिए? ३४ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : यह गाड़ी ऐन वक्त पर, जब जल्दी में हो तब. पंक्चर हो जाए, तो क्या हम उसके 'व्हील' (पहिया) को मारते हैं? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : ऐन वक्त पर, जल्दी हो और टायर पंक्चर हो गया तो व्हील को मारना चाहिए? तब तो फटाफट सम्भालकर अपना काम कर लेना चाहिए। गाड़ी में पंक्चर तो होता ही रहता है। वैसे बुड्ढे लोगों को पंक्चर होता ही है। हमें सम्भाल लेना चाहिए। पंक्चर हो तो गाड़ी को मारपीट कर सकते हैं? प्रश्नकर्ता : दो बेटे आपस में लड़ रहे हों, हम जानते हैं कि दोनों में से कोई समझनेवाला नहीं, तो तब हमें क्या करना चाहिए? दादाश्री : एक बार दोनों को बिठाकर बोल देना कि आपस में झगड़ने में फायदा नहीं, उससे लक्ष्मी चली जाती है। प्रश्नकर्ता : लेकिन वे मानने को तैयार न हों तो क्या करें, दादाजी? दादाश्री : जैसा है वैसा रहने दो। प्रश्नकर्ता : लड़के आपस में लड़ें और वह मामला बड़ा स्वरूप ले ले, तो हम कहते हैं कि यह ऐसा कैसे हो गया? दादाश्री : उन्हें बोध होने दो न, आपस में लड़ने पर उन्हें खुद मालूम होगा, समझ आयेगी न? ऐसे बार-बार रोकते रहने पर बोध नहीं होगा। जगत् तो केवल निरीक्षण करने योग्य है! ये संताने किसी की होती ही नहीं, यह तो सिर पर आ पड़ी जंजाल है! इसलिए इनकी मदद ज़रूर करना पर अन्दर से ड्रामेटिक रहना। पहले शिकायत करने कौन आता है? कलियुग में तो जो गुनहगार हो, वही पहले शिकायत लेकर आता है और सत्युग में जो निर्दोष हो वह पहले शिकायत लेकर आता है। इस कलियुग में न्याय करनेवाले भी ऐसे कि जिसका पहले सुने उसके पक्ष में बैठ जाते हैं। Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार घर में चार संतानें हों, उनमें दो बच्चों की कुछ भूल ना हो तो भी बाप उन्हें डाँटता रहता है और दूसरे दो भूल करते रहें तो भी कोई उन्हें कुछ नहीं कहता। उसके पीछे जो रूट कोज़ (मूल कारण) है, उसीके कारण है। अपने घर में दो संतानें हों, तो दोनों समान लगनी चाहिए। यदि हम किसी के पक्ष में हों कि 'यह बड़ा दयालु है और नन्हा कच्चा पड़ जाता है।' तो सब बिगड़ जाता है। दोनों समान लगने चाहिए। प्रश्नकर्ता : बेटा बात बात में जल्दी रूठ जाता है। दादाश्री : महँगा बहुत है न! बहुत महँगा, फिर क्या हो? बेटी सस्ती है, इसलिए बेचारी रूठती नहीं। प्रश्नकर्ता : ये रूठना क्यों होता होगा, दादाजी? दादाश्री : यह तो मनाने जाते हैं न, इसलिए रूठते हैं। मेरे पास रूठे तो जानूँ! मेरे साथ कोई नहीं रूठता। फिर से बुलाऊँ ही नहीं न! खाये या न खाये, फिर से नहीं बुलाऊँ। मैं जानता हूँ, इससे बुरी आदत हो जाती है, ज्यादा बुरी आदत पड़ती है। नहीं, नहीं, बेटा खाना खा ले, बेटा खाना खा ले, अरे, भूख लगेगी तो बेटा अपने आप खा लेगा, कहाँ जानेवाला है? वैसे तो मुझे दूसरी कलाएँ भी आती हैं। बहुत टेढ़ा हुआ हो तो, भूखा हो तो भी नहीं खायेगा। ऐसा हो तब हम उसकी आत्मा के साथ अन्दर विधि करते हैं, तुम्हें ऐसा नहीं करना है। तुम जो करते हो, वही करो। बाकी मेरे साथ नहीं रूठते और यहाँ मेरे पास रूठकर भी क्या फायदा निकालेंगे? प्रश्नकर्ता : दादाजी, वह कला सिखा दो न। क्योंकि यह रूठनामनाना तो सबको रोज़ाना हो गया है। अगर ऐसी एकाध चाबी दे दो तो सब का निराकरण हो जाए। दादाश्री : यह तो हमें बहुत गरज़ हो तो वह ऐसे रुठता है। इतनी सारी गरज़ क्यों फिर? ३६ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : इसका मतलब क्या, मैं समझा नहीं, बहुत गरज हो तो रूठते है? किसे गरज़ होती है? दादाश्री : सामनेवाले को गरज़ हो। तब रूठनेवाला सामनेवाले को उसकी गरज़ हो, तो रूठता है। प्रश्नकर्ता : अर्थात् हमें गरज़ ही नहीं दिखानी? दादाश्री : गरज होनी ही नहीं चाहिए। किस लिए गरज? कर्म के उदयानुसार जो होनेवाला हो वह होगा, फिर उसकी गरज क्यों रखनी? और फिर कर्म का उदय ही है। ग़रज़ दिखाने पर जिद पर चढ़ते हैं उल्टे। प्रश्नकर्ता : छोटे बच्चों का गुस्सा दर करने के लिए उन्हें कैसे समझाएँ? दादाश्री : उनका गुस्सा दूर कर के क्या फायदा? प्रश्नकर्ता : हमारे साथ झगड़ा न करें। दादाश्री : उसके लिए कोई दूसरा उपाय करने के बजाय उनके माता-पिता तो इस प्रकार रहना चाहिए कि उनका गुस्सा बच्चे न देखें। उन्हें गुस्सा करते देखकर बच्चों को लगता है कि मेरे पिताजी करते हैं, तो मैं उनसे सवा गुना गुस्सा करूँ। अगर तुम बंद कर दोगे, तो (उनका) अपने आप ही बंद हो जाएगा। मैंने बंद किया है, मेरा गुस्सा बंद हो गया है तो मेरे साथ कोई गुस्सा करता ही नहीं। मैं कहँ, गस्सा करो तो भी नहीं करते। बच्चे भी नहीं करते, मैं मारूँ तब भी गुस्सा नहीं करते। ___ प्रश्नकर्ता : बच्चों को सही मार्ग पर लाने के लिए माता-पिता के फर्ज तो अदा करना चाहिए न, इस लिए गुस्सा तो करना पड़ता है न? दादाश्री : गुस्सा क्यों करना पड़े? वैसे ही समझाकर कहने में क्या हर्ज है? गुस्सा तुम करते नही हों, तुम से हो जाता है। किया हआ गुस्सा, गुस्सा नहीं कहलाता। आप खुद गुस्सा करते हैं, आप उसे धमकायें उसे गुस्सा नहीं कहते। लेकिन तुम तो गुस्सा हो जाते हो। Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : गुस्सा हो जाने का कारण क्या? दादाश्री : 'वीकनेस'। यह 'वीकनेस' (कमजोरी) है! अर्थात् वह खुद गुस्सा नहीं करता, वह तो गुस्सा होने के बाद खुद को मालूम पड़ता है, कि यह गलत हो गया, ऐसा नहीं होना चाहिए। इसलिए अंकुश उसके हाथ में नहीं हैं। यह मशीन गरम हो गया है, इसलिए उस समय हमें जरा ठंडा रहना चाहिए। अपने आप ठंडा हो, तब हाथ डालना। बच्चे पर तुम चिढ़ते हो तब वह नया कर्ज लेने जैसा है, क्योंकि चिढ़ने में हर्ज नहीं, पर तुम जो 'खुद' चिढ़ते हो वह नुकसान करता है। प्रश्नकर्ता : बच्चों को जब तक डाँटे नहीं तब तक शांत ही नहीं होते, डाँटना तो पड़ता है न! दादाश्री : नहीं, डाँटने में हर्ज नहीं। मगर 'खुद' डाँटते हो इसलिए तुम्हारा मुँह बिगड़ जाता है, इसलिए जिम्मेदारी है। तुम्हारा मुँह बिगड़े नहीं ऐसे डाँटो, मुँह अच्छा रखकर डाँटो, खूब डाँटो। तुम्हारा मुँह बिगड़ता है अर्थात् तुम्हें जो डॉटना है वह तुम अहंकार कर के डाँटते हो। प्रश्नकर्ता : तब तो लड़कों को ऐसा लगेगा कि ये झूठ-मूठ का डाँट रहे हैं। दादाश्री : वे इतना जाने तो बहुत हो गया। तो उनको असर होगा, नहीं तो असर ही नहीं होगा। तुम बहुत डाँटो तो वे समझते हैं कि ये कमजोर आदमी हैं। वे लोग मुझे कहते हैं, हमारे पिताजी बहुत कमजोर आदमी हैं, बहुत चिढ़ते रहते हैं। प्रश्नकर्ता : हमारा डाँटना ऐसा नहीं होना चाहिए कि हमें ही मन में विचार आते रहें और खुद को असर होता रहे? दादाश्री : वह तो गलत है। डाँटना ऐसा नहीं होना चाहिए। डाँटना ऊपरी तौर पर जैसे कि नाटक में लड़ते हैं, उस प्रकार का होना चाहिए। नाटक में लड़ते हैं, 'क्यों तू ऐसा करता है और ऐसा वैसा' सब बोलते हैं पर अन्दर कुछ भी नहीं होता, ऐसे डाँटने का है। ३८ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : बच्चों को कहने जैसा लगता है तब डाँटते हैं, तब उन्हें दुःख भी होता हो तब क्या करें? दादाश्री : फिर हम भीतर माफी माँग लें। इस बहन को बहुत ज्यादा बोल गए हों और उसे दु:ख हआ हो तो तुम इस बहन से कहो कि क्षमा चाहता हूँ। अगर ऐसा बोल नहीं सकते तो अतिक्रमण हुआ इसलिए भीतर प्रतिक्रमण करो। तुम तो 'शुद्धात्मा हो' इसलिए तुम चन्दुभाई से कहना कि 'प्रतिक्रमण करो।' तम्हें दोनों विभाग अलग रखने हैं। अकेले में भीतर अपने आपसे कहो कि 'सामनेवाले को दुःख न हो' ऐसा बोलना। फिर भी लड़के को दु:ख हो तो चन्दुभाई से कहना, 'प्रतिक्रमण करो।' प्रश्नकर्ता : लेकिन अपने से छोटा हो, अपना बेटा, हो तब क्षमा कैसे माँगे? दादाश्री : भीतर से क्षमा माँगना, हृदय से क्षमा माँगना। भीतर दादा दिखाई दें और उनकी साक्षी में आलोचना-प्रतिक्रमण-प्रत्याख्यान उस लड़के के करें तो तुरन्त उसे पहुँच जाते हैं। प्रश्नकर्ता : हम किसी को डाँटे, मगर उसकी भलाई के लिए डाँटते हों, जैसे बच्चों को ही डाँटे तो क्या वह पाप कहलाएगा? दादाश्री : नहीं, उससे पुण्य बँधेगा। लड़के की भलाई के लिए डाँटें मारें तब भी पुण्य बँधता है। भगवान के घर अन्याय होता ही नहीं! लड़का उल्टा कर रहा है इसलिए लड़के की भलाई के लिए खुद को आकूलता हुई और उसे दो चपत लगा दी, तो भी उसका पुण्य बँधता है। उसे अगर पाप गिना जाता हो तो ये क्रमिक मार्ग के सभी साधुआचार्यों में से किसी का मोक्ष नहीं हो सकता। सारा दिन शिष्य के प्रति अकुलाते रहते हैं, पर उससे पुण्य बँधता है। क्योंकि दूसरों की भलाई के लिए वह क्रोध करता है। अपनी भलाई के लिए क्रोध करना पाप है। कितना सुन्दर न्याय है! कितना न्याय पूर्ण है! भगवान महावीर का न्याय कितना सुन्दर है! यह न्याय तो धर्म-कांटा ही है न!! Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४० माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ___ अत: बच्चों को उसकी भलाई के लिए डाँटते हों, मारते हों, तब पुण्य बँधता है। परंतु 'मैं पिता हूँ, उसे थोड़ा मारना तो पड़ेगा न?' ऐसा भाव अन्दर प्रविष्ट हुआ तो फिर पाप बँधेगा। इस तरह अगर सही समझ नहीं होगी तो फिर उसमें ऐसा विभाजन हो जाता है! अत: बाप लड़के पर उसके हित के लिए अकुलाये उसका क्या फल हो? पुण्य बँधेगा। ___ प्रश्नकर्ता : बाप तो अकुलाता है पर लड़का भी सामने अकुलाये तो क्या होता है? दादाश्री : लड़का पाप बाँधता है ! क्रमिक मार्ग में ज्ञानीपुरुष' शिष्य पर अकुलायें तो उसका जबरदस्त पुण्य बँधता है, पुण्यानुबंधी पुण्य बँधता है। वह आकुलता व्यर्थ नहीं जाती। ये शिष्य नहीं हैं उनके बच्चे, नहीं कुछ लेना-देना, फिर भी शिष्य पर अकुलाते हैं। यहाँ हमारे पास डाँट-डपट बिल्कुल नहीं होती! डाँटने पर मनुष्य स्पष्ट नहीं कह सकता, कपट करता है। ये सब कपट इस वजह से संसार में पैदा हुए हैं ! जग में डाँटने की जरूरत नहीं है। लडका सिनेमा देखकर आया हो और हम उसे डाँटें तो दूसरे दिन बहाना बनाकर, 'स्कूल में कुछ कार्यक्रम था' कह कर सिनेमा देखने जाता है! जिसके घर में माँ सख्त हो, उसके लड़के को व्यवहार नहीं आता। प्रश्नकर्ता : कोल्ड ड्रिंक्स ज़्यादा पिये, चॉकलेट ज्यादा खाये, उस वक्त डाँटती हूँ। दादाश्री : उसमें डाँटने की कहाँ जरूरत है ! उसे समझाना चाहिए कि ज्यादा खाने से क्या नुकसान होगा। आपको कौन डाँटता है? यह तो बड़प्पन का झूठा अहंकार है ! 'माँ' होकर बैठी है, बड़ी! माँ होना आता नहीं और सारा दिन लड़के को डाँटती रहती हो! अगर तुम्हें सास डाँटती हो तो मालूम पड़े। लड़के को डाँटना शोभा देता होगा? लड़के को भी ऐसा लगे कि यह तो (माँ) दादी से भी बुरी है। इसलिए लड़के को डाँटना माता-पिता और बच्चों का व्यवहार छोड़ दो। धीरे से समझाना कि यह सब नहीं खाना चाहिए, उससे तेरा शरीर बिगड़ेगा। वह गलत करता हो तो भी उसे बार-बार मत पीटो। गलत करता हो और बार-बार पीटें तो क्या होगा? एक आदमी तो जैसे कपड़े धो रहा हो, उस प्रकार बच्चे की धुलाई कर रहा था। मुए, बाप होकर लड़के की यह क्या दशा करता है? उस समय लडका मन में क्या तय करता है, जानते हो? सहन नहीं हो तो मन में सोचता है, 'बड़ा होने पर तुम को मारूँगा, देख लेना।' भीतर ठान लेता है। बड़ा होकर फिर उसे मारता भी है। मारने से जगत् नहीं सुधरता। डाँटने से या चिढने से भी कोई नहीं सुधरता। सही करके दिखाने से सुधरता है। जितना बोलें उतना पागलपन है। एक भाई थे। वे रात दो बजे न जाने क्या-क्या कर के घर आते थे! उसका वर्णन करने योग्य नहीं है। आप समझ जाओ। फिर घर के लोगों ने तय किया कि इसको डाँटे या फिर घर में घुसने नहीं दें, क्या उपाय करें? बाद में वे लोग इसका अनुभव कर आये। उसके बड़े भैया कहने गए तो उनसे कहने लगा, 'तुमको मारे बगैर नहीं छोड़ेंगा।' फिर घर के सब लोग मुझे पूछने आये कि 'इसका क्या करें? यह तो ऐसा बोलता है।' तब मैंने घरवालों से कह दिया कि 'कोई उसे एक अक्षर भी कहे नहीं। बोलेंगे तो वह ज्यादा उदंड हो जाएगा, और घर में आने नहीं दोगे तो बगावत करेगा। उसे जब आना हो तब आए और जाना हो तब जाए। हमें 'राइट' (सही) भी नहीं कहना और 'रोग' (गलत) भी नहीं कहना है। राग भी नहीं करना, द्वेष भी नहीं करना है। समता रखनी है, करुणा रखनी है।' तीन-चार साल बाद वह भाई सही रास्ते पर आ गया! आज वह व्यापार में बहुत मदद करता है। दुनिया बेकार नहीं है, पर काम लेना आना चाहिए। सभी के भीतर भगवान हैं और सभी भिन्नभिन्न कार्य लेकर बैठे हैं, इसलिए नापसंद जैसा मत रखना। एक आदमी संडास के दरवाजे को लातें मार रहा था। मैंने पूछा, Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४१ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार 'लातें क्यों मारते हो?' तो बोला, 'बहुत सफाई करता हूँ फिर भी बदबू आ रही है।' बोलिए, अब यह कितनी बड़ी मूर्खता कहलाएगी ! संडास के दरवाज़े को लात मारें तो भी बदबू आती है ! इसमें भूल किसकी ? कितने ही लोग तो लड़के को बहुत मारते रहते हैं, यह क्या मारने की चीज़ है? यह तो 'ग्लास वेअर' (काँच के बरतन ) के जैसे हैं। 'ग्लास वेअर' को जतन से रखने चाहिए। 'ग्लासवेअर' को ऐसे फेंके तो? 'हेन्डल विथ केयर ।' अर्थात् सावधानी रखो। अब ऐसे मारते मत रहना। ऐसा है, इस जन्म के बच्चों की चिंता करते हो लेकिन पिछले जन्मों में जो संतानें थी उनका क्या किया? प्रत्येक जन्म में संतान छोड़कर आये हैं, जहाँ भी जन्म लिए उन सबमें बच्चे छोड़-छोड़ कर आये हैं । इतने छोटे-छोटे कि बेचारे भटक जाएँ, ऐसे बच्चों को छोड़कर आये हैं । वहाँ से आना नहीं चाहता था, फिर भी यहाँ आया। बाद में भूल गया और फिर इस जन्म में दूसरे बच्चे आए ! इसलिए बच्चों संबंधी क्लेश क्यों करते हो? उन्हें धर्म के मार्ग पर ले जाओ, अच्छे हो जाएँगे । एक लड़का तो ऐसा टेढ़ा था कि कड़वी दवाई पिलाये तो पीता ही नहीं था, गले से नीचे उतारता नहीं था, पर उसकी माँ भी पक्की थी। बच्चा इतना टेढ़ा हो तो माँ कच्ची होगी क्या? माँ ने क्या किया, उसकी नाक दबाई और दवाई फट से गले में उतर गई। परिणाम स्वरूप लड़का और भी पक्का हो गया ! दूसरे दिन जब पिला रही थी और नाक दबाने गई तो उसने फूऊऊऊ कर के माँ की आँखों में उड़ाया ! यह तो वही 'क्वॉलिटी !' माँ के पेट में नौ महीने बिना भाड़े के रहे, वह मुनाफा और ऊपर से फूऊऊऊ करता है ! एक बाप मुझे कहता था कि 'मेरा तीसरे नंबर का लड़का बहुत खराब है। दो लड़के अच्छे हैं।' मैंने पूछा, 'यह खराब है तो तुम क्या करोगे?' तब बोला, 'क्या करूँ? दो लड़कों को मुझे कुछ नहीं कहना पड़ता और इस तीसरे लड़के के कारण मेरी सारी जिंदगी बर्बाद होने लगी है।' मैंने कहा, 'क्या करता है तुम्हारा लड़का ?' तब वह बोला, 'रात डेढ़ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार बजे आता है, शराब पीकर आता है मुआ।' मैंने पूछा, 'फिर तुम क्या करते हो?' तब बोला, 'मैं दूर से देखता हूँ उसे, अगर मेरा मुँह दिखाऊँ तो गालियाँ देता है। मैं दूर रहकर खिड़की में से देखता रहता हूँ कि क्या तब मैंने कहा, 'डेढ़ बजे घर आने के बाद क्या करता है?' करता है?" तब बोला, 'खाने-पीने की तो कोई बात ही नहीं, उसके आने पर उसका बिस्तर लगा देना पड़ता है। आकर तुरन्त सो जाता है और खर्राटे लेने लगता है।' इस पर मैंने कहा, 'तो चिंता कौन करता है?' तब बोला, 'वह तो मैं ही करता हूँ।' ४२ बाद में कहे, 'उसका यह हाल देखकर मुझे तो सारी रात नींद नहीं आती।' मैंने कहा, 'इसमें दोष तुम्हारा है, वह तो आराम से सो जाता है। तुम्हारा दोष तुम भुगतते हो। पिछले जन्म में उसे शराब की आदत डालनेवाला तू ही है।' उसको सिखाकर खिसक गया। किस कारण सिखाया ? लालच की खातिर। यानी पिछले जन्म में उसे बिगाड़ा था, उलटी राह पर चढ़ाया था।' वह सिखाने का फल आया है अब । अब उसका फल भुगतो आराम से ! जो भुगते उसी की भूल। देखो, वह तो सो गया है न आराम से ? और बाप सारी रात चिंता करते-करते डेढ़ बजे तक जागता है कि कब आये, लेकिन उसे कुछ बोल नहीं सकता। बाप भुगतता है, इसलिए भूल बाप की है। बहू समझती है की ससुर दूसरे कमरे में बैठे हैं। इसलिए वह दूसरे के साथ बात करती है कि 'ससुर ज़रा कम अक्ल है।' अब उस समय हम वहाँ खड़े हों तो हमें यह सुनने में आये, तो हमें भीतर असर होता है। तब वहाँ क्या हिसाब लगाना चाहिए कि अगर हम दूसरी जगह में बैठे होते तो क्या होता? तब कोई असर नहीं होता । अर्थात् यहाँ आये, इस भूल का यह असर है! हम इस भूल को सुधार लें, ऐसा समझ कर कि हम कहीं और बैठे थे और हमने यह सुना ही नहीं था। इस प्रकार इस भूल को सुधार लें। महावीर भगवान के पीछे भी लोग उल्टा बोलते थे। लोग तो बोलेंगे Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार जैसी नहीं है, क्लेश करने के बजाय मौन रहना उत्तम होगा। क्लेश से तो खुद का और सामनेवाले का भी दिमाग बिगड़ जाता है। वे तुम्हें बुरा कहें, तुम उन्हें बुरा कहो! फिर वातावरण दूषित होता जाता है और विस्फोट होता है। इसलिए तुम उन्हें अच्छे से कहना। किस दृष्टि से? एक दृष्टि मन में रख लो कि 'आफ्टर ऑल ही इज ए गुड मेन (आखिरकार तो वह अच्छा आदमी है)।' प्रश्नकर्ता : टकराव हो तब बच्चों के साथ कैसा बर्ताव करना चाहिए? