Book Title: Dimond Diary
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Knowledge is Love, Light & Vision সৈ৪. সন্তা4.. Jain Estucation national For Private Persona l Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Diam Diary Blessings Acharya Hemchandra Suriji Editor Acharya Kalyanbodhi Suriji Publisher K. P. Sanghvi Group Jain Educati o nal 3 8 Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्राप्तिस्थान के.पी. संघवी एन्ड सन्स 1301, प्रसाद चेम्बर्स, ऑपेरा हाउस, मुंबई-400 004. फोन : 022-23630315 श्री चंद्रकुमारभाई जरीवाला दु.नं.6, बद्रिकेश्वर सोसायटी, नेताजी सुभाष मार्ग, मरीन ड्राईव इ रोड, मुंबई-400 002. फोन : 022-22818390/22624477 श्री अक्षयभाई शाह 506, पद्म एपार्ट., जैन मंदिर के सामने, सर्वोदयनगर, मुलुंड (प.), मुंबई-400 080. फोन : 25674780 श्री चंद्रकांतभाई संघवी 6/बी, अशोका कोम्प्लेक्स, जनता अस्पताल के पास, पाटण-384265 (उ.गु.). मो. : 9909468572 श्री बाबुभाई बेडावाला सिद्धाचल बंग्लोज, सेन्ट एन. हाईस्कूल के पास, हीरा जैन सोसायटी, साबरमती, अहमदाबाद-5. मो. : 9426585904 मल्टी ग्राफीक्स 18, खोताची वाडी, वर्धमान बिल्डींग, 3रा माला, प्रार्थना समाज, वी. पी. रोड, मुंबई-400 004. फोन : 23873222/23884222 E-mail : support@multygraphics.com | www.multygraphics.com सेवंतीलाल वी. जैन (अजयभाई) 52/डी, सर्वोदय नगर, 1ली पांजरापोल गली नाका, मुंबई. फोन : 22404717/22412445 महावीर उपकरण भंडार सुभाष चौक, गोपीपुरा, सुरत. फोन : (0261) 2590265 महावीर उपकरण भंडार शंखेश्वर. फोन : 273306. मो. : 9427039631 सृजन 155/वकील कॉलनी, भीलवाडा (राज.). मो. : 09829047251 प्रथम आवृत्ति : 2011 • मूल्य : 200/ Jain Education Interation For Private &Personal use Only jainelibrary.org Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ हीरा पायो गाठ गठियायो जहा हर पन्ने पर हीरे है, उस का नाम डायमंड डायरी पढो और पाओ। हर हीरा देगा एक नया प्रकाश... _एक नयी समृब्दि... और एक नया आनंद। AM the Best Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ • श्री पावापुरी तीर्थधाम • जिन मन्दिर-जल मन्दिर - जीव मन्दिर का पुण्य प्रयाग अर्थात् पावापुरी तीर्थ- जीवमैत्रीधाम K. P. SANGHVI GROUP K. P. Sanghvi & Sons Sumatinath Enterprises K. P. Sanghvi International Limited KP Jewels Private Limited Seratreak Investment Private Limited K. P. Sanghvi Capital Services Private Limited K. P. Sanghvi Infrastructure Private Limited KP Fabrics Fine Fabrics King Empex Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DA श्री पावापुरी तीर्थ जीव मैत्रीधाम एक मंदिर में अनेक मंदिरों का मेल अर्थात् पावापुरी तीर्थधाम... एक स्वर्ग में अनेक स्वर्गों का मेल अर्थात् पावापुरी तीर्थधाम... एक संकुल में अनेक साधना संकुलों का मेल अर्थात् पावापुरी तीर्थधाम.... देवलोक के टुकड़े जैसा भव्यातिभव्य जिन मंदिर (प्रभु भक्तों का स्वर्ग) कला और कारीगिरी का कमाल कसब, शुद्धि और स्वच्छता का संगीन समागम, दिव्यता और भव्यता की एक मिसाल, शंखेश्वर पार्श्वनाथ प्रभु की कामणगारी प्रतिमा और अजब सी प्रभावकता ! जिसके पवित्र और प्रभावक अणु-परमाणुओं के स्पर्श मात्र से रोम-रोम रोमांचित होता है ! आँखें ठहरसी जाती है ! दिल डोल उठता है, हृदय में हलचल मच जाती है और अशांत मन शांत-प्रशांत बनता है। HESH Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ चतुर्मुख जल मंदिर (उपासकों का स्वर्ग) यहाँ कदम रखते ही प्रभुवीर की अंतिम अवस्था की अनुभूति के एक अनुपम एहसास का अनुभव होता है। चार मुख से देशना देनेवाले देवाधिदेव की स्मृति जागृत होती है। लेता गौतम नाम सीझे हर काम, दुःखे लहे विसराम पाये अविचल धाम ! गुरु गौतम-गणधर मंदिर (लब्धि साधकों का स्वर्ग) दुःख-दारिद्र दूर करनेवाले अनंत लब्धि निधान का यह अलौकिक अवतरण है। गुरु गौतम मंदिर के साथ नव सुंदर गुरु मंदिर। कला-कारिगीरी के साथ विनय-भक्ति-समर्पणभाव का सुलभ समागम। atoh Internat onal WWW.jaiheuorarones Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ नीव मैत्री मंदिर (दयालुओं का स्वर्ग)... पांच हजार से अधिक अबोल पशु निर्भयता से किल्लोल कर रहे । उनकी नियत-नित्य चर्या देखकर लगता है कि, "यह प्राणी तो अपने से अधिक धार्मिक हैं!" उनकी मस्ती खकर लगता है कि, "यह अपने से अधिक सुखी हैं ! घूमते-फिरते-खाते, मानव को दुर्लभ ऐसी VIP ट्रीटमेंट की मौज माननेवाले जानवरों को देखकर विचार आता है कि, पशु होकर भी कितने पुण्यशाली! कितने निश्चिंत ! केतने तन्दुरुस्त ! दया और करुणा का भाव प्रगट करनेवाला यह पशुदर्शन जीवनदर्शन की एक नई राह दिखाता है। पीविहार आतिथ्य मंदिर (अतिथिओं का स्वर्ग) आधुनिक और अनुकूल अतिथिभवन, यात्रिक भवन, शांति विश्राम गृह, कनीमा विश्राम गृह, श्रीमती आशा रमेश गोयंका विशिष्ट अतिथि गृह, शुद्ध और संतुष्टिजनक भोजन, स्वच्छता से शोभायमान संकुल, भावोल्लास उछालता कर्णप्रिय भक्ति गीत गुंजन, बाल वाटिकाएँ, दर्शनीय प्रदर्शन वगैरे सर्जन, वर्षों से लाखों अतिथिओं का आकर्षण बि शासन मंदिर (शासनप्रेमीयों का स्वर्ग) जिनमंदिरों, जीर्णोद्धारों, पूजनीय गुरुभगवंतों की अनेक प्रकार की वैयावच्च भक्ति-मूर्ति भंडार, चौदह स्वप्न भंडार, ज्ञान भंडार, उपकरण भंडार इत्यादि इस तीर्थधाम की शासन-शोभा है। साधना मंदिर (आत्मसाधकों का स्वर्ग) आत्मशुद्धि की अनुभूति करानेवाले अध्यात्मसंकुल, शांत-शुद्ध आलंबन से मन की स्थिरता का सर्जन कराते ध्यानसंकुल, चातुर्मास, उपधान, शिबिर, ओली, अट्ठम इत्यादि धर्मानुष्ठानों के द्वारा साधक की | शुद्धि और पुण्य वृद्धि करते साधनासंकुल इस तीर्थभूमि की पावनता में प्राण डालते हैं। मानव मंदिर (करुणाप्रेमीयों का स्वर्ग) देढ़ सो गाँवों में हर दिन कुत्तों