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ही जीवन क्षणभंगुर है।
|| असंखयं जीवियं मा पमायए ।।
इस जगत में सब क्षणभंगुर है; अगर प्यार खोजना हो तो शाश्वत में खोजो । यहां कुछ अपना नहीं है। यहां भरमो मत, अपने को भरमाओ मत, भरमाओ मत ! यहां सब छूट जानेवाला है। यहां मृत्यु ही मृत्यु फैली है। यह मरघट है। यहां बसने के इरादे मत करो। यहां कोई कभी बसा नहीं ।
जीवन क्षणभंगुर है। जिसका मन यहां से विरक्त हो गया, वही परमात्मा में अनुरक्त हो सकता है।
जिन्हें तुमने अपना समझा है, साथ हो गया है दो क्षण का राह पर-सब अजनबी हैं। आज नहीं कल सब छूट जाएंगे। तुम अकेले आए हो और अकेले जाओगे। और तुम अकेले हो। इस जगत में सिर्फ एक ही संबंध बन सकता है-और वह संबंध परमात्मा से है; शेष सारे संबंध बनते हैं और मिट जाते हैं। सुख तो कुछ ज्यादा नहीं लाते, दुःख बहुत लाते हैं। सुख की तो केवल आशा रहती है; मिलता कभी नहीं है। अनुभव तो दुःख ही दुःख का होता है ।
जगत से टूटते हुए संबंधों को जगत के प्रति वैराग्य बना लो, जगत से प्रेम मुक्त हो जाओ और परमात्मा के चरणों में चढ़ा जाओ।
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