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GREJAGLIBRAR
BIRORE STATE
Digamber Jain-Surat.Data.. 19
Regd. No. B-744.7
बीर सं०२४४९
आश्विन।
पृष्ठ
S ESSES
संपादक
वर्ष १६ वां
अंक १२वां विक्रम १९७९. मूलचंद किसनदास कापड़िया-सूरत। । ई.सन् १९२३
विषयानुक्रमणिका।
विषय १-२. सम्पादकीय वक्तव्य, रतलाम बोर्डिंगका उत्सव.... १-६
३. जैन समाचार संग्रह ......... ४. धूम्रपान निषेध (आर. टी. लाल जैन फुलेरा) .... ९ ५. क्रोधका प्रताप (पं० चांदमल काला विशारद).... १४ ६. श्रीकेशरियाजी तीर्थ- मागाही (नवनीतलाल जरीवाला) १५
७. प्रातःकर्म विचार (मोहनलाल मथुरदास काणीसा).... १८ ८-९. गज़ल, विना अंगके अंगी कैसे? (सुमतिचंद्र जैन) २३ १०. लाखकी उत्पतिमें घोर हिंसा (पं० सोनपाल उपदेशक) २४ ११. बाल परिचर्या और औषधिसेवनसे हानिया .... १२. दो मित्रोंका वार्तालाप (पं० गोरेलाल पंचरत्न).... २८ १३. प्रवृत्ति ( मास्तर सी. जी. गांधी) ......... १४. दशलाक्षणी पर्वके समाचार ....... मुख पृष्ठ
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२१
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जममम
ममममममममममन पेशगी वार्षिक मूल्य रु० १-१२-० पोस्टेज सहित ।
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दशलाक्षणी पर्व।
૧૦) શ્રાવિકાશ્રમ બમ્બઈ
- ૨) મોકલવાનો ખર્ચ દશલાક્ષણી પર્વના સમાચાર અમાને અનેક અ ની પાઠશાલા હાલ શુજિ સારા પયિાપર સ્થળોએથી મળ્યા હતા જેનો સારાંશ નીચે ચાલે છે. આશરે ૪૦-૪૫ વિદ્યાથી લાભ લઈ મુજબ છે
રહ્યા છે, શ્રાવિકા પાઠ શાળા પણ ચાલે છે. જેમાં ને સુરતમાં આ વર્ષ” આ પર્વ અપૂર્વ ઉસી બપોરે ત્રણ કલાક ૨૦-૨૫ ખેના ને બાલકીઓ હથી ઉજવાયા હતા. નિત્ય રાત્રે ગુજરાતીના મંદિ લાભ લે છે. રમાં શાસ્ત્ર સભા થતી હતી જેમાં ૧૦૦-૧૨૫ વાંચ-થી મુલચંદ ઇશ્વરદાસ લખે છે કે
સ્ત્રી પુરૂષો ને બાળકો લાભલેતા હતા. શાસ્ત્ર સભા અસલાલીના ચતુરભાઈ વેણીચંદે સાલહ કારણ પછી રાજ દિ૦ જૈન પાઠશાળાના વિદ્યાથી આના ઉધાપન કર્યું" હતું જેથી પાલડી, મહીજ, હાથીગાયન, સંવાદ, ધાર્મિક ભાષણ, રાસ વગેરે થતા જશુના બધા ભાઇ આવ્યા હતા. ઉપજ પણ હતા. ૮ દિવસ અમે એ ને ર દિવસ માસ્તર છવ- તારી થઈ હતી. વૈશાખ માસમાં ભ. સુરેદ્રકીતિg) રાજભાઈએ શાસ્ત્ર વાંચ્યું હતું. ત્યાગ ધર્મને હાથીજણ આવેલા ત્યારે ન્યામાં તકરાર વધી પડી દીવસે દાન ધર્મ પર થયેલા ઉપદેશની અસરથી હતા ને જમણું બંધ થઈ ગયા હતા પણ આ
- દીનની માટી ટીપ સુદ ૧૫ સુધીમાં ભાઈ # કોરદાસ ધમ ના દિવસોમાં સમાધાન થઇ ગયું છે.