को रोटी, कबूतरों को चना, गाय को चारा, जैन बच्चों को मिड-डे मील, मोबाईल मेडीकल सेन्टर, अनेक पांजरापोल में योगदान, ३६ कोम को उचित सहाय्य, सिरोही में हॉस्पिटल आदि अनेक कार्यो द्वारा पावापुरी ने भारतभर में "मानवता की महेक" फैलाई है। CLICROSOPERCECCORD Jain Educa ion International Paneline Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परस्पृहा महादुःखम् निःस्पृहत्वं महासुखम् । किसी की आशा करना महादुःख का कारण है। निःस्पृहत्व ही महासुख का कारण है। - महो. यशोविजयजी Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं अनन्त शक्तिमय आत्मा हूं । मैं अनन्त ज्ञानमय आत्मा हूं । मैं अनन्त सुखमय आत्मा हूं । मैं कौन ??.. ।। यो जिनः सोऽहमेव च ।। SIMPLE PRAYER Sa मैं अभी अनन्त दोषों से भरा हुआ हूं । आठों कर्मों से बंधा हुआ हूं । अनन्त पापों से भरा हुआ हूं । मोह-माया के बन्धन में पड़ा हुआ हूं । मैं अभी चारों गतियों में घूम रहा हूं। मैं अभी पराधीन हूं । Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शील से मोक्ष की प्राप्ति होती है। शील से सुख शान्ति मिलती है। शील मनुष्य का परम भूषण है। शील से सब इच्छाएं पूर्ण होती हैं। शाल अर्थात् पवित्र आचार-विचार.... शील रहित मित्रों का संसर्ग न करों। शील की सुगंध से अपने जीवन को महकाओं। || शील परं भूषणम् ।। WAJ For Pri te & Personal Use Only Jain Educat an Intemational Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शाश्वतसुख के स्वामी है.परमात्मा । है परमात्मा। हे देवाधिदेव र शिलोकन हे विश्वकल्याणकता रेटिव रिजिनाबसाय ! श्वकल्याणकर्ता विश्वोद्धारक विश्वेश्वर m ment" देवाधिदेवाय बिलोकनाय ! परमात्मानमरदेवाधिदेव ! हे त्रिलोकनाथ ! त्रिलोकनाथद्धारक विश्वेश्वर देवाधिदेव ! हे त्रिलोकनाथ । विश्वकल्याणकर्ता विश्वोद्धारक र विश्वकल्याणकर्ता गिश्योद्धारक चिचेश्वर वहत्यिकानाय! परमात्मा देवाधिदेव ! हे त्रिलोकनाथ ! नकर्ता विश्वोद्धारक विश्वेश्वर हे देवाधिदेव ! हे त्रिलो देवापिटर विनोकमा हे प्रभु ! आपने तो अपने कर्म रुपी शत्रुओ को परास्त करके अपनी आत्मा को अनादि के चक्रव्यूह से मुक्त कर दिया। संसार रुपी किचड़ में कमल की तरह निर्लेप बन कर आपने अपनी साधना द्वारा आत्मसिद्धि को प्राप्त किया। अतः समस्त प्रकार की आधि; व्याधि; उपाधि; ताप; संताप; परिताप, रोक; शोक; दुःख; क्लेश; भय से पीड़ित हम अज्ञानी जीवों को भी प्रभु सन्मार्ग प्रदान करो... आपकी पावन प्रतिष्ठा मात्र जिनालय मे नही हमारे मनमंदिर मे कर सके ऐसी योग्यता - सामर्थ्यता - संबलता प्रदान करें। आपके पदार्पण से हमारे मन मंदिर में से कषायों रुपी चोर परास्त हो जायेगे आपके आगमन से हम भी सदज्ञान - सदगुण - सदभाव को धारकर शाश्वत पथ के पथिक बनकर आपके श्री चरणो में पहुंचे यही मंगलकामना 3 Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ य । न मनुष्य का जीवन बाहर अंधेरे से भरा हुआ है, लेकिन भीतर प्रकाश की कोई सीमा नहीं है। मनुष्य के जीवन की बाहर की परिधि पर मृत्यु है, लेकिन भीतर अमृत का सागर है। मनुष्य के जीवन के बाहर बंधन हैं, लेकिन भीतर मुक्ति है। और जो एक बार भीतर के आनंद को, आलोक को, अमृत को, मुक्ति को जान लेता है, उसके बाहर भी फिर बंधन, अंधकार नहीं रह जाते हैं। हम भीतर से अपरिचित हैं तभी तक जीवन एक अज्ञान है। परमात्म भक्ति-ध्यान भीतर से परिचित होने की प्रक्रिया है। परमात्मा भक्तिधान Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम चाहे उसे पकड़ो या न पकड़ी, उसका हाथ तुम्हारे हाथ में है ही... सच्चा प्रेम तो स्वतंत्रता लाता है । सच्चे प्रेम में तो ईर्ष्या की कोई झलक ही नहीं होती । सच्चे प्रेम में तो ईर्ष्या की छाया भी नहीं होती। सच्चे प्रेम में तो श्रद्धा अनंत होती है । मगर सच्चा प्रेम सच्चे प्रीतम से ही हो सकता है। इन छायाओं से नहीं बन सकेगा। यहां कैसे भरोसा करो किसी पर ! जिस पति पर तुमने भरोसा किया, जिस पत्नी पर तुमने भरोसा किया, उसकी सांस बंद हो जाए कल, जीवन खो जाए क्या करोगे? और मन ऐसा चंचल है-आज तुमसे लगाव है, कल किसी ओर से हो जाए ! मन इतना चंचल है ! मन इतना क्षुद्र है ! मन व्यर्थ में इतना उत्सुक है : कल कोई और धनी मिल जाए; कोई और सुंदर देह का व्यक्ति मिल जाए; कल कोई और रूपवान मिल जाए तो बात खत्म हो गई। परमात्मा से और रूपवान तो पाया नहीं जा सकता; और परमात्मा से और धनी भी नहीं पाया जा सकता। परमात्मा से और ऊपर तो कोई है नहीं। इसलिए 1 परमात्मा के साथ जो प्रेम बन जाता है, उसमें कोई प्रतिस्पर्धा, कोई ईर्ष्या नहीं जन्मती । और फिर परमात्मा के साथ यह भी भय नहीं है कि वह तुम्हें छोड़ दे। तुम्हें पकड़े ही हुए है। तुम चाहे उसे पकड़ो या न पकड़ो-उसका हाथ तुम्हारे हाथ में है ही। तुम जब सोचते हो तुम ने परमात्मा का ध्यान भी नहीं किया, विचार भी नहीं किया तब भी वही तुम्हें सम्हाले हुए है। अन्यथा कौन तुम्हारे भीतर श्वास लेगा? कौन तुम्हारे खून को दौड़ाएगा रगों में? कौन तुम्हारे हृदय में धड़केगा ? तुम चाहे उसे इनकार करो; परमात्मा ने तुम्हें इनकार कभी नहीं किया है। इसलिए जिस दिन तुम भी स्वीकार कर लोगे, वह तो स्वीकार किए ही हैजिस दिन ये दोनों स्वीकृतियां मिल जाएंगी, उसी दिन महामिलन हो जाता 15 Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ एक 12 कदम परमात्मा की ओर 6 इस दुनिया के दुखों में रखा क्या है ? परमात्मा के समक्ष कुछ भी नहीं। और माना कि जंजीरें बहुत बड़ी हैं, लेकिन जो उस प्यारे को पुकारेगा, उसके एक नाम की चोट मजबूत से मजबूत जंजीरों को गिरा देती है। उसका सहारा मिल जाए, फिर बड़े-बड़े पहाड़ भी आदमी लांघ जाता है। सुनते हैं न कि लंगड़े भी लांघ जाते हैं; अंधे भी देखने लगते हैं, बहरे भी सुनने लगते हैं ! तुम्हारा पाप कितना ही बड़ा हो, मगर उसकी करुणा उससे बड़ी है। तुम घबराओ मत। तुम कितने ही भटके हो, उसका हाथ बहुत