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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
और जब उसकी लड़की दूसरे के साथ भाग गई, तब उस आदमी ने मुझे याद किया और मेरे पास आकर मुझसे कहने लगा, 'आपने कही थी वह बात सच्ची थी। अगर आपने मुझे ऐसी बात नहीं बताई होती तो मुझे जहर पीना पड़ता।' ऐसा है यह जगत्, पोलमपोल ! जो होता है उसे स्वीकार करना चाहिए, उसके लिए क्या जहर पियें? नहीं, तब तो तू पागल कहलाएगा। यह तो कपड़े ढाँककर आबरु रखते हैं और कहते हैं कि हम खानदानी हैं।
एक हमारा खास संबंधी था, उसकी चार लड़कियाँ थीं। वह बहुत जागृत था, मुझसे कहता है, 'ये लड़कियाँ बड़ी हुई, कॉलिज गई, लेकिन मुझे इन पर विश्वास नहीं होता।' उस पर मैंने कहा, 'कॉलिज साथ में जाना और वे कॉलिज से निकलें तब पीछे-पीछे आना।' इस प्रकार एक बार जाएगा पर दूसरी बार क्या करेगा? बीवी को भेजेगा? अरे, विश्वास कहाँ रखना और कहाँ नहीं रखना, इतना भी नहीं समझता? हमें लड़की से इतना कह देना चाहिए, 'देखो बेटी, हम अच्छे घर के लोग, हम खानदानी, कुलवान हैं।' इस प्रकार उसे सावधान कर देना। बाद में जो हुआ सो 'करेक्ट', उस पर शंका नहीं करने की। कितने शंका करते होंगे? जो इस मामले में जागृत हैं, वे शंका करते रहते हैं। ऐसा संशय रखने से कब अन्त आयेगा?
इसलिए किसी भी प्रकार की शंका हो तो उत्पन्न होने से पहले ही उखाड़ कर फेंक देना। यह तो लड़कियाँ बाहर घूमने-फिरने जाती हैं, खेलने जाती हैं, उसकी शंका करता है और शंका उत्पन्न हुई तो हमारा सुख-चैन टिकता है? नहीं।
अत: कभी लड़की रात देर से आये तो भी शंका मत करना। शंका निकाल दो तो कितना लाभ हो? बिना वजह डराकर रखने का क्या अर्थ है? एक जन्म में कुछ परिवर्तन होनेवाला नहीं। उन लड़कियों को बिना वजह दुःख मत पहुँचाना, बच्चों को दुःख नहीं देना। बस इतना ज़रूर कहना कि, 'बेटी, तू बाहर जाती है पर देर मत करना, हम खानदानी लोगों में से हैं, हमारे लिए यह शोभनीय नहीं, इसलिए ज्यादा देर मत करना।' इस तरह सब बात करना, समझाना। लेकिन शंका करना ठीक नहीं होगा कि 'किस के साथ घूमती होगी, क्या करती होगी?' और कभी रात बारह
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार बजे आये, तब भी दूसरे दिन कहना कि, 'बेटी, ऐसा नहीं होना चाहिए।' उसे अगर घर से बाहर कर दें तो वह किस के वहाँ जाएगी। उसका ठिकाना नहीं। फायदा किस में है? कम से कम नुकसान हो उसमें फायदा है न? कम से कम नुकसान हो वह फायदेमंद। इसलिए मैंने सभी से कहा है कि 'रात को देर से आएँ तो भी लड़कियों को घर में आने देना। उन्हें बाहर मत निकाल देना।' वर्ना ये तो बाहर से ही निकाल दें, ऐसे उग्र मिज़ाज के लोग हैं! काल कैसा विचित्र है! कितना दुःखदाई काल है!! और ऊपर से यह कलियुग है, इसलिए घर में बिठाकर उन्हें समझाना।
__ प्रश्नकर्ता : अब सामनेवाला कोई हमारे ऊपर संशय रखे तो उसका निराकरण खुद कैसे करें?
दादाश्री : वह संशय रखता है, ऐसा मत सोचना, ऐसा हमें जो ज्ञान है, वह ज्ञान भुला देना।
प्रश्नकर्ता : उसे हम पर संशय हुआ, तो हमें पूछना चाहिए कि क्यों संशय हुआ?
दादाश्री : पूछने में मज़ा नहीं है, ऐसा पूछना ही मत। हमें तुरन्त समझ लेना चाहिए कि अपना कुछ दोष है, वर्ना उसे शंका क्यों हुई?
'भुगतता है उसी की भूल' यह वाक्य समझ लिया कि निराकरण आ गया। शंका करनेवाला भुगत रहा है या फिर शंका जिस पर हो रही है, वह भुगत रहा है? यह देख लेना।
११. वसीहत में बच्चों को कितना? प्रश्नकर्ता : पुण्योदय से जरूरत से ज्यादा लक्ष्मी प्राप्त हो तब क्या करना चाहिए?
दादाश्री : तब अच्छे कार्य में खर्च कर देना। बच्चों के लिए बहुत रखना मत। उन्हें पढ़ा-लिखाकर काम-धंधे पर लगा देना। काम पर लग गए, बाद में ज्यादा लक्ष्मी रखना मत। इतना ख्याल रखना कि जितना अपने साथ आया उतना ही हमारा।