- વાનગઢ-અ દહેરા | પુજારી રતનજી ચુડગર, મગનલાલ પાનાચંદ, ગમનલાલ સુતરીયા,
મહારાજે શ્રાવણ સુદ ૧ થી ૧! માસના ઉપવાસ ભાઇ સરદયા વગેરેના સારા પ્રયાસથી થઈ હતી. જેમાં કલે રૂ. ૧૦૦ટો ભરાયા હતા, જે રાકડા ન ચે
આદયો હતા પણ તેમનું સમાધિ મરણ ભાદરવા મુજબ મોકલી અપાયા છે
સુદ ૧૧ને દિને થયું હતું.શા. પાન.ચંદ ગુલાબચંદ
(વાંકાનેર) નિત્ય ઉપદેશ આપતા હતા. મહારાજની ૧૨૫) વિહાર સંકટ નિવારણુ ફંડ
વૈયાય સારી રીતે થઈ હતી.દાંતાના રાણા તરફથી ૭૬) તીર્થ રક્ષા ફંડ ( ૭૬ ઘરના )
મહારાજ ફાટા પણ લેવાયેા હતા (જે અમને ૧૭૭ના) જીવ દયા ( જા છેડાવ્યા )
મળ્યા છે અને બનશે તે ખાસ અંકમાં પ્રકટ ૨૮૪) આબુજી છણેÉદ્ધાર ફંડ
કરીશું) અત્રે પાઠશાલાની વ્યવસ્થા પણ થઇ છે. ૨૫) રૂ. પ્રહ્મચર્ય આશ્રમ જયપુર
| ‘ત્તપુર-કેવલોહાર, દેશવ્રત, લવવગેરે ૨૫) અષધાલય બડનગર
વ્રત ૫૦ આદમિયે એ કર્યા હતાં. આ વર્ષે ભાઇ ૨૫) અનાથાય બડનગર .
લલ્લુભાઈ રાયચંદના પધારવાથી દરેક ક્રિયા નિય૨૫) અન થાલય દિલ્હી
મિત થતી હતી. શાસ્ત્રHભા પણુ રાજ થતી હતી. ૨૫) જૈન સિ૦ વિદ્યાલય માટેના રૂષિમંડળ પૂજા પણ ભણાઇ હતી. વરાડે પગ ૨૫) ર૩ દાદ મહાવિધાલય-કાશી નીકળ્યા હતા, ઘણી સ્ત્રી ઓએ ૧ વર્ષ સુધી રડવા ૨૫) હાવિધાલય વ્યાવર
કુટવા ન જવાની પ્રતિજ્ઞા લીધી હતી તથા પાંચ કે ૨૫) બ્રહ્મચર્ય આશ્રમ કુથલગિરી સાત વર્ષ સુધી છાણું ન થાપવાની પ્રતિજ્ઞા ૨૫) ઉદેપુર મેડિ પ્રો. વિદ્યાલય લીધી હતી. ૫૦૦) દાનની ટીપ થઈ હતી. તીર્થ૨૫) દિ૦ જૈન શિક્ષા મંદિર જબલપુર - રક્ષ:Yડ પણ થયું હતું. મંદિરમાં ખુટતાં શાસ્ત્રા : ૨૫) ભીંડ દિઠ જૈન વિદ્યાલય
મંગાવવાનું નકકી થયું હતું. સારાંશ કે આ પવ", ૩૦) ઢિ૦ જૈન પાઠશાલા સુરત
નિર્વિદને સારી રીતે ઉજવાયો હતો. દર વર્ષે ભાઈ ૨૦) • ૮ શ્રાવિકાશાળા **
લલ્લુભાઈ અત્રે પધારે એમ દરેકની ઇરછા છે. ૧૦) પપૈારા પાઠશાળા
(વધુ પછલો પુઠાંપર)
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॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥
दिगंबर जैन,
THE DIGAMBAR JAIN. नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्त्तताम्, दैगम्बरं जैन समाज - मात्रम् ॥
वीर संवत् २४४९ आश्विन वि० सं० १९७९.