लंबा है। तुम कितने ही दूर निकल गए हो, उसका हाथ तुम तक पहुंच सकता है। पुकारो भर ! तुम इतने दूर नहीं जा सकते कि वह तुम्हें उठा न ले । इसलिए तो भक्तों ने कहा : भगवान के हजार हाथ हैं। एक हाथ से बचोगे, दूसरे से बचोगे, हजार से तो न बच सकोगे। वह सब तरफ से उठा लेगा, सब दिशाओं से उठा लेगा। लेकिन तब तक न उठाएगा, जब तक तुम न पुकारो । एक पुकार, एक कदम परमात्मा की ओर। जो कदम अपने आप में अपनी मंजिल लिए हुए है। www.janelibrary.org Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन - को थोड़े रंग दो.... जीवन को वैसा ही मत छोड़ो जैसा तुमने पाया था । जीवन को कुछ सुंदर करो । उठाओ तूलिका, जीवन को थोड़े रंग दो । उठाओ वीणा, जीवन को थोड़े स्वर दो। पैरों में बांधों घूंघर, जीवन को थोड़ा नृत्य दो । प्रेम दो, प्रीति दो ! तोड़ो उदासी। जीवन को थोड़ा उत्सव से भरो। तुम जितने सृजनात्मक हो जाओगे उतना ही तुम पाओगे, तुम परमात्मा के करीब आने लगे, क्योंकि परमात्मा अर्थात् सृजनात्मकता । उसके करीब आने का एक ही उपाय है : सृजन । कवि, चित्रकार, मूर्तिकार कहीं ज्यादा करीब होता है, परमात्मा के । चित्रकार जब चित्र बनाने में बिलकुल लवलीन हो जाता है, तल्लीन हो जाता है, भूल ही जाता है अपने को तब यह प्रार्थना का क्षण है। तुम सृजन की किसी प्रक्रिया में अपने को पूरा गला दो, पिघला दो, मिटा दो। जैसे कि, कोई कवि, चित्रकार, या मूर्तिकार... तोड़ो उदासी । जीवन को थोड़ा, उत्सव से Sain Education International भरो .... For Private & Petsty 7 Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन को जानने की कला हैं धर्म धर्म विज्ञान है जीवन के मूल स्रोत को जानने का। धर्म मेथडोलॉजी है, विधि है, विज्ञान है, कला है, उसे जानने का जो सच में जीवन है। वह जीवन जिसकी कोई मृत्यु नहीं होती। वह जीवन जहां कोई दुःख नहीं है। वह जीवन जहां न कोई जन्म है, न कोई अंत । वह जीवन जो सदा है और सदा था और सदा रहेगा। उस जीवन की खोज धर्म है । उसी जीवन का नाम परमात्मा है। परमात्मा समग्र जीवन का इकट्ठा नाम है। ऐसे जीवन को जानने की कला है धर्म । Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संसार कब किसको है मिला आदमी सुख की तलाश करता है, मछली को सागर कैसे दिखाई लेकिन सुख शाश्वत में ही हो सकता है। पड़े? उसी में पैदा होती है, उसी में इस सूत्र पर ध्यान करना। सुख शाश्वत लीन हो जाती है। आदमी को परमात्मा का लक्षण है। क्षणभंगुर में सुख नहीं हो कैसे दिखाई पड़े? उसी में हम पैदा होते सकता। यह जो पानी के बबूले जैसा हैं, उसी में जीते, उसी में श्वास लेते, जीवन है, इसमें तुम कितने ही भ्रम पैदा उसी में एक दिन लीन हो जाते है ! हम करो और कितने ही सपने देखो, सुख उसकी ही तरंग हैं। हम उसके ही फूल नहीं हो सकता। से उड़ी सुवास हैं। हम उसके ही दीये। ___संसार कब किसको मिला है? की किरण हैं। भेद चाहिए दृश्य और संसार मिलता ही नहीं और मजा यह है। ' द्रष्टा में, तभी देखना हो पाता है। कोई कि संसार बड़ा पास मालूम होता है। और । चीज तुम्हारी आंख के बहुत करीब ले परमात्मा पास मालूम नहीं होता और मिल आई जाए, तो फिर तुम न देख सकोगे।। सकता है, क्योंकि पास है-इतना पास है. देखना आंख की क्षमता है - इतनी। पास से भी पास है ! तुम्हारे अंतरतम में बैठा करीब है कि उसको अलग कैसे रखोगे ? है; शायद इसीलिए दिखाई भी नहीं पड़ता। ऐसा ही परमात्मा है... Private & Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है । अगर तुम्हारा पात्र भीतर से बिलकुल शुद्ध है, निर्मल है, निर्दोष है, तो जहर भी तुम्हारे पात्र में जाकर निर्मल और निर्दोष हो जाएगा | और अगर तुम्हारा पात्र गंदा है, कीड़े-मकोड़ों से भरा है और हजारों साल और हजारों जिंदगी की गंदगी इकट्ठी है-तो अमृत भी डालोगे तो जहर हो जाएगा | सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है। अंततः निर्णायक यह बात नहीं है कि जहर है या अमृत, अंततः निर्णायक बात यही है कि तुम्हारे भीतर स्थिति कैसी है। तुम्हारे भीतर जो है, वही अंततः निर्णायक होता है. तुम जैसा जगत को स्वीकार कर लोगे, वैसा ही हो जाता है। यह जगत तुम्हारी स्वीकृति से निर्मित है। यह जगत तुम्हारी दृष्टि का फैलाव है। तुम जैसे हो, करीब-करीब यह जगत तुम्हारे लिए वैसा ही हो जाता है | तुम अगर प्रेमपूर्ण हो तो प्रेम की प्रतिध्वनि उठती है। और तुमने अगर परमात्मा को सर्वांग मन से स्वीकार कर लिया है, सर्वांगीण रूप से-तो फिर इस जगत में कोई हानि तुम्हारे लिए नहीं है। परपात्रता 10 Jain Edlueatioh International Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उसके अतिरिक्त कोई है ही नहीं। फिर जहां तुम देखोगे-आंख खोलोगे तो वही; आंख बंद करोगे तो वही। फिर पक्षियों की चहचहाहट में और आकाश से गुजरते हुए बादलों की गड़गड़ाहट में और वृक्षों से सरकती हुई हवाओं की ध्वनि में और पानी के झर-झर में सब तरफ उसी की आवाज है। उसके अतिरिक्त कोई है ही नहीं। यही आश्चर्य है कि कैसे हम उसे देखने से वंचित हैं। जो सब तरफ मौजूद है, वृक्षों की हरियाली में और जां तो जां. आकाश की नीलिमा में और जिस्म भी रौशन है लोगों की आंखों में और तेरी लौ से मेरा लोगों के आंसुओं में और देखता हूं तो तेरा रूप नजर आता है मुस्कुराहटों में सब तरफ जो मौजूद है। और सुनता हूं तो आवाज तेरी सुनता हूं मेरे बोलने में और सोचता हूं तो फकत याद तेरी आती है तुम्हारे सुनने में जो मौजूद है। जिक्र करता हूं तो मैं जिक्र तेरा करता हूं खामुखी मेरी तेरा नगमाए-ख्वाबीदा है ____ इधर तुम्हें घेरे हुए है। मेरी आवाज? जो तू कहता है, मैं कहता हूं तुम जहां रहो, सदा तुम्हें घेरे हुए है। जां तो जां, जिस्म भी रौशन है तेरी लौ से मेरा और आंख बंद करो तो भीतर भी वही है। तेरे ही नूर से मै शमा सिफ्त जलता हूं भूख लगती है तो लगती है तेरे प्यार की भूख चरण अमृत से ही मै प्यास बुझा सकता हूं 11 Jain Education Intemational Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Divine आनंद का अर्थ होता है: सुख-दुःख, दोनों के पार जहां तक सुख है वहां तक दुःख की छाया बनी ही रहेगी। और जहां तक दुःख है वहां तक सुख की आशा भी बनी रहेगी। इन दोनों के पार हो जाने की जो अवस्था है उसको हम आनंद कहते हैं। आनंद का अर्थ सुख नहीं होता। खूब समझ लेना । भाषाकोश में कुछ भी लिखा हो, भाषाकोश से कुछ लेना-देना नहीं है। जीवन के कोश में आनंद का अर्थ सुख नहीं होता। आनंद का अर्थ होता है : सुख-दुःख, दोनों के पार | परमात्मा को पाने का अर्थ होता है : आनंद को पा लिया; परम शांति को पा लिया। अब न दुःख बचा, न सुख बचा ; न पाप बचा, न पुण्य बचा । गए सब लंड, गए सब द्वैत, गई दुई। अब एक बचा ।। 