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जिनपादयुगं युगादावालम्बनं भवजले पततां जनानाम्।।
- भक्तामर स्तोत्र
___हे प्रभो आपके दोनो चरणकमल संसार समुद्र में डुबते हुये जीवों के लिये
आलंबन समान
- समर्थ मन्त्र वेत्ता मानतुंग सूरिजी म. सा.
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