वर्ष १६ वाँ.
पुर्युषण पर्व सानंद पूर्ण हुआ है व स्थान २ पर यह पर्व अनेक प्रका
उत्तम क्षमा । स्की धर्मप्रभावना के साथ मनाया गया था ऐसे समाचार पर्युषणपचके विषय में अम्बत्र प्रकट हैं। पर्युषण पर्वके अंत में हम रे सभीभाई प्रतिपाके दिन परस्पर उत्तम क्षमा कहते हैं व सगे संबंधियों वर्ष भर के आरसंघ के लिये उत्तम क्षमावर्ण के पत्र लिखते हैं यह सामान्य प्रणाली होगई है । हमारे पास मी उत्तम क्षमावणीके अनेक पत्र आये हैं जिन सबका पृथक र उत्तर न दे सकने के कारण हम यहां ही सबसे वर्ष भरके अपराध लिये उत्तम क्षमाकी याचना करते हैं। वर्षभर दिगम्बर जैनमें भी लेख व सत्य समा चारादि लिखने में हमसे किसी भाई का मन क्लेशित हुआ हो तो उसके लिये भी उनसे क्षमा के प्रार्थी हैं। उत्तरक्षमा मात्र मूखसे कहने से नहीं होती परंतु वह क्षमा हृदयकी होनी चाहिये और अबसे उत्तमक्षमा धर्मका पालन हमसे
अंक १२ व.
बराबर होता रहे ऐसा हमें हरएक कार्य व वर्ताव करते समय स्मरण रखना चाहिये । मुंहसे उत्तम क्षमा बोलदेना व पत्र में उत्तम क्षमा लिख देने मात्र से सच्ची- क्षमा नहीं होगी परंतु हृदयसे कषाय भावको त्यागकर सच्चा उत्तमक्षमा धर्मका पालन करना चाहिये ।
*
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वर्ष
हमरे अंतिम (२४वें) तीर्थकर श्री महावीर स्वामीका निर्वाण पावापु रीमें हुए आम २४४९ हुए हैं । श्री महा वीर प्रभुका निर्माण कार्तिक वदी ( गुजराती अश्विनादी ) ) ) को प्रातःकाल पावापुरी में हुआ था, तबसे हरएक स्थानपर दीपावली उत्सव मनाया जाता है, वीर निर्वाण उस्तव होता है, निर्माण लाडू चढता है व हरएक स्थानपर दिये जलाये जाते हैं । यह दीपोत्सवी (दिवाळी) का त्योहार जो सार्वजनिक हो गया है उसका प्रथम कारण जैनियों का वीरनिर्वाण उत्सव ही है। अमावस्या के प्रातःकाल हरएक मंदिर में वीरनिर्वाण पूजन समय संक्षिप्तमहावीरचरित्र पढ़कर ही निर्वाण कांड भाषा गाथा पढ़ना चाहिये व उसके बाद ही निर्माण लाडू चढ़ाना चाहिये तथा अभिषेकादि करना चाहिये
*
वीर निर्वाणो
त्सव ।
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दिगंबर जैन |
( २ )
दीवाली में पढने योग्य संक्षिप्त महावीरचरित्र दो आने में हमसे मिल सकती है जो हरएक स्थान परं पढा जाना चाहिये व उसको प्रभावना में बांटना भी चाहिये तथा रात्रिको समा करके महावीरके गुणों का वर्णन होना चाहिये ।
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*.