12 Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मन को बनाएं ऐसा मंदिर कि जहां ध्यान का दीया जलता रहे प्रत्येक व्यक्ति के भीतर तो परमात्मा छिपा है..... Goog एक नया सूरज, एक नई सुबह, एक नया मनुष्य, एक नई पृथ्वी-वह रोज निखरती आ रही है। अगर हम थोड़े सजग हो जाएं तो यह और जल्दी हो जाए, यह रात जल्दी कट जाए, यह प्रभात जल्दी हो, जाए। ध्यान के दीयों को जलाओ और प्रेम के गीतों को गाओ। प्रेम के गीत और ध्यान के दिये, जो सुबह आज तक आदमी के जीवन में नहीं हुई, उसे पैदा कर सकते हैं। और आदमी बहुत तड़प लिया है, नरक में बहुत जी लिया है। समय है कि अब हम स्वर्ग को पृथ्वी पर उतार लें। स्वर्ग उतर सकता है। मन को बनाएं ऐसा मंदिर कि जहां ध्यान का दीया जलता है, जहां जागरूकता का पहरेदार बैठा हो । ध्यान का दीया और जागरूकता का पहरा चित्त पर, तो यही सामान्य सा दिखाता जीवन अमृत जीवन में परिवर्तित हो जाता है। प्रत्येक व्यक्ति के भीतर तो परमात्मा छिपा है, लेकिन हम जागेंगे तो ही उसे पा सकेंगे। Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आख जहां भी तुम देखो ऐसी हो जाएं शटु कि वहीं परमात्मा परमात्मा दिखाई पड़े। इंद्रियां भी उसी के लिए द्वार बन सकती हैं। और हम इंद्रिय प्रार्थना में संलग्न हो सकती है। और उसी को हम कलाकार कहेंगे जो सारी इंद्रियों को परमात्मा में संलग्न कर दे; जो आत्मा से ही न पुकारे, देह से भी पुकारे । परमात्मा की रोशनी प्राणों में ही न जगमगाट, रोएं-रोएं में जगमगाए । आत्मा तो उसमें डूबे ही डूबे, यह देह भी उसी में डूब जाए। तुम्हारे प्राण तो उसमें नहाएं ही नहाएं, तुम्हारा तन भी उसमें नहा ले। तुम्हारी श्वास-श्वास उसमें लिप्त हो जाए। अभी रूप जहां दिखाई पड़ता है वहां वासना पैदा होती है-यह सच है। अब दो उपाय हैं; रूप देखो ही मत, ताकि वासना पैदा न हो; और दूसरा उपाय है कि रूप को इतनी गहराई से देखो कि हर रूप में उसी का रूप दिखाई पड़े, तो प्रार्थना पैदा हो । इंद्रियों को पूरी त्वरा देनी है, तीव्रता देनी है, सघनता देनी है। इंद्रियों को प्रांजल करना है, स्वच्छ करना है, शुब्द करना है। इंद्रियों को कुंवारा करना है। आंखें ऐसी हो जाएं शुब्द कि जहां भी तुम देखो वहीं परमात्मा दिखाई पड़े। 14 ___ Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तलाश अन्वेषयन्ति हृदयाम्बुजकोशदेशे मेरी उनकी प्रीत पुराणी, उन बिन पल न रहाऊं। और जैसे-जैसे यह प्रेम का संबंध गहरा होता है, यह संवाद सफल होता है; जैसे-जैसे भक्त का हृदय परमात्मा के करीब धड़कने लगता है; जैसे-जैसे भगवान की मूरत स्पष्ट होती है-वैसे-वैसे पता लगता है कि जन्मों-जन्मों में इसी को तो खोजा है। यह प्रीत पुरानी है। यह कोई नई खोज नहीं है। और जब हम किसी और को भी प्रेमी समझ लिए थे, तब भी हम इसी को खोज रहे थे, यह पता चलता है। जब तुम किसी पुरुष के प्रेम में पड़ गए थे; किसी स्त्री के प्रेम में पड़ गए थे; किसी बेटे के प्रेम में पड़ गए; किसी मां-पिता के प्रेम में पड़ गए; किसी दोस्त के प्रेम में पड़ गएजिस दिन तुम परमात्मा से संबंध जोड़ पाओगे, उस दिन चकित होकर देखोगे कि उन सब संबंधों में तुमने वस्तुतः परमात्मा को ही खोजा था। और इसलिए वे कोई भी संबंध तृप्त न कर पाए; क्योंकि तुम खोजते थे परमात्मा को और खोजते कहीं और थे-खोजते थे संसार में | मांग तुम्हारी । बड़ी थी। तलाशते थे बूंद में और खोजते थे सागर को। अतृप्त न होते तो क्या होता ? असफल न होते तो क्या होता ? खोजते थे हीरों को, तलाशते थे कंकड़-पत्थरों में । विषाद हाथ न लगता तो क्या होता ? असफलता स्वाभाविक थी; निश्चित थी। मेरी उनकी प्रीत पुराणी, उन बिन पल न रहाऊं। हम उसी की तलाश कर रहे हैं। कभी गलत दिशा में, तो भी तलाश उसी की है। कभी ठीक दिशा में, तो भी तलाश उसी की है। ucation / हम कुछ और खोजते ही नहीं, हम कुछ और खोज ही नहीं सकते। परमात्मा परम धन है। 15 Jain Education Interna tional Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन स्वस्थ होना चाहिए, संगीतपूर्ण होना चाहिए, सहज होना चाहिए, समर्पित होना चाहिए। साधना का अर्थ होना चाहिए : अहंकार का विसर्जन, न कि आत्म-दमन। साधना का अर्थ होना चाहिए : प्रभु के चरणों में समर्पण। जहां बिठाए, बैठे; जहां उठाए, उठे। अपना कर्ता-भाव खो जाए । बस यही परमपद है। 16A ay Eacato eme ne ForPE & P Usconly Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ सेयंबरो व आसंबरो वा बुद्धो अहव अन्नो वा। समभावभाविअप्पा लहेइ मुक्खं न संदेहो।। - संबोधसित्तरीः २ मगर... - आचार्य रत्नशेखरसूरिजी श्वेतांबर हो या दिगंबर हो, बुद्ध हो या अन्य कोई मतवादी हो, .. जो समभाव से भावित आत्मा होगी, वह मोक्ष प्राप्त करेगी. उसमें कोई शंका नहीं. 