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ही, हम अपनी भूल खत्म कर दें। उसको ठीक लगा वैसा बोला। हमारे बुरे कर्मों का उदय हो तभी ऐसा उल्टा उससे बोला जाता है। बच्चों का अहंकार जागृत हो, उसके बाद उसे कुछ नहीं कह सकते और हम कहें भी क्यों? उन्हें ठोकर लगेगी तो सीखेंगे। बच्चे पाँच साल के हों, तब तक उन्हें कहने की छूट। और पाँच से सोलह सालवाले बच्चे को शायद कभी थप्पड़ भी लगानी पड़े। मगर बीस साल का जवान होने के बाद ऐसा नहीं कर सकते। उसे एक अक्षर भी नहीं बोल सकते। उसे कुछ भी बोलना गुनाह होगा। वर्ना तो किसी दिन आपको बन्दूक भी मार दे। 'बिन माँगी सलाह मत देना' ऐसा हमने लिखा भी है! अगर कोई हमसे कुछ पूछे, तब हमें सलाह देनी चाहिए और उस समय जो ठीक लगता हो वह कह देना। सलाह देने के बाद यह भी कहना कि तुम्हें ठीक लगे वैसा करना। हम तो तुम्हें यह कह चुके। इसलिए फिर उन्हें बुरा लगे ऐसी कोई बात नहीं रहती। अतः हमें जो कुछ भी कहना है, उसके पीछे विनय रखना है। इस काल में कम बोलने जैसा दुसरा कुछ भी नहीं है। इस काल में बोल पथ्थर लगें, ऐसे निकलते हैं और सबके ऐसे होते हैं। इसलिए मितभाषी हो जाना अच्छा है। किसी को कुछ कहने जैसा नहीं है। कहने से और बिगड़ेंगे। उससे कहें कि 'गाड़ी पर जल्दी जा।' तब देर से जाएगा और कुछ नहीं कहोगे तो समय पर जाएगा। हम नहीं हों तो भी सब चले ऐसा है। यह तो खुद का गलत अहंकार है। जिस दिन से बच्चों के साथ तुम्हारी झिकझिक बंद होगी, उस दिन से बच्चे सुधरने लगेंगे। तुम्हारे शब्द अच्छे निकलते नहीं, इसलिए सामनेवाला अकुलाता है। तुम्हारे शब्द स्वीकार नहीं होते और उल्टे वे शब्द पलटकर वापस आते हैं। हम तो बच्चों को खाना-पीना बनाकर दें और हमारा फर्ज निभायें, दूसरा कुछ कहने जैसा नहीं है। कहने से फायदा नहीं, ऐसा आपको लगता है? बच्चे बड़े हो गए हैं, वे क्या सीढ़ियों से गिर पड़ेंगे? तुम अपना आत्मधर्म क्यों चूक रहे हो? इन बच्चों के साथ तो रिलेटिव धर्म है। वहाँ भेजाफोडी करने दादाश्री : राग-द्वेष नहीं होना चाहिए। उसने कुछ बिगाड़ा हो, कुछ नुकसान किया हो, तब भी उस पर द्वेष नहीं होना चाहिए। उसे 'शद्धात्मा' के रूप में देखना चाहिए। अर्थात् राग-द्वेष नहीं हुआ तो सब निराकरण हो गया और अपना ज्ञान राग-द्वेष न होने दे ऐसा है। अपने मन में जरा-सी भी दुविधा हो तो वह दूसरे किसी की नहीं, हमारी ही है, इसलिए हमें समझ लेना है कि यह दुविधा हमारी है। दुविधा क्यों हुई? हमें देखना नहीं आया, इसलिए। हमें 'शुद्धात्मा' ही देखना है। उलझनें खत्म करनी हैं 'मैं शुद्धात्मा हूँ', बाकी सब 'व्यवस्थित' है। ऐसा 'सोल्युशन (हल)'मैंने दिया है। बेटे की शादी होने के बाद परेशान हों तो नहीं चलेगा, उससे पहले संभल जाओ। साथ में रखोगे तो क्लेश होगा। उसका जीवन बिगड़ेगा और साथ में हमारा भी बिगड़ेगा। अगर प्रेम पाना चाहते हो तो उससे अलग रहकर प्रेम रखो, वरना जीवन बिगाड़ोगे और इससे प्रेम घट जाएगा। उसकी पत्नी आई तब उनको साथ में रखना चाहो तो सदैव वह पत्नी का कहा मानेगा, तुम्हारा नहीं सुनेगा। उसकी पत्नी कहेगी, 'आज तो माताजी ऐसा कह रही थीं, वैसा कह रही थीं।' तब बेटा कहेगा, 'हाँ, माँ ऐसी ही हैं।' और फिर चला तूफान। दूर से सब अच्छा रहता है ! प्रश्नकर्ता : बच्चे विदेश में हैं उनकी याद आती रहती है, उनकी चिंता होती है। Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : वे बच्चे वहाँ खा-पीकर मजा कर रहे होंगे, माँ को याद भी नहीं करते होंगे और माँ यहाँ चिंता करती रहती है, यह कैसी बात? प्रश्नकर्ता : वे लड़के वहाँ से लिखते हैं कि तुम यहाँ आ जाओ। दादाश्री : हाँ! पर जाना क्या अपने हाथ में है? उसके बजाय हम ही जैसा है वैसा बंदोबस्त कर लें। वह गलत है क्या? वे उनके घर, हम अपने घर ! इस कोख से जन्म हुआ इसलिए क्या हमारे हो गए सब? हमारे हों तो हमारे साथ आयें लेकिन कोई आता है इस संसार में? घर में पचास व्यक्ति हों, लेकिन हमें पहचानना नहीं आया इसलिए गड़बड़ होती रहती है। उन्हें पहचानना चाहिए न? यह गुलाब का पौधा है कि किसका पौधा है, यह पता नहीं लगाना चाहिए? पहले क्या था? सत्युग में एक घर में सब गुलाब और दूसरे घर में सभी मोगरा, तीसरे घर चंपा! अभी क्या हुआ है कि एक ही घर में मोगरा है, गुलाब है, चंपा है! गुलाब होगा तो काँटे होंगे और यदि मोगरा है तो काँटे नहीं होंगे, मोगरे का फल सफेद होगा, गुलाब गुलाबी होगा, लाल होगा। इस समय ऐसे अलग-अलग पौधे हैं। यह बात आपकी समझ में आई? सत्युग में जो खेत थे, आज कलियुग में वे बगीचे जैसे हो गए हैं! पर उन्हें देखना नहीं आता, उसका क्या करें? उन्हें सही देखना न आये तो दुःख ही होगा न? इस जगत् के लोगों के पास यह देखने की दृष्टि नहीं है। कोई बुरा होता ही नहीं। यह मतभेद तो अपना-अपना अहंकार है। देखना नहीं आता उसका दु:ख है। देखना आए तो दुःख ही नहीं! मुझे सारे संसार में किसी के भी साथ मतभेद ही नहीं होता। मुझे देखना आता है कि यह गुलाब है या मोगरा है। वह धतूरा है कि कड़वी तुरई का फूल है, ऐसे सबको पहचानें। प्रकृति को पहचानते ही नहीं इसलिए मैंने पुस्तक में लिखा है, 'आज घर बगीचा हुआ है। इस लिए काम निकाल लो इस समय में।' माता-पिता और बच्चों का व्यवहार जो खुद 'नोबल' (उदार) हो और लड़का कंजूस हो तो कहेगा, 'मेरा बेटा बिलकुल कंजूस है।' उसे वह मार-पीट कर 'नोबल' करना चाहे तो नहीं होगा। वह माल ही अलग है। जबकि माता-पिता उसे अपने जैसा करना चाहते हैं। अरे, उसे खिलने दो, उसकी शक्तियाँ जो हैं उन्हें खिलाओ। किसका स्वभाव कैसा है, वह देख लेना है। मुए, किस लिए उनसे झगड़ते हो। इस बगीचे को पहचानने जैसा है। 'बगीचा' कहता हूँ तब लोग समझते हैं और फिर अपने लड़के को पहचानते हैं। प्रकृति को पहचान ! एक बार लड़के को पहचान ले और उसके मुताबिक व्यवहार कर। उसकी प्रकृति को देखकर व्यवहार करें तो क्या हो? मित्र की प्रकृति को 'एडजस्ट' होते हैं कि नहीं? ऐसे प्रकृति को देखना पड़ता है, प्रकृति को पहचानना पड़ता है। पहचान कर चलें तो घर में टंटा-फसाद नहीं हो। यहाँ तो मार-पीट कर मेरे जैसे बनो,' ऐसा कहते हैं। ऐसे किस प्रकार हो सकते हैं? सारा संसार ऐसे व्यवहार ज्ञान की खोज में है, यह धर्म नहीं है। यह ज्ञान संसार में रहने का इलाज है। संसार मे एडजस्ट होने का उपाय है। वाइफ के साथ कैसे एडजस्टमेन्ट करें, लड़के के साथ कैसे एडजेस्टमेन्ट करें, उसके उपाय हैं। घर में खिटपिट हो, तब इस वाणी के शब्द ऐसे हैं कि सबकी तकलीफ मिट जाए। इस वाणी से सब अच्छा होता है। जिससे दुःख चले जाएँ ऐसी वाणी लोग खोजते हैं। क्योंकि किसी ने ऐसे उपाय ही नहीं बताये न ! सीधे काम आनेवाले हों ऐसे उपाय ही नहीं हैं न! १०. शंका के शूल एक आदमी मेरे पास आता था। उसकी एक लड़की थी। उसको मैंने पहले से समझाया था कि 'यह तो कलियुग है, इस कलियुग का असर लड़की पर भी होता है। इसलिए सावधान रहना।' वह आदमी समझ गया Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ४७ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार और जब उसकी लड़की दूसरे के साथ भाग गई, तब उस आदमी ने मुझे याद किया और मेरे पास आकर मुझसे कहने लगा, 'आपने कही थी वह बात सच्ची थी। अगर आपने मुझे ऐसी बात नहीं बताई होती तो मुझे जहर पीना पड़ता।' ऐसा है यह जगत्, पोलमपोल ! जो होता है उसे स्वीकार करना चाहिए, उसके लिए क्या जहर पियें? नहीं, तब तो तू पागल कहलाएगा। यह तो कपड़े ढाँककर आबरु रखते हैं और कहते हैं कि हम खानदानी हैं। एक हमारा खास संबंधी था, उसकी चार लड़कियाँ थीं। वह बहुत जागृत था, मुझसे कहता है, 'ये लड़कियाँ बड़ी हुई, कॉलिज गई, लेकिन मुझे इन पर विश्वास नहीं होता।' उस पर मैंने कहा, 'कॉलिज साथ में जाना और वे कॉलिज से निकलें तब पीछे-पीछे आना।' इस प्रकार एक बार जाएगा पर दूसरी बार क्या करेगा? बीवी को भेजेगा? अरे, विश्वास कहाँ रखना और कहाँ नहीं रखना, इतना भी नहीं समझता? हमें लड़की से इतना कह देना चाहिए, 'देखो बेटी, हम अच्छे घर के लोग, हम खानदानी, कुलवान हैं।' इस प्रकार उसे सावधान कर देना। बाद में जो हुआ सो 'करेक्ट', उस पर शंका नहीं करने की। कितने शंका करते होंगे? जो इस मामले में जागृत हैं, वे शंका करते रहते हैं। ऐसा संशय रखने से कब अन्त आयेगा? इसलिए किसी भी प्रकार की शंका हो तो उत्पन्न होने से पहले ही उखाड़ कर फेंक देना। यह तो लड़कियाँ बाहर घूमने-फिरने जाती हैं, खेलने जाती हैं, उसकी शंका करता है और शंका उत्पन्न हुई तो हमारा सुख-चैन टिकता है? नहीं। अत: कभी लड़की रात देर से आये तो भी शंका मत करना। शंका निकाल दो तो कितना लाभ हो? बिना वजह डराकर रखने का क्या अर्थ है? एक जन्म में कुछ परिवर्तन होनेवाला नहीं। उन लड़कियों को बिना वजह दुःख मत पहुँचाना, बच्चों को दुःख नहीं देना। बस इतना ज़रूर कहना कि, 'बेटी, तू बाहर जाती है पर देर मत करना, हम खानदानी लोगों में से हैं, हमारे लिए यह शोभनीय नहीं, इसलिए ज्यादा देर मत करना।' इस तरह सब बात करना, समझाना। लेकिन शंका करना ठीक नहीं होगा कि 'किस के साथ घूमती होगी, क्या करती होगी?' और कभी रात बारह माता-पिता और बच्चों का व्यवहार बजे आये, तब भी दूसरे दिन कहना कि, 'बेटी, ऐसा नहीं होना चाहिए।' उसे अगर घर से बाहर कर दें तो वह किस के वहाँ जाएगी। उसका ठिकाना नहीं। फायदा किस में है? कम से कम नुकसान हो उसमें फायदा है न? कम से कम नुकसान हो वह फायदेमंद। इसलिए मैंने सभी से कहा है कि 'रात को देर से आएँ तो भी लड़कियों को घर में आने देना। उन्हें बाहर मत निकाल देना।' वर्ना ये तो बाहर से ही निकाल दें, ऐसे उग्र मिज़ाज के लोग हैं! काल कैसा विचित्र है! कितना दुःखदाई काल है!! और ऊपर से यह कलियुग है, इसलिए घर में बिठाकर उन्हें समझाना। __ प्रश्नकर्ता : अब सामनेवाला कोई हमारे ऊपर संशय रखे तो उसका निराकरण खुद कैसे करें? दादाश्री : वह संशय रखता है, ऐसा मत सोचना, ऐसा हमें जो ज्ञान है, वह ज्ञान भुला देना। प्रश्नकर्ता : उसे हम पर संशय हुआ, तो हमें पूछना चाहिए कि क्यों संशय हुआ? दादाश्री : पूछने में मज़ा नहीं है, ऐसा पूछना ही मत। हमें तुरन्त समझ लेना चाहिए कि अपना कुछ दोष है, वर्ना उसे शंका क्यों हुई? 'भुगतता है उसी की भूल' यह वाक्य समझ लिया कि निराकरण आ गया। शंका करनेवाला भुगत रहा है या फिर शंका जिस पर हो रही है, वह भुगत रहा है? यह देख लेना। ११. वसीहत में बच्चों को कितना? प्रश्नकर्ता : पुण्योदय से जरूरत से ज्यादा लक्ष्मी प्राप्त हो तब क्या करना चाहिए? दादाश्री : तब अच्छे कार्य में खर्च कर देना। बच्चों के लिए बहुत रखना मत। उन्हें पढ़ा-लिखाकर काम-धंधे पर लगा देना। काम पर लग गए, बाद में ज्यादा लक्ष्मी रखना मत। इतना ख्याल रखना कि जितना अपने साथ आया उतना ही हमारा। Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ५० प्रश्नकर्ता : यहाँ से साथ में ले जा सकते है क्या? दादाश्री : अब क्या लेकर जाएँगे? साथ में जो था वह सब यहाँ खर्च करके पूरा किया। अब कुछ मोक्ष संबंधी मेरे पास से यहाँ आकर पाएँ तो दिन बदले। अब भी जीवन बाकी है. अब भी जीवन बदल सकते हैं, जब जागे तब सवेरा। वहाँ (अगले जनम में) ले जाने में क्या काम आता है? यहाँ जो तुमने खर्च किया, वह सब गटर में गया, तुम्हारे मौज-मज़ा के लिए, तुम्हारे रहने के लिए जो कुछ भी करते हो वह सब गटर में गया। केवल दूसरों के लिए जो कुछ किया उतना ही तुम्हारा ओवरड्राफ्ट (जमा) है। एक आदमी ने मुझे प्रश्न किया कि बच्चों को कुछ नहीं दें? मैंने कहा, 'बच्चों को देना, मगर आपके पिता ने आपको जितना दिया हो, उतना देना। बीच में जो कमाया, वह हम जहाँ चाहें, किसी अच्छे कार्य में खर्च कर दें।' प्रश्नकर्ता : हमारे वकीलों के कानून में भी ऐसा है कि बाप-दादा की प्रोपर्टी (सम्पत्ति) हो, उसे बच्चों को देनी ही चाहिए और स्व-उपार्जित धन का बाप जो करना चाहे कर सकता है। दादाश्री : हाँ, जो करना चाहे करे। अपने हाथों से ही कर लेना चाहिये। अपना मार्ग क्या कहता है कि तेरा अपना माल हो, वह अलग कर के खर्च कर, तो वह तेरे साथ आयेगा। क्योंकि यह 'ज्ञान' प्राप्त करने के बाद अभी एक-दो जन्म बाकी रहे हैं, इसलिए साथ में जरूरत पड़ेगी न? दूसरे गाँव जाते हैं तब साथ में थोड़ी रोटियाँ ले जाते हैं। तब यहाँ भी साथ में कुछ होना चाहिए न? इसलिए लड़के को तो केवल क्या देना चाहिए, एक 'फ्लैट' (मकान) देना, हम रहते हों वह । वह भी हो तो देना। उसे कह देना कि, 'बेटे, हम न हों उस दिन यह सब तेरा, तब तक मालिकी हमारी ! पागलपन करेगा तो तुझे तेरी बहू के साथ निकाल बाहर करूँगा। हम हैं तब तक तेरा कुछ भी नहीं। हमारे जाने के बाद सब कुछ तेरा।' विल कर डालना। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार आपके बाप ने दिया हो उतना आपको उसे देना है। वह उतना हक़दार है। आखिर तक लड़के के मन में ऐसा रहे कि 'अभी पिताजी के पास पचास हजार और हैं।' हमारे पास तो लाख हों। वह मन में समझे कि ४०-५० हजार देंगे। उसे इस लालच में आखिर तक रखना। वह अपनी बहू से कहे कि, 'जा, पिताजी को फर्स्ट क्लास भोजन करा, चाय-नाश्ता ला।' हमें रौब से रहना है। अर्थात् हमारे पिताजी ने जो कुछ कोठरी (मकान) दी हो वह उन्हें दे दो। कोई कछ साथ में ले जाने नहीं देता। हमारे जाने के बाद हमारे शरीर को जला देते हैं। तब फिर लड़कों के लिए अधिक छोड़ कर क्या करें? लड़कों के लिए ज्यादा छोड़ जाएँ तो लड़के क्या करेंगे? वे सोचेंगे कि 'अब नौकरी-धंधा करने की ज़रूरत नहीं।' बच्चे शराबी बन जाएँगे। क्योंकि फिर उन्हें संगत ऐसी मिल जाती है। ये शराबी ही हुए हैं न सब! अत: लड़के को तो हमें सोच-समझकर मर्यादा में देना चाहिए। अगर ज्यादा दें तो दुरूपयोग होगा। हमेशा जॉब (काम) ही करता रहे ऐसा कर देना चाहिए। बेकार बैठे तो शराब पिये न? कोई बिजनेस (धंधा) उसे पसंद हो तो करवा देना। कौन-सा व्यवसाय पसंद है वह पूछकर, उसे जो व्यवसाय ठीक लगे वह करवा देना। पच्चीस-तीस हज़ार बैंक से लोन पर दिलवाना, ताकि अपने आप भरता रहे और थोड़े बहुत अपने पास से दे देना। उसे ज़रूरत हो उसमें से आधी रकम हमें देनी है और आधी रकम बैंक में से लोन दिलवा देना। इस लोन की किश्तें तू भरना, ऐसा कह देना। किश्तें भरता रहे और वह लड़का समझदार होता है फिर। अत: लड़के को नियम से, नियम से जितना देना चाहिए उतना देकर, बाकी सारा लोगों के सुख के लिए अच्छे रास्ते खर्च कर देना। लोगों को सुख कैसे मिले? उनके हृदय को ठंडक पहुँचे तब! तो वह सम्पत्ति तुम्हारे साथ आयेगी। ऐसे नक़दी नहीं आती पर ओवरडाफट (जमाराशि) के रूप में आती है। नक़दी तो ले जाने ही नहीं देते न ! यहाँ पर इस तरह ओवरड्राफट करो, लोगों को खिला दो, सबके दिलों को Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ५१ ठंडक पहुँचाओ। किसी की मुश्किल दूर करो। यह रास्ता है आगे ड्राफट भेजने का । इसलिए पैसों का सदुपयोग करो। चिंता मत करो। खाओपीओ, खाने-पीने में कंजूसी मत करो। इसलिए कहता हूँ कि 'खर्च डालो और ओवरड्राफट लो । ' मैंने उनके लड़कों से कहा कि तुम्हारे बाप ने यह सब सम्पत्ति तुम्हारे लिए इकट्ठा की है, धोती पहनकर (कंजूसी करके )। तब बोले, 'आप हमारे बाप को जानते ही नहीं हो।' मैंने पूछा, 'कैसे?' तब कहा, 'अगर यहाँ से पैसा ले जा सकते न तो मेरा बाप तो लोगों से कर्ज लेकर दस लाख ले जाए ऐसा पक्का है। इसलिए यह बात मन में रखने जैसी नहीं है।' उस लड़के ने ही मुझे ऐसे समझाया और मैंने कहा कि, 'अब मुझे सच्ची बात मालूम हुई ! मैं जो जानना चाहता था, वह मुझे मिल गया।' इकलौता लड़का हो, उसे वारिस बनाकर सौंप दिया। कहते हैं कि 'बेटा, यह सब तेरा, अब हम दोनों धर्मध्यान करेंगे।' 