हरएक स्थानपर दिवाली के दिन शाम को दीवाली पूजन होता है व नई दीवाली पूजन | बहियों का मुहूर्त होता है, वह कई स्थानोंपर
दिखते हुए हमें आनंद होता है, परन्तु साथमें दुःख भी होता है कि हमारे बहुतसे जैनी माई अबतक अपने कारोबार में जैन संगत नहीं लिखते । हमारा यह संवत लिखते रहने से तो हमें स्मरण रहता है कि हमरे अंतिम तीर्थंकर महावीर प्रभुको हुए इतने वर्ष होगये हैं तथा हमारे जैन संवतके प्रचारसे अन्य धर्मोके साथ हमारा गौरव मी बढता है व जो जैनियोंको आधुनिक मानते हैं उनकी मी आंख खुलेगी कि जैनियोंके तो २४ पैगम्बर होगये हैं उनमें २४ को हुए २४९० वर्ष हुए हैं इससे चैनधर्म बहुत प्राचीन धर्म होना चाहिये आदि । इससे हम हरएक जैन माइसे सविनय वार ९ निवेदन करते हैं कि आप अबके कार्तिक सुदी १से अपनी वहियों में, चिट्ठी पत्री में तथा हरएक व्यवहार में वीर संवत २४९० अवश्य किखिये । आपको लिखने में भूल पड़े तो बीर सं० २४५० के साथ विक्रम सं० १९८० भी दिखते रहेंगे तो कोई हानि नहीं है परन्तु जैन संवतका तो अवश्य उपयोग करना चाहिये ।
अमीत मिथ्यात्वी रुढिपे होता है ऐसा न - होकर पूज्य ब० शीतलप्रसादजी द्वारा सम्पा दित दीपमालिका विधान ( जो एक आना में हमसे मिलता है) से सरस्वतीपूजन होना चाहिये . ब नई बहियोंका मुहूर्त जैन विधिसे ही करना चाहिये |
*
वीर संवत ।
हरएक धर्म में बड़े प्रधानपुरुष होगये हैं उनके स्मरणमें उनकी मृत्यु समय से उनके नामका संवत् चाया जाता है और इस प्रकार इसका इश्वीसन, विक्रमका संवत शालीवाहन का शक, पारसीका सन, मुसलमानका सन, याहुदी का सन आदि चलता है परन्तु जैनों का 'संवत प्रचलित नहीं था जो १५-२० बर्षसे कहीं २ चालू हुआ है परन्तु अभी तक सर्वत्र प्रचार नहीं है यह खेदजनक समस्या है। सब संवतों में हमारा संवत पुराना है । हमारा वीर निर्वाण संवत् २४४९ पूर्ण होकर अब १४१० का वर्ष कार्तिक सुदी १ से प्रारंभ होगा । संवत की इतनी संख्या किसी मजहब की नहीं है यह
*
*
*
वर्षाते ।
‘दिगवर जैन'का १६ वे वर्षका यह अंतिम अंक है और आगामी कार्तिक मास से यह पत्र १६ वर्ष पूर्ण करके १७ वें वर्ष में प्रवेश करेगा | हमसे जितनी बनसकी इतनी साहित्य, समाचारादि द्वारा हमने इस वर्ष में ग्राहकों की सेवा की है व नवीन वर्ष में विशेष सेवा करनेकी उम्मेद है ।
" दिगर जैन " के १४ वे व १९ वे वर्ष के उपहार ग्रन्थ न हम प्रकट करसके थे न बहुत से
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( ३ )
