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॥ से न स न रूवे न गंधे न रसे न फासे अरूवी सत्ता अणित्यंत्यसंठाणा ।।
अरुपी
शरीर से जब आत्मा मुक्त हो जाती है, तब फिर उसका रूप नहीं होता, उसका भार या वजन नहीं होता । उसमें रस या स्वाद नहीं रहता, "उसमें सुगंध या दुर्गंध नहीं रहती ! उसमें मुलायम या खुरदरा स्पर्श भी नहीं रहता ! उसका यश नहीं होता, उसका अपयश नहीं होता । उसका सौभाग्य नहीं होता, उसका दुर्भाग्य नहीं होता ।
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वहां सभी आत्माएं समान - एक सी !
वहां नहीं है मान और अपमान ! न गर्व और अभिमान !
• ऊँच-नीच के भेद बिना की धरती का नाम है...
'सिद्धशिला' !
उसे ही मोक्ष कहते है ।
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