________________
४०
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
___ अत: बच्चों को उसकी भलाई के लिए डाँटते हों, मारते हों, तब पुण्य बँधता है। परंतु 'मैं पिता हूँ, उसे थोड़ा मारना तो पड़ेगा न?' ऐसा भाव अन्दर प्रविष्ट हुआ तो फिर पाप बँधेगा। इस तरह अगर सही समझ नहीं होगी तो फिर उसमें ऐसा विभाजन हो जाता है!
अत: बाप लड़के पर उसके हित के लिए अकुलाये उसका क्या फल हो? पुण्य बँधेगा।
___ प्रश्नकर्ता : बाप तो अकुलाता है पर लड़का भी सामने अकुलाये तो क्या होता है?
दादाश्री : लड़का पाप बाँधता है ! क्रमिक मार्ग में ज्ञानीपुरुष' शिष्य पर अकुलायें तो उसका जबरदस्त पुण्य बँधता है, पुण्यानुबंधी पुण्य बँधता है। वह आकुलता व्यर्थ नहीं जाती। ये शिष्य नहीं हैं उनके बच्चे, नहीं कुछ लेना-देना, फिर भी शिष्य पर अकुलाते हैं।
यहाँ हमारे पास डाँट-डपट बिल्कुल नहीं होती! डाँटने पर मनुष्य स्पष्ट नहीं कह सकता, कपट करता है। ये सब कपट इस वजह से संसार में पैदा हुए हैं ! जग में डाँटने की जरूरत नहीं है। लडका सिनेमा देखकर आया हो और हम उसे डाँटें तो दूसरे दिन बहाना बनाकर, 'स्कूल में कुछ कार्यक्रम था' कह कर सिनेमा देखने जाता है! जिसके घर में माँ सख्त हो, उसके लड़के को व्यवहार नहीं आता।
प्रश्नकर्ता : कोल्ड ड्रिंक्स ज़्यादा पिये, चॉकलेट ज्यादा खाये, उस वक्त डाँटती हूँ।
दादाश्री : उसमें डाँटने की कहाँ जरूरत है ! उसे समझाना चाहिए कि ज्यादा खाने से क्या नुकसान होगा। आपको कौन डाँटता है? यह तो बड़प्पन का झूठा अहंकार है ! 'माँ' होकर बैठी है, बड़ी! माँ होना आता नहीं और सारा दिन लड़के को डाँटती रहती हो! अगर तुम्हें सास डाँटती हो तो मालूम पड़े। लड़के को डाँटना शोभा देता होगा? लड़के को भी ऐसा लगे कि यह तो (माँ) दादी से भी बुरी है। इसलिए लड़के को डाँटना
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार छोड़ दो। धीरे से समझाना कि यह सब नहीं खाना चाहिए, उससे तेरा शरीर बिगड़ेगा।
वह गलत करता हो तो भी उसे बार-बार मत पीटो। गलत करता हो और बार-बार पीटें तो क्या होगा? एक आदमी तो जैसे कपड़े धो रहा हो, उस प्रकार बच्चे की धुलाई कर रहा था। मुए, बाप होकर लड़के की यह क्या दशा करता है? उस समय लडका मन में क्या तय करता है, जानते हो? सहन नहीं हो तो मन में सोचता है, 'बड़ा होने पर तुम को मारूँगा, देख लेना।' भीतर ठान लेता है। बड़ा होकर फिर उसे मारता भी है।
मारने से जगत् नहीं सुधरता। डाँटने से या चिढने से भी कोई नहीं सुधरता। सही करके दिखाने से सुधरता है। जितना बोलें उतना पागलपन है।
एक भाई थे। वे रात दो बजे न जाने क्या-क्या कर के घर आते थे! उसका वर्णन करने योग्य नहीं है। आप समझ जाओ। फिर घर के लोगों ने तय किया कि इसको डाँटे या फिर घर में घुसने नहीं दें, क्या उपाय करें? बाद में वे लोग इसका अनुभव कर आये। उसके बड़े भैया कहने गए तो उनसे कहने लगा, 'तुमको मारे बगैर नहीं छोड़ेंगा।' फिर घर के सब लोग मुझे पूछने आये कि 'इसका क्या करें? यह तो ऐसा बोलता है।' तब मैंने घरवालों से कह दिया कि 'कोई उसे एक अक्षर भी कहे नहीं। बोलेंगे तो वह ज्यादा उदंड हो जाएगा, और घर में आने नहीं दोगे तो बगावत करेगा। उसे जब आना हो तब आए और जाना हो तब जाए। हमें 'राइट' (सही) भी नहीं कहना और 'रोग' (गलत) भी नहीं कहना है। राग भी नहीं करना, द्वेष भी नहीं करना है। समता रखनी है, करुणा रखनी है।' तीन-चार साल बाद वह भाई सही रास्ते पर आ गया! आज वह व्यापार में बहुत मदद करता है। दुनिया बेकार नहीं है, पर काम लेना आना चाहिए। सभी के भीतर भगवान हैं और सभी भिन्नभिन्न कार्य लेकर बैठे हैं, इसलिए नापसंद जैसा मत रखना।
एक आदमी संडास के दरवाजे को लातें मार रहा था। मैंने पूछा,