धार्मिक ग्रन्थ नवीन ( पृ० करीब २०० ) - हारके लिये हम तैयार कररहे हैं अर्थात् २४४९-५० के दो उपहार ग्रन्थ तैयार होने पर इन दो वर्षोंका मूल्य वी० पी० से वसूल किया जायगा । जिनको मनियोर्डर से मूल्य भेतना हो वे खुशी से भेन सकते हैं । २४२० में निको दिगम्बर जैन न मगाना हो वे २४४९ का मूल्य मेनई व हमें पत्रद्वारा सूचना दे । उनको २४४९ का उपहार ग्रंथ अवश्य दिय. नायगा ।
*
*
हम १०-१२ वर्षों से प्रतिवर्ष के प्रारम्भ में दिगम्बर जैनका सचित्र खास अंक प्रकट करते हैं इसी प्रकार २४९० में भी सचित्र खास अंक प्रकट करनेका हमने निश्चय किया है । इसारके खास अंक में कमसेकम १०-१५ चित्र प्रकटहोंगे व करीब १०० का प्रकट होगा । इसमें एक राष्ट्रीय रंगीन चित्र तो ऐसा प्रकट होगा कि जो जैनियों को मनी मालूम पड़ेगा व देशसेवा के लिये हम मी आगे मा सकेंगे । इस अंक में नागपुर झंडा सत्याग्रह में बलि हुए कई जैनवीरोंका सचित्र परिचय देने हम प्रबन्ध कर रहे हैं तथा इसके लिये ऐतिहासिक, धार्मिक, व्यवहारिक लेखोंकी भी हमें आवश्यकता है। खास करके हिन्दी व गुजराती भाषा में अंक प्रकट होगा परन्तु दुपरी दो चार भाषाओके लेख मी एक २ दो२ रहेंगे । महांतक हो हम यह जल्दी ही एक माह मीतर २ प्रकट करेंगे इसलिये लेख व चित्र भेजने वाले हमें अपने
ग्राहकों का मूल्य मी.. हम वसूत्र कर सकेथे इसका हमें खेद है परंतु अब हर्ष है कि इन दो वर्षोंके तीन उपहार प्रन्य-नैन इतिहास प्र० भाग, श्रावक प्रतिक्रमण व चालबोध जैन धर्म तैयार होकर प्रकट होचुके व सब ग्राहकों को वी० पी० से भेजे जा चुके हैं। वीर सं० २४४७-२४४८ इन दो वर्षो सभी अंक जब सब ग्राहकको पहुंच चुके हैं तब किसी को भी वी० पी० लेने में इन्कार न होना चहिये तो मो कितनेक ग्राह कोने वी० पी० वापित की है यह उनको योग्य नहीं है । जब पूरा २ लाप मित्र चुका है तब मूल्य दे देना चाहिये। आशा है कि जिन्होंने बी० पी० वापिस की है वे फिरसे वी० पी० मंगावेंगे अथवा मनिभोर्डर से ३||=) भेन देंगे ।
चालू वर्ष वीर सं० २१४९ का मूल्य तो प्रायः सभी ग्राहकों से लेनेका ही है और वह इसलिये नहीं किया है कि इसका उपहार ग्रन्थ तैयार होने का है। यह वर्ष भी खतम हुआ है और नवीन वर्ष आगामी मातसे प्रारंभ होगा इसलिये हमने ऐसा निश्चय किया है कि इस आगामी वर्षा इस प्रकार फिर दो वर्षो का मूल्य भी हम आगमी वर्ष में एक साथ बी० पी० से वसुल कर लेंगे जिससे ग्राहकों को मनिभोर्डर व रजिस्ट्री फीसके चार आने बत्र जायेंगे। वीर सं• १४४९ ( वर्ष १६) का उपहार ग्रन्थ " नीतिवाक्य पाळा " जो दुनिया के विद्वानोंका वचनामृत पिटारा है छप रहा है और २००-२२९ पृष्ठों में तैयार होगा. तथा वीरसं० २४५० के दिये मी एक बड़ा
दिगंबर जैन ।
100%