'अब यह सारी सम्पत्ति उसी की ही तो है', ऐसा बोलोगे तो फजीहत होगी। क्योंकि उसे सारी सम्पत्ति दे दी तो क्या होगा? बाप सारी सम्पत्ति इकलौते बेटे को दे दे तो लड़का माता-पिता को कुछ दिन तो साथ रखेगा लेकिन एक दिन लड़का कहेगा, 'तुम्हें अक्ल नहीं, तुम एक जगह बैठे रहो, यहाँ पर । ' अब बाप के मन में ऐसा हो कि मैंने इसके हाथ में लगाम क्यों सौंपी ? ! ऐसे पछतावा हो, उसके बजाय हमें लग़ाम अपने पास ही रखनी चाहिए। एक बाप ने अपने लड़के से कहा कि, 'सब सम्पत्ति तुझे देनी है।' तब उसने कहा कि, आपकी सम्पत्ति की मैंने आशा नहीं रखी है। उसे आप जहाँ चाहो वहाँ इस्तेमाल करो। अंत में कुदरत जो परिणाम दे वह अलग बात है। लेकिन उसका ऐसा निश्चय, अपना अभिप्राय दे दिया न! इसलिए वह सर्टिफाइड हो गया और अब मौज- शौक कुछ रहा नहीं । १२. मोह के मार से मरे अनेकों बार प्रश्नकर्ता : बच्चे बड़े होंगे, फिर अपने रहेंगे या नहीं यह किसे मालूम है? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : हाँ, अपना कुछ रहता नहीं। यह शरीर ही अपना नहीं रहता तो! यह शरीर भी बाद में हमसे ले लेते हैं। क्योंकि परायी चीज़ हमारे पास कितने दिन रहे? ५२ बच्च मोहवश 'पापा, पापा' बोलता है, तो पापाजी बहुत खुश हो जाते हैं और 'मम्मी मम्मी' बोलता है तो मम्मी भी बहुत खुश होकर हवा में उड़ने लगती है। पापाजी की मूँछें खींचे तो भी पापा कुछ बोलते नहीं । ये छोटे बच्चे तो बहुत काम करते हैं। अगर पापा-मम्मी के बीच झगड़ा हुआ हो, तो वह बच्चा ही मध्यस्थी के रूप में समाधान करता है। झगड़ा तो हमेशा होता ही है न! पति-पत्नी के बीच वैसे भी 'तू-तू, मैं-मैं' होती ही रहती है, तब बेटा किस प्रकार समाधान करता है? सवेरे वे चाय न पीते हों जरा सा रूठे हों, तो वह स्त्री बच्चे से क्या कहेगी कि, बेटा, जा, पापाजी से कह, 'मेरी मम्मी चाय पीने बुलाती है, पापाजी चलिए ।' अब लड़का पापाजी के पास जाकर बोला, 'पापाजी, पापाजी' और यह सुनते ही सबकुछ भूल कर तुरन्त चाय पीने आता है। इस तरह सब चलता है। बेटा 'पापाजी' बोला कि ओहो! न जाने कौन-सा मंत्र बोला। अरे, अभी तो कहता था कि मुझे चाय नहीं पीनी ! ऐसा है यह जगत् ! इस दुनिया में कोई किसी का लड़का हुआ नहीं। सारी दुनिया में से ऐसा लड़का ढूंढ लाओ कि जो अपने बाप के साथ तीन घण्टा झगड़ा किया हो और बाद में कहे कि, 'हे पूज्य पिताश्री, आप चाहें जितना भी डाँटे फिर भी आप और मैं एक ही हैं।' ऐसा बोलनेवाला खोज लाओगे? यह तो आधा घण्टा 'टेस्ट' पर लिया हो तो फूट जाए। बन्दूक की टिकड़ी फूटते देर लगे, पर यह तो तुरन्त फूट जाता है। जरा डाँटना शुरू करें, उसके पहले ही फूट जाता है कि नहीं फूटता ? लड़का 'पापाजी-पापाजी' करे तब वह कड़वा लगना चाहिए। अगर मीठा लगे तो वह सुख उधार लिया ऐसा कहलाता है । फिर वह दुःख के रूप में लौटाना होगा। लड़का बड़ा होगा, तब तुम्हें कहेगा कि, 'आप में अक्ल ही नहीं हैं।' तब हमें लगे कि ऐसा क्यों? तुमने जो उधार लिया था, वह Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार वसूल कर रहा है। इसलिए पहले से सावधान हो जाओ। हमने तो उधार का सुख लेने का व्यवहार ही छोड़ दिया था। अहो ! खुद के आत्मा में अनंत सुख है ! उसे छोड़कर इस भयानक गंदगी में क्यो पड़ें? एक सत्तर साल की बुढ़िया थी। एक दिन घर से बाहर आकर चिल्लाने लगीं, 'आग लगे इस संसार को, कड़वा जहर जैसा, मुझे तो यह संसार जरा भी नहीं भाता ! हे भगवान! तू मुझे उठा ले।' तब कोई लड़का वहाँ से गुज़र रहा था उसने कहा, 'क्यों माई हर रोज तो बहुत अच्छा कहती थी, हर रोज तो मीठा अँगूर जैसा लगता था और आज कड़वा कैसे हो गया?' तब कहने लगी, 'मेरा पुत्र मेरे साथ कलह करता है। इस बुढ़ापे में मुझसे कहता है, चली जा यहाँ से।' पहले उपकारी खोजने बाहर जाना पड़ता था और आज तो उपकारी घर बैठे जन्मे हैं। इसलिए शांति से लड़का जो सुख-दुःख दे, उसे स्वीकार कर लेना । महावीर भगवान को भी उपकारी नहीं मिलते थे। आर्य देश में उपकारी नहीं मिले तो उन्हें फिर साठ मील दूर अनार्य देश में विचरना पड़ा, और हमें तो घर बैठे उपकारी मिले हैं। लड़का कहे, 'हमें देर हो जाए तो आप झिक-झिक मत करना। आपको सोना हो तो सो जाना चुपचाप।' बाप सोचता है, 'अब सो जाऊँगा चुपचाप। यह सब मैं नहीं जानता था, वर्ना संसार शुरू ही नहीं करता।' अब जो हुआ सो हुआ। हमें पहले ऐसा मालूम नहीं होता न, इसलिए शुरू कर देते हैं और बाद में फँस जाते हैं! प्रश्नकर्ता : नापसंद मिले तो उसे आत्मा हेतु उपयोग में लेना, ऐसा अर्थ हुआ? दादाश्री : नापसंद मिले वह आत्मा के लिए हितकारी ही होता है। वह आत्मा का विटामिन ही है। दबाव आया कि तुरन्त आत्मा में आ जाते हैं न? अभी कोई गाली दे उस घड़ी वह संसार में नहीं रहता और अपनी आत्मा में ही एकाकार हो जाता है लेकिन जिसे आत्मा का ज्ञान हुआ है वही ऐसा कर सकता है। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता: बुढ़ापे में हमारी सेवा कौन करेगा? दादाश्री : सेवा की आशा क्यों रखें? हमें परेशान न करें तो भी अच्छे हैं। सेवा की आशा मत रखना। शायद पाँच प्रतिशत अच्छे मिल जाएँ, बाकी तो पंचानवे प्रतिशत तो हवा निकाल दें ऐसे हैं। ५४ अरे! लड़के तो क्या करते हैं? एक लड़के ने उसके बाप से कहा कि 'आप मुझे मेरा हिस्सा दे दो, रोजाना खिटपिट करते हो ऐसा नहीं 'चलेगा।' तब उसके बाप ने कहा, 'तूने मुझे इतना परेशान किया है कि मैं तुझे कुछ भी हिस्सा नहीं देनेवाला ।' 'यह मेरी खुद की कमाई है, इसलिए मैं तुझे इस सम्पत्ति में सें कुछ नहीं दूँगा।' तब लड़के ने कहा, 'यह सब मेरे दादा का है इसलिए मैं कोर्ट में दावा दायर करूँगा।' मैं कोर्ट में लडूंगा पर छोडूंगा नहीं । अर्थात् सच में ये संतानें अपनी नहीं होतीं। यदि बाप लड़के के साथ एक घण्टा लड़े, इतनी बड़ी बड़ी गालियाँ दे, तब लड़का क्या कहता है ? 'आप क्या समझते हो ?' पारिवारिक सम्पत्ति के लिए अदालत में दावा भी दायर करे ऐसा है। फिर उस लड़के के लिए चिंता होगी क्या? ममता छूट गई कि चिंता भी छूट गई। अब मुझे वह लड़का नहीं चाहिए। चिंता होती है न, वह ममतावालों को होती है। उसका साढ़ बीमार हो न, तो बारह दफा अस्पताल मिलने जाए और बाप हो तब तीन ही बार मिलने जाता है। ऐसा तू किस आधार पर करता है? घर में बीबी चाबी घुमाती है, कि 'मेरे बहनोई से मिलते आना !' अतः बीवी ने कहा कि तुरंत तैयार ! ऐसे बीबी के आधीन है जगत् । वैसे तो लड़का अच्छा होता है, पर जो उसको गुरु (पत्नी) नहीं मिलनेवाला हो तब। पर गुरु मिले बिना रहती नहीं न! मैं क्या कहना चाहता हूँ कि फिर चाहे गुरु परदेशी हो कि इन्डियन हो, काबू अपने हाथ में नहीं रहता। इसलिए लगाम पद्धतिनुसार अपने हाथ में रखनी चाहिए। प्रश्नकर्ता: पिछले जन्म में किसी के साथ बैर बंधा हो, तो वह Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार माता-पिता और बच्चों का व्यवहार किसी न किसी जन्म में उससे मिलकर चुकाना पड़ता है न? दादाश्री : नहीं, ऐसा नहीं है। इस तरह बदला नहीं चुकाया जाता। बैर बंधने पर भीतर राग-द्वेष होता है। पिछले जन्म में लड़के के साथ वैर हो गया हो तो हम सोचें कि कौन से जन्म में परा होगा? इस प्रकार फिर कब इकट्ठा होंगे? वह लड़का तो इस जन्म में बिल्ली होकर आए। तुम उसे दूध दो, तो भी वह तुम्हारे मुँह पर नाखन मारे! ऐसा है यह सब! ऐसे तुम्हारा बैर चुकता जाता है। परिपाक होना काल का नियम है इसलिए थोड़े समय में हिसाब पूरा हो जाता है। कुछ तो बैरभाव से मिलते हैं, ऐसा लड़का मिले तो बैरभाव से हमारा तेल निकाल दे। आया समझ में? शत्रु-भाव से आये तो ऐसा हो कि न हो? प्रश्नकर्ता : मेरी तीन बेटियाँ है, उनकी मुझे चिंता रहती है। उनके भविष्य के बारे में? दादाश्री: हम भविष्य के बारे में विचार करें उससे अच्छा आज की सेफसाइड (सलामती) करना, प्रतिदिन सेफसाइड करना अच्छा। आगे के विचार जो करते हो न, वे विचार किसी भी तरह 'हेल्पिंग' (सहायक) नहीं हैं, बल्कि नुकसानदायक हैं। उसके बजाय हम प्रतिदिन सेफसाइड करते रहें यही बड़े से बड़ा इलाज है। आपको बेटों-बेटियों के अभिभावक होकर, ट्रस्टी होकर रहना है। उनकी शादी की चिंता नहीं करनी चाहिए। क्योंकि वे अपना हिसाब लेकर आए होते हैं। लड़की के बारे में चिंता तुम्हें नहीं करनी है। लड़की के तुम पालक हो। लड़की अपने लिए लड़का भी लेकर आई होती है। हमें किसी को कहने जाने की ज़रूरत नहीं कि हमारी लड़की है, उसके लिए लड़के को जन्म देना। क्या ऐसा कहने जाना पड़ता है? अर्थात् अपना सबकुछ लेकर आई होती है। तब बाप कहेगा, 'यह पच्चीस साल की हुई, अभी भी उसका ठिकाना लगता नहीं, ऐसा है, वैसा है, 'यूं सारा दिन गाता रहता है। अरे! वहाँ पर लड़का सत्ताईस का हुआ है पर तुझे मिला नहीं, क्यों शोर मचा रहा है? सो जा चुपचाप! वह लड़की अपना टाइमिंग (समय) सब सेट करके आई है। चिंता करने से तो अंतराय कर्म होता है। वह कार्य विलंबित होता है। हमें किसी ने बताया हो कि फलाँ जगह पर एक लड़का है, तो हमें प्रयत्न करना है। चिंता करने को भगवान ने 'ना' बोला है। चिंता करने से तो एक अंतराय और पड़ता है और वीतराग भगवान ने क्या कहा है कि 'तुम चिंता करते हो तो तुम ही मालिक हो क्या? तुम ही दुनिया चलाते हो?' इसे ऐसे देखें तो पता चले कि अपने को तो संडास जाने की भी स्वतंत्र शक्ति नहीं है। अगर बंद हो जाए तो डॉक्टर बुलाना पड़ता है। तब तक ऐसा लगता है कि यह शक्ति हमारी है, परन्तु यह शक्ति हमारी नहीं है। यह शक्ति किसके अधीन है यह सब जानना पड़ेगा। यह तो अंत समय में खटिया में पड़ा हो, तब भी छोटी लड़की की चिंता करता है कि, इसकी शादी करनी रह गई। ऐसी चिंता में और चिंता में मर जाए तो फिर पशु योनि में जाता है। पशु योनि में जन्म निंद्य है, किन्तु मनुष्य जन्म पा कर भी सीधा न रहे तब क्या हो? १३. भला हुआ जो न बंधी जंजाल... दादाश्री : किसी दिन चिंता करते हो? प्रश्नकर्ता : चिंता बहुत नहीं, परंतु कभी कभी ऐसा लगता है कि, वैसे तो सब कुछ है पर बालक नहीं है। दादाश्री : अहोहो! अर्थात् खानेवाला कोई नहीं है। इतना सबकुछ है फिर भी, खाने का सबकुछ है परन्तु खानेवाला कोई नहीं तब भी फिर चिंता ही हो न! किसी जन्म में जब बहुत पुण्यवान हों, तब बच्चा नहीं होता। क्योंकि बच्चे होना-न होना सब अपने कर्मों की खाता-बही का हिसाब है। इस जन्म में महान पुण्यवान हो कि तुम्हें बच्चा नहीं हुआ। ऐसे लोग बहुत पुण्यवान कहलाते हैं। मुए, तुझे किस ने ऐसा सिखाया? तब कहा, 'मेरी पत्नी हर रोज़ खिटपिट करती है। मैंने कहा, 'मैं आऊँगा वहाँ पर।' बाद में उसकी बीवी को समझाया तो समझ गई। मैने कहा कि देखो, इनको Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार तो कोई परेशानी नहीं है। तुम्हारी बही में खाता ही नहीं है, है, नहीं? इसलिए परम सुखी ही हो आप। बहुत अच्छा एक भी संतान नहीं हो और लड़के का जन्म हो तो वह लड़का बाप को बहुत खुश करता है, उसे बहुत आनंद करवाता है। लेकिन जब वह जाए तब रूलाता भी उतना ही है। इसलिए हमें इतना जान लेना है कि वह आया है, तो जाए तब क्या क्या होगा? इसलिए आज से हँसना ही मत, तो बाद में मुश्किल ही नहीं आए न! बच्चे तो हमारे राग-द्वेष का हिसाब होते हैं। पैसे का हिसाब नहीं, राग-द्वेष के ऋणानुबंध होते हैं। राग-द्वेष का हिसाब चुकाने के लिए ये बच्चे बाप का तेल निकालते हैं। कोल्हू में पेलते हैं। श्रेणिक राजा का भी बेटा था और वह उन्हें रोज फटकारता था, जेल में भी डाल दिया था। कहते हैं कि मेरे बच्चे नहीं हैं। बच्चों का क्या करना है? ऐसे बच्चे हों जो परेशान करें वे किस काम के ? उसके बजाय तो सेर मीट्टी न हो वह अच्छा और किसी जन्म में तुझे सेर मीट्टी नहीं थी? अब यह मनुष्य जन्म बड़ी मुश्किल से मिला है, तो मुए, सीधा मर न ! और कुछ मोक्ष का साधन खोज निकाल और अपना काम निकाल ले। प्रश्नकर्ता: पिछले साल इनका एक बच्चा गुज़र गया न, तब कहते हैं कि मुझे बहुत दु:ख हुआ और मानसिक रूप से बहुत सहन करना पड़ा। इससे हमें ऐसा जानने को मन करता है कि पिछले जन्म में हमने ऐसा क्या किया होगा, कि जिसकी वजह से ऐसा हुआ ? दादाश्री : ऐसा है न कि जिसका जितना हिसाब उतना ही हमारे साथ वह रहता है, फिर हिसाब पूरा होते ही हमारी बही में से अलग हो जाता है। बस इतना ही इसका नियम है। प्रश्नकर्ता: कोई बच्चा पैदा होने के बाद तुरन्त मर जाए, तब क्या उसका उतना ही लेन-देन होता है? दादाश्री : माता-पिता के साथ जितना राग-द्वेष का हिसाब है, उतना ५८ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार पूरा हो गया, परिणाम स्वरूप माता-पिता को रुलाकर जाता है, बहुत रुलाता है, सिर भी तुड़वाता है। लड़का डॉक्टर का खर्च भी करवाता है, सब कुछ करवा कर चला जाता है! बच्चों की मृत्यु के बाद उनके लिए चिंता करने से उनको दुःख झेलना पड़ता है। हमारे लोग अज्ञानता के कारण ऐसा सब करते हैं। इसलिए तुम्हें यथार्थ रूप से समझकर शांति से रहना चाहिए। आखिर बेवजह माथापच्ची करें उसका क्या अर्थ है? बच्चे कहाँ नहीं मरते ? यह तो सांसारिक ऋणानुबंध हैं। हिसाबी लेन-देन है। हमारे भी बच्चा-बच्ची थे, पर वे मर गए। मेहमान आया था वह मेहमान गया, वह अपना कहाँ है? क्या हमें भी एक दिन नहीं जाना? हमें तो जो जीवित हैं उन्हें शांति देनी है। जो गया सो तो गया । उसे याद करना भी छोड़ दो। यहाँ जीवित हों, जितने हमारे आश्रित हों, उन्हें शांति दें, उतना हमारा फर्ज यह तो गए हुए को याद करते हैं और यहाँ वालों को शांति नहीं दे सकते, यह कैसा ? अतः आप सभी फर्ज़ भूल रहे हैं। तुम्हें ऐसा लगता है? गया सो गया। जेब में से लाख रुपये कहीं गिर जाएँ और फिर हाथ न आयें तब हमें क्या करना चाहिए? क्या सिर पटकना चाहिए? प्रश्नकर्ता: उसे भूल जाएँ। दादाश्री : हाँ, अतः यह सब नासमझी है। सचमुच हम बाप-बेटे ही नहीं। बेटा मर जाए तब चिंता करने जैसा है ही नहीं। वास्तव में संसार में चिंता करने जैसी हो तो वह माता-पिता की मृत्यु हो, तभी मन में चिंता होनी चाहिए। लड़का मर जाए तो लड़के के साथ हमारा क्या लेना-देना? माता-पिता ने तो हम पर उपकार किया था। माता ने तो हमें नौ महीने पेट में रखा, फिर बड़ा किया। पिता ने पढ़ाई के लिए फ़ीस दी हैं और बहुत कुछ दिया है। आपको मेरी बात समझ में आती है? इसलिए जब याद आये तब इतना बोलना कि 'हे दादा भगवान, यह लड़का आपको सौंप दिया!' इस से आपको समाधान होगा। तुम्हारे बेटे को याद कर के उसकी आत्मा Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार का कल्याण हो ऐसा मन में बोलते रहना, आँख में पानी मत आने देना। आप तो जैन थीअरि (सिद्धांत) समझनेवाले आदमी हो। आप तो जानते हो कि किसी के मर जाने के बाद ऐसी भावना करनी चाहिए कि, 'उसकी आत्मा का कल्याण हो। हे कृपालुदेव, उसकी आत्मा का कल्याण करो।' उसके बदले हम मन में ढीले हों यह तो अच्छा नहीं। अपने ही स्वजन को दु:ख में डालें यह अपना काम नहीं। आप तो समझदार, विचारशील और संस्कारी लोग हो, इसलिए जब-जब मृत बेटा याद आये तब ऐसा बोलना कि, 'उसकी आत्मा का कल्याण हो। हे वीतराग भगवान, उसकी आत्मा का कल्याण करो।' ऐसे बोलते रहना। कृपालुदेव का नाम लोगे, दादा भगवान कहोगे तो भी आपका काम होगा। क्योंकि दादा भगवान और कृपालु देव आत्मस्वरूप में एक ही हैं। देह से अलग दिखते हैं। आँखों से अलग दिखते हैं, पर वास्तव में एक ही हैं। इसलिए महावीर भगवान का नाम दोगे, तो भी वही का वही है। उसकी आत्मा का कल्याण हो' इतनी ही भावना निरंतर हमें रखनी है। हम जिनके साथ निरंतर रहें, साथ में खाया-पीया, तो हम उनका किसी प्रकार कल्याण हो ऐसी भावना करते रहें। हम औरों के लिए अच्छी भावना करते हैं, तो फिर ये तो अपने खुद के लोग, उनके लिए क्यों भावना न करें? हमने पुस्तकों में लिखा है कि तुझे 'कल्प' के अंत तक भटकना पड़ेगा। उसका नाम 'कल्पांत।' कल्पांत का अर्थ और किसी ने किया ही नहीं है न? तुमने आज पहली बार सुना न? प्रश्नकर्ता : हाँ, पहली बार सुना। दादाश्री : अतः इस 'कल्प' के अंत तक भटकना पड़ता है और लोग क्या करते हैं? बहुत कल्पांत करते हैं। अरे मुए, कल्पांत का अर्थ पूछ तो सही कि कल्पांत यानी क्या? कल्पांत तो कोई एकाध मनुष्य करता है। कल्पांत तो किसी का इकलौता बेटा हो, उसकी अचानक मृत्यु हो जाए उस स्थिति में कल्पांत हो सकता है। प्रश्नकर्ता : दादाजी के कितने बच्चे थे? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : एक लड़का और एक लड़की थी। १९२८ में पुत्र जन्मा तब मैंने मित्रों को पेड़े खिलाये थे। बाद में १९३१ में गुज़र गया। तब मैंने फिर सबको पेड़े खिलाये। पहले तो सबने ऐसा समझा कि दूसरा पुत्र जन्मा होगा, इसलिए पेड़े खिलाते होंगे। पेडे खिलाये तब तक मैंने स्पष्टीकरण नहीं दिया। खिलाने के बाद मैंने सबसे कहा, 'वे 'गेस्ट' (महेमान) आये थे न, वे गए!' वे सम्मानपूर्वक आये थे, तो हम उन्हें सम्मानपूर्वक विदा करें। इसलिए यह सम्मान किया। इस पर सभी मुझे डाँटने लगे। अरे, डाँटो मत, सम्मानपूर्वक विदा करना चाहिए। बाद में 'बिटिया' आई थी। उसे भी सम्मानपूर्वक बुलाया और सम्मानपूर्वक विदा किया। इस दुनिया में जो आते हैं, वे सभी जाते हैं। उसके बाद तो घर में और कोई है नहीं, मैं और हीराबा (दादाजी की धर्मपत्नी) दो ही हैं। (1958 में) ज्ञान होने से पहले हीराबा ने कहा, 'बच्चे मर गए और अब हमारे बच्चे नहीं हैं, क्या करेंगे हम? बुढ़ापे में हमारी सेवा कौन करेगा?' उन्हें उलझन हुई! उलझन नहीं होती? तब मैंने उन्हें समझाया, 'आज-कल के बच्चे आपका दम निकाल देंगे। बच्चे शराब पीकर आयें तब तुम्हें अच्छा लगेगा?' तब उन्होंने कहा, 'नहीं, वह तो अच्छा नहीं लगेगा।' तब मैंने कहा, ये आये थे वे गए, इसलिए मैंने पेड़े खिलाये।' उसके बाद जब उन्हें अनुभव हुआ, तब मुझसे कहने लगी, 'सभी के बच्चे बहुत दु:ख देते हैं।' तब मैंने कहा, 'हम तो पहले ही कह रहे थे, पर आप मानती नहीं थीं।' जो पराया है, वह अपना होता है कभी? बिना वजह हाय-हाय करना। यह देह जो पराया है, उस देह के वे सगे-संबंधी! यह देह पराया और उस पराये की यह सारी सम्पत्ति। कभी अपनी होती होगी? प्रश्नकर्ता : क्या करें? इकलौता बेटा है। वह हमसे अलग हो गया है। दादाश्री : वह तो तीन हों, तो भी अलग हो जाते हैं और अगर वो अलग न हों तो हमें जाना पड़ेगा। फिर चाहे सब इकट्ठे रहें तो भी Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार एक दिन हमें जाना पड़ेगा सबकुछ छोड़कर। छोड़कर नहीं जाना पड़ेगा? तो फिर हाय-हाय किसलिए? पिछले जन्म के बच्चे कहाँ गए? पिछले जन्म के बच्चे कहाँ रहते हैं? प्रश्नकर्ता: वो तो ईश्वर जाने! दादाश्री : लो! पिछले जन्म के बच्चों का पता नहीं, इस जन्म के बच्चों का ऐसा हुआ। इन सबका कब निबेड़ा आयेगा? मोक्ष में जाने की बात करो न, वर्ना नाहक अधोगति में चले जाओगे। परेशानियों से जब ऊब जाए, तब उससे कौन-सी गति होगी? यहाँ से फिर मनुष्य गति में से किस गति में जन्म होगा? जानवर गति, अति निंदनीय कार्य किए हो तो नर्क गति में भी जाना पड़ सकता है। नर्कगति-पशुगति पसंद है? एक-एक जन्म में भयंकर मार खाई है, लेकिन पहले की खाई मार भूलता जाता है और नयी मार खाता रहता है। पिछले जन्म के बच्चे छोड़ आता है और नये, इस जन्म के बच्चे गले लगाता है। १४. नाता, रिलेटिव या रिअल? यह रिलेटिव संबंध है! संभल संभलकर काम लेना है। यह रिलेटिव संबंध है, इसलिए आप जितना रिलेटिव रखेंगे उतना रहेगा। आप जैसा रखेंगे वैसा रहेगा, इसका नाम व्यवहार है। __ आप मानते हैं कि लड़का मेरा है, इसलिए कहाँ जानेवाला है? अरे! आपका लड़का है, मगर घड़ीभर में विरोधी हो जाएगा। कोई आत्मा बाप-बेटा नहीं होता। यह तो पारस्परिक लेन-देन का हिसाब है। घर जाकर ऐसा मत कहना कि आप मेरे पिता नहीं है। वैसे वे व्यवहार से तो, पिता हैं ही न! ___ संसार में ड्रामेटिक रहने का है। 'आईए बहन जी' आओ बेटी,' ऐसे, यह सब सुपर फल्युअस (ऊपर-ऊपर से) व्यवहार करने का है। तब अज्ञानी क्या करता है कि बेटी को गोदी में बिठाया करता है. बेटी भी उस पर चिढ़ती है जब कि ज्ञानीपुरुष व्यवहार में सुपर फल्युअस रहते हैं। इसलिए सभी उन पर खुश रहते हैं, क्योंकि लोग सुपर फल्युअस ६२ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार व्यवहार चाहते हैं। ज्यादा आसक्ति लोगों को पसंद नहीं होती। इसलिए हमें भी सुपर फल्युअस रहना है। इस सब झंझट में पड़ना नहीं है। ज्ञानी क्या समझते हैं? बेटी की शादी हई. वह भी व्यवहार और बेटी बेचारी विधवा हुई, वह भी व्यवहार। यह 'रिअल' नहीं होता। ये दोनों ही व्यवहार हैं, रिलेटिव हैं और किसी से पलटा नहीं जा सकता ऐसा है! अब ये लोग क्या करते हैं? दामाद मर जाए, उसके पीछे सिर फोड़ें, तब उल्टा डॉक्टर बुलाना पड़ता है। उल्टा वह राग-द्वेष के अधीन है न! व्यवहार, व्यवहार है ऐसा समझ में आया नहीं है इसीलिए न! बच्चों को डाँटना पड़े, बीवी को दो शब्द कहने पड़ें तो नाटकीय भाषा में, ठंडा रहकर गुस्सा करना। नाटकीय भाषा यानी क्या कि ठंडे कलेजे से गुस्सा करना। इसको कहते हैं नाटक! १५. वह है लेन-देन, नाता नहीं बीवी-बच्चे अगर अपने होते न, तब इस शरीर को कितनी भी तकलीफ़ होती तो उसमें से थोड़ी वाइफ ले लेती, 'अर्धागिनी' कहलाती है न! लकवा मार गया हो तो लड़का ले लेगा? नहीं, कोई लेता नहीं। यह तो सब हिसाब है! बाप के पास जितना तुम्हारा माँगने का हिसाब था, उतना ही तुम्हें मिला है। एक लड़के को उसकी माँ, कुछ गलत नहीं करे तो भी मारती रहती है और एक लड़का बहुत ऊधम मचाता हो, फिर भी उसे लाड़ करती रहती है। पाँचों लड़के उसी माँ के हैं लेकिन पाँचों के प्रति अलग अलग बर्ताव होता है, इसकी क्या वजह? प्रश्नकर्ता : उनमें से प्रत्येक के कर्म के उदय भिन्न होंगे? दादाश्री : वह तो हिसाब ही चुक रहा है। माँ को पाँचों लड़कों पर समान भाव रखना चाहिए, पर रहेगा कैसे? और फिर लड़के कहते हैं, मेरी माँ इसका पक्ष लेती है। ऐसे चिल्लाते हैं। इस दुनिया में ऐसे झगड़े Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ६३ प्रश्नकर्ता : तो उस लड़के के प्रति उस माँ को ऐसा बैर भाव क्यों होता है? दादाश्री : वह उसका कुछ पूर्वभव का बैर है। दूसरे लड़के के प्रति पूर्वभव का राग है। इसलिए राग जताती है। लोग न्याय खोजते हैं कि पाँचों लड़के उसके लिए समान क्यों नहीं? कुछ लड़के अपने माता-पिता की सेवा करते हैं, ऐसी सेवा करते हैं कि खाना-पीना भी भूल जाएँ। सबके लिए ऐसा नहीं है। हमें जो मिला है सब अपना ही हिसाब है। अपने दोष के कारण हम इकट्ठा हुए हैं। इस कलियुग में हम क्यों आये? सत्युग नहीं था? सत्युग में सब सीधे थे। कलियुग में सब टेढ़े मिल आते हैं। लड़का अच्छा हो तो समधी टेढ़ा मिले और वह लड़ाईझगड़े करता रहे। बहू झगड़ालू मिले और झगड़ती ही रहे। कोई न कोई ऐसा मिल जाता है और घर में लड़ाई-झगड़े चलते ही रहते हैं लगातार । प्रश्नकर्ता : 'वनस्पति में भी प्राण हैं' ऐसा कहते हैं। अब आम का पेड़ हो, उस पेड़ के जितने भी आम हों, उन सभी आमों का स्वाद एक-सा होता है, जब कि इन मनुष्यों में पाँच लड़के हों तो पाँचों लड़कों के विचार - वाणी - वर्तन अलग-अलग, ऐसा क्यों? दादाश्री : आमों में भी अलग-अलग स्वाद होता है, आपकी समझने की शक्ति नहीं है, लेकिन प्रत्येक आम का अलग-अलग स्वाद, प्रत्येक पत्ते में भी फर्क होता है। एक से दिखते हैं, एक ही प्रकार की सुगन्ध हो, पर कुछ न कुछ फर्क होता है। क्योंकि इस संसार का नियम ऐसा है कि 'स्पेस' ( जगह) बदलने पर फर्क होता ही है। प्रश्नकर्ता: आम तौर पर कहते हैं न कि ये सब परिवार होते हैं न, वे एक वंश परंपरा से इकट्ठा होते हैं। दादाश्री : हाँ, वे सभी हमारी जान पहचानवाले ही होते हैं। अपना ही सर्कल, सब साथ रहनेवाले, समान गुणवाले हैं, इसलिए राग-द्वेष के कारण वहाँ पर जन्म लेते हैं और हिसाब चुकाने के लिए इकट्ठा होते हैं। वास्तव में आँखों से ऐसा दिखाई देता है, पर वह भ्रांति से है और ज्ञान से ऐसा नहीं है। ६४ हैन? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : यह जो जन्म लेनेवाला है, वह अपने कर्मों से जन्म लेता दादाश्री : निश्चय ही, वह गोरा है या काला है, नाटा है या लम्बा है, वह उसके कर्मों से है। यह तो लोगों ने इन आँखो से देखा कि बेटे की नाक तो एक्ज़ेक्ट वैसी ही दिखती है, इसलिए पिता के गुण ही पुत्र में उतरे हैं। तब बाप संसार में कृष्ण भगवान हुए, तो क्या बेटा भी कृष्ण भगवान हो गया? ऐसे तो कईं कृष्ण भगवान हो गए। सभी प्रकट पुरुष कृष्ण भगवान ही कहलाते हैं। लेकिन उनका एक भी लड़का कृष्ण भगवान हुआ ? अतः यह तो नासमझी की बातें हैं !! अगर पिता के गुण पुत्र में आते हों, तब तो सभी बच्चों में समान रूप से आने चाहिए। यह तो पिता के जो पूर्व जन्म के पहचानवाले हैं, सिर्फ उनके गुण मिलते हैं। तुम्हारी पहचानवाले सब कैसे होते हैं? तुम्हारी बुद्धि से मिलते हैं, तुम्हारे आशय से मिलते हैं। जो तुमसे मिलते-जुलते हों, वे इस जन्म में फिर बच्चे होंगे। अर्थात् उनके गुण तुमसे मिलते हैं, पर वास्तव में तो उनके अपने गुण ही धारण करते हैं। सायन्टिस्टों (वैज्ञानिकों) को ऐसा लगता है कि ये गुण परमाणु में से आते हैं लेकिन वह तो अपने खुद के ही गुण धारण करता है। फिर कोई बुरा, नालायक हो तो शराबी भी निकलता है। क्योंकि जैसे जैसे संयोग उसने जमा किए हैं, ऐसा ही होता है। किसी को विरासत में कुछ भी नहीं मिलता। अर्थात् विरासत केवल दिखावा है। शेष, पूर्वजन्म में जो उनकी पहचानवाले थे, वे ही आये हैं। प्रश्नकर्ता : यानी जो हिसाब चुकता करने के हैं, ऋणानुबंध चुकाने हैं, वे हिसाब चुकता करके पूरे हो जाते हैं? दादाश्री : हाँ, वे सभी चुकता हो जाते हैं। इसलिए मुझे यहाँ पर यह विज्ञान खोलना पड़ा कि अरे ! उसमें बाप का क्या दोष है? तू क्रोधी, तेरा बाप क्रोधी, मगर यह तेरा भाई ठंडा क्यों है? अगर तुझ में तेरे बाप का गुण उत्पन्न हुआ हो तो तेरा यह भाई ठंडा क्यों है? यह सब नहीं Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बच्चों का माँ-बाप के प्रति व्यवहार (उतरार्ध) १६. 'टीनेजर्स' (युवा उम्रवालों) के साथ 'दादाश्री' प्रश्नकर्ता : आदर्श विद्यार्थी के जीवन में किन-किन लक्षणों की माता-पिता और बच्चों का व्यवहार समझते, इसलिए लोग बिना वजह झंझट करते हैं और जो ऊपर से दिखाई देता है, उसे ही सत्य मानते हैं। बात गहराई से समझने लायक है। यह जो मैंने बताई उतनी ही नहीं है, यह तो बहुत गहन बात है! ये तो हिसाब से ही लेते हैं और चुकाये जा रहे हैं! आत्मा किसी का बेटा नहीं होता और न ही किसी का पिता होता है। आत्मा किसी की पत्नी नहीं होता, न ही किसी का पति होता है। यह सब ऋणानुबंध हैं। कर्म के उदय से एकत्र हुए हैं। अभी (इस जन्म में) लोगों को यह प्रतीत होता है। लेकिन हमें भी यह प्रतीत हो रहा है और यह केवल प्रतीत होता है इतना ही, वास्तव में दृश्यमान भी नहीं होता। वास्तविक होता न, तो कोई लड़ता ही नहीं। यह तो एक घण्टे में ही झमेला हो जाता है, मतभेद हो जाता है, तब लड़ पड़ते हैं कि नहीं लड़ पड़ते? 'मेरी-तेरी' करते हैं कि नहीं करते? प्रश्नकर्ता : करते हैं। दादाश्री : इसलिए केवल आभास है न, 'एक्जेक्ट' (वास्तविक) नहीं है। कलियुग में आशा मत करना। कलियुग में आत्मा का कल्याण हो ऐसा करो, वर्ना समय बहुत विचित्र आ रहा है, आगे भयावह विचित्र समय आ रहा है। अब के बाद के हजार साल अच्छे हैं, लेकिन तत्पश्चात् भयावह काल आनेवाला है। फिर कब मौका मिलेगा? इसलिए हम आत्मार्थ कुछ कर लें। जरूरत है? दादाश्री : विद्यार्थी को घर के जितने व्यक्ति हों, उन सबको खुश रखने की जरूरत है और फिर स्कूल में जिन लोगों के साथ हों, हमारी जो टीचर हों, उन सबको खुश रखने की जरूरत है। हम जहाँ जाए, वहाँ सबको खुश रखना चाहिए और अपनी पढ़ाई में भी ध्यान लगाना चाहिए। दादाश्री : तुमने कभी जंतु मारे थे? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : कहाँ मारे थे? प्रश्नकर्ता : बगीचे में, पीछे बाड़े में। दादाश्री : कौन-से जंतु थे? कोक्रोच वगैरह थे? प्रश्नकर्ता : सभी को मारा था। दादाश्री : मनुष्य के बच्चे को मार डालता है क्या? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : किसी के बच्चे को नहीं मारते? यह किसी का बच्चा हो तो मार नहीं सकते? Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : ऐसा क्यों? अब तूने जिस जंतु को मारा, वैसा एक तू मुझे बना कर देगा? लाख रुपये इनाम दूंगा। यदि कोई एक जीव बनाकर देगा, तो उसे लाख रुपये इनाम दूँगा। तू बना देगा? नहीं बनेगा? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : तब फिर हम कैसे मार सकते हैं? क्या इस दुनिया में कोई एक भी जीव बना सकता है? ये साइन्टिस्ट लोग बना सकते हैं? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : लगता है। दादाश्री : हाँ, तब ऐसा उसे भी लगता है। बिना हक्क का गड्डा तो बहुत गहरा! फिर से ऊपर आ ही नहीं सकते। इसलिए चौकन्ना रहकर चलना अच्छा। इसलिए तू संभल जाना। अभी तो जवानी है, जिसे बुढ़ापा आनेवाला हो, उन्हें हम कुछ नहीं कहते। यह भय सिग्नल तुझे दिखाते हैं। प्रश्नकर्ता : हाँ, हाँ, नहीं ले जाऊँगा, दूसरे की बीबी नहीं ले जाऊँगा। प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : हाँ, ठीक है। ले जाने का विचार भी मत करना। किसी स्त्री के प्रति आकर्षण हो तो भी 'हे दादा भगवान! मुझे क्षमा करो' कहना। दादाश्री : तो फिर जो बना सकते नहीं, उसे हम नहीं मार सकते। यह कुर्सी बनाते हैं, ये सब चीजें बनाते हैं, उसका नाश कर सकते हैं। तेरी समझ में आया? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : अब क्या करेगा? प्रश्नकर्ता : किसी को नहीं मारूँगा। दादाश्री : उस जंतु को मरने का डर लगता है? हम मारने जाएँ तो भागता है? प्रश्नकर्ता : हाँ। दादाश्री : तो फिर कैसे मार सकते हो? और इस गेहूँ, बाजरा को भय नहीं लगता, उसे हर्ज नहीं, क्या? गेहूँ, बाजरा, लौकी ये सब भागते हैं क्या? हम चाकू लेकर जाएँ तो लौकी भाग जाती है? प्रश्नकर्ता : नहीं। दादाश्री : तब उसकी सब्जी बनाकर खा सकते हैं। तुझे मरने का डर लगता है कि नहीं? बच्चों के लिए माता-पिता को क्या करना चाहिए? बच्चे बाहर कहीं मान खोजे नहीं ऐसा रखना। वे मान के भूखे नहीं हों और बाहर मान की होटलों में मान खाने नहीं जाएँ। इसके लिए क्या करना? घर आयें तो ऐसे बुलाना, 'बेटा, तू तो बड़ा सयाना है, ऐसा है, वैसा है,' उसे थोड़ा सम्मान देना अर्थात् उसके साथ फ्रेन्डशिप (मित्रता) जैसा भाव रखना चाहिए। उसके साथ बैठकर उसके सिर पर हाथ फिरा और कहना, 'बेटे, चलो हम भोजन कर लें, हम साथ में नाश्ता करें' ऐसा होना चाहिए। तब वह बाहर प्रेम नहीं खोजेगा। हम तो पाँच साल का बच्चा हो, उसके साथ भी प्रेम रखते हैं। उसके साथ फ्रेन्डशिप रखते हैं। प्रश्नकर्ता : पापा या मम्मी मेरे पर गुस्सा करें तब क्या करूँ? दादाश्री : 'जय सच्चिदानंद, जय सच्चिदानंद' बोलना। ऐसा बोलोगे न, तो वह शान्त हो जाएगी। ___पापा, मम्मी के साथ झगड़ा करने लगें, तब बच्चे सभी 'सच्चिदानंद, सच्चिदानंद' कहें तो इससे सब बंद हो जाए। दोनों शर्मा जाएंगे बेचारे! भय का अलार्म खींचे तो तुरन्त बंद हो जाते हैं। Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ___ अब घर के सभी लोगों को तेरे कारण आनंद हो ऐसा रखना। तुझे इनके कारण दु:ख हो तो उसका समभाव से निबटारा करना और तुझ से उन सबको आनंद हो ऐसा रखना। फिर उन लोगों का प्रेम देखना तू, कैसा प्रेम है? यह तू प्रेम ब्रेकडाउन कर (तोड़) डालता है। उन लोगों का प्रेम हो और उस पर तू पत्थर डालता रहे तो सारा प्रेम टूट जाएगा। प्रश्नकर्ता : बुजुर्ग ही क्यों ज़्यादा गरम हो जाते हैं? दादाश्री : यह तो गाड़ी खटारा हो गई हो, गाड़ी पुरानी हो गई हो तब रोज़ गरम हो जाती है। अगर नयी गाड़ी हो तो गरम नहीं होती। इसलिए बुजुर्ग बेचारों को क्या ....(उम्र होने के कारण नई पीढ़ी के साथ एडजस्टमेन्ट नहीं ले पाते और टकराव होता रहता है।) गाड़ी गरम हो जाए तो उसे हमें ठंडी नहीं करनी पड़ती? बाहर किसी के साथ कुछ अनबन हो गई हो, रास्ते में पुलिसवाले के साथ, तब चेहरा इमोशनल (भावुक) हो गया हो, तब तुम चेहरा देखो तो क्या कहो? 'तुम्हारा मुँह जब देखो तब उतरा हुआ रहता है, हमेशा लटका हुआ।' ऐसा नहीं बोलना चाहिए। हमें समझ लेना है कि किसी मश्किल में हैं। इसलिए फिर हम यूँ ही गाड़ी को ठंडा करने के लिए नहीं रोकते? बुजुर्गों की सेवा करना तो सबसे बड़ा धर्म है। युवाओं का धर्म क्या? तब कहे, बुजुर्गों की सेवा करना। पुरानी गाड़ी को धकेलकर ले जाना और तभी जब हम बुड्ढे होंगे तब हमें धकेलनेवाले मिलेंगे। यह तो देकर लेना है। हम वृद्धों की सेवा करें तो हमारी सेवा करनेवाले युवा आ मिलेंगे और हम वृद्धों को धमकाते फिरें तो हमें धमकानेवाले आ मिलेंगे। फिर आपको जो करना हो, करने की छूट है। १७. पत्नी का चुनाव जो योजना बनी है, उसमें कोई परिवर्तन होनेवाला नहीं है ! जो शादी करने की योजना हुई है और अभी हम तय करें कि मुझे शादी नहीं करनी माता-पिता और बच्चों का व्यवहार है तो वह अर्थहीन बात है। उसमें आपका कुछ चलेगा नहीं और शादी तो करनी ही पड़ेगी। प्रश्नकर्ता : इस जन्म में हमने जो भावना की हो, वह अगले जन्म में फलेगी न? दादाश्री : हाँ, इस जन्म में भावना करें तो अगले जन्म में फलती है। पर अभी तो उसका छुटकारा ही नहीं! वर्तमान में उसमें किसी का नहीं चलता न! भगवान भी रोकने जाएँ कि शादी मत करना, तब भगवान की भी वहाँ पर नही चलेगी! पिछले जन्म में शादी करने की योजना की ही नहीं, इसीलिए शादी का संयोग आता नहीं। जो योजना की होगी वही आयेगी। जैसे संडास गए बिना किसी को नहीं चलता, वैसे ही शादी किए बिना चले ऐसा नहीं है ! तेरा मन कुँआरा है, तो हर्ज नहीं है। लेकिन जहाँ मन शादी-शुदा है, वहाँ शादी किए बिना नहीं चलता और किसी के सहारे के बिना मनुष्य नहीं रह सकता। सहारे के बिना कौन रह सकता है? 'ज्ञानीपुरुष' अकेले ही। दूसरा कोई नहीं हो वहाँ पर भी। क्योंकि खुद निरालंब हुए हैं। किसी अवलंबन की उन्हें जरूरत ही नहीं है। ___ मनुष्य बेचारे बिना सहारे के नहीं जी सकते। बीस लाख रुपये का बड़ा बंगला हो और रात को अकेले सोने को कहें तो? उसे सहारा चाहिए। मनुष्यों को सहारा चाहिए, इसलिए तो शादी करते है न! शादी की प्रणाली कुछ गलत नहीं है। यह तो कुदरत का नियम है। इसलिए शादी करने में सहज प्रयत्न रखना, मन में भावना रखना कि अच्छी जगह शादी करनी है, फिर वह स्टेशन आने पर उतर जाना। स्टेशन आने से पहले दौड़-धूप करें तो क्या हो? तुझे पहले दौड़-धूप करनी है? प्रश्नकर्ता : नहीं, स्टेशन आये तब। दादाश्री : हाँ, स्टेशन को हमारी गरज है और हमें स्टेशन की गरज Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७२ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ७१ है। 'हम' (दादाजी को) अकेले को ही स्टेशन की गरज नहीं। स्टेशन को भी हमारी गरज है कि नहीं? प्रश्नकर्ता: आपके संघ में सम्मिलित होनेवाले यवक-यवतियाँ शादी की ना कहें, तब आप उन्हें अकेले में क्या उपदेश देते हैं? दादाश्री : मैं अकेले में उन्हें शादी करने को कह देता हूँ कि भाई, आप शादी करोगे तो थोड़ी-बहुत लड़कियाँ ठिकाने लग जाएगी। मुझे तो आप विवाहित होकर आओ तो भी कोई परेशानी नहीं है। यह हमारा मोक्ष मार्ग शादी-शुदा लोगों के लिए है। मैं तो उन्हें कहता हूँ कि शादी करो तो लड़कियाँ कम हों और यहाँ मोक्ष शादी करने से अटके ऐसा नहीं है। लेकिन उन्होंने क्या पता लगाया कि शादी करने से झंझट बहत होती है। वे कहते हैं, 'हमने अपने माता-पिता का सुख (!) देखा है। इसलिए वह सुख (!) हमें अच्छा नहीं लगता।' यानी वे ही माता-पिता के सुख का प्रमाण देते हैं। आजकल माता-पिता के लड़ाई-झगड़े बच्चे घर में देखते ही है और उनसे ऊब गए होते हैं। लड़के पर दबाव मत डालना वर्ना तुम्हारे सिर पर आयेगा कि मेरे पिता ने बिगाड़ा। उन्हें चलाना नहीं आता उससे बिगड़ता है और नाम हमारा आता है। उसे बुलाकर कहना, 'हमें लड़की पसंद आई है, अब तुझे पसंद हो तो बोल और पसंद नहीं हो, तो हम रहने दें।' तब यदि वह कहे, 'मुझे पसंद नहीं,' तो उसे रहने दो। लड़के के पास स्वीकृति अवश्य करवाना, वर्ना लड़का भी विरुद्ध हो जाएगा। प्रश्नकर्ता : यह लव मैरिज (प्रेम विवाह) पाप गिना जाता है? दादाश्री : नहीं, टेम्पररी (अस्थायी) लव मैरिज हो तो पाप मानी जाएगी। परमानेन्ट (स्थायी) लव मैरिज हो तो नहीं। अर्थात् लाइफ लोंग (जीवनभर) लव मैरिज हो तो हरकत नहीं। टेम्पररी लव मैरिज अर्थात् एक-दो साल के लिए। ब्याहना हो तो एक को ही ब्याहना चाहिए। पत्नी माता-पिता और बच्चों का व्यवहार के अलावा और किसी से फ्रेन्डशिप बहुत नहीं करनी चाहिए वर्ना नर्क में जाना पड़ेगा। ___ पहले जब पिताजी ने कहा कि, 'यह लफड़ा क्यों करने लगा है?' तब बेटा उल्टा-सीधा बोलने लगा। इसलिए उसके पिता ने समझा कि 'उसे अपने आप अनुभव होने दो! हमारा अनुभव लेने को तैयार नहीं है। तब उसे अपना अनुभव होने दो।' वह उसे दूसरों के साथ देखेगा न! तब अनुभव होगा! तब पछतायेगा कि पिताजी कहते थे, वह बात सही है। यह तो लफड़ा ही है। प्रश्नकर्ता : मोह और प्रेम की भेदरेखा क्या है? दादाश्री : यह पतंगा है न। पतंगा दीपक के पीछे पड़कर 'या होम' हो जाता है न? वह अपनी जिन्दगी खतम कर देता है। यह 'मोह' कहलाता है। जब कि प्रेम हमेशा टिकता है, यद्यपि उसमें भी थोड़ी आसक्ति के दर्द होते हैं। जो मोह होता है, वह टिकाऊ नहीं होता। यहाँ बारह महीने तक इतना फोड़ा हुआ हो न, तो मुँह भी नहीं देखता, मोह छूट जाता है। यदि सच्चा प्रेम हो तो एक फोड़ा तो क्या, दो फोड़े हों तो भी प्रेम नहीं जाता है। इसलिए ऐसा प्रेम ढूंढ निकालना। वर्ना शादी ही मत करना। नहीं तो फँस जाओगे। वह मुँह चढ़ाएगी तब कहोगे, 'मुझे इसका मुँह देखना अच्छा नहीं लगता।' जब देखा तब अच्छा लगा था, इसलिए तो तुझे पसंद आया था और अब यह पसंद नहीं? यह तो मीठा बोलते हो तब तक पसंद आता है और कड़वा बोले तो कहे, 'मुझे तेरे साथ अच्छा नहीं लगता।' प्रश्नकर्ता : 'डेटिंग' शुरू हो गया हो, अब उसे कैसे बंद करें? दादाश्री : बंद कर देना। इसी वक्त तय करो कि यह बंद कर देना है। हम कहें कि यहाँ तू छला जा रहा हैं, तो फिर छला जाना बंद कर दे। नये सिरे से ठगे जाना बंद। जब जागे तब सवेरा। जब समझ में आया कि यह गलत हो रहा है तो बंद कर देना चाहिए। Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७३ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार वाइल्ड लाइफ (असंस्कृत जीवन) नहीं होनी चाहिए, इन्डियन लाइफ (संस्कृत जीवन) होनी चाहिए। तुम अच्छे होगे तब तुम्हें पत्नी भी अच्छी मिलेगी। उसका नाम ही 'व्यवस्थित,' जो एक्जेक्ट होता है। (व्यवस्थित शक्ति यानी साइंटिफिक सरकमस्टेन्शियल एविडन्सेस, जो हमें हमारे कर्मों के अनुसार संयोग इकट्ठे करके देती है।) प्रश्नकर्ता : कोई भी लडकी चलेगी। मैं कछ कलर-वलर में नहीं मानता। जो लड़की अच्छी हो, अमरिकन हो कि इन्डियन हो, तो भी हर्ज नहीं। दादाश्री : पर ऐसा है न, यह अमरिकन आम और हमारे आमों में फर्क होता है, यह तू नहीं जानता? क्या फर्क होता है हमारे आमों में? प्रश्नकर्ता : हमारे मीठे होते हैं। दादाश्री : हाँ, तब फिर देखना। वह मीठे चखकर तो देख, हमारे इन्डिया के। प्रश्नकर्ता : अभी चखा नहीं। दादाश्री : नहीं, मगर इसमें फँसना नहीं! अमरिकन में फँसने जैसा नहीं है। देख, तेरी मम्मी और पापा को तूने देखा न? क्या उन दोनों में कभी मतभेद होता है या नहीं होता? प्रश्नकर्ता : मतभेद तो होता है। दादाश्री : हाँ, लेकिन उस वक्त तेरी मम्मी घर छोड़कर चली जाती है कभी? प्रश्नकर्ता : नहीं, नहीं। दादाश्री : और वह अमरिकन तो 'यू यू' करती यूँ बन्दूक दिखाकर चली जाती है और यह तो सारा जीवन रहती है। इसलिए हम तुझे समझाते माता-पिता और बच्चों का व्यवहार हैं कि भाई, ऐसा मत करना, इस तरफ मुड़ने के बाद पछताओगे। यह इन्डियन तो आखिर तक साथ रहती है, हाँ... रात को झगड़ा करके सवेरे तक रिपेयर (दुरस्त) हो जाती है। प्रश्नकर्ता : बात सही है। दादाश्री : इसलिए अब तय कर ले कि मझे भारतीय लडकी के साथ शादी करनी है। इन्डियन में तुझे जो पसंद हो वह, ब्राह्मिन, बनिया जो तुझे अच्छी लगे, उसमें हर्ज नहीं। प्रश्नकर्ता : अपनी बिरादरी में ही शादी करने के क्या लाभ है, यह ज़रा बताइए। दादाश्री: हमारी कोम्युनिटी (जाति) की पत्नी हो तो हमारे स्वभाव के अनुकूल होगी। हमें कंसार परोसा हो और हम लोगों को घी ज्यादा चाहिए। यदि किसी ऐसी जाति की लड़की लाया हो, तो वह परोसेगी नहीं, ऐसा नीचा हाथ करके डालने में ही उसके हाथ दुःखेंगे। इसलिए उसके भिन्न स्वभाव के साथ सारा दिन टकराव होता रहेगा और अपनी जातिवाली के साथ कुछ नहीं होता। समझ में आया न? वह दूसरी तो भाषा बोले न, तो वह भी बड़ी सफाई के साथ बोलती है और हमारा दोष निकालती है कि तुम्हें बोलना नहीं आता। उसकी तुलना में हमारी अच्छी कि कुछ कहे तो नहीं, हमें डाँटेगी तो नहीं। प्रश्नकर्ता : आप कहते हैं कि अपनी जाति की हो वहाँ झगड़ा नहीं होता, पर अपनी जाति की हो, वहाँ पर भी झगड़ा होता है, इसकी क्या वजह? दादाश्री : झगड़ा होता है मगर उसका समाधान हो जाता है। उसके साथ सारा दिन अच्छा लगता है और दूसरी (विजातीय) के साथ अच्छा नहीं लगता। एकाध घण्टा अच्छा लगता है और फिर ऊब जाते हैं। वह आये और झुंझलाहट आती है। अपनी जाति की हो तो पसंद आती है, वर्ना पसंद ही नहीं आती। ये सब जो पछताये हैं, उनके उदाहरण कहता हूँ। ये सब लोग बुरी तरह फँस गये थे। अब तो अंतरजातीय शादी करने में हर्ज नहीं है, पहले थोड़ी तकलीफ थी। Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ७५ प्रश्नकर्ता: अपने हाथ में कहाँ है? अपने हाथ में नहीं है न, अमरिकन पत्नी आयेगी या नहीं? दादाश्री : हाथ में नहीं, फिर भी ऐसे अनदेखी थोड़े कर सकते हैं? कहना तो पड़ेगा न, 'एय! उस अमरिकन लड़की के साथ तुम मत घूमना ! अपना काम नहीं है।' ऐसे कहते रहें तब अपने आप ही असर होगा। वर्ना वह समझेगा कि इसके साथ घूमते हैं, वैसे ही उसके साथ भी घूमें। कहने में क्या हर्ज है? यदि मुहल्ला खराब हो, तब वहाँ बोर्ड लगाते है, 'बिवेअर ऑफ थीव्स' (चोरों से सावधान ) ऐसा क्यों करते हैं? कि जिन्हें संभलना हो वह संभले । ये शब्द, काम आते हैं कि नहीं आते? पितृपक्ष कुल कहलाता है और मातृ पक्ष को जाति कहते हैं। जाति कुल का मिश्रण हो तो संस्कार आते हैं। अकेली जाति हो और कुल नहीं हो तब भी संस्कार नहीं होते। अकेला कुल हो, जाति नहीं हो तब भी संस्कार नहीं होते। जाति और कुल दोनों का मिश्रण, एक्ज़ेक्टनेस हो तभी संस्कारी लोग जन्मते हैं। ये दोनों पक्ष अच्छे जमा हुए हों तो बात आगे बढ़ाना, दूसरी बातों में मज़ा नहीं है। अतः माता जातिवान होनी चाहिए और पिता कुलवान होना चाहिए। उनकी संतान बहुत उम्दा होगी। जाति में विपरीत गुण नहीं होते और पिता में कुलवान प्रजा के गुण होते हैं। कुल के ठाठ सहित दूसरों के लिए घिस जाते हैं। लोगों के लिए घिस जाते हैं, बहुत ऊँचा कुलवान कौन ? दोनों ओर से नुकसान सहन करे। आते समय भी खर्च करे और जाते समय भी खर्च करे। वरना संसार के लोग कैसे कुलवान कहलाएँ ? लेते समय पूरा लें पर देते समय थोड़ा ज़्यादा दें, तोलाभर ज्यादा दें। लोग चालीस तोले दें, लेकिन खुद इकतालीस तोले दें। डबल कुलवान कौन ? खुद उनतालीस तोले लें, एक तोलाभर वहाँ कम लें और देते समय एक तोलाभर ज़्यादा दें, वह डबल कुलवान कहलाते हैं। दोनों तरफ से नुकसान उठायें अर्थात् वहाँ पर कम क्यों लेते हैं? वह उनकी जातिवाला दुःखी है, उसका दुःख दूर करने के लिए! यहाँ भी भाव, वहाँ भी भाव। मैं ऐसे लोगों को देखता तब क्या कहता था, ये द्वापर युगी आये। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार अब उच्च कुल हो और कुल का अहंकार करे, तो दूसरी बार उसे निम्न कुल मिलता है और नम्रता रखें तो उच्च कुल में जाता हैं। यह अपनी ही शिक्षा है, अपनी ही फसल है। वे गुण हमें प्राप्त नहीं करने पड़ते, सहज ही प्राप्त होते हैं। वहाँ उच्च कुल में जन्म होने पर, हमें जन्म से ही सभी अच्छे संस्कार प्राप्त होते हैं। ७६ ये सभी व्यवहार में काम की बातें हैं, ये ज्ञान की बातें नहीं हैं। व्यवहार में चाहिए न ! प्रश्नकर्ता: दादाजी, आपने ठीक कहा है। ज्ञान की चोटी तक पहुँचने तक हम व्यवहार में हैं, तो व्यवहार में ये ज्ञान की बातें भी काम में आती हैं न? दादाश्री : हाँ, काम में आती हैं न! व्यवहार भी अच्छा चलता है। 'ज्ञानीपुरुष' में विशेषता होती है। 'ज्ञानीपुरुष' के पास बोधकला और ज्ञानकला दोनों कलाएँ होती हैं। बोधकला सूझ से उत्पन्न हुई है और ज्ञानकला ज्ञान से उत्पन्न हुई है इसलिए वहाँ (ज्ञानीपुरुष के पास) पर हमारा निराकरण आ जाता है। किसी दिन ऐसी बातचीत की हो तो उसमें क्या हर्ज ? इसमें हमारा क्या नुकसान है? 