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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार जैसे अंगारे के लिए हम क्या करते हैं? चिमटे से पकड़ते हैं न? चिमटा रखते हो न? अब यों ही हाथ से अंगारे पकड़ें तो क्या होगा?
प्रश्नकर्ता : जल जाएँगे। दादाश्री : इसलिए चिमटा रखना पड़ता है।
प्रश्नकर्ता : तब किस प्रकार का चिमटा रखना चाहिए?
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार न! सभी समझते हैं। सभी खुद ही न्याय करनेवाले होते हैं, गलत हो रहा हो तो खुद समझता तो है ही! 'तूने ऐसा क्यों किया?' ऐसा कहें तो उल्टा पकड़ता हैं। मैं करता हूँ वही सही है।' ऐसा कहता है और उल्टा करता है फिर। कैसे घर चलाना वह नहीं आता। जीवन कैसे जीना यह नहीं आता। इसलिए जीवन जीने के सभी गर यहाँ बताये हैं कि किस प्रकार जीवन जीना चाहिए!
सामनेवाले का अहंकार खड़ा ही ना हो। हमारी सत्तापूर्ण आवाज नहीं हो। अर्थात् सत्ता नहीं होनी चाहिए। बच्चों से तुम कुछ कहो तो आवाज़ सत्तापूर्ण नहीं होनी चाहिए।
प्रश्नकर्ता : संसार में रहते हैं तो कितनी ही जिम्मेदारियाँ निभानी पड़ती हैं, और जिम्मेदारियाँ निभाना एक धर्म है। यह धर्म निभाते हुए कारण-अकारण कटु वचन बोलने पड़ें तो यह पाप या दोष है?
दादाश्री : ऐसा है न, कटु वचन बोलते समय हमारा मुँह कैसा हो जाता है? गुलाब के फूल जैसा? अपना मुँह बिगड़े तो समझना कि पाप लगा। अपना चेहरा बिगड़े ऐसी वाणी निकले तब समझना कि पाप हुआ। कटु वचन मत बोलना। थोड़े शब्द कहो पर आहिस्ता से समझकर कहो। प्रेम रखो तो एक दिन जीत सकोगे। कडुवाहट से नहीं जीत सकोगे। उल्टा वह विरुद्ध जाएगा और परिणाम विपरीत होगा। वह लड़का उल्टे परिणाम के बीज डालता है। 'अभी तो मैं छोटा हूँ, इसलिए डाँटते हो लेकिन बड़ा होकर देख लूँगा।' ऐसा अभिप्राय अन्दर बना लेगा। इसलिए ऐसा मत करो, उसे समझाओ। एक दिन प्रेम की जीत होगी। दो दिन में ही उसका परिणाम नहीं आयेगा। दस दिन, पंद्रह दिन, महीना भर उसके साथ प्रेम रखते रहो। देखो, इस प्रेम का क्या नतीजा आता है, यह तो देखो!
प्रश्नकर्ता : हम अनेक बार समझायें पर वह ना समझे तो क्या करें?
दादाश्री : समझाने की जरूरत ही नहीं। प्रेम रखो, फिर भी धीरज से आप उसे समझाओ। अपने पड़ौसी को भी हम ऐसे कटु वचन बोलते हैं कभी?
दादाश्री : अपने घर का एक आदमी चिमटे जैसा है, वह खुद जलता नहीं और सामनेवाले को, जलते हए को पकडता है. हमें उसे बुलाकर कहना चाहिए कि 'भैया, मैं जब इसके साथ बात करूँ तब तू साथ देना।' इसके बाद वह सब ठीक कर देगा। कुछ रास्ता निकालना चाहिए। खाली हाथ अंगारे पकड़ने जाएँ तो क्या हालत होगी?
अपने कहने का परिणाम न आता हो तो हमें चुप हो जाना चाहिए। हम मूर्ख हैं, हमें बोलना नहीं आता, इसलिए चुप हो जाना चाहिए। अपने कहने का परिणाम न हो और उल्टा अपना मन बिगड़े, आत्मा बिगड़े ऐसा कौन करेगा?
प्रश्नकर्ता : माता-पिता अपने बच्चों के प्रति जो लगाव रखते हैं. उसमें कई बार लगता है कि कुछ ज्यादा ही होता है।
दादाश्री : वह सब इमोशनल (भावुक) है। कम दिखानेवाला भी इमोशनल है। नोर्मल (सामान्य) होना चाहिए। नोर्मल यानी सिर्फ दिखावा, 'ड्रामेटिक' (नाटकिय)। 'ड्रामा' (नाटक) में, किसी औरत के साथ ड्रामा करना पड़े, तो वह वास्तविक, एक्जेक्ट हो ऐसा लोगों को लगता हैं, कि 'रिअल' (सच) है। लेकिन कलाकार बाहर निकल कर कहें कि 'चल मेरे साथ तो?' वह साथ में नहीं जाती, कहेगी कि यह तो ड्रामे तक था। समझ में आया न?
इस संसार को सुधारने का रास्ता ही प्रेम है। संसार जिसे प्रेम कहता है वह प्रेम नहीं, वह तो आसक्ति है। इस बच्ची से प्रेम करते हो, लेकिन