17 Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ परमात्मा तुम्हारे भीतर है। मैं तुम्हारे भ्रांति है। परमात्मा की किताब को तुमने गलत ढंग से पढ़ा है; मैं की तरह पढ़ लिया है। और तुम भीतर जाते भी नहीं। वहां असली किताब है। वहां वेदों का वेद, कुरानों की कुरान है। वहां श्रीमद्भगवद्गीता है। वहां भगवान है, वहां तुम जाते ही नहीं; तुम बाहर दौड़ रहे हो-धन कमाओ, पद कमाओ, यह कमाओ, वह कमाओ! और यह सारी कमाई किसलिए, तुम्हें पता है? मैं को सिद्ध करने के लिए। बड़ा राज्य होगा तो बड़ा मैं सिद्ध हो जाएगा। धन का ढेर होगा तो बड़ा मैं सिद्ध हो जाएगा। राष्ट्रपति हो जाऊंगा, प्रधानमंत्री हो जाऊंगा तो मैं सिद्ध हो जाएगा। यह मैं की दौड़ । मैं को सिद्ध करने में लगे हो और मैं कभी सिद्ध होता नहीं, क्योंकि मैं है नहीं। जो है नहीं, वह सिद्ध हो नहीं सकता। तुम दो और दो को पांच बनाने में लगे हो; यह होता नहीं; यह असंभव है। सिकंदर से पूछो। हाथ खाली के खाली रहे। मैं शून्य की तरह जा रहा हूं। क्या कह रहा है सिकंदर ? सिकंदर यह कह रहा है : अहंकार पाया नहीं; शून्य ही था और शून्य ही जा रहा हूं। काश, इस शून्य को स्वीकार कर लिया होता, राजी हो गया होता, अहंकार की दौड़ में समय खराब न किया होता..... तो परमात्मा उतर आता ! जो तू है तो मैं नहीं हूं पैदा, जो मै हूं तो तू नही है जाहिर यहां तो बस बात एक की है, यहां कोई दूसरा नहीं है खुदा के बंदे खुदा को पाते है अपनी हस्ती को खुद मिटा के खुदी की तकमील करके देखें जो कह रहे है खुद नहीं है... ।। 'अहं' भावोदयाभावो बोधस्य परमावधिः || मैं कभी सिद्ध होता नहीं, क्योंकि 'मैं' है नहीं 18 He मेजर Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || जिनः सर्वमिदं जगत् ।। मतरी भक्त की उदासी को उदासी मत समझना। भक्त के विराग को केवल विराग मत समझना। उसके विराग में परमात्मा का राग छिपा है। भक्त की उदासी में परमात्मा की तलाश छिपी है और भक्त के आंसुओं को तुम विफलता के आंसू मत समझना। भक्त के आंसुओं में हजार वसंत छिपे हैं। वे उसकी प्रार्थनाएं हैं, उसकी आशाएं हैं, उसके मनसूबे हैं । भक्त का पतझड़ भी अपने भीतर हजारों वसंत छिपाए हुए है। उस परमात्मा को खोजते, वियोग में एक नहीं, बहुत जन्म बीत गए हैं। मिलन होकर रहेगा। अनंत-अनंत काल भी बीत जाएं विरह में, तो भी मिलन हो कर रहेगा। ऐसी आस्था, ऐसी श्रद्धा हमारी भक्ति है। परमात्मा ही तुम्हारे इश्क की मंजिल है और वह आकाश से आगे है।। सब सीमाओं के पार-असीम से भी पार। सब शब्दों से पार-निःशब्द से भी पार । जहां पंखों की भी जरूरत नहीं रह जाती उड़ने के लिए। भक्त जानता है कि मैं तेरी वजह से हूं, तू ही है मेरे भीतर ! मेरे प्राण तू है। मेरी आत्मा तू है। मैं नहीं हूं-तू है। तैयारी करो-इस यात्रा के लिए। जो जन्मों में नहीं हुआ, वह क्षणों में भी हो सकता है। पुकार चाहिए। इस प्रेम की बेल को परमात्म भक्ति से सींचो ।। 19 Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ तुम्हारे हाथ सेडब जाऊतोभी अब तुम ले चलो उस पार ।। अपने से तो यह न हो सकेगा। यह भवसागर बड़ा है। दूसरा किनारा दिखाई भी नहीं पड़ता है। हां, तुम्हारा प्रेम का हाथ आ जाए तो मैं कहीं भी जाने को तैयार हूं। दूसरा किनारा न हो तो जाने को तैयार हूं। तुम्हारा हाथ काफी है। तुम बीच मझधार में डुबा । दो तो राजी हूं, क्योंकि तुम्हारे हाथ से डूब जाऊं तो भी उबर जाऊँ।। संसारतारकविभो । जीवनाधिनाथ ! 20 Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ही जीवन क्षणभंगुर है। || असंखयं जीवियं मा पमायए ।। इस जगत में सब क्षणभंगुर है; अगर प्यार खोजना हो तो शाश्वत में खोजो । यहां कुछ अपना नहीं है। यहां भरमो मत, अपने को भरमाओ मत, भरमाओ मत ! यहां सब छूट जानेवाला है। यहां मृत्यु ही मृत्यु फैली है। यह मरघट है। यहां बसने के इरादे मत करो। यहां कोई कभी बसा नहीं । जीवन क्षणभंगुर है। जिसका मन यहां से विरक्त हो गया, वही परमात्मा में अनुरक्त हो सकता है। जिन्हें तुमने अपना समझा है, साथ हो गया है दो क्षण का राह पर-सब अजनबी हैं। आज नहीं कल सब छूट जाएंगे। तुम अकेले आए हो और अकेले जाओगे। और तुम अकेले हो। इस जगत में सिर्फ एक ही संबंध बन सकता है-और वह संबंध परमात्मा से है; शेष सारे संबंध बनते हैं और मिट जाते हैं। सुख तो कुछ ज्यादा नहीं लाते, दुःख बहुत लाते हैं। सुख की तो केवल आशा रहती है; मिलता कभी नहीं है। अनुभव तो दुःख ही दुःख का होता है । जगत से टूटते हुए संबंधों को जगत के प्रति वैराग्य बना लो, जगत से प्रेम मुक्त हो जाओ और परमात्मा के चरणों में चढ़ा जाओ। www.jainelibrary.or21 Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मा को नींद आत्मा सभी न "आत्माओं क ओं को देखती है। ...वह तो बसा आती ही नहीं। बस, दुनिया कोद आत्मा सभी का कमी को देखती है। देखती ही रहती है। ।। पश्यन्नेव परद्रव्यनाटकं प्रतिपाटकम् ।। लाभ नहीं करती है। या-कपट, लोभन आत्मा कभी भी गुस्सा, । भागुस्सा, अभिमान माया-कप किसी को डराती है। आत्मा न तो किसे से डरती है,न ही 22 Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Education Intemattoman अरुपी बनी हुई आत्मा कोजन्म भी लेन का हम अपनी इन आंखों से एस शुद्ध आत्मा को, जा आत्मा को जन्म लेने का दु:ख नहीं। ट:ख नहीं ! आत्मा को मृत्यु पाने की पीडानी म भी लेने का नहीं औरमरने का भी नहीं जास्वयंशद्ध आल पही देख सकते है। Personale आत्मा हो वे हीद छ और सिद्ध आत्मा का तिमा को नहीं देख सकत पटी जहां पर जन्म-मृत्यु नहा हातह, उस मोक्ष कहा जाता है। जाता है !...... "नहाजनाले का और मरने का उसका न का उसका स्वभाव नहीं है। || सच्चिदानन्दपूर्णेन पूर्णं जगदवेक्ष्यते ।। 123 Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ न मे मृत्युः कुतो भीतिर्न मे व्याधिः कुतो व्यथा ? ।। न ऊँची, न नीची * 24 अरुपी और अमर बनी हुई आत्मा न तो उच्च होती है, न ही वह नीच होती है। वहां पर स्पृश्य-अस्पृश्य का भेद नहीं है। वहां पर छोटे-बड़े का अंतर नहीं है। अजर - अव्याबाध शुद्ध आत्मा को रोग नहीं होता, व्याधि और पीड़ा नहीं होती, शुद्ध आत्मा को अखंड़ जवानी होती है, संपूर्ण आरोग्य और अनंत आनंद होता है ! ww Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ॥ से न स न रूवे न गंधे न रसे न फासे अरूवी सत्ता अणित्यंत्यसंठाणा ।। अरुपी शरीर से जब आत्मा मुक्त हो जाती है, तब फिर उसका रूप नहीं होता, उसका भार या वजन नहीं होता । उसमें रस या स्वाद नहीं रहता, "उसमें सुगंध या दुर्गंध नहीं रहती ! उसमें मुलायम या खुरदरा स्पर्श भी नहीं रहता ! उसका यश नहीं होता, उसका अपयश नहीं होता । उसका सौभाग्य नहीं होता, उसका दुर्भाग्य नहीं होता । Jain Ed ation Internatio वहां सभी आत्माएं समान - एक सी ! वहां नहीं है मान और अपमान ! न गर्व और अभिमान ! • ऊँच-नीच के भेद बिना की धरती का नाम है... 'सिद्धशिला' ! उसे ही मोक्ष कहते है । Personal Use O 25 rary.org Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आत्मा वीतराग || जं लहइ वीयराओ सुक्खं तं मुणइ सुच्चिय न हु अन्नो ।। बन जाती है यानी वीतराग आत्मा को अनंत सुख होता है। वीतराग आत्मा को परम शांति होती है। अनंत शक्तिशाली शुद्ध आत्मा में आत्मा की अनंत शक्ति प्रगट होती है लब्धि प्रगट होती है। 26 Jain Education Intemational Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ L .. MUTTORIES ENGAL ।। परमात्मतत्त्वं प्रणमामि नित्यम् ।। जवानी, आरोग्य और आनंद आत्मा के होते हैं, शरीर के नहीं ! रोग-शोक और संताप से मुक्त आत्मा को हमारी वंदना हो ! " ऐसी अनंत शक्तिशाली हमको भाव तेसे.उनका ध्यान करने से त हो सकती है !!! - A आत्माओं की पजा करनस, नका ध्यान मासी अनंत शक्ति जरूर प्राप्त हो सकती है !!! Jain Education Interation 27 , Private & Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 28 88 080 Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रभु मुझे आप जैसा बनना है !!! मैं हिंसक हूँ........ मुझे अहिंसक बनाओ..! मैं झूठ बोलता हूँ....... मुझे सत्यवादी बनाओ..! मैं कृपण हूँ... मैं कामी हूँ.. मैं अहंकारी हूँ...... मैं मायावी हूँ.. मैं रागी हूँ. मैं द्वेषी हूँ..... मैं दोष देखनेवाला हूँ. मैं परनिन्दक हूँ. मैं प्रमादी हूँ... मुझे उदार बनाओ..! मुझे संयमी बनाओ..! .... मुझे नम्र बनाओ..! ..........मुझे सरल बनाओ..! मुझे विरागी बनाओ..! मुझे वीतरागी बनाओ..! मुझे गुणग्राही बनाओ..! मुझे स्वनिब्दक बनाओ..! मुझे अप्रमादी बनाओ..! 29 Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 30 अकेला मर कर अकेला ही जायेगा । आया है और जीव यह शरीर मेरा नहीं है। यह घर मेरा नहीं है । संसार की कोई भी जड़ चेतन वस्तु मेरी नहीं है । क्या है तेरा ? तूं क्या लेकर आया था ? और क्या लेकर यहां से जायेगा ? गहरा विचार करने से संसार के पदार्थों में उसका मोह - आसक्ति कम हो जायगी। || एक उत्पद्यते जन्तुरेक एव विपद्यते ।। यह मेरा नहीं है... Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ w 31 वीतराग की पूजा करने से वीतराग बना जाता है ! परमात्मा की पूजा करने से परमात्मा बना जाता है ! Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ || पाणिवहं घोरं।। अपने सौंदर्य के साधनों के लिये मूक प्राणियों का उपयोग हो रहा हैं। हमे इस जीव हिंसा के पाप से बचना होगा। Dive and bei Dil शेम्पू के बदले अहिंसक पदार्थ, टूथपेस्ट की जगह आयुर्वेदिक दंतमंजन, चमडे, हाथी दांत, कलर मोती, सिल्क इत्यादि वस्तुओं का उपयोग बंध करना। 32 ____ Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ RESPECT THE VIEWS OF OTHERS औरो के विचारों का सन्मान करो। 33 Jain Education Internatio For Private & Pere Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ PATH OF SUCCESS PATH OF SUCI PATH OF SUCCESS बच्चों पर निवेश करने की सबसे अच्छी चीज है अपना समय और अच्छे संस्कार __ध्यान रखें, एक श्रेष्ठ बालक का निर्माण सौ विद्यालय को बनाने से भी बेहतर है। 34 For Private &Personarosero Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धीरज मत खोओ। हीनता और हताशा तुम्हें शोभा नहीं देती। अपने आत्म-विश्वास को बढाओ फिर से प्रयास करो, तुम्हें सफलता अवश्य मिलेगी। 35 . RORISODE anal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दया धर्म हिरदे बसै बोले अमृत बैन । तेई ऊंचे जानिये जिनके ऊंचे नैन ।। - मलूकदास उच्चता यही तो महानता का परिचय है । दिल में दया, वचन में सुधा और दृष्टि में 36 in Education Intemotional sonal use only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ -विश्वास रखें खाधाओं को देखकर विचलित न हो। जीवन में निन्यानवें ट्वार बंद हो जाते हैं, तब भी कोई-न-कोई কে রাং তার বুলা 357 www.jainelibrary Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ COOOOLAON 908 ALBELEIROS 83000 धन और व्यवसाय में इतने भी व्यस्त मत बनिये कि, स्वास्थ्य, परिवार और अपने कर्तव्यों पर ध्यान न दे पाएँ । 38 Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ When You lose a ascinate leg You don't just lose a leg you lose playing tag friends You lose With running in the Ball Dipping your Toes in the Freezing 30 Coin Ghool., for James Hell fugon Cam OPET STAD When the man down with uriens Racing the m Kacing. ater You lose Playing Crickey with Hanging Mates Upside down on the pars 33 Unfor Rock oppingwere GA footbo Team prof heroe You lose running Paway from used ther Hong toplay nai Telkprops LAKARAND T हमें जो मिला है, हमारी पात्रता से ज्यादा मिला है । यदि आपके पाँव में जूते नहीं हैं, तो अफसोस मत कीजिये । दुनिया में कई लोगों के पास तो पाँव ही नहीं हैं 39 Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Il bel 3 arran जो दुःख आने से पहले ही दुःख मानता है, वह आवश्यकता से ज्यादा दुःख उठाता है । 40 Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ आप के पास किसी की निंदा करने वाला, किसी के पास तुम्हारी निंदा करने वाला होगा। 