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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
अभी ज्यादा से ज्यादा अगर कोई दु:खी है तो ६५ साल की (और उससे बड़ी) उम्रवाले मनुष्य बहुत दु:खी हैं। पर वे किसे कहें? बच्चे ध्यान नहीं देते। दरार हो गई है। पुराने जमाने और नये ज़माने के बीच। बुड्डा पुराना जमाना छोड़ता नहीं, मार खाये तो भी नहीं छोड़ता।
प्रश्नकर्ता : प्रत्येक को पैंसठ साल होने पर यही हालत होती है
सम्मान हो, वह कब तक रहेगा?
___ इस संसार में तीन व्यक्तियों का महान उपकार होता है। वह उपकार भूलने जैसा नहीं है। माता-पिता और गुरु का। जिन्होंने हमें सही रास्ते पर लगाया हो, उनका उपकार भुलाया जाए ऐसा नहीं है।
- जय सच्चिदानंद
प्रात
दादाश्री : हाँ, ऐसी की ऐसी हालत। यही का यही हाल ! इसलिए इस ज़माने में वास्तव में करने जैसा क्या है? किसी जगह इन बुजुर्गों के लिए रहने का स्थान रखा हो तो बहुत अच्छा। ऐसा हमने सोचा था। फिर मैंने सोचा कि ऐसा कुछ किया हो, तो पहले हमारा यह ज्ञान दे दें, फिर उनके खाने-पीने की व्यवस्था तो, दूसरी सामाजिक संस्थाओं को सौंप दो तो काम चलेगा। लेकिन ज्ञान दिया हो तो फिर दर्शन किया करें तो भी काम चले! यह ज्ञान दिया हो तो बेचारों को शान्ति रहे, वर्ना किसके सहारे शान्ति रहे?
अब आपके घर में बच्चों पर कैसे संस्कार पड़ेंगे? आप अपने माता-पिता को नमस्कार करो। इतनी बड़ी उम्र में आपके बाल सफेद होने पर भी आप आपके माता-पिता को प्रणाम करते हो तो बच्चों के मन में भी ऐसे विचार नहीं आएँगे कि पिताजी लाभ लेते हैं तो हम क्यों नहीं लें? फिर आपके पैर छुएँगे या नहीं?
प्रश्नकर्ता : आज के बच्चे माता-पिता के पैर नहीं पड़ते। उन्हें संकोच होता है।
दादाश्री : ऐसा है, माता-पिता के पैर क्यों नहीं पड़ते? वे बच्चे माता-पिता के दूषण (गलतियाँ-दोष) देख लेते हैं इसलिए 'पैरों पड़ने जैसे नहीं हैं' ऐसा मन में मानते हैं, इसलिए पैर नहीं छूते। अगर उनमें आचारविचार ऊँचे, बेस्ट लगें, तो हमेशा पैर छुएँगे ही। पर आज के माता-पिता तो लड़के सामने खड़े हों, फिर भी दोनों झगड़ते रहते हैं। माता-पिता झगड़ते हैं कि नहीं झगड़ते? अब बच्चों के मन में उनके प्रति जो आदर
प्रतिक्रमण विधि प्रत्यक्ष दादा भगवान की साक्षी में, देहधारी (जिसके प्रति दोष हुआ हो, उस व्यक्ति का नाम) के मन-वचन-काया के योग, भावकर्म-द्रव्यकर्म-नोकर्म से भिन्न ऐसे हे शुद्धात्मा भगवान, आपकी साक्षी में, आज दिन तक मुझसे जो जो ** दोष हुए हैं, उसके लिए क्षमा माँगता हूँ। हृदयपूर्वक बहत पश्चाताप करता हूँ। मुझे क्षमा करें। और फिर से ऐसे दोष कभी भी नहीं करूँ, ऐसा दृढ़ निश्चय करता हूँ। उसके लिए मुझे परम शक्ति दीजिये। ** क्रोध-मान-माया-लोभ, विषय-विकार, कषाय आदि से किसी को भी दुःख पहुंचाया हो, उस दोषो को मन में याद करें।