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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
७१ है। 'हम' (दादाजी को) अकेले को ही स्टेशन की गरज नहीं। स्टेशन को भी हमारी गरज है कि नहीं?
प्रश्नकर्ता: आपके संघ में सम्मिलित होनेवाले यवक-यवतियाँ शादी की ना कहें, तब आप उन्हें अकेले में क्या उपदेश देते हैं?
दादाश्री : मैं अकेले में उन्हें शादी करने को कह देता हूँ कि भाई, आप शादी करोगे तो थोड़ी-बहुत लड़कियाँ ठिकाने लग जाएगी। मुझे तो आप विवाहित होकर आओ तो भी कोई परेशानी नहीं है। यह हमारा मोक्ष मार्ग शादी-शुदा लोगों के लिए है। मैं तो उन्हें कहता हूँ कि शादी करो तो लड़कियाँ कम हों और यहाँ मोक्ष शादी करने से अटके ऐसा नहीं है।
लेकिन उन्होंने क्या पता लगाया कि शादी करने से झंझट बहत होती है। वे कहते हैं, 'हमने अपने माता-पिता का सुख (!) देखा है। इसलिए वह सुख (!) हमें अच्छा नहीं लगता।' यानी वे ही माता-पिता के सुख का प्रमाण देते हैं। आजकल माता-पिता के लड़ाई-झगड़े बच्चे घर में देखते ही है और उनसे ऊब गए होते हैं।
लड़के पर दबाव मत डालना वर्ना तुम्हारे सिर पर आयेगा कि मेरे पिता ने बिगाड़ा। उन्हें चलाना नहीं आता उससे बिगड़ता है और नाम हमारा आता है।
उसे बुलाकर कहना, 'हमें लड़की पसंद आई है, अब तुझे पसंद हो तो बोल और पसंद नहीं हो, तो हम रहने दें।' तब यदि वह कहे, 'मुझे पसंद नहीं,' तो उसे रहने दो। लड़के के पास स्वीकृति अवश्य करवाना, वर्ना लड़का भी विरुद्ध हो जाएगा।
प्रश्नकर्ता : यह लव मैरिज (प्रेम विवाह) पाप गिना जाता है?
दादाश्री : नहीं, टेम्पररी (अस्थायी) लव मैरिज हो तो पाप मानी जाएगी। परमानेन्ट (स्थायी) लव मैरिज हो तो नहीं। अर्थात् लाइफ लोंग (जीवनभर) लव मैरिज हो तो हरकत नहीं। टेम्पररी लव मैरिज अर्थात् एक-दो साल के लिए। ब्याहना हो तो एक को ही ब्याहना चाहिए। पत्नी
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार के अलावा और किसी से फ्रेन्डशिप बहुत नहीं करनी चाहिए वर्ना नर्क में जाना पड़ेगा।
___ पहले जब पिताजी ने कहा कि, 'यह लफड़ा क्यों करने लगा है?' तब बेटा उल्टा-सीधा बोलने लगा। इसलिए उसके पिता ने समझा कि 'उसे अपने आप अनुभव होने दो! हमारा अनुभव लेने को तैयार नहीं है। तब उसे अपना अनुभव होने दो।' वह उसे दूसरों के साथ देखेगा न! तब अनुभव होगा! तब पछतायेगा कि पिताजी कहते थे, वह बात सही है। यह तो लफड़ा ही है।
प्रश्नकर्ता : मोह और प्रेम की भेदरेखा क्या है?
दादाश्री : यह पतंगा है न। पतंगा दीपक के पीछे पड़कर 'या होम' हो जाता है न? वह अपनी जिन्दगी खतम कर देता है। यह 'मोह' कहलाता है। जब कि प्रेम हमेशा टिकता है, यद्यपि उसमें भी थोड़ी आसक्ति के दर्द होते हैं। जो मोह होता है, वह टिकाऊ नहीं होता।
यहाँ बारह महीने तक इतना फोड़ा हुआ हो न, तो मुँह भी नहीं देखता, मोह छूट जाता है। यदि सच्चा प्रेम हो तो एक फोड़ा तो क्या, दो फोड़े हों तो भी प्रेम नहीं जाता है। इसलिए ऐसा प्रेम ढूंढ निकालना। वर्ना शादी ही मत करना। नहीं तो फँस जाओगे। वह मुँह चढ़ाएगी तब कहोगे, 'मुझे इसका मुँह देखना अच्छा नहीं लगता।' जब देखा तब अच्छा लगा था, इसलिए तो तुझे पसंद आया था और अब यह पसंद नहीं? यह तो मीठा बोलते हो तब तक पसंद आता है और कड़वा बोले तो कहे, 'मुझे तेरे साथ अच्छा नहीं लगता।'
प्रश्नकर्ता : 'डेटिंग' शुरू हो गया हो, अब उसे कैसे बंद करें?
दादाश्री : बंद कर देना। इसी वक्त तय करो कि यह बंद कर देना है। हम कहें कि यहाँ तू छला जा रहा हैं, तो फिर छला जाना बंद कर दे। नये सिरे से ठगे जाना बंद। जब जागे तब सवेरा। जब समझ में आया कि यह गलत हो रहा है तो बंद कर देना चाहिए।