41 Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ र जीवन की सफलता का परम सूत्र है। जीवन की सफलता का परम सूत्र है। र जीवन की सफलता का परम सूत्र है। जीवन की सफलता का परम सूत्र है। कष्ट सहन करने का अभ्यास जीवन की सफलता का परम सूब है। कष्ट सहन करने का अभ्यास जीवन की सप कष्ट सहन करने का अभ्यास जीवन की सप कष्ट सहन करने का अभ्यास जीवन की सफ कष्ट सहन करने का अभ्यास जीवन की सप 42 Jain Education Intemational . Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिसके पास उम्मीद है, वह लाख बार हारकर भी नहीं हारता ... उ 43 Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ AZ EZEIT ONE शर्म की अमारी से বৃতান কী Bীৰী अच्छी है..... 44 Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन संध्या तरफ जाते हुए डरना मत, मृत्यु तो दिन के बाद रात का आराम है। 45 Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ माँगामा लामो मो मो मामी मामामा मामी तमामा मामा मामा मामांगी। मॉम मा MY MOTHER IS NO. SE NE ON ।। जननी जन्मभूमिश्च ।। ।। स्वर्गादपि गरीयसी ।। माँ और मातृभूमि स्वर्ग से भी महान है। उनका कभी अनादर मत करना। 46 in Eu r om Sotivateertainandamy Vowww.jainelibraryon Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अपेक्षा दु:ख का दूसरा नाम । अविक्खा अणाणंदे - पंचसूत्र Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 48 अच्छे विचार रखना भीतरी सुन्दरता है। स्वामी रामतीर्थ Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ਲੲ ਵਧ ਕੀ ਨਹੀਟੀ ਹੈ। - जयशंकर प्रसाद Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ महान् चरित्र का निर्माण... महान और उज्ज्वल विचारों से होता है स्वामी शिवानन्द 50 Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ साहस से ही सफलता मिलती है। 51 Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 52 जिसे पराजित होने का डर है. उसकी हार निश्चित है । - नेपोलियन - Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ DAY जिनेष्वभक्तिर्यमिनामवज्ञा, कर्मस्वनौचित्यमधर्मसङ्गः। पित्राद्युपेक्षा परवञ्चनं च, सृजन्ति पुंसां विपदः समन्तात्।। प्रभु के प्रति अलगाव साधु संतो की अवज्ञा, अनुचित कार्यो एवं अधर्म का संग मात पिता वगेरे की उपेक्षा एवं दूसरों की ठगाई... यह सभी मनुष्य के चारों ओर भयंकर विपत्तिओं को निर्माण करती है। 53 Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 54 अपराधियों और अपना अहित करने वालों का भी बुरा मत सोचो... अपराधीशु वि चित्त थकी नवि चिंतवीओ प्रतिकूल । - उपाध्याय यशोविजयजी (समकितना ६७ बोलनी सज्झाय) For Private &ersonal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 55 एक सुंदर दृष्टि मौन को वाचाल बना देती है। एक कृपादृष्टि विरोध को सहमति बना देती है। एक कुपितदृष्टि सौंदर्य को विकृत बना देती है। - एडीसन An enraged eye makes beauty deformed. A kind eye contradiction as A beautiful eye makes silence eloquent. assent. Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ शरीर और आत्मा में अधिक से अधिक सौन्दर्य और सम्पूर्णता का विकास हो सकता है, उसे सम्पन्न करना ही शिक्षा का उद्देश्य है। 56 WW IN Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जिस काम को तुम कर सकते हो या कल्पना करते हो कि तुम कर सकोगे, उसको आरम्भ करो; साहस में प्रतिभा, शक्ति और जादू है। सिर्फ काम में जुट जाओ। आरम्भ करो, कार्य समाप्त होगा।- गेटे Jain Education Intemational . Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ क्रोध एक प्रकार की आँधी है, जब आती है तो विवेक को नष्ट कर देती है। - एम. हेनरी क्रोध के सिंहासनासीन होने पर बुद्धि वहाँ से खिसक जाती है। WHEN PASSION IS ON THE THRONE REASON IS OUT OF DOORS. 58 Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 32 নমে प्रभु के पदन्यास पर चलना, सन्यास w Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष रक्ष जिनेश्वर। - प्राचीन आचार्य परमात्मन आप के बिना मेरा कोई शरण नही. मात्र आप ही मेरे शरण हो... इसलिये परमकरूणा से है परमकृपालु जिनेश्वरदेव आप रक्षा करो.. रक्षा करो. 60 Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ बच्चों पर आपकी शिक्षा से ज्यादा, आपके आचरण का असर होता है। आचरण आचरण 161 Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 62 माँ क्षमा और दोनों एक है... क्योंकी माफ करने मे दोनों नेक है। Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ मैं जो व्यक्ति अपने साथियों के चुनाव विवेकी नहीं है, वह अपने समय का सदुपयोग नहीं कर सकता। Nar Education international STUDY w Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ahbih.nih.nih.hih Lohhhhhhhhhhh Bhhhhhhhhhhhhhlh bla blh blh blh hih hlh hih पाप पाप पाप पाप पाप पापपाण किसी भी पाप का अंत होता नहीं हमे उसका अंत करना पड़ता है। 64 Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कनक कामिनी को त्यागे बिना आध्यात्मिक पूर्णता प्राप्त नहीं हो सकती। रामकृष्ण परमहंस www.jainelibrary.o65 Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ कोहो पीइं पणासेइ माणो विणयनासणो माया मित्ताणि नासेइ लोहो सव्वविणासणो दशवैकालिक अध्ययन ८ 66 प्रेम का नाश करता है, कोध मान विनय का नाश करता है, माया मित्रता का नाश करता है, लोभ सर्वनाश करता है... १४ पूर्वधर शय्यंभवसूरिजी Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ उवसमेण हणे कोहं माणं मद्दवया जिणे मायं चज्जवभावेण लोभं संतोसओ जिणे - दशवैकालिक ८वा अध्ययन क्षमा से क्रोध को मृदुता से मान को सरलता से माया को संतोष से लोभ को - अचार्य शय्यंभवसूरिजी म. सा. 