'दादा' भी बैठे होते हैं, उनकी कोई फीस नहीं होती। फ़ीस हो तो हर्ज हो । प्रश्नकर्ता : युवक और युवतियाँ विवाहित जीवन में प्रवेश करने से पहले स्त्री अथवा पुरुष की पसंद किस प्रकार करें और क्या करें? क्या देखें? गुण किस प्रकार देखें? दादाश्री : वह ज़्यादा देखने की जरूरत नहीं हैं। युवक-युवतियाँ शादी के वक्त देखने जाएँ और आकर्षण नहीं हो तो बंद रखना । दूसरी बातें देखने की जरूरत नहीं है। आकर्षण होता है या नहीं, इतना ही देखना । प्रश्नकर्ता: किस प्रकार का आकर्षण ? दादाश्री इन आंखों का आकर्षण होता है, भीतर आकर्षण होता है। बाज़ार में तुम्हें कोई चीज़ खरीदनी हो, तब उस चीज़ का एट्रेक्शन (आकर्षण) नहीं हो तो तुम खरीद नहीं सकते। अर्थात् उसका हिसाब Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ७८ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ७७ हो तो ही आकर्षण होता है। कुदरत के हिसाब के बगैर कोई विवाह नहीं हो सकता। अत: आकर्षण होना चाहिए। यह मजाक करने का युग है। इसलिए स्त्रियों का मज़ाक हो रहा है। लड़की देखने जाता है, तब लड़का कहता है... ऐसे घूमो, वैसे घूमो। इतना मज़ाक! आजकल तो लड़के लड़कियों को पसंद करने से पहले बहुत मीनमेख निकालते हैं। बहुत लम्बी है, बहुत छोटी है, बहुत मोटी है, बहुत पतली है, जरा काली है' एक लड़का ऐसा बोल रहा था, तो मैंने उसे धमकाया। मैंने कहा, 'तेरी माँ भी बहू हुई थी। तू किस प्रकार का मनुष्य है?' स्त्रियों का ऐसा घोर अपमान ! अगर लोग मुझसे कहें कि जाइए, आपको इजाज़त है, आपको इस लडके को जो कहना हो कहिए। वह लडका भी कहे कि मुझे जो कहना चाहे कहिए, तब मैं कहूँ कि मुए, ये लड़की भैंस हैं क्या, जो इस तरह देखता है? भैंस को चारों ओर से देखना पड़ता है, इस लड़की को भी? अब इसका बदला कब लेती है स्त्रियाँ यह जानते हो? यह मज़ाक किया उसका? इसका परिणाम लड़कों को क्या मिलेगा बाद में? यह तो स्त्रियों की संख्या ज्यादा है, इसलिए बेचारियों के दाम घट गए हैं। कुदरत ही ऐसा करवाती है। अब इसका रिएक्शन कब आयेगा? बदला कब मिलता है? जब स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है और पुरुषों की बढ़ जाती है, तब स्त्रियाँ क्या करती हैं? स्वयंवर! अर्थात् वह ब्याहनेवाली एक और ये एक सौ बीस पुरुष। स्वयंवर में सभी साफ़ावाफा पहनकर टाईट होकर आये हों और मूंछो पर ऐसे ताव दे रहे हों! उसकी राह देखते हों कि कब मुझे वरमाला पहनाये! वह देखती देखती आये, यह समझे कि मुझे पहनायेगी, ऐसे गरदन भी आगे करे पर वह घास ही नहीं डालती न ! फिर जब उसका दिल अंदर से किसी के प्रति एकाकार हो, आकर्षण हो, उसे वरमाला पहनाये। फिर चाहे वह मूछों पर ताव देता हो या नहीं देता हो! वहाँ फिर मज़ाक होता है। बाकी सारे मूरख बनकर चले जाते हैं फिर, ऐसा ऐसा करके। तब ऐसा मजाक हुआ, इस तरह बदला मिलता है! आजकल तो बिलकुल सौदेबाजी हो गई है, सौदेबाजी ! प्रेम कहाँ रहा, सौदेबाजी ही हो गई! एक ओर रुपये रखो और एक ओर हमारा लड़का, तभी शादी होगी ऐसा कहते है। एक तराजू में रुपये रखने पड़ते थे, तराजू के तोल पर नापते थे। १८. पति का चयन परवशता, निरी परवशता! जहाँ देखो वहाँ परवश! पिता सदा के लिए अपने घर में बेटी को रखते नहीं हैं। कहते हैं, 'वह उसके ससुराल में ही शोभा देती है' और ससुराल में तो सब केवल डाँटने के लिए बैठे होते हैं। तू भी सास से कहे कि 'माँजी, तुम्हारा मैं क्या करूँ? मुझे तो केवल पति चाहिए था?' तब कहे, 'नहीं, पति अकेला नहीं आता, वह तो साथ में लश्कर आयेगा ही। लाव-लश्कर समेत।' शादी करने में हर्ज नहीं है। शादी करना मगर सोच-समझकर शादी करो कि 'ऐसा ही निकलनेवाला है।' ऐसा समझकर बाद में शादी करो। ___ कोई ऐसे भाव करके आई हो कि 'मुझे दीक्षा लेनी है अथवा मुझे ब्रह्मचर्य पालना है' तब बात अलग है। बाकी शादी से तो छुटकारा ही नहीं। परन्तु पहले से तय करके शादी करें न कि, आगे ऐसा होनेवाला है तो झंझट नहीं होगी, अचरज नहीं होगा। तय करके पैठे और सख ही मानकर पैठे, तब फिर केवल परेशानी ही लगेगी! शादी तो दुःख का समंदर है। सास के घर में दाखिल होना कोई आसान बात है? अब पति कहीं संयोग से ही अकेला होता है, यदि उसके माता-पिता का निधन हुआ हो। जो सिविलाइज्ड (संस्कारी) हैं, वे लड़ते नहीं। रात को दोनों सो जाते हैं, झगड़ा नहीं करते। जो अनसिविलाइज्ड (असंस्कारी) हैं न, वे मनुष्य झगड़ा करते हैं, क्लेश करते हैं। Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : अब हम अमरिकन लड़कों के साथ पार्टी में नहीं जाते। क्योंकि उस पार्टी में खाना-पीना (माँसाहार-शराब) सब होता है। इसलिए हम उन लोगों की पार्टी में नहीं जाते, पर 'इन्डियन' लड़के पार्टी रखते हैं, उसमें जाते हैं और सबको, एक दूसरे के मम्मी-पापा पहचानते हैं। दादाश्री : पर इसमें फायदा क्या मिलेगा? प्रश्नकर्ता : एन्जोयमेन्ट, मज़ा आता है। दादाश्री : एन्जोयमेन्ट ! खाने में बहुत एन्जोयमेन्ट होता है पर खाने में क्या करना चाहिए? उसे कंट्रोल करना चाहिए कि भाई, तुझे इतना ही मिलेगा। फिर वह धीरे धीरे एन्जोय करते करते खाते हैं। यह तो ज्यादा छूट देते हैं न, इसलिए एन्जोय नहीं करते। किसी दूसरी जगह एन्जोयमेन्ट खोजते हैं। इसलिए भोजन में पहले कंट्रोल करना चाहिए कि अब इतना ही मिलेगा, ज्यादा नहीं मिलेगा। प्रश्नकर्ता : हम हमारे लड़के-लड़कियों को ऐसी 'पार्टियों' में जाने दें? ऐसी पार्टियों में साल में कितनी बार जाने दें? दादाश्री : ऐसा है न, लड़कियों को उनके माता-पिता के कहने के मुताबिक चलना चाहिए। हमारे अनुभवियों की खोज है कि लड़कियों को सदैव उनके माता-पिता के कहने के अनुसार चलना चाहिए। शादी के बाद पति के कहने के अनुसार चलना चाहिए। अपनी मर्जी के अनुसार नहीं करना चाहिए। ऐसा हमारे जानकारों का कहना है। प्रश्नकर्ता : लड़कों को माता-पिता के कहने के अनुसार करना चाहिए या नहीं? दादाश्री: लड़कों को भी माता-पिता के कहने के अनुसार चलना है, पर लड़कों के लिए थोड़ी ढील रखो तो चलेगा! क्योंकि लड़के को रात बारह बजे जाने को कहो तो अकेला जाए, तो हर्ज नहीं, किन्तु तुझे रात बारह बजे अकेली जाने को कहा हो तो अकेली जाएगी? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : और लड़का हो तो हर्ज नहीं, लड़के को छूट ज्यादा होनी चाहिए और लड़कियों को छूट कम होनी चाहिए, क्योंकि तुम बारह बजे जा नहीं सकतीं। अर्थात् यह तुम्हारे भविष्य के सुख के खातिर कहते हैं। भविष्य के सुख के लिए यह तुम्हें मना करते हैं। अभी तुम इस झंझट में पड़ोगी न, तो भविष्य बिगाड़ दोगी। तुम्हारा भविष्य का सुख उड़ जाएगा। इसलिए भविष्य नहीं बिगड़े इस कारण तुम्हें कहते हैं कि 'बिवेर, बिवेर बिवेर (सावधान, सावधान, सावधान)।' प्रश्नकर्ता : हमारे हिन्दू फेमिली (परिवार) में कहते हैं, 'लड़की पराये घर चली जाएगी और लड़का कमा कर खिलानेवाला है या हमारा सहारा होनेवाला है।' ऐसी अपेक्षाएँ हों, ऐसी दृष्टि रखें और लड़की के प्रति परिवारवाले प्रेम न रखें तो वह ठीक है? दादाश्री : प्रेम नहीं रखते, यह शिकायत करनेवाली खुद ही गलत है। यह विरोध ही गलत है। यही नासमझी है! प्रेम नहीं रखें ऐसे कोई माता-पिता ही नहीं होते। यह तो उनको समझ ही नहीं, तो फिर क्या हो? प्रेम नहीं रखते ऐसा कहें, तो माता-पिता को कितना दु:ख हो कि तुझे बचपन से पाला-पोसा किस लिए, अगर तुझे प्रेम नहीं करना था तो? प्रश्नकर्ता : तब फिर मुझे ऐसा फीलिंग (भाव) क्यों हुआ कि माता-पिता प्रेम नहीं करते? मुझे ऐसी दृष्टि कहाँ से आई? दादाश्री : नहीं, सभी ऐसे प्रश्न खड़े करते हैं, क्या करें इसका? छोटी हो तो एड़ी से दबा दें, पर बड़ी हो गई इसलिए करें भी क्या? अब हमें नज़र आता है, उसे यह अक्ल मिली है न, बाहर से बुद्धि मिली है न वह विपरीत बुद्धि है। इसलिए खुद भी दुःखी होती है और औरों को भी दु:खी करती है। प्रश्नकर्ता : हाँ, आजकल लड़कियाँ भी जल्दी शादी करने को तैयार नहीं होती! प्रश्नकर्ता : नहीं जाऊँगी, डर लगता है। Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८२ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : लड़कियाँ तैयार नहीं होती। हो सके तो शादी जल्दी हो जाए तो अच्छा। पढ़ाई खतम हो जाए और इधर शादी हो जाए, ऐसा हो सके तो बेहतर। दोनों साथ में हो जाए। यदि शादी के पश्चात एकाध साल में पढाई पूरी होती हो तो भी हर्ज नहीं। लेकिन शादी में बंध जाए, तो 'लाइफ' (जिंदगी) अच्छी गुज़रे, वर्ना बाद में लाइफ बहुत दुःखमय होती है। फ्रेन्ड पर मोह यानी सखी की बात करती हो या सखा की? प्रश्नकर्ता : नहीं, दोनों की। दादाश्री : (लड़की को) सखा भी! मूंछवाला (पुरुष) भी! प्रश्नकर्ता : हाँ, दोनों। दादाश्री : ठीक है। तब उसके साथ हमें समभाव से रहना है। उस घड़ी तेरी जागृति रहनी चाहिए। उस घड़ी होश खो देना नहीं चाहिए। जिसे ब्रह्मचर्य का पालन करना है, जो मोक्ष चाहते हैं, उन स्त्रियों को पुरुषों का परिचय कम से कम करना, अनिवार्य होने पर ही। जिन्हें मोक्ष में जाना है, उन्हें इतना जतन करना चाहिए। ऐसा तुझे लगता है कि नहीं लगता? तुझे क्या लगता है? प्रश्नकर्ता : हाँ, करना चाहिए। दादाश्री : मोक्ष में नहीं जाना है या अभी चले ऐसा है? प्रश्नकर्ता : नहीं, मोक्ष में जाना है। दादाश्री : तो फिर इन दोस्तों से क्या मैत्री करना? यह निरा जूठन ! (उस लड़की से) स्त्रियों के साथ घूमो-फिरो, खाओ पीओ, चैन से मज़ा करो, पुरुषो के संग नहीं।। प्रश्नकर्ता : दादाजी, एक बहन पूछती है कि हमें लड़कों के साथ 'फ्रेन्डली रिलेशन' (मैत्री संबंध) हों, फिर भी माता-पिता शंका क्यों करते हैं? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : नहीं, लड़कों के साथ फ्रेन्डली रिलेशन रख ही नहीं सकते। लड़कों के साथ फ्रेन्डली रिलेशन गुनाह है। प्रश्नकर्ता : उसमें क्या गुनाह है? दादाश्री : पेट्रोल और आग, दोनों साथ नहीं रख सकते न? वे दोनों (लड़का और लड़की) मौका ढूँढते रहते हैं। यह सोचे कि कब मेरी पकड़ में आये और सामनेवाला सोचे कि यह कब मेरी पकड में आये?! दोनों शिकार की ताक में रहते हैं, दोनों ही शिकारी कहलाए! प्रश्नकर्ता : आपने कहा न कि लड़के और लड़कियों की दोस्ती नहीं करनी चाहिए। दादाश्री : बिलकुल नहीं करनी चाहिए। प्रश्नकर्ता : बिलकुल नहीं करनी चाहिए, ऐसा कहा इससे उन लोगों को संतोष नहीं हुआ। दादाश्री : वह फ्रेन्डशिप आखिर में पोईज़न (जहर) समान होगी, आखिर पोईज़न ही होगी। लड़की को मरने का समय आयेगा, लड़के का कुछ नहीं जाता। इसलिए लड़के के साथ तो खड़ा भी नहीं रहना चाहिए। लड़कों से कोई फ्रेन्डशिप करना नहीं। वर्ना वह तो पोईज़न है। लाख रुपये दे फिर भी फ्रेन्डशिप मत करना। फिर अंत में जहर खाकर मरना पड़ता है। कितनी ही लड़कियाँ जहर खाकर मर जाती हैं। इसलिए उम्र होने पर हमें घर में माता-पिता से कह देना है कि, किसी अच्छे आदमी के साथ मेरा संबंध कर डालो, फिर से टूटे नहीं ऐसा जोड़ दो। मेरी शादी के लिए अब लड़का ढूँढो। दादा भगवान ने मुझसे कहा है कि 'तुम कहना।' ऐसे कह देना, शर्म में मत रहना। तब उन्हें पता चलेगा कि बच्चों की खुशी है, चलो अब शादी करवा दें। बाद में दो साल बाद शादी कर लेना, आमने सामने पसंद करके रिश्ता जोड़ देना। शादी हो जाने पर दूसरा कोई हमारी ओर देखेगा नहीं। कहेगा, उसका तो तय हो गया! Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार यह दोस्ती अच्छी नहीं, लोग तो छल-कपटवाले होते हैं। सहेलियों के साथ मित्राचारी कर सकते हैं। पुरुषों की मित्राचारी नहीं करनी चाहिए। धोखा देकर निकल जाते हैं। कोई विश्वासपात्र नहीं होता, सभी दगाबाज। एक भी असली नहीं होता। बाहर किसी का विश्वास मत करना। शादी कर लेना अच्छा, इधर-उधर भटकें उसमें सार नहीं निकलता। तेरे माता-पिता शादी-शुदा हैं तो है कुछ झंझट? ऐसे तुझे भी शादी के नाते से बँध जाना पसंद नहीं आया? खूटे से बँधना (शादी के रिश्ते से जुड़ जाना) तुझे पसंद नहीं? मुक्त रहना पसंद है? लड़कियों से कहता हूँ कि शादी क्यों नहीं करती? तब कहती हैं, 'क्या दादाजी आप भी ऐसा कहते हैं हमें शादी करने को कहते हैं!' मैंने कहा, 'इस संसार में शादी किए बिना नहीं चलेगा, ब्रह्मचर्य का पालन करना है ऐसा डिसाइड करो और वह भी निश्चित, यक़ीनन होना चाहिए। ऐसा न हो तो शादी कर लो, लेकिन दो में से एक में आ जाओ।' तब कहती हैं, 'क्यों शादी करने को कहते हैं?' मैंने कहा, 'क्यों? क्या तकलीफ है? कोई अच्छा लड़का नहीं मिलता?' तो बोली, 'अच्छे लड़के कहाँ हैं? बुद्ध हैं, मुए बुद्ध से क्या शादी करनी?' इस पर मैं चौंक पड़ा। मैंने कहा, 'ये लड़कियाँ कैसी हैं? देखो तो, अभी से इनका इतना पावर है, तो बाद में उन्हें कैसे जीने देंगी, बेचारों को?' इसलिए कईं लड़के मुझसे कहते हैं, 'हमें शादी नहीं करनी।' लड़कियाँ क्या कहती हैं, 'बुद्धू से क्यों शादी करूँ?' मैंने कहा, 'ऐसा मत बोलना। तेरे मन में से, वह बुद्ध है, यह निकाल दे। क्योंकि शादी किए बिना चारा नहीं है।' ऐसा नहीं चलता। मन में बुद्धू है ऐसा घुस जाये तो फिर सदैव झगड़े होते हैं। तुझे वह बुद्धू ही लगता रहेगा। सारा संसार मोक्ष की ओर ही जा रहा है, पर मोक्ष के लिए यह सब हैल्पिंग (सहायक) नहीं होता। ये तो लड़-झगड़ कर उल्टे ब्रेक लगाते हैं। वर्ना गरमी का ऐसा स्वभाव है कि बारिश खींच लाती है। जहाँ हो वहाँ से खींच लाती है। गरमी का स्वभाव है, बढ़ती जाती है और बारिश खींच लाती है। यह संसार भड़क रखने जैसा नहीं है। माता-पिता और बच्चों का व्यवहार इस संसार का स्वभाव ऐसा है कि हमें मोक्ष की ओर ले जाता है। मोक्ष को खींच लाता है। संसार जितना ज्यादा कठिन हो न, उतना मोक्ष जल्दी आता है। लेकिन कठिन हो तो हमें बिगड़ नहीं जाना चाहिए, स्थिर रहना चाहिए। सच्चे उपाय करने जैसा है, गलत उपाय करने पर फिर से गिर पड़ते हैं। दुःख आया तब ऐसा समझना कि मेरे आत्मा के लिए विटामिन मिला और सुख प्राप्त हुआ तो देह का विटामिन मिला, ऐसे समझना। हमें हर रोज विटामिन मिलता है, हम तो ऐसा मानकर बचपन से टेस्ट करके आगे बढ़े हैं। आप तो एक ही तरह के विटामिन को विटामिन कहते हो, वह बुद्धि का विटामिन है। जब कि ज्ञान दोनों को विटामिन कहता है। वह विटामिन अच्छा कि बहुत कुछ खाने को हो, फिर भी लोग तप करते हैं। मजेदार साग-सब्जी हो, फिर भी लोग तप करते हैं। तप करते हैं यानी दुःख सहन करते हैं ताकि आत्मा का विटामिन मिले। यह सब तुम्हारे सुनने में नहीं आया है? प्रश्नकर्ता : हाँ, आया है दादाजी। दादाश्री : और यह तप तो घर बैठे अपने आप मिलता है। लव मैरिज पसंद करने जैसी चीज़ नहीं है। कल उसका मिजाज़ कैसा निकले, किसे मालूम है? माता-पिता पसंद करें, उसे देखना। लड़का बेवकूफ या डिफेक्टवाला तो नहीं है न? बेवकूफ नहीं होना चाहिए! क्या बेवकूफ होते है? __ हमें कुछ पसंद आए ऐसा चाहिए। थोड़ा हमारे मन को भाये ऐसा होना चाहिए। बुद्धि की लिमिट में आना चाहिए। अहंकार एक्सेप्ट करे ऐसा चाहिए और चित्त को भाए ऐसा चाहिए? चित्त को भाए ऐसा चाहिए न। अत: माता-पिता खोजें उसमें हर्ज नहीं, पर हमें भी खुद देख लेना चाहिए। प्रश्नकर्ता : कभी कभी माता-पिता भी लड़का खोजने में भूल कर सकते हैं? Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री: उनका इरादा नहीं है. उनका इरादा तो भला करने का है। फिर गलती हो जाए तो हमारे प्रारब्ध का खेल है। क्या करना? और तम यदि स्वतंत्र रूप से खोजोगे तो उसमें गलती होने की ज्यादा संभावना है। बहुत से उदाहरण हैं, फेल होने के। हमारे एक महात्मा थे, उनका इकलौता बेटा था। मैंने उसे पूछा, 'अरे ! तुझे शादी करनी है कि नहीं?' तब कहे. 'करूँगा दादाजी।''कैसे लड़की पास करेगा?' तब कहे, 'आप कहें ऐसा करूँगा।' फिर अपने आप कहने लगा, 'मेरी मम्मी तो पास करने में होशियार है।' इन लोगों ने डिसाइड कर लिया है, तो मम्मी जो पास करे सो, इस प्रकार होना चाहिए। प्रश्नकर्ता : मेरी छोटी बेटी पूछती है कि, ऐसे ही कैसे शादी करें, फिर तो सारी जिंदगी बिगड़ जाए न? पहले लड़के को अच्छी तरह देख लें और मालूम कर लें कि लड़का अच्छा है कि नहीं, बाद में शादी कर सकते हैं न! ऐसा मुझे प्रश्न किया करती है। तो इसका सोल्युशन क्या है, दादाजी? ८६ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दिक्कत है?' तब कहे, 'नहीं, और कुछ नहीं।' इस पर मैंने कहा, 'तू हाँ कर दे, फिर मैं उसे उजला कर दूंगा।' फिर वह लड़की उसके पापा से कहने लगी कि, 'आप दादाजी तक शिकायत ले गए?' तब क्या करें फिर? शादी के बाद मैंने पूछा, 'बहन, उजला करने के लिए साबुन मँगा दूँ क्या?' तब उसने कहा, 'नहीं दादाजी, उजला ही है।' बिना वजह ब्लैकिश. ब्लकिश करती थी! वह तो कुछ काला लगायें तो काला नज़र आये और पीला लगायें तो पीला दिखेगा। वास्तव में लड़का अच्छा था। मुझे भी अच्छा लगा। उसे कैसे जाने दें? लडकी क्या समझी, ज़रा-सा ढीला है। ठीक कर लेना फिर, लेकिन ऐसा दूसरा नहीं मिलेगा! __प्रश्नकर्ता : क्या डेटींग करना पाप है? डेटींग यानी ये लोग लड़के लड़कियों के साथ बाहर जाएँ और लड़कियाँ लड़कों के साथ बाहर जाएँ, तो क्या वह पाप है? उसमें कुछ हर्ज है? दादाश्री : हाँ, लड़कों के साथ घूमने की इच्छा हो तो शादी कर लेना। फिर एक ही लड़का पसंद करना, एक निश्चित होना चाहिए। अन्यथा ऐसा गुनाह नहीं करना चाहिए। जब तक शादी न हो जाए, तब तक तुम्हें लड़कों के साथ घूमना नहीं चाहिए। प्रश्नकर्ता : यहाँ अमरीका में तो ऐसा है कि लड़के-लड़कियाँ चौदह साल के होने पर बाहर घूमने जाते हैं। फिर मेल हो तो उसमें आगे बढ़ते है। उसमें से कुछ बिगड़ जाए, एक-दूसरे का मेल न हो तो फिर दूसरे के साथ घूमते हैं। उसके साथ नहीं जमा तो फिर तीसरा, ऐसे चक्कर चलता रहता है और एक साथ दो-दो, चार-चार के साथ भी घूमते हैं। दादाश्री : देट इज वाईल्डनेस, वाईल्ड लाइफ! (ये तो जंगलीपन है, जंगली जीवन!) प्रश्नकर्ता : तब उन लोगों को क्या करना चाहिए? दादाश्री : लड़की को एक लड़के के प्रति सिन्सियर (वफादार) दादाश्री : सब देखकर ही शादी करते हैं और बाद में मारामारीदंगा फसाद होता है। जिसने देखे बगैर शादी की, उनका