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॥ न मे मृत्युः कुतो भीतिर्न मे व्याधिः कुतो व्यथा ? ।।
न ऊँची, न नीची *
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अरुपी और अमर बनी हुई आत्मा
न तो उच्च होती है, न ही वह नीच होती है। वहां पर स्पृश्य-अस्पृश्य का भेद नहीं है। वहां पर छोटे-बड़े का अंतर नहीं है।
अजर - अव्याबाध
शुद्ध आत्मा को रोग नहीं होता, व्याधि और पीड़ा नहीं होती, शुद्ध आत्मा को अखंड़ जवानी होती है, संपूर्ण आरोग्य और अनंत आनंद होता है !
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