67 Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 10 Ganpanileon Vial संसार में Oন ক্রছে কুহে मिला है और ना तुम्हारे अपने विचार शत्रु और मित्र बनाने के लिए उत्तरदायी है। - चाणक्य 68 . Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ रुकना न तुम जब तक तुम्हारे खास का लवलेश है। C हिम्मत न हारो ऐ हृदय यह साधना का देश है | - शिवमंगल सिंह 'सुमन' 69 Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ प्रति यः शासनमिन्वति । जो अनुशासन पालता है, वही शासन करता है । 70 - ऋग्वेद Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दयाश लबालब भरा हुआ दिलही सबसे बड़ी दौलत है, - तिरूवल्लुवर . 71 . Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 72 जैसे व्यवहार की तुम दूसरों से अपेक्षा रखते हो. वैसा ही व्यवहार तुम दूसरों के प्रति करो। - ल्यूक Use Only STAR wwww.jainelloratorg Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जितनी बार हमारा पतन हो, उतनी बार उठने में गौरव है। - गांधीजी 73 Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ धैर्य जीवन के लक्ष्य का द्वार खोल देता है, क्योंकि.. सिवा धैर्य के उस द्वार की और कुंजी नहीं है। 74 in Education International AE K wentona Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संधामिक मित्रों का त्याग कर, - पूर्व महर्षि वज्जिज्जा अधम्ममित्तजोग। - पंचसूत्र प्रभु से डरो और जो प्रभु से नहीं डरता उससे भी डरो। Jall cuucalon Ternational Torrnvate or ersonal use only www.jamemorary.org Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Path Of Success 76 Path Of Success अज्ञान विपत्तियों का मूल है। अज्ञान विपत्तियों का मूल है। अज्ञान विपत्तियों का मूल है। & Personal Use Only - प्लेटो अज्ञान विपत्तियों का मूल है। क्योंकि, पैदा न होना अच्छा है... अशिक्षित रहने से BETTER BE UNBORN THAN UNTAUGHT, FOR IGNORANCE IS THE ROOT OF MISFORTUNE. Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ NE(O) जिनपादयुगं युगादावालम्बनं भवजले पततां जनानाम्।। - भक्तामर स्तोत्र ___हे प्रभो आपके दोनो चरणकमल संसार समुद्र में डुबते हुये जीवों के लिये आलंबन समान - समर्थ मन्त्र वेत्ता मानतुंग सूरिजी म. सा. 77 For Private & Personal use Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुत्तोसओ अ सो होइ, निव्वाणं च न गच्छइ - दशवैकालिक सूत्र : ५/२/३२ बहुत मिलने के बाद भी, जिसको संतोष नहीं, उसका निर्वाण होता नहीं... उसका मोक्ष होता नही... - पूर्वाचार्य श्री श्रुतकेवली शय्यंभवसूरि म.सा. See Namn Education International For Private & Fersonal use Finelib s ora Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Jain Edu निष्फलता Education International मात्र ये साबित करती है कि.... सफलता का प्रयत्न पूरे मन से नही किया गया.. - चर्चिल 79 For P r Private & Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ संकट में माहम का होना, आधी सफलता प्राप्त कर लेना है। मानव के सभी गुणों में साहस पहला गुण है क्योंकि, यह सभी गुणों की जिम्मेदारी लेता है। - चर्चिल 80 Jain Education Interational Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ भाग्य साहसी म मी मनुष्य की सहायता हायता करता है। अप्पा कत्ता विकत्ता य सुहाण य दुहाण य। -- उत्तराध्ययनसूत्र मनुष्य भाग्य का अपन। स्वयं ही विधाता है। - स्वामी रामतीर्थ 81 For Private & Personal se Only www.jainelibrary.o Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ ईश्वर ने हर इन्सान को । किसी न किसी वड़ियों को अज्जित किया है। - न निर्गुणं किञ्चिदपीह लोके..... WE ARE ALL GIFTED WITH SOME STRENGTHS. 82 Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ जीवन वेदनाओं, पीड़ाओं को उपेक्षा के साथ हँसते हँसते सहना.. पथिक बनकर तनाओं पीड़ाओं को उपेक्षा के साथ हँसते हँसते सहना... जीवन की पीड़ाओं को उपेक्षा के साथ हँसते हँसते सहना.. धूपछाँह से वेदनाओं, पीडाओं को उपेक्षा के साथ हँसते हँसते सहना.. घबराना क्या ? 83 Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ 84 चरित्रहीन शिक्षा, मानवताहीन विज्ञान और नैतिकताहीन व्यापार लाभकारी तो होते नहीं, अपितु पूर्ण खतरनाक होते हैं। सुतक हीन खतरनाक হি INDI सत्य साईबाबा NOVORY LO Novara Los Novos Lo La Boutique Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ www.jainelibrary 85 अभाव पर विजय पाना ही जीवन की सफलता है । उसे स्वीकार करके उसकी गुलामी करना ही कायरपन है । Cowards die many times before their death; the valiant taste death but once. एक ही बार मरते हैं। वीर लोग केवल अनेक बार मरते हैं। कायर अपने जीवन-काल में Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ विनय समस्त गुणों की गोस आधारशिला है। उत्पा Humilityis the SE FOUNDATION of all. qlalvirtues. विणओ गुणाण मूलं। - पुष्पमाला विनयाधीना गुणाः सर्वे। - प्रशमरति 86 NAS Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ दुःखं प्राप्य न दीनः स्यात् सुखं प्राप्य च विस्मितः - ज्ञानसार २१/१ हो. - उपाध्यायजी यशोविजयजी। दुःख पाकर पान हो, व सूख पाकरण 87 Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ II अंदर कितना भरा पडा है, कोइ न देखे... धरती पर जो हीरे पडे है, वे शायद ५००० फीट नीचे जाने पर भी न मिले यह मुमकिन है। || मगर हमारे अंतर में जो हीरे पडे है, उन्हें पाने के लिये केवल हमें अंतर में जाना है। एक प्रयास तो करे... हीरे होंगे आपके हाथ में ! 88 Just try Once Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ **** Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ यहाँ प्रस्तुत है ऐसे अद्भुत हीरे, जो अंगूठी को नही, अंतर को सजायेंगे जीवन में आनंद की बहार लायेंगे। Don't miss it MULTY GRAPHICS