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माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
माता-पिता और बच्चों का व्यवहार
७७ हो तो ही आकर्षण होता है। कुदरत के हिसाब के बगैर कोई विवाह नहीं हो सकता। अत: आकर्षण होना चाहिए।
यह मजाक करने का युग है। इसलिए स्त्रियों का मज़ाक हो रहा है। लड़की देखने जाता है, तब लड़का कहता है... ऐसे घूमो, वैसे घूमो। इतना मज़ाक!
आजकल तो लड़के लड़कियों को पसंद करने से पहले बहुत मीनमेख निकालते हैं। बहुत लम्बी है, बहुत छोटी है, बहुत मोटी है, बहुत पतली है, जरा काली है' एक लड़का ऐसा बोल रहा था, तो मैंने उसे धमकाया। मैंने कहा, 'तेरी माँ भी बहू हुई थी। तू किस प्रकार का मनुष्य है?' स्त्रियों का ऐसा घोर अपमान !
अगर लोग मुझसे कहें कि जाइए, आपको इजाज़त है, आपको इस लडके को जो कहना हो कहिए। वह लडका भी कहे कि मुझे जो कहना चाहे कहिए, तब मैं कहूँ कि मुए, ये लड़की भैंस हैं क्या, जो इस तरह देखता है? भैंस को चारों ओर से देखना पड़ता है, इस लड़की को भी?
अब इसका बदला कब लेती है स्त्रियाँ यह जानते हो? यह मज़ाक किया उसका? इसका परिणाम लड़कों को क्या मिलेगा बाद में?
यह तो स्त्रियों की संख्या ज्यादा है, इसलिए बेचारियों के दाम घट गए हैं। कुदरत ही ऐसा करवाती है। अब इसका रिएक्शन कब आयेगा? बदला कब मिलता है? जब स्त्रियों की संख्या कम हो जाती है और पुरुषों की बढ़ जाती है, तब स्त्रियाँ क्या करती हैं? स्वयंवर! अर्थात् वह ब्याहनेवाली एक और ये एक सौ बीस पुरुष। स्वयंवर में सभी साफ़ावाफा पहनकर टाईट होकर आये हों और मूंछो पर ऐसे ताव दे रहे हों! उसकी राह देखते हों कि कब मुझे वरमाला पहनाये! वह देखती देखती आये, यह समझे कि मुझे पहनायेगी, ऐसे गरदन भी आगे करे पर वह घास ही नहीं डालती न ! फिर जब उसका दिल अंदर से किसी के प्रति एकाकार हो, आकर्षण हो, उसे वरमाला पहनाये। फिर चाहे वह मूछों पर ताव देता हो या नहीं देता हो! वहाँ फिर मज़ाक होता है। बाकी सारे मूरख बनकर
चले जाते हैं फिर, ऐसा ऐसा करके। तब ऐसा मजाक हुआ, इस तरह बदला मिलता है!
आजकल तो बिलकुल सौदेबाजी हो गई है, सौदेबाजी ! प्रेम कहाँ रहा, सौदेबाजी ही हो गई! एक ओर रुपये रखो और एक ओर हमारा लड़का, तभी शादी होगी ऐसा कहते है। एक तराजू में रुपये रखने पड़ते थे, तराजू के तोल पर नापते थे।
१८. पति का चयन परवशता, निरी परवशता! जहाँ देखो वहाँ परवश! पिता सदा के लिए अपने घर में बेटी को रखते नहीं हैं। कहते हैं, 'वह उसके ससुराल में ही शोभा देती है' और ससुराल में तो सब केवल डाँटने के लिए बैठे होते हैं। तू भी सास से कहे कि 'माँजी, तुम्हारा मैं क्या करूँ? मुझे तो केवल पति चाहिए था?' तब कहे, 'नहीं, पति अकेला नहीं आता, वह तो साथ में लश्कर आयेगा ही। लाव-लश्कर समेत।'
शादी करने में हर्ज नहीं है। शादी करना मगर सोच-समझकर शादी करो कि 'ऐसा ही निकलनेवाला है।' ऐसा समझकर बाद में शादी करो।
___ कोई ऐसे भाव करके आई हो कि 'मुझे दीक्षा लेनी है अथवा मुझे ब्रह्मचर्य पालना है' तब बात अलग है। बाकी शादी से तो छुटकारा ही नहीं। परन्तु पहले से तय करके शादी करें न कि, आगे ऐसा होनेवाला है तो झंझट नहीं होगी, अचरज नहीं होगा। तय करके पैठे और सख ही मानकर पैठे, तब फिर केवल परेशानी ही लगेगी! शादी तो दुःख का समंदर है। सास के घर में दाखिल होना कोई आसान बात है? अब पति कहीं संयोग से ही अकेला होता है, यदि उसके माता-पिता का निधन हुआ हो।
जो सिविलाइज्ड (संस्कारी) हैं, वे लड़ते नहीं। रात को दोनों सो जाते हैं, झगड़ा नहीं करते। जो अनसिविलाइज्ड (असंस्कारी) हैं न, वे मनुष्य झगड़ा करते हैं, क्लेश करते हैं।