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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
प्रश्नकर्ता : बच्चे निम्न-कोटि के निकलें, उसमें बाप क्या करे?
दादाश्री : मूल दोष बाप का ही होता है। वह क्यों भगत रहा है? पहले से आचरण बिगाड़े हैं, उसकी वजह से यह दशा हुई है न? जिसका अपने आचरण का कंट्रोल (अंकुश) किसी जन्म में बिगड़ा न हो उसको ऐसा नहीं होता, हम यह कहना चाहते हैं। पूर्व कर्म कैसे हुए? अपना मूल कंट्रोल नहीं है तभी न? अर्थात् हम कंट्रोल में मानते हैं। कंट्रोल मानने के लिए तुम्हें उसके सभी नियम समझने चाहिए।
ये बच्चे अपना आईना हैं। हमारे बच्चों पर से मालूम होता है कि अपनी कितनी गलतियाँ हैं!
जो हम में शील नामक गुण हो तो बाघ भी हमारे वश में रहें, तो बच्चों की क्या मजाल? हमारे शील का ठिकाना नहीं है, उसकी यह सब गड़बड़ है। शील समझ गए न?
प्रश्नकर्ता : शील किसे कहना? उसके बारे में जरा विस्तार से सब समझ सकें, इस प्रकार कहिए न!
दादाश्री : किंचित्मात्र दुःख देने के भाव न हों। अपने दुश्मन को भी जरा-सा दुःख पहुँचाने का भाव न हो। उसके अन्दर 'सिन्सियारिटी' (निष्ठा) हो, 'मोरालिटी' (नैतिकता) हो, सारे गुण सम्मिलित हो। किंचित् मात्र हिंसक भाव न हो, वह 'शीलवान' कहलाता है।
प्रश्नकर्ता : आज-कल के माता-पिता ऐसा सब कहाँ से लायें?
दादाश्री : तो भी हमें उसमें से थोडा बहत, पच्चीस प्रतिशत चाहिए कि नहीं चाहिए? लेकिन हम काल (समय) के कारण आईसक्रीम खाते रहें ऐसे मौज़ी हो गए हैं।
प्रश्नकर्ता : पिता का चरित्र कैसा होना चाहिए?
दादाश्री : बच्चे रोज कहें कि पापा, हमें बाहर अच्छा नहीं लगता। आपके साथ बहुत अच्छा लगता है। ऐसा चरित्र होना चाहिए।
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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता : यह तो उल्टा होता है, बाप घर में हो तो लड़का बाहर जाए और बाप बाहर जाए तो लड़का घर में हो।
दादाश्री : लड़के को पापा के बगैर अच्छा न लगे ऐसा होना चाहिए।
प्रश्नकर्ता : तो ऐसा होने के लिए पापा क्या करें?
दादाश्री : जब मुझे बच्चे मिलते हैं न, तो बच्चों को मेरे बगैर अच्छा नहीं लगता। बुड्ढे मिलते हैं, तो बुड्ढों को भी मेरे बगैर अच्छा नहीं लगता। जवान मिलते हैं तो जवानों को भी मेरे बगैर अच्छा नहीं लगता।
प्रश्नकर्ता : हमें भी आपके जैसा ही होना है।
दादाश्री : हाँ, यदि आप मेरे जैसा करो तो वैसे हो जाओगें। आप कहें, 'पेप्सी लाओ।' तो वे कहेंगे, 'नहीं है।' कोई हर्ज नहीं, पानी ले आओ। ये तो कहें, 'पेप्सी क्यों लाकर नहीं रखी?' ये हुई गड़बड़ फिर से। हमें तो दोपहर को भोजन का समय हुआ हो और कहें कि 'आज तो खाना नहीं बनाया'। तो मैं कहूँगा कि 'ठीक है, लाओ थोड़ा पानी पी लें, बस।"तुमने क्यों नहीं पकाया?' कहा कि फौजदार हो जाते हैं। वहाँ पर फौजदारी करने लगते है।
५. समझाने से सुधरें, बच्चे यह किट-किट करने के बजाय मौन रहना अच्छा, नहीं बोलना अच्छा। बच्चे सुधरने के बजाय बिगड़ते हैं, इसलिए एक अक्षर भी मत कहना। बिगड़े उसकी जिम्मेदारी अपनी है। यह समझ में आये ऐसी बात है न?
हम कहें कि ऐसा मत करना, तब वह उल्टा ही करता है। करूँगा, जाइए जो करना है करो।' उल्टा वह ज्यादा बिगड़ता है। बच्चे अपनी आबरू मिट्टी में मिला देते हैं। ये भारतीयों को जीना भी नहीं आया ! बाप होना नहीं आया और बाप बन बैठे हैं। इसलिए ऐसे-वैसे मुझे समझाना