सचित्र खास अंक ।
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સ્ટેલ વરિત્ર ૮ દિન ગીતા ૨ વયે બેદ-સાથે લખવું પડે છે કે બીજી પાર્ટીના કણબેસ્ટ ગાર માનેલા નિવને મી ના હીરો ધાર પં૦ ધન્નાલાલજી જરાપણ નમતું મુકવાને
તૈયાર નથી ને એમની હઠ ભારે છે. નાંદગાંવની चित्र हमें मिलेंगे प्रकट करनेकी कोशिश की
સભા ને ઠરાવ નિયમિત કે અનિયમિતની તકરાર નારી
છે તેથી અમે કહ્યું કે નવી ને જુની બંને કમેટી
બોલાવો ને જે નીવેડે આવે તે કબૂલ કરે ૨૪ ૬૪ વિત્ર વિન તિથિ ઢળ અથવા સભાના બધા મેમર ની મીટીંગ બેલા
વવી ને તેમાં જે નિર્ણય થાય તે કબૂલ કર जैन तिथि- मेंट घोटत हैं इस प्रकार
આ વાત થતાં પંડિતજીએ કહ્યું કે બે તે
બોલાવાયજ નહીં પણ બધા મેમ્બરોની બોલાવે. ઉના ૨૪૧૦ થા જૈન તિથિ- કોણ ! અમે કહ્યું કે સભાપતિ બેલાવે ત્યારે
પંડિતજી કહે કે એમ નહીં બને. એને પ્રસ્તાવ નવી કમેટીમાં નીકળે છે તેમાં પાસ થાય તો જ - પછી બેલ વાય. આનો અર્થ એ જ કે પંડિતજી
તે નવી કમેટી માન્ય કરીને જ કામ કરવા માંગે
છે, જે નાંદગાંવની સભા અનિયમિત માનવા
કે વાળીને જરાએ કબૂલ થી. આથી કંઇ ન વેડો ન તીર્થના ર૦ વાદળા - ન આવવાથી “જૈનત્રિ ” કાર્ય જેમ બ્ર दजी सहारनपुरका चित्र प्रकट किया है जो
શીતલપ્રસાદજીના સંપાદન અને અમારા પ્રકાશન
દ્વારા ચાલે છે તેમજ ચ લુ રખવાને શેઠ તારાपाठकों को निस्य दर्शन'य होगा । काळाजीका
ચંદજી ( ઉપસભાપતિ ) નો આદેશ થયો છે, परिचय-व दूसरा चित्र खाप्त अंकमें भी प्रकट જેથી “જનમિત્ર’ તો બંધ ન પડતાં છે તેમ કરો]
હાલ ચાલુ રહેશે છતાં પણ આ ઝઘડાનો નીહાસ
શેઠ તારાચંદજીએ કોઈપણ રીતે લાવવાની જરૂર છે. ખાપણી મુંબાઈ દિ જૈન પ્રાંતિક સભાનું અને તે નીકાલ એજ રીતે થઈ શકે કે મુંબઇ - - અધિવેશન ત્રણ ચાર વર્ષથી:
- દિ જિન પ્રાંતિક સભાના બધા સભાસદની એક. ગુજરાતમાં મુંબાઇ ગુજરાતમાં થયું નથી. વળી મીટિંગ ખુદ શેઠ તારાચંદજીએ ઉપસભાપતિ સભાની ગયા વૈશાખ માસમાં નાંદ- તરીકે બાલાવવા અને તેમાં માત્ર નાંદો
તાં. તરીકે બોલાવવી અને તેમાં માત્ર નાંદગાંવ સભાના ' જરૂર. ગાંવમાં જે રૂ૫માં અધિવેશન અધિવેશન સંબંધી નીકાલ કરાવવો. આવી સભા. -
. થયું હતું તેથી અડધા-ઉપર મુંબાઈ, સુરત, વડોદરા, પાવાગઢ કે ગુજરાતમાં મ્બરે નારાજ છે, ને સભામાં ફાટફૂટ પડી છે,
૨ કોઇ સ્થળે બોલાવવી જોઇએ. સાથી સરસ સમય ને તેને નીકાલ આવતાજ નથી. વાત એટલે મુંબઈમાં - માગશર માસમાં રસવ પ્રસંગે Aધી આવી છે કે ઉપસભાપતિ એ તારાની તથા પાવાગઢ માં મહા માસમાં મેળા પ્રસંગે છે,
