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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
वसूल कर रहा है। इसलिए पहले से सावधान हो जाओ। हमने तो उधार का सुख लेने का व्यवहार ही छोड़ दिया था। अहो ! खुद के आत्मा में अनंत सुख है ! उसे छोड़कर इस भयानक गंदगी में क्यो पड़ें?
एक सत्तर साल की बुढ़िया थी। एक दिन घर से बाहर आकर चिल्लाने लगीं, 'आग लगे इस संसार को, कड़वा जहर जैसा, मुझे तो यह संसार जरा भी नहीं भाता ! हे भगवान! तू मुझे उठा ले।' तब कोई लड़का वहाँ से गुज़र रहा था उसने कहा, 'क्यों माई हर रोज तो बहुत अच्छा कहती थी, हर रोज तो मीठा अँगूर जैसा लगता था और आज कड़वा कैसे हो गया?' तब कहने लगी, 'मेरा पुत्र मेरे साथ कलह करता है। इस बुढ़ापे में मुझसे कहता है, चली जा यहाँ से।'
पहले उपकारी खोजने बाहर जाना पड़ता था और आज तो उपकारी घर बैठे जन्मे हैं। इसलिए शांति से लड़का जो सुख-दुःख दे, उसे स्वीकार कर लेना ।
महावीर भगवान को भी उपकारी नहीं मिलते थे। आर्य देश में उपकारी नहीं मिले तो उन्हें फिर साठ मील दूर अनार्य देश में विचरना पड़ा, और हमें तो घर बैठे उपकारी मिले हैं। लड़का कहे, 'हमें देर हो जाए तो आप झिक-झिक मत करना। आपको सोना हो तो सो जाना चुपचाप।' बाप सोचता है, 'अब सो जाऊँगा चुपचाप। यह सब मैं नहीं जानता था, वर्ना संसार शुरू ही नहीं करता।' अब जो हुआ सो हुआ। हमें पहले ऐसा मालूम नहीं होता न, इसलिए शुरू कर देते हैं और बाद में फँस जाते हैं! प्रश्नकर्ता : नापसंद मिले तो उसे आत्मा हेतु उपयोग में लेना, ऐसा अर्थ हुआ?
दादाश्री : नापसंद मिले वह आत्मा के लिए हितकारी ही होता है। वह आत्मा का विटामिन ही है। दबाव आया कि तुरन्त आत्मा में आ जाते हैं न? अभी कोई गाली दे उस घड़ी वह संसार में नहीं रहता और अपनी आत्मा में ही एकाकार हो जाता है लेकिन जिसे आत्मा का ज्ञान हुआ है वही ऐसा कर सकता है।
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार प्रश्नकर्ता: बुढ़ापे में हमारी सेवा कौन करेगा?
दादाश्री : सेवा की आशा क्यों रखें? हमें परेशान न करें तो भी अच्छे हैं। सेवा की आशा मत रखना। शायद पाँच प्रतिशत अच्छे मिल जाएँ, बाकी तो पंचानवे प्रतिशत तो हवा निकाल दें ऐसे हैं।
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अरे! लड़के तो क्या करते हैं? एक लड़के ने उसके बाप से कहा कि 'आप मुझे मेरा हिस्सा दे दो, रोजाना खिटपिट करते हो ऐसा नहीं 'चलेगा।' तब उसके बाप ने कहा, 'तूने मुझे इतना परेशान किया है कि मैं तुझे कुछ भी हिस्सा नहीं देनेवाला ।'
'यह मेरी खुद की कमाई है, इसलिए मैं तुझे इस सम्पत्ति में सें कुछ नहीं दूँगा।' तब लड़के ने कहा, 'यह सब मेरे दादा का है इसलिए मैं कोर्ट में दावा दायर करूँगा।' मैं कोर्ट में लडूंगा पर छोडूंगा नहीं । अर्थात् सच में ये संतानें अपनी नहीं होतीं।
यदि बाप लड़के के साथ एक घण्टा लड़े, इतनी बड़ी बड़ी गालियाँ दे, तब लड़का क्या कहता है ? 'आप क्या समझते हो ?' पारिवारिक सम्पत्ति के लिए अदालत में दावा भी दायर करे ऐसा है। फिर उस लड़के के लिए चिंता होगी क्या? ममता छूट गई कि चिंता भी छूट गई। अब मुझे वह लड़का नहीं चाहिए। चिंता होती है न, वह ममतावालों को होती है।
उसका साढ़ बीमार हो न, तो बारह दफा अस्पताल मिलने जाए और बाप हो तब तीन ही बार मिलने जाता है। ऐसा तू किस आधार पर करता है? घर में बीबी चाबी घुमाती है, कि 'मेरे बहनोई से मिलते आना !' अतः बीवी ने कहा कि तुरंत तैयार ! ऐसे बीबी के आधीन है जगत् ।
वैसे तो लड़का अच्छा होता है, पर जो उसको गुरु (पत्नी) नहीं मिलनेवाला हो तब। पर गुरु मिले बिना रहती नहीं न! मैं क्या कहना चाहता हूँ कि फिर चाहे गुरु परदेशी हो कि इन्डियन हो, काबू अपने हाथ में नहीं रहता। इसलिए लगाम पद्धतिनुसार अपने हाथ में रखनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता: पिछले जन्म में किसी के साथ बैर बंधा हो, तो वह