________________
अन्यथा शरणं नास्ति
त्वमेव शरणं मम तस्मात् कारुण्यभावेन रक्ष रक्ष जिनेश्वर। - प्राचीन आचार्य
परमात्मन आप के बिना मेरा कोई शरण नही. मात्र आप ही मेरे शरण हो... इसलिये परमकरूणा से है परमकृपालु जिनेश्वरदेव आप रक्षा करो.. रक्षा करो.
60
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org