बहुत अच्छा चलता है। क्योंकि कुदरत का दिया हुआ है और वहाँ तो अपना सयानापन दिखाया है न। हमारे एक महात्मा की लड़की ने क्या किया? अपने पिता से कहा कि, 'मुझे यह लड़का पसंद नहीं।' अब लड़का पढ़ा-लिखा था। अब वह लड़का, लड़की का माँ-बाप सबको पसंद आया था। इसलिए उसके पिताजी को व्याकुलता हो गई कि बड़ी मुश्किल से ऐसा अच्छा लड़का मिला है और यह लड़की तो 'ना' कहती है। फिर उसने मुझसे पूछा तब मैंने कहा, 'उस लड़की को मेरे पास बुलाओ।' मैंने कहा, 'बहन, मुझे बता न! क्या हर्ज है? लम्बा लगता है? मोटा लगता है? पतला लगता है?' तब कहे, 'नहीं, थोड़ा ब्लैकिश (काला) है।' मैंने कहा, 'वह तो मैं उजला कर दूंगा, और कुछ तुझे Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ८८ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार रहना चाहिए और लड़का लड़की को सिन्सियर रहे, ऐसी लाइफ (जिंदगी) होनी चाहिए। इनसिन्सियर लाइफ, वह रोंग लाइफ है। प्रश्नकर्ता : अब इसमें सिन्सियर कैसे रहें? एक-दूसरे के साथ घूमते हों, उसमें फिर लड़का या लड़की इनसिन्सियर हो जाते हैं। दादाश्री : तब घूमना बंद कर देना चाहिए न! शादी कर लेनी चाहिए। आफ्टर ऑल वी आर इन्डियन, नोट वाइल्ड लाइफ। (आखिर हम भारतीय है, जंगली नहीं।) अपने यहाँ शादी के बाद दोनों सारा जीवन सिन्सियरली (वफादारी से) साथ में रहते हैं। जिसे सिन्सियरली रहना हो, उसे पहले से ही दूसरे आदमी से फ्रेन्डशिप नहीं करनी चाहिए। इस मामले में बहुत सख्त रहना चाहिए। उसे किसी लड़के के साथ घूमना नहीं चाहिए और घूमना हो तो एक ही लड़का निश्चित करके माता-पिता से कह देना कि शादी करूँगी तो इसके साथ ही करूँगी, मुझे किसी दूसरे से शादी नहीं करनी। इनसिन्सियर लाइफ इज वाइल्ड लाइफ। (बेवफा जीवन ही जंगली जीवन है।) चरित्र खराब हो, व्यसनी हो, तो बहुत सारी मुसीबतें होती हैं। व्यसनी पसंद है कि नहीं है? प्रश्नकर्ता : बिलकुल नहीं। दादाश्री : और चरित्र अच्छा हो पर व्यसनी हो तो? प्रश्नकर्ता : सिगरेट तक चला सकते हैं। दादाश्री : सच कहती हो, सिगरेट तक निभा सकते हैं। फिर आगे वह ब्रांडी के पेग लगाये वह कैसे पुसायेगा? उसकी हद होती है और चरित्र तो बहुत बड़ी चीज़ है। बहन, तू चरित्र में मानती है? तू चरित्र पसंद करती है? प्रश्नकर्ता : उसके बगैर जिया ही कैसे जाए? माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : हाँ, देखो! अगर इतना हिन्दुस्तानी स्त्रियाँ, लड़कियाँ समझें न तो काम हो जाए। अगर चरित्र को समझें तो काम निकल जाए। प्रश्नकर्ता : हमारे इतने ऊँचे विचार अच्छे वांचन से हुए हैं। दादाश्री : चाहे किसी भी वांचन से, इतने अच्छे विचारों के संस्कार मिले न! वास्तव में तो यह दगा-फटका है। तुम सभी को नज़र नहीं आता, मुझे तो सबकुछ दिखता है, केवल छल-कपट है। और दगा हो, वहाँ सुख कभी भी नहीं होता! इसलिए एक-दूसरे के प्रति सिन्सियर रहना चाहिए। दोनों की शादी से पहले गलतियाँ हुई हों, उन्हें हम एक्सेप्ट करवा दें और फिर एग्रीमेन्ट (करार) कर दें, कि सिन्सियर रहो। दूसरी जगह देखने का नहीं। जीवनसाथी पसंद हो या नहीं हो, फिर भी सिन्सियर रहने का। अपनी माँ अच्छी नहीं लगती हो, उसका स्वभाव खराब हो फिर भी उसे सिन्सियर रहते हैं न! प्रश्नकर्ता : संसार व्यवहार में पूर्व जो कर्म हुए हैं, उनके उदय अनुसार सब चलता है। उसमें कहीं प्रपंच मालम पडे कि हमारे साथ प्रपंच किया जा रहा है, तब उस स्थिति में 'समभाव से निकाल (निपटारा)' करने के लिए क्या करें? दादाश्री : टेढ़ा पति मिला हो तो उसे किस प्रकार जीतना? क्योंकि प्रारब्ध में लिखा, वह हमें छोड़ेगा नहीं न! और यह संसार हमारी धारणा के अनुसार होवे नहीं ऐसा है। तब मुझे बता देना कि 'दादाजी. ऐसा पति मिला है।' तब मैं तुझे तुरन्त सब रिपेयर कर दूंगा और तुझे चाबी भी दे औरंगाबाद में एक मुस्लिम लड़की आई थी। मैंने पूछा, 'क्या नाम है तुम्हारा?' तब कहती हैं, 'दादाजी, मेरा नाम मशरूर है।' मैंने कहा, 'आ, यहाँ बैठ मेरे पास, क्यों आई हैं तू?' वह आई। आने पर उसके मन को भाया। थोड़ा देखने के साथ अच्छा लगा, अंतर में ठंडक हुई कि ये खुदा के आसिस्टन्ट (सहायकर्ता) जैसे तो लगते हैं। ऐसा लगा तो फिर बैठी। बाद में दूसरी बातें निकली। Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९० माता-पिता और बच्चों का व्यवहार फिर मैंने पूछा, 'क्या करती है तू?' उसने कहा, 'मैं लेक्चरर (व्याख्याता) हूँ।' इस पर मैंने पूछा, 'शादी-वादी की या नहीं की?' तो कहा. 'नहीं, शादी नहीं की. लेकिन मँगनी हुई है। मैंने कहा, 'कहाँ हुई है, बम्बई में?' तो कहा, 'नहीं, पाकिस्तान में।' 'कब करनेवाली हो?' तब कहे, 'छह महीने में ही।' मैंने कहा, 'किसके साथ? पति कैसा खोज निकाला है?' तो कहा, 'लॉयर है।' बाद में मैंने पूछा कि, 'वह पति बनकर तुझे कुछ दुःख नहीं देगा? अभी तुझे किसी प्रकार का दु:ख है नहीं और पति करने जाएगी और पति दुःख देगा तो?' मैंने कहा, 'उसके साथ शादी करने के बाद तेरी क्या योजना है? उसके साथ शादी होने से पहले तेरी कुछ योजना होगी न कि उसके साथ कैसे बर्ताव करना? या फिर योजना नहीं की? वहाँ शादी के बाद क्या करना उसके लिए कुछ तैयारियाँ तूने की होंगी न, कि शादी के पश्चात् उस लॉयर (वकील) के साथ तेरी जमेगी या नहीं इसकी?' तब वह कहती है, 'मैंने सब तैयारियाँ कर रखी हैं। वह ऐसे बोलेगा तो मैं ऐसा जवाब दूंगी। वह ऐसे कहेगा तो मैं ऐसा कहूँगी, वह ऐसा कहेगा तो, एक-एक बात के जवाब मेरे पास तैयार हैं।' जितनी रशिया ने अमरीका के सामने युद्ध की तैयारियाँ कर डाली हैं न, उतनी तैयारियाँ कर रखी थीं। दोनों ओर से पूरी तैयारियाँ ! वह तो मतभेद खड़ा करने की ही तैयारियाँ कर रखी थीं। वह झगड़ा करे, उससे पहले ही यह बम फोड़ दे! वह ऐसे सुलगाये तो हमें ऐसे सुलगाना। अत: वहाँ जाने से पहले ही हुल्लड़ करने को तैयार न! वह इस तरफ तीर छोड़े, तब हमें उस ओर रॉकेट छोड़ना। मैंने कहा, 'यह तो तूने कोल्ड वॉर शुरू किया। वह कब शान्त होगा?' कोल्ड वॉर बंद होता है? यह देखो न, बड़े साम्राज्यवालों का कहाँ बंद होता है, रशिया-अमरीका का? ये लड़कियाँ ऐसा सब सोचती हैं, सारा प्रबंध कर दे इस तरह। ये लड़के तो बेचारे भोले! लड़के ऐसा सब नहीं करते और उस घड़ी मार खा जाते हैं, भोले हैं न! माता-पिता और बच्चों का व्यवहार यह आप जो कहते हो न, प्रपंच के सामने क्या तैयारी करनी? लेकिन उस लड़की ने सारी तैयारियाँ कर रखी थी, बोम्बार्डिंग कब और कैसे करूँगी! वह ऐसा बोले तो अटेक, वैसे बोले तो ऐसे अटेक (आक्रमण)। 'सभी तैयारियाँ कर रखी हैं कहती थी!' फिर बीच में मैंने उसे कहा, 'यह सब तुझे किस ने सिखाया है? निकाल बाहर करेगा और तलाक दे देगा!' तलाक दे देगा कि नहीं देगा? मैंने कह दिया कि इस तरह तो छह महीने में तलाक मिलेंगे, तुझे तलाक लेने हैं? यह तरीका ग़लत है। फिर मैंने उसे कहा, 'तुझे तलाक नहीं दे, इसलिए यह सब मैं तुझे सिखाता हूँ।' इस पर मुझसे कहती है, 'दादाजी, ऐसा नहीं करूँ तो क्या करूँ? वर्ना तो वह मुझे दबा देगा।' मैंने कहा, 'वह क्या दबानेवाला था? बेचारा लट्ट ! वह तुझे क्या दबानेवाला था?' बाद में मैंने पूछा, 'बहन, मेरा कहा मानोगी? तुझे सुखी होना है या दु:खी होना है? बाकी जो औरतें सब तैयारियाँ करके पति के पास गई थीं, वे अंत में दुःखी हुई हैं। तू मेरे कहने के मुताबिक जाना, किसी भी तैयारी के बगैर जाना।' फिर उसे समझाया। घर में हर रोज़ क्लेश होगा तो वकील कहेगा, 'जाने दो, इससे तो अच्छा दूसरी लाऊँ।' उसमें फिर यह टिट फोर टैट (जैसे को तैसा) होगा। जहाँ प्रेम के सौदे करने हैं, वहाँ ऐसे सौदे किसके करने हैं? प्रश्नकर्ता : प्रेम के। दादाश्री : प्रेम के! भले आसक्ति से हो मगर कुछ प्रेम जैसा है न! उस पर द्वेष तो नहीं होता न! मैंने कहा, 'ऐसा नहीं करते। तू पढ़ीलिखी है इसलिए ऐसी तैयारियाँ कर रखी है? यह तो वॉर (लडाई) है? यह क्या हिन्दुस्तान और पाकिस्तान की वॉर है? संसार में सभी यही कर रहे हैं। यें लड़कियाँ, लड़के सभी यही कर रहे हैं। फिर दोनों का जीवन नष्ट हो जाता है।' फिर उसे सब प्रकार से समझाया। Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९२ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार पति के साथ इस प्रकार वर्तन करना चाहिए। इस प्रकार यानी वह टेढ़ा हो तो तू सीधे चलना। उसका समाधान होना चाहिए, हल निकालना चाहिए। उसकी झगड़ने की तैयारी हो तब हमें एकता रखनी चाहिए। वह अलगाव रखे फिर भी हमें एकता रखनी चाहिए। वह बार बार अलग होने की बातें करे, उस हालत में भी हमें कहना है कि हम एक हैं। क्योंकि ये सब रिलेटिव संबंध हैं। वह रिश्ता तोड़ दें और हम भी तोड़ दें तो टूट जाए कल सवेरे। अर्थात् तलाक दे देगा। तब कहे, 'मुझे क्या करना है?' मैंने उसे समझाया, उनका मूड देखकर व्यवहार करने को कहा, जब मूड में नहीं हो तब हम मन में 'अल्लाह' का नाम लेते रहना और मूड ठीक हो तब उनके साथ बातचीत शुरू करना। वह मूड में न हो और तू छेड़ेगी तो आग लग जाएगी।' तुझे उन्हें निर्दोष देखना है। वे तुझे उल्टा-सीधा कहें फिर भी तू शान्त रहना। सच्चा प्रेम होना चाहिए। आसक्ति में तो छह-बारह महीने में फिर टूट ही जाएगा। प्रेम में सहनशीलता होनी चाहिए, एडजस्टेबल (समाधानी) होना चाहिए। ऐसे मशरूर को मैंने पढ़ा दिया। मैंने कहा, 'तू कुछ भी नहीं करना, जब वह इस ओर तीर चलाये तब अपनी स्थिरता रखकर 'दादा, दादा' करती रहना। फिर उस ओर तीर चलाये तब स्थिरता रखकर 'दादा, दादा' करना। तू एक भी तीर मत चलाना।' फिर मैंने विधि कर दी। बाद में पूछा कि 'तेरे ससुराल में कौन-कौन है?' तब कहे, 'मेरी सास है।' मैने पूछा, 'सास के साथ तू कैसे एडजस्टमेन्ट करेगी?' तब कहने लगी, 'उसका भी मैं सामना कर लूँगी।' फिर मैंने उसे समझाया। बाद में कहती है, 'हाँ, दादाजी, मुझे ये सब बातें पसंद आई।' तू इस प्रकार करना तो तलाक नहीं देगा और सास के साथ मेल रहेगा। बाद में उसने मुझे एक चंदन की माला पहनाई। मैंने कहा, 'यह माला तू ले जाना और तेरे साथ रखना माला के दर्शन करने के बाद पति के साथ अपना व्यवहार चलाना, तो बहुत सुंदर चलेगा। उसने वह माला आज भी अपने पास रखी है।' माता-पिता और बच्चों का व्यवहार उससे चरित्रबल की बात कही थी कि पति कुछ भी बोले, तुझे कुछ भी कहे, तब भी तू मौन धारण कर के, शांत भाव से रहेगी, तो तुझ में चरित्रबल उत्पन्न होगा और उसका उस पर प्रभाव पड़ेगा। वकील हो तो भी। वह कैसे भी डाँटे, तब 'दादा' का नाम लेना और स्थिर रहना। उसके मन में होगा कि यह कैसी औरत है! यह तो हार ही नहीं मानती! बाद में वह हार जायेगा। फिर उसने ऐसा ही किया, लड़की ही ऐसी थी। दादा जैसे सिखानेवाले मिलें तो फिर क्या बाकी रहें? वर्ना पहले एडजस्टमेन्ट ऐसा था, रशिया और अमरीका जैसा। वहाँ बटन दबाते ही सुलगे सब, सटासट । क्या यह मानवता है? किस लिए डरते हो? जीवन किसलिए होता है? जब संयोग ही ऐसे हैं, तब क्या करें फिर? वे जो जीतने की तैयारी करते हैं न, इससे चरित्रबल 'लूज़' (कमजोर) हो जाता है। हम ऐसी किसी प्रकार की तैयारी नहीं करते। चरित्र का उपयोग, जिसे तुम तैयारी कहते हो, पर उससे तुम्हारे में जो चरित्रबल है वह 'लूज़' हो जाता है और अगर चरित्रबल खतम हो जाएगा, तब वहाँ तेरे पति के सामने तेरी क़ीमत ही नहीं रहेगी। इस तरह उस लड़की की समझ में अच्छी तरह बैठ गया। बाद में मझसे कहती है कि 'दादाजी, अब मैं किसी दिन हारूँगी नहीं, ऐसी गारन्टी देती हूँ।' हमारे साथ कोई प्रपंच कर रहा हो और जवाब में हम भी वैसा करें तो हमारा चरित्रबल टूट जाएगा। कोई कितने भी प्रपंच करे लेकिन अपने प्रपंच से खुद ही उसमें फँस जाता है। लेकिन अगर तुम तैयारी करने जाओगे, तब तुम खुद उसके प्रपंच में फँसोगे। हमारे सामने तो बहुतेरे लोगों ने प्रपंच किए थे लेकिन वे प्रपंच करनेवाले फँस गये थे। क्योंकि हमें एक पलभर भी प्रतिसाद के विचार नहीं आते। वर्ना सामने तैयारी करने के विचार आये न, तब हमारा भी चरित्रबल टूट जाता है, शीलवानपन टूट जाता है। शीलवान यानी क्या? कि वह गालियाँ देने आया हो मगर यहाँ आकर चुप बैठ जाए। हम कहें कि कुछ बोलिए, बोलिए, लेकिन वह Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार माता-पिता और बच्चों का व्यवहार वह एक अक्षर भी नहीं बोल पाए। वह शील का प्रभाव है! अगर हम एक अक्षर भी सामने बोलने की तैयारी करें न, तो शील टूट जाएँ। इसलिए तैयारी नहीं करनी। जिसे जो कहना हो कहे। 'सर्वत्र मैं ही हूँ' कहना। (आत्मस्वरूप से सबके साथ अभेद हूँ।) प्रपंच के सामने तैयारी करने में हमें नये प्रपंच खड़े करने पड़ते हैं और फिर हम स्लिप (फिसल) हो जाते हैं। अब हमारे पास वह शस्त्र ही नहीं है न! उसके पास तो वह शस्त्र है, इसलिए वह भले ही चलाए! किन्तु वह 'व्यवस्थित' है न! इसलिए आखिर उसका शस्त्र उसे ही लगता है, ऐसा 'व्यवस्थित' है! उसे सभी समझ अंदर फिट हो गई। दादाजी ने ड्रॉईंग कर दिया। मुझसे बोली, 'ऐसा ड्रॉईंग कहना चाहते हो?' मैंने कहा, 'हाँ, ऐसा ड्रॉईंग।' कहना पडे! फिर लडकी ने उसके माता-पिता से बात कही। उसकी बात सुनकर उसके पिता जो डॉक्टर थे, वे दर्शन करने आएँ। देखो, ऐसे दादाजी को कुछ देर लगती है? मशरूर आनी चाहिए यहाँ! आ गई तो ऑपरेशन हो गया झट-पट! देखो, वहाँ पर कायम 'दादाजी, दादाजी' हर रोज याद करती है न! सबके काम हो जाएँ। हमारा एक-एक शब्द तुरंत समाधान लानेवाला है। वह आखिर मोक्ष तक ले जाता है ! आप सिर्फ 'एडजस्ट एवरीव्हेर' किया करो। १९. संसार में सुख की साधना, सेवा से जो मनुष्य माता-पिता के दोष देखता है, उसमें कभी भी बरक़त नहीं होती। संभव है पैसेवाला हो, पर उसकी आध्यात्मिक उन्नति कभी भी नहीं होती। माता-पिता के दोष नहीं देखने चाहिए। उनका उपकार तो भूल ही कैसे सकते हैं? किसी ने चाय पिलायी हो तो भी उसका उपकार नहीं भूलते, तो फिर हम माता-पिता का उपकार तो कैसे भुला सकते हैं? तू समझ गया? हाँ, अर्थात् तुझे उनका उपकार मानना चाहिए, मातापिता की बहुत सेवा करनी चाहिए। वे उल्टा-सीधा कहें तो हमें ध्यान पर नहीं लेना चाहिए। वे उल्टा-सीधा कहें मगर वे बड़े हैं न! क्या तुझे भी उल्टा-सीधा बोलना चाहिए? प्रश्नकर्ता : नहीं बोलना चाहिए। पर बोल देते हैं उसका क्या? मिस्टेक (गलती) हो जाए तो क्या? दादाश्री : हाँ, क्यों फिसल नहीं जाता? क्योंकि वहाँ जागृत रहता है और अगर फिसल गया तो पिताजी भी समझ जायेंगे कि यह बेचारा फिसल गया। यह तो जान-बूझकर तू ऐसा करने जाए तो, 'त् यहाँ क्यों फिसल गया?' उसका मैं जवाब माँगें। सही है या गलत? संभव हो वहाँ तक हमसे ऐसा नहीं होना चाहिए, फिर भी तुझसे ऐसा कुछ हो गया होगा तब सभी समझ जाएँगे कि यह ऐसा नहीं कर सकता। माता-पिता को खुश रखना। वे तुझे खुश रखने के प्रयत्न करते हैं कि नहीं? क्या उन्हें तुझे खुश रखने की इच्छा नहीं है? प्रश्नकर्ता : हाँ, किन्तु दादाजी, हमें ऐसा लगता है कि उन्हें किचकिच करने की आदत हो गई है। दादाश्री : हाँ, लेकिन उसमें तेरी भूल है, इसलिए माता-पिता को जो दुःख हुआ, उसका प्रतिक्रमण करना चाहिए। उन्हें दुःख नहीं होना चाहिए, 'मैं सुख देने आई हूँ' ऐसा तुम्हारे मन में होना चाहिए। मेरी ऐसी क्या भूल हुई की माता-पिता को दुःख हुआ ऐसा लगना चाहिए। पिताजी बरे नहीं लगते? ऐसे लगेंगे तब क्या करेगी? सच में बुरे जैसा इस दुनिया में कुछ है ही नहीं। हमें मिलीं वे सभी अच्छी चीजें होती हैं। क्योंकि हमारे प्रारब्ध से मिली हैं। माँ मिली, वह भी अच्छी। कैसी भी काली-कलूटी हो, फिर भी हमारी माँ ही अच्छी। क्योंकि हमें प्रारब्ध से जो मिली वह अच्छी। क्या बदल कर दूसरी ला सकते हैं? प्रश्नकर्ता : नहीं। Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ९५ दादाश्री : बाज़ार में दूसरी माँ नहीं मिलती ? और मिले तब भी किस काम की? गोरी पसंद हो फिर भी हमारे लिए किस काम की? अब जो है वह अच्छी । दूसरों की गोरी माँ देखकर 'हमारी बुरी है' ऐसा नहीं कहना चाहिए। 