ના મહામંત્રી બાબુ માણેકચંદજી મૈનાડ માનતા આપી છે કે શેઠ : તારાચંદજી-આ બાબત લક્ષ; નથી ને મનમાની કારવાઈ કરી રહ્યા છે. હમ- આપશજ અને પ્રાંતિક સભામાં જે ભંગાણ પડયું ણાંજ અમેએ મુંબાઈ જઈ સમાધાની માટે પં છે તેને બચાવી લેશે, ધન્નાલાલજી વગેરે સાથે પ્રયાસ કર્યો હતો પણ
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रतलाम बोर्डिंगका उत्सव ।
शेठ मा.प. दि. जैन बोर्डिग हाउस रतलामका १२ वार्षिकोत्सव ता. २१ - २६ अक्टूबर को रतकाम स्टेटके दिवान स० पं. वृनमोहननाथजी नुम्सीके समापतित्वमें होगया जिसमें बम्बई से शेठ ठाकोरदास, शेठ रतनचंद, शेठ हल्लूभाई लक्ष्मीचंदजी, मि. मूले इन्सपेक्टर जुबिली बाग ट्रस्ट फंड और वर्णी दीपचंदजी, कुंदर दिग्विजय सिंहजी तथा पं० छं टेलालजी परवार आदि महानुभाव मी पधारे थे | ता. २१ की रात्रिको शेठ गेबीलालजी मलास्या के समापतित्व में "जैन धर्म ही सार्धं धर्म " इस विषय पर वर्णी दीपचंदनी, कुंदर दिग्विजय सिंहजी और पंडित छोटेलाल के महत्व पूर्ण व्याख्यान हुये थे व त'. २६ को प्रातःकाल ८ बजे रतलाम स्टेटके दिवान साक सभापतित्वमें उत्सव हुआ जिसमें स्टेट के बड़े २ अधिकारी तथा प्रतिष्ठित शेठ साहूकार मी पधारे थे । विद्यर्थिओंके द्वारा मंगलाचरण होनेके पश्चात् झवेरी शेठ ठाकोरदास पानाचंदजीके प्रस्ताव करने पर दिवान सा० मे अपना आसन सुशोभित किया था। बाद बोर्डिग हाउसके छात्रोंने तथा शहरकी जैन बालिकाओंने - मधुर स्वरसे आपका स्वागत किया। फिर बो डिंग की रिपोर्ट चौकसी लल्लू ई की आज्ञानुसार पं० छोटेलालनी परवारने सुनाई, बाद मुळे महोदय, वर्णी दीपचंदन, कुंवर सिंहनी और पं० छोटेलालजी के प्रभावशाली भाषण "शिक्षा" पर हुये । अंत में सभापति महोदयने अपनी मधुरध्वनिमें सब व्याख्यानदाताओंके
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दिगंबर जैन ।
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साथ में यह भी कहा बुनियाद बहुत मजबूत
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सार कह सुनाये थे और कि इस बोर्डिंग हाउसकी है । यह सब बोर्डिंग जैसे राजपूत तथा ब्राह्मण बोर्डिगोंके मकान प्रबन्ध दि विषयोंमें उत्तम है और उक्त बोर्डिगों से प्रथम बोर्डिग रही है । इसको देखकर दूसरे बोर्डिंग हाउस खुले हैं। बोर्डिंग स्थापनाके प्रथम शेठ माणिकचंदजीने मेरे साथ इस बाबत गुफ्तगू की थी। मैंने मी उन्हें सम्पूर्णतया सलाह दी थी और मदद देने का भी वचन दिया था । पीछे श्रीजी हजूरके वरदमलों से यह खोला गया। इसने गत १२ ६र्षमें बहुत तरक्की की है । इससे दूर २के बालकों को विद्याकाम हुआ है। धौध्य फण्डसे निजी मकान हो गया है यह मी इसके लिये सौभाग्यकी बात है । विशेष तो यह मन्दिरके सामने बसा हुआ जिससे कि विद्यार्थियों