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तलाश
अन्वेषयन्ति हृदयाम्बुजकोशदेशे
मेरी उनकी प्रीत पुराणी, उन बिन पल न रहाऊं।
और जैसे-जैसे यह प्रेम का संबंध गहरा होता है, यह संवाद सफल होता है; जैसे-जैसे भक्त का हृदय परमात्मा के करीब धड़कने लगता है; जैसे-जैसे भगवान की मूरत स्पष्ट होती है-वैसे-वैसे पता लगता है कि जन्मों-जन्मों में इसी को तो खोजा है। यह प्रीत पुरानी है। यह कोई नई खोज नहीं है। और जब हम किसी और को भी प्रेमी समझ लिए थे, तब भी हम इसी को खोज रहे थे, यह पता चलता है। जब तुम किसी पुरुष के प्रेम में पड़ गए थे; किसी स्त्री के प्रेम में पड़ गए थे; किसी बेटे के प्रेम में पड़ गए; किसी मां-पिता के प्रेम में पड़ गए; किसी दोस्त के प्रेम में पड़ गएजिस दिन तुम परमात्मा से संबंध जोड़ पाओगे, उस दिन चकित होकर देखोगे कि उन सब संबंधों में तुमने वस्तुतः परमात्मा को ही खोजा था। और इसलिए वे कोई भी संबंध तृप्त न कर पाए;
क्योंकि तुम खोजते थे परमात्मा को और खोजते कहीं और थे-खोजते थे संसार में | मांग तुम्हारी । बड़ी थी। तलाशते थे बूंद में और खोजते थे सागर को। अतृप्त न होते तो क्या होता ? असफल न होते तो क्या होता ? खोजते थे हीरों को, तलाशते थे कंकड़-पत्थरों में । विषाद हाथ न लगता तो क्या होता ? असफलता स्वाभाविक थी; निश्चित थी। मेरी उनकी प्रीत पुराणी, उन बिन पल न रहाऊं। हम उसी की तलाश कर रहे हैं। कभी गलत दिशा में, तो भी तलाश उसी की है।
कभी ठीक दिशा में, तो भी तलाश उसी की है। ucation / हम कुछ और खोजते ही नहीं, हम कुछ और खोज ही नहीं सकते। परमात्मा परम धन है।
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