'मेरी माँ तो बहुत अच्छी है' ऐसा कहना चाहिए। प्रश्नकर्ता: पापा का क्या मानना चाहिए? दादाश्री : पापा का ? वे जिससे खुश रहे ऐसा व्यवहार उनके साथ रखना। खुश रखना नहीं आता? वे खुश रहें ऐसा करना । माता-पिता यानी माता - पिता । इस संसार में सर्व प्रथम सेवा करने योग्य कोई हो तो वे माता-पिता है। उनकी सेवा करेगा? प्रश्नकर्ता: हाँ, सेवा जारी ही है। घर काम में मदद करता हूँ । दादाश्री : शान्ति का क्या करोगे? जीवन में शांति लानी है कि नहीं लानी ? प्रश्नकर्ता : लानी है। दादाश्री : ला दें, पर किसी दिन माता-पिता की सेवा की है? मातापिता की सेवा करें, तो शान्ति नहीं जाती। पर आज-कल सच्चे दिल से माता-पिता की सेवा नहीं करते। पच्चीस-तीस साल का हुआ और 'गुरु' (पत्नी) आये, तब कहती है कि मुझे नये घर ले जाइए। आपने 'गुरु' देखे हैं? पच्चीस-तीस साल की उम्र में 'गुरु' मिल जाते हैं और 'गुरु' मिलने पर सब कुछ बदल जाता है। गुरु कहे कि माँजी को आप जानते ही नहीं। वह पहली बार ध्यान नहीं देता। पहली बार तो अनसुना कर देता है, पर दो-तीन बार कहे तो फिर धीरे धीरे भ्रमित हो जाता है। माता-पिता की जो शुद्ध भाव से सेवा करें तो उन्हें कभी अशान्ति न हो ऐसा जगत् है। यह जगत् नजरअंदाज करने जैसा नहीं है। तब लोग प्रश्न करते हैं कि लड़के का ही दोष है न! लड़के माता-पिता की सेवा नहीं करते, उसमें माता-पिता का क्या दोष? मैंने कहा, 'उन्होंने माता-पिता माता-पिता और बच्चों का व्यवहार ९६ की सेवा नहीं की थी, इसलिए उन्हें प्राप्त नहीं होती।' यह परंपरा ही गलत है। अब नये सिरे से परंपरा से हटकर चलें तो अच्छा होगा। बुजुर्गों की सेवा करने पर हमारा विज्ञान विकसित होता है। क्या मूर्तियों की सेवा हो सकती है? मूर्तियों के पैर थोड़े ही दुःखते हैं? सेवा तो अभिभावक, बुजुर्गों अथवा गुरुजन हों, उनकी करनी होती है। माता-पिता की सेवा करना धर्म है। हिसाब कैसा भी हो पर सेवा करना हमारा धर्म है। हमारे धर्म का जितना पालन करेंगे, उतना सुख हमें प्राप्त होगा। बुजुर्गों की सेवा तो होगी ही, पर साथ में हमें सुख भी प्राप्त होगा। माता-पिता को सुख दें, तो हमें सुख मिलेगा। माता-पिता की सेवा करनेवाला मनुष्य कभी दुःखी होता ही नहीं । एक भाई मुझे एक बड़े आश्रम में मिल गए। मैंने उनसे पूछा, 'आप यहाँ कैसे?' तब उन्होंने कहा, 'मैं इस आश्रम में पिछले दस साल से रहता हूँ।' तब मैंने उनसे कहा, 'आपके माता-पिता गाँव में अंतिम अवस्था में बहुत गरीबी में दुःखी हो रहे हैं।' तब उन्होंने कहा, 'उसमें मैं क्या करूँ? मैं उनकी और ध्यान दूँ, तो मेरा धर्म रह जायेगा।' इसे धर्म कैसे कहेंगे? धर्म तो वह कि माता-पिता की खबर रखें, भाईयो को बुलायें, सभी को बुलाये । व्यवहार आदर्श होना चाहिए। जो व्यवहार खुद के धर्म का तिरस्कार करे, माता-पिता के संबंध को भी दुतकारे, उसे धर्म कैसे कह सकते हैं? मैंने भी माँ की सेवा की थी। बीस साल की अर्थात् युवाकाल की उम्र थी। अतः माताजी की सेवा हुई। पिताजी को कंधा दिया था, उतनी ही सेवा हुई थी। फिर हिसाब समझ में आया कि ऐसे तो कईं पिताजी (पिछले जन्मों) हो गए। अब क्या करेंगे? जवाब मिला, 'जो हैं उनकी सेवा कर।' फिर जो गए वो गए। पर अभी जो है उनकी सेवा कर। अगर ऐसा कोई हो तो ठीक, नहीं हो तो चिंता मत करना। ऐसे तो बहुत हो गए। जहाँ भूले वहाँ से फिर गिनो। माता-पिता की सेवा, प्रत्यक्ष है। भगवान कहाँ दिखते हैं? भगवान दिखाई नहीं देते, ये माता-पिता तो दिखाई देते हैं। Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ९८ माता-पिता और बच्चों का व्यवहार माता-पिता और बच्चों का व्यवहार अभी ज्यादा से ज्यादा अगर कोई दु:खी है तो ६५ साल की (और उससे बड़ी) उम्रवाले मनुष्य बहुत दु:खी हैं। पर वे किसे कहें? बच्चे ध्यान नहीं देते। दरार हो गई है। पुराने जमाने और नये ज़माने के बीच। बुड्डा पुराना जमाना छोड़ता नहीं, मार खाये तो भी नहीं छोड़ता। प्रश्नकर्ता : प्रत्येक को पैंसठ साल होने पर यही हालत होती है सम्मान हो, वह कब तक रहेगा? ___ इस संसार में तीन व्यक्तियों का महान उपकार होता है। वह उपकार भूलने जैसा नहीं है। माता-पिता और गुरु का। जिन्होंने हमें सही रास्ते पर लगाया हो, उनका उपकार भुलाया जाए ऐसा नहीं है। - जय सच्चिदानंद प्रात दादाश्री : हाँ, ऐसी की ऐसी हालत। यही का यही हाल ! इसलिए इस ज़माने में वास्तव में करने जैसा क्या है? किसी जगह इन बुजुर्गों के लिए रहने का स्थान रखा हो तो बहुत अच्छा। ऐसा हमने सोचा था। फिर मैंने सोचा कि ऐसा कुछ किया हो, तो पहले हमारा यह ज्ञान दे दें, फिर उनके खाने-पीने की व्यवस्था तो, दूसरी सामाजिक संस्थाओं को सौंप दो तो काम चलेगा। लेकिन ज्ञान दिया हो तो फिर दर्शन किया करें तो भी काम चले! यह ज्ञान दिया हो तो बेचारों को शान्ति रहे, वर्ना किसके सहारे शान्ति रहे? अब आपके घर में बच्चों पर कैसे संस्कार पड़ेंगे? आप अपने माता-पिता को नमस्कार करो। इतनी बड़ी उम्र में आपके बाल सफेद होने पर भी आप आपके माता-पिता को प्रणाम करते हो तो बच्चों के मन में भी ऐसे विचार नहीं आएँगे कि पिताजी लाभ लेते हैं तो हम क्यों नहीं लें? फिर आपके पैर छुएँगे या नहीं? प्रश्नकर्ता : आज के बच्चे माता-पिता के पैर नहीं पड़ते। उन्हें संकोच होता है। दादाश्री : ऐसा है, माता-पिता के पैर क्यों नहीं पड़ते? वे बच्चे माता-पिता के दूषण (गलतियाँ-दोष) देख लेते हैं इसलिए 'पैरों पड़ने जैसे नहीं हैं' ऐसा मन में मानते हैं, इसलिए पैर नहीं छूते। अगर उनमें आचारविचार ऊँचे, बेस्ट लगें, तो हमेशा पैर छुएँगे ही। पर आज के माता-पिता तो लड़के सामने खड़े हों, फिर भी दोनों झगड़ते रहते हैं। माता-पिता झगड़ते हैं कि नहीं झगड़ते? अब बच्चों के मन में उनके प्रति जो आदर प्रतिक्रमण विधि प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, देहधारी (जिसके प्रति दोष हुआ हो, उस व्यक्ति का नाम) के मन-वचन-काया के योग, भावकर्म-द्रव्यकर्म-नोकर्म से भिन्न ऐसे हे शुद्धात्मा भगवान, आपकी साक्षी में, आज दिन तक मुझसे जो जो ** दोष हुए हैं, उसके लिए क्षमा माँगता हूँ। हृदयपूर्वक बहत पश्चाताप करता हूँ। मुझे क्षमा करें। और फिर से ऐसे दोष कभी भी नहीं करूँ, ऐसा दृढ़ निश्चय करता हूँ। उसके लिए मुझे परम शक्ति दीजिये। ** क्रोध-मान-माया-लोभ, विषय-विकार, कषाय आदि से किसी को भी दुःख पहुंचाया हो, उस दोषो को मन में याद करें। Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ * वीतराग शासन देवी-देवताओं को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। * निष्पक्षपाती शासन देवी-देवताओं को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। * चौबीस तीर्थंकर भगवंतों को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता * श्री कृष्ण भगवान को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। प्रातः विधि * श्री सीमंधर स्वामी को नमस्कार करता हूँ। • वात्सल्यमूर्ति दादा भगवान' को नमस्कार करता हूँ। (५) • प्राप्त मन-वचन-काया से इस संसार के किसी भी जीव को किंचित्मात्र भी दु:ख न हो, न हो, न हो। * केवल शुद्धात्मानुभव के अलावा इस संसार की कोई भी विनाशी चीज मुझे नहीं चाहिए। प्रकट ज्ञानी पुरुष दादा भगवान की आज्ञा में ही निरंतर रहने की परम शक्ति प्राप्त हो, प्राप्त हो, प्राप्त हो। ज्ञानी पुरुष 'दादा भगवान' के वीतराग विज्ञान का यथार्थ रूप से, संपूर्ण-सर्वांग रूप से केवल ज्ञान, केवल दर्शन और केवल चारित्र में परिणमन हो, परिणमन हो, परिणमन हो। नमस्कार विधि प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र में विचरते तीर्थंकर भगवान श्री सीमंधर स्वामी को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। (४०) प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में विचरते ॐ परमेष्टी भगवंतों को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। (५) प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में विचरते पंच परमेष्टी भगवंतों को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, वर्तमान में महाविदेह क्षेत्र और अन्य क्षेत्रों में विहरमान तीर्थंकर साहिबों को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। * भरत क्षेत्र में हाल विचरते सर्वज्ञ श्री दादा भगवान को निश्चय से अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। (५) दादा भगवान के सर्व समकितधारी महात्माओं को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। . सारे ब्रह्मांड के समस्त जीवों के रिअल स्वरूप को अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। रीयल स्वरूप ही भगवत् स्वरूप है, इसलिए सारे विश्व को भगवत् स्वरूप से दर्शन करता हूँ। रीयल स्वरूप ही शुद्धात्म स्वरूप है, इसलिए सारे विश्व को शुद्धात्म स्वरूप से दर्शन करता हूँ। रीयल स्वरूप ही तत्त्व स्वरूप है, इसलिए सारे विश्व को तत्त्वज्ञान रूप से दर्शन करता हूँ। नौ कलमें १. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे (दु:खे), न दुभाया (दुःखाया) जाये या दुभाने (दुःखाने) के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे किसी देहधारी जीवात्मा का किंचित्मात्र भी अहम् न दुभे, ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्याद्वाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ की परम शक्ति दो। २. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभे, न दुभाया जाये या दुभाने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे किसी भी धर्म का किंचित्मात्र भी प्रमाण न दुभाया जाये ऐसी स्याद्वाद वाणी, स्यावाद वर्तन और स्याद्वाद मनन करने की परम शक्ति दो। ३. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी उपदेशक साधु, साध्वी या आचार्य का अवर्णवाद, अपराध, अविनय न करने की परम शक्ति दो। ४. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति किंचित्मात्र भी अभाव, तिरस्कार कभी भी न किया जाये, न करवाया जाये या कर्ता के प्रति न अनुमोदित किया जाये, ऐसी परम शक्ति दो। ५. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के साथ कभी भी कठोर भाषा, तंतीली भाषा न बोली जाये, न बुलवाई जाये या बोलने के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। कोई कठोर भाषा, तंतीली भाषा बोलें तो मुझे मृदु-ऋजु भाषा बोलने की शक्ति दो। ६. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा के प्रति स्त्री, पुरुष या नपुंसक, कोई भी लिंगधारी हो, तो उसके संबंध में किचिंत्मात्र भी विषय-विकार संबंधी दोष, इच्छाएँ, चेष्टाएँ या विचार संबंधी दोष न किये जायें, न करवाये जायें या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जाये, ऐसी परम शक्ति दो। मुझे निरंतर निर्विकार रहने की परम शक्ति दो। ७. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी रस में लुब्धता न हो ऐसी शक्ति दो। समरसी आहार लेने की परम शक्ति दो। ८. हे दादा भगवान ! मुझे किसी भी देहधारी जीवात्मा का प्रत्यक्ष अथवा परोक्ष, जीवित अथवा मृत, किसी का किंचित्मात्र भी अवर्णवाद, अपराध, अविनय न किया जाये, न करवाया जाये या कर्ता के प्रति अनुमोदना न की जायें, ऐसी परम शक्ति दो। ९. हे दादा भगवान ! मुझे जगत कल्याण करने में निमित्त बनने की परम शक्ति दो, शक्ति दो, शक्ति दो। (इतना आप दादा भगवान से माँगा करें। यह प्रतिदिन यंत्रवत् पढ़ने की चीज़ नहीं है, हृदय में रखने की चीज़ है। यह प्रतिदिन उपयोगपूर्वक भावना करने की चीज़ है। इतने पाठ में समस्त शास्त्रों का सार आ जाता है।) शुद्धात्मा के प्रति प्रार्थना हे अंतर्यामी परमात्मा ! आप प्रत्येक जीवमात्र में बिराजमान हो, वैसे ही मुझ में भी बिराजमान हो। आपका स्वरूप ही मेरा स्वरूप है। मेरा स्वरूप शुद्धात्मा है। हे शुद्धात्मा भगवान ! मैं आपको अभेद भाव से अत्यंत भक्तिपूर्वक नमस्कार करता हूँ। अज्ञानतावश मैंने जो जो * * दोष किये हैं, उन सभी दोषों को आपके समक्ष जाहिर करता हूँ। उनका हृदयपूर्वक बहुत पश्चाताप करता हूँ और आपसे क्षमा याचना करता हूँ। हे प्रभु ! मुझे क्षमा करो, क्षमा करो, क्षमा करो और फिर से ऐसे दोष नहीं करूँ, ऐसी आप मुझे शक्ति दो, शक्ति दो, शक्ति दो। हे शुद्धात्मा भगवान ! आप ऐसी कृपा करो कि हमें भेदभाव छूट जाये और अभेद स्वरूप प्राप्त हो। हम आप में अभेद स्वरूप से तन्मयाकार रहें। ** जो जो दोष हुए हों, वे मन में जाहिर करें। दादा भगवान के असीम जय जयकार हो (प्रतिदिन कम से कम १० मिनट से लेकर ५० मिनट तक जोर से बोलें) Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ (दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा प्रकाशित पुस्तकें हिन्दी 12. क्रोध 1. ज्ञानी पुरूष की पहचान 2. सर्व दुःखों से मुक्ति 13. प्रतिक्रमण 3. कर्म का विज्ञान 14. दादा भगवान कौन? 4. आत्मबोध 15. पैसों का व्यवहार 5. मैं कौन हूँ? 16. अंत:करण का स्वरूप 6. वर्तमान तीर्थकर श्री सीमंधर स्वामी 17. जगत कर्ता कौन? 7. भूगते उसी की भूल 18. त्रिमंत्र 8. एडजस्ट एवरीव्हेयर 19. भावना से सुधरे जन्मोजन्म 9. टकराव टालिए 20. पति-पत्नी का दीव्य व्यवहार 10. हुआ सो न्याय 21. माता-पिता और बच्चों का व्यवहार 11. चिंता English 1. Adjust Everywhere 17. Money Ahimsa (Non-violence) 18. Noble Use of Money Anger 19. Pratikraman Apatvani-1 20. Pure Love Apatvani-2 21. Right Understanding to Help Apatvani-6 Others Apatvani-9 22. Shree Simandhar Swami 8. Avoid Clashes 23. Spirituality in Speech Celibacy: Brahmcharya 24. The Essence of All Religion 10. Death: Before, During & After... 25. The Fault of the Sufferer 11. Flawless Vision 26. The Science of Karma 12. Generation Gap 27. Trimantra 13. Gnani Purush Shri A.M.Patel 28. Whatever has happened is 14. Guru and Disciple Justice 29. Who AmI? 15. Harmony in Marriage 16. Life Without Conflict 30. Worries * दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा गुजराती भाषा में भी 60 से ज्यादा पुस्तकें प्रकाशित हुई है। वेबसाइट www.dadabhagwan.org पर से भी आप ये सभी पुस्तकें प्राप्त कर सकते हैं। दादा भगवान फाउन्डेशन के द्वारा हर महीने हिन्दी, गुजराती तथा अंग्रेजी भाषा में "दादावाणी" मैगेज़ीन प्रकाशित होता है। प्राप्तिस्थान दादा भगवान परिवार अडालज : त्रिमंदिर संकुल, सीमंधर सीटी, अहमदाबाद- कलोल हाई वे, पोस्ट : अडालज, जि. गांधीनगर, गुजरात - 382421. फोन : (079) 39830100, email : info@dadabhagwan.org अहमदाबाद : दादा दर्शन, 5, ममतापार्क सोसायटी, नवगुजरात कॉलेज के पीछे, उस्मानपुरा, अहमदाबाद-३८००१४. फोन : (079)27540408, 27543979 राजकोट : त्रिमंदिर, अहमदाबाद-राजकोट हाई वे, तरघडीया चोकडी, पोस्ट : मालियासण, जि. राजकोट. फोन : 99243 43478 वडोदरा : दादा भगवान परिवार, (0265)2414142 मुंबई : दादा भगवान परिवार, 9323528901 पूणे : महेश ठक्कर, 9822037740 बेंगलूर : अशोक जैन, 9341948509 कोलकता : शशीकांत कामदार, 033-32933885 U.S.A. : Dada Bhagwan Vignan Institue : Dr. Bachu Amin, 100, SW Redbud Lane, Topeka, Kansas 66606. Tel: 785-271-0869, E-mail: bamin@cox.net Dr. Shirish Patel, 2659, Raven Circle, Corona, CA 92882 Tel. : 951-734-4715, E-mail : shirishpatel@sbeglobal.net UK : Dada Centre, 236, Kingsbury Road, (Above Kingsbury Printers), Kingsbury, London, NW9 OBH Tel.: 07956476253, E-mail: dadabhagwan_uk@yahoo.com Camada : Dinesh Patel, 4, Halesia Drive, Etobicock, Toronto, M9W6B7. Tel. :416675.3543 E-mail: ashadinsha@yahoo.ca Canada :+1416-675-3543 Australia:+61421127947 Dubai :+971506754832 Singapore: +6581129229 Malaysia :+60 126420710 Website : www.dadabhagwan.org, www.dadashri.org