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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
'लातें क्यों मारते हो?' तो बोला, 'बहुत सफाई करता हूँ फिर भी बदबू आ रही है।' बोलिए, अब यह कितनी बड़ी मूर्खता कहलाएगी ! संडास के दरवाज़े को लात मारें तो भी बदबू आती है ! इसमें भूल किसकी ?
कितने ही लोग तो लड़के को बहुत मारते रहते हैं, यह क्या मारने की चीज़ है? यह तो 'ग्लास वेअर' (काँच के बरतन ) के जैसे हैं। 'ग्लास वेअर' को जतन से रखने चाहिए। 'ग्लासवेअर' को ऐसे फेंके तो? 'हेन्डल विथ केयर ।' अर्थात् सावधानी रखो। अब ऐसे मारते मत रहना।
ऐसा है, इस जन्म के बच्चों की चिंता करते हो लेकिन पिछले जन्मों में जो संतानें थी उनका क्या किया? प्रत्येक जन्म में संतान छोड़कर आये हैं, जहाँ भी जन्म लिए उन सबमें बच्चे छोड़-छोड़ कर आये हैं । इतने छोटे-छोटे कि बेचारे भटक जाएँ, ऐसे बच्चों को छोड़कर आये हैं । वहाँ से आना नहीं चाहता था, फिर भी यहाँ आया। बाद में भूल गया और फिर इस जन्म में दूसरे बच्चे आए ! इसलिए बच्चों संबंधी क्लेश क्यों करते हो? उन्हें धर्म के मार्ग पर ले जाओ, अच्छे हो जाएँगे ।
एक लड़का तो ऐसा टेढ़ा था कि कड़वी दवाई पिलाये तो पीता ही नहीं था, गले से नीचे उतारता नहीं था, पर उसकी माँ भी पक्की थी। बच्चा इतना टेढ़ा हो तो माँ कच्ची होगी क्या? माँ ने क्या किया, उसकी नाक दबाई और दवाई फट से गले में उतर गई। परिणाम स्वरूप लड़का और भी पक्का हो गया ! दूसरे दिन जब पिला रही थी और नाक दबाने गई तो उसने फूऊऊऊ कर के माँ की आँखों में उड़ाया ! यह तो वही 'क्वॉलिटी !' माँ के पेट में नौ महीने बिना भाड़े के रहे, वह मुनाफा और ऊपर से फूऊऊऊ करता है !
एक बाप मुझे कहता था कि 'मेरा तीसरे नंबर का लड़का बहुत खराब है। दो लड़के अच्छे हैं।' मैंने पूछा, 'यह खराब है तो तुम क्या करोगे?' तब बोला, 'क्या करूँ? दो लड़कों को मुझे कुछ नहीं कहना पड़ता और इस तीसरे लड़के के कारण मेरी सारी जिंदगी बर्बाद होने लगी है।' मैंने कहा, 'क्या करता है तुम्हारा लड़का ?' तब वह बोला, 'रात डेढ़
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बजे आता है, शराब पीकर आता है मुआ।' मैंने पूछा, 'फिर तुम क्या करते हो?' तब बोला, 'मैं दूर से देखता हूँ उसे, अगर मेरा मुँह दिखाऊँ तो गालियाँ देता है। मैं दूर रहकर खिड़की में से देखता रहता हूँ कि क्या तब मैंने कहा, 'डेढ़ बजे घर आने के बाद क्या करता है?' करता है?" तब बोला, 'खाने-पीने की तो कोई बात ही नहीं, उसके आने पर उसका बिस्तर लगा देना पड़ता है। आकर तुरन्त सो जाता है और खर्राटे लेने लगता है।' इस पर मैंने कहा, 'तो चिंता कौन करता है?' तब बोला, 'वह तो मैं ही करता हूँ।'
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बाद में कहे, 'उसका यह हाल देखकर मुझे तो सारी रात नींद नहीं आती।' मैंने कहा, 'इसमें दोष तुम्हारा है, वह तो आराम से सो जाता है। तुम्हारा दोष तुम भुगतते हो। पिछले जन्म में उसे शराब की आदत डालनेवाला तू ही है।' उसको सिखाकर खिसक गया। किस कारण सिखाया ? लालच की खातिर। यानी पिछले जन्म में उसे बिगाड़ा था, उलटी राह पर चढ़ाया था।' वह सिखाने का फल आया है अब । अब उसका फल भुगतो आराम से ! जो भुगते उसी की भूल। देखो, वह तो सो गया है न आराम से ? और बाप सारी रात चिंता करते-करते डेढ़ बजे तक जागता है कि कब आये, लेकिन उसे कुछ बोल नहीं सकता। बाप भुगतता है, इसलिए भूल बाप की है।
बहू समझती है की ससुर दूसरे कमरे में बैठे हैं। इसलिए वह दूसरे के साथ बात करती है कि 'ससुर ज़रा कम अक्ल है।' अब उस समय हम वहाँ खड़े हों तो हमें यह सुनने में आये, तो हमें भीतर असर होता है। तब वहाँ क्या हिसाब लगाना चाहिए कि अगर हम दूसरी जगह में बैठे होते तो क्या होता? तब कोई असर नहीं होता । अर्थात् यहाँ आये, इस भूल का यह असर है! हम इस भूल को सुधार लें, ऐसा समझ कर कि हम कहीं और बैठे थे और हमने यह सुना ही नहीं था। इस प्रकार इस भूल को सुधार लें।
महावीर भगवान के पीछे भी लोग उल्टा बोलते थे। लोग तो बोलेंगे