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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार रहना चाहिए और लड़का लड़की को सिन्सियर रहे, ऐसी लाइफ (जिंदगी) होनी चाहिए। इनसिन्सियर लाइफ, वह रोंग लाइफ है।
प्रश्नकर्ता : अब इसमें सिन्सियर कैसे रहें? एक-दूसरे के साथ घूमते हों, उसमें फिर लड़का या लड़की इनसिन्सियर हो जाते हैं।
दादाश्री : तब घूमना बंद कर देना चाहिए न! शादी कर लेनी चाहिए। आफ्टर ऑल वी आर इन्डियन, नोट वाइल्ड लाइफ। (आखिर हम भारतीय है, जंगली नहीं।)
अपने यहाँ शादी के बाद दोनों सारा जीवन सिन्सियरली (वफादारी से) साथ में रहते हैं। जिसे सिन्सियरली रहना हो, उसे पहले से ही दूसरे आदमी से फ्रेन्डशिप नहीं करनी चाहिए। इस मामले में बहुत सख्त रहना चाहिए। उसे किसी लड़के के साथ घूमना नहीं चाहिए और घूमना हो तो एक ही लड़का निश्चित करके माता-पिता से कह देना कि शादी करूँगी तो इसके साथ ही करूँगी, मुझे किसी दूसरे से शादी नहीं करनी। इनसिन्सियर लाइफ इज वाइल्ड लाइफ। (बेवफा जीवन ही जंगली जीवन है।)
चरित्र खराब हो, व्यसनी हो, तो बहुत सारी मुसीबतें होती हैं। व्यसनी पसंद है कि नहीं है?
प्रश्नकर्ता : बिलकुल नहीं। दादाश्री : और चरित्र अच्छा हो पर व्यसनी हो तो? प्रश्नकर्ता : सिगरेट तक चला सकते हैं।
दादाश्री : सच कहती हो, सिगरेट तक निभा सकते हैं। फिर आगे वह ब्रांडी के पेग लगाये वह कैसे पुसायेगा? उसकी हद होती है और चरित्र तो बहुत बड़ी चीज़ है। बहन, तू चरित्र में मानती है? तू चरित्र पसंद करती है?
प्रश्नकर्ता : उसके बगैर जिया ही कैसे जाए?
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार दादाश्री : हाँ, देखो! अगर इतना हिन्दुस्तानी स्त्रियाँ, लड़कियाँ समझें न तो काम हो जाए। अगर चरित्र को समझें तो काम निकल जाए।
प्रश्नकर्ता : हमारे इतने ऊँचे विचार अच्छे वांचन से हुए हैं।
दादाश्री : चाहे किसी भी वांचन से, इतने अच्छे विचारों के संस्कार मिले न! वास्तव में तो यह दगा-फटका है। तुम सभी को नज़र नहीं आता, मुझे तो सबकुछ दिखता है, केवल छल-कपट है। और दगा हो, वहाँ सुख कभी भी नहीं होता! इसलिए एक-दूसरे के प्रति सिन्सियर रहना चाहिए। दोनों की शादी से पहले गलतियाँ हुई हों, उन्हें हम एक्सेप्ट करवा दें और फिर एग्रीमेन्ट (करार) कर दें, कि सिन्सियर रहो। दूसरी जगह देखने का नहीं। जीवनसाथी पसंद हो या नहीं हो, फिर भी सिन्सियर रहने का। अपनी माँ अच्छी नहीं लगती हो, उसका स्वभाव खराब हो फिर भी उसे सिन्सियर रहते हैं न!
प्रश्नकर्ता : संसार व्यवहार में पूर्व जो कर्म हुए हैं, उनके उदय अनुसार सब चलता है। उसमें कहीं प्रपंच मालम पडे कि हमारे साथ प्रपंच किया जा रहा है, तब उस स्थिति में 'समभाव से निकाल (निपटारा)' करने के लिए क्या करें?
दादाश्री : टेढ़ा पति मिला हो तो उसे किस प्रकार जीतना? क्योंकि प्रारब्ध में लिखा, वह हमें छोड़ेगा नहीं न! और यह संसार हमारी धारणा के अनुसार होवे नहीं ऐसा है। तब मुझे बता देना कि 'दादाजी. ऐसा पति मिला है।' तब मैं तुझे तुरन्त सब रिपेयर कर दूंगा और तुझे चाबी भी दे
औरंगाबाद में एक मुस्लिम लड़की आई थी। मैंने पूछा, 'क्या नाम है तुम्हारा?' तब कहती हैं, 'दादाजी, मेरा नाम मशरूर है।' मैंने कहा, 'आ, यहाँ बैठ मेरे पास, क्यों आई हैं तू?' वह आई। आने पर उसके मन को भाया। थोड़ा देखने के साथ अच्छा लगा, अंतर में ठंडक हुई कि ये खुदा के आसिस्टन्ट (सहायकर्ता) जैसे तो लगते हैं। ऐसा लगा तो फिर बैठी। बाद में दूसरी बातें निकली।