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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
क्या करना है? 'शराब पीना बुरा है ऐसा हमेशा कहते रहना है।
हाँ, छोड़ने के बाद भी ऐसा कहते रहना। मगर 'अच्छी है' ऐसा कभी मत कहना। नहीं तो फिर से असर हो जाएगा।
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प्रश्नकर्ता: शराब पीने से दिमाग पर किस प्रकार नुकसान होता है? दादाश्री : एक तो सुध भुला देता है। उस समय भीतर की जागृति पर आवरण आ जाता है। फिर सदा के लिए वह आवरण नहीं जाता। हमें मन में ऐसा लगता है कि हट गया, मगर नहीं हटता। ऐसा करते करते आवरण आते आते फिर...... मनुष्य पूरा जड़ जैसा हो जाता है। फिर उसे अच्छे विचार भी नहीं आते। जो डेवलप (विकासशील ) हुए हैं, उनका इसमें से बाहर निकलने के बाद ब्रेन (दिमाग) बहुत अच्छा डेवलप होता है। उसे फिर से बिगाड़ना नहीं चाहिए।
प्रश्नकर्ता: शराब पीने से दिमाग जो डेमेज (नुकसान) हुआ हो, दिमाग के परमाणु जो डेमेज हुए हों, तो वह डेमेज हिस्सा फिर से रिपेयर (ठीक) किस प्रकार हो?
दादाश्री : उसका कोई रास्ता ही नहीं। वह तो समय के साथ धीरे धीरे चला जायेगा । पिये बगैर जो टाइम व्यतीत होगा, वैसे-वैसे सब निरावरण होता जाएगा। एकदम से नहीं होगा। शराब और मांसाहार से जो नुकसान होता है, शराब और मांसाहार में से जो सुख भोगता है, वह सुख 'रीपे' करते (चुकाते) वक्त पशु योनि में जाना पड़ता है। ये जितने भी सुख तुम लेते हो, उन्हें 'रीपे' करने पड़ेंगे, ऐसी अपनी जिम्मेदारी हमें समझनी चाहिए। यह जगत् गप्प नहीं है।' यह चुकता करना पड़े ऐसा जगत् है! केवल यह आंतरिक सुख ही 'रीपे' (चुकते) नहीं करने पड़ते । अन्य सभी बाहर के सुख 'रीपे' करने के है। जितना हमें जमा करना हो वो करना और फिर वापस देना पड़ेगा !
प्रश्नकर्ता: अगले जन्म में जानवर होकर 'रीपे' करना पड़ेगा, वह तो ठीक, लेकिन इस जन्म में क्या होगा? इस जन्म में क्या परिणाम हैं?
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
दादाश्री : इस जन्म में उसे खुद को आवरण आ जाते हैं, इसलिए जड़ जैसा, जानवर जैसा ही हो जाता है। लोगों में 'प्रेस्टिज' (इज्जत) नहीं रहती, लोगों में सम्मान नहीं रहता, कुछ भी नहीं रहता ।
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अण्डे हों और बच्चे हों, दोनों एक ही हैं। किसी का अण्डा खाना और किसी का बच्चा खाना उसमें फर्क नहीं है। तुझे बच्चे खाना पसंद है क्या? तुझे किसी के बच्चे खा जाना पसंद है ?
प्रश्नकर्ता: अण्डों में भी शाकाहारी अण्डे होते हैं ऐसी लोगों की मान्यता होती है।
दादाश्री : नहीं, वह तो गलत मान्यता है। जिन अण्डों को निर्जीव अण्डे कहते हैं, वे बिना जीव की चीज़ है। जिसमें जीव न हो, वह चीज़ नहीं खा सकते।
प्रश्नकर्ता : यह बात कुछ अलग लगती है। कृपया विस्तार से समझाइये |
दादाश्री : अलग है लेकिन बात 'एक्ज़ेक्ट' (यथार्थ) है। यह तो 'सायन्टिस्टों' (वैज्ञानिकों) ने भी कहा था कि नितांत निर्जीव चीज़ नहीं खाई जा सकती और जीवित ही खाई जाती है। उसमें जीव तो है, मगर भिन्न प्रकार का जीव । यह तो लोगों ने गलत लाभ उठाया है। उसे तो छूना भी नहीं चाहिए और लड़कों को अण्डे खिलाने से क्या होता है? शरीर इतना आवेशमय हो जाता है कि कंट्रोल में नहीं रहता। अपना 'वेजीटेरियन फूड' (शाकाहारी भोजन) तो बहुत अच्छा होता है, कच्चा भले हो। डॉक्टरों का इसमें दोष नहीं होता। वे तो उनकी समझ और बुद्धि के अनुसार कहते हैं। हमें अपने संस्कार की रक्षा करनी है न हम संस्कारी घरों के लोग हैं।
प्रश्नकर्ता: अमरीका में दादा ने कई लड़कों को एकदम 'टर्न' (बदल) कर दिया है।
दादाश्री : हाँ, उनके माता-पिता शिकायत लेकर आये थे कि हमारे