के हृदय में परमेश्वर का भय बना रहे क्योंकि Fear of God is the beginning of knowledge. इसमें व्यायामशाला मी है परन्तु इसकी अवस्था कुछ सुधार दी जाय तो यह विद्यार्थिओं के लिये अत्यंत लाभदायक होगा। व्यायाम के साथ विद्यार्थि ओंको समयानुसार कार्य्यं करनेकी टेव पड़ना चाहिये । साथमें उन्हें सफाईपर विशेष लक्ष् देना चाहिये । प्रायः देखा जाता है कि लोग दांत बराबर साफ नहीं करते किन्तु मैं अनेक अमेरिकन डाक्टरोंकी सम्मति से वहता हूं कि दांतकी गन्दगी से ६० टका बिमारियां होती हैं। दांत साफ रहनेसे आंख की रोशनी और पाचन शक्ति बढ़ती है । शरीर स्वस्थ और फूर्तिसा रहता है इसलिये सुप्रिटेन्डेन्टको इस बतर
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गय था
___ दिगंबर जैन।
पूर्ण ध्यान देना चाहिये । हमें हरेक बातमें रात्रिको बडिमें रहनेवाले लड़कोंकी विदेशोंकी नकल नहीं करना चाहिये । जापान “काय निर्धारिणी अमलकारिणी, ममि.
मादिकी सभ्सा हमारी सम्यतासे बिल्कुल निराही तिका वार्षिकोत्सव शेउ कस्तुचंदनीके सभाप• है वहाँकी आवहवा दूसरी और हमारे यहांकी तित्वमें हुआ। मंत्रीके रिपोर्ट पुनाने पर विद्यार्थी
दूसरी । हमें तो म ने यहां की हाल नोंके अनु- केशरीमल बंदी, चांदमल गांधी और रानमल सार सम्यता और सौहार रखना चाहिये। तथा वर्णी दीपचंदनी, कुँवर दिग्विजयसिंहनी विद्यार्थिओंको अपने ६५पर ध्यान देना चाहिये व मुछे के शिक्षा पूर्ण व्याख्यान हुये थे । शेठ
और पोलिटिकल मामलों में नहीं पड़ना चाहिये ठाकुरदास पानाचंदकी ओरसे रुपये १०) और इससे ध्येयच्युत होनाते हैं । यहां तुम्हारी तो वर्णी दीपचंदनीकी तरफसे साये ३) विद्यार्थिक्या किन्तु पोलिटीकल मामलों में बड़े २ विद्व न ओंके उत्तेननार्थ खात काम करनेवाले छात्रों को शास्त्री जी रीखे गोता खा जाते हैं। एक वितरण किये गये थे। मेरे दोस्त जो अलाहाबाद युनिवर्सिटी के LL.B. सम्मेदशिखरजी-ईन कसन केस हमारी के परीक्षक थे उन्होंने बड़ौसे एक प्रश्न वह चागमें ता. ३ डिसम्बरसे खलेगा जिसमें अपनी पूछा था कि Constitutional Govern- तरफसे मदगम प्राके दो तीन गयाहोंकी .. ment किसको कहते हैं उसमें अनेक लड़कोंने
1 जुआनी ली जायगी। Constitutionals को ही नहीं समझा था ।
। आबूजी तीर्थ-जीर्णोद्धारके लिये गुन. संस्थाओं के संचालकों का चरित्र विद्यार्थि भोंके
* रातसे मुनीम. हनारीवालको १५०७॥) की. लिये आदर्श रहना चाहिये । उसकी छोपर
बच्छ। सहायता मिली है। . . बहुत बड़ी छाप पडती है । सब कामकी सिद्धि
सागवाडा-में मुनि शांतिपागरजीका केश उन्होंने सिर्फ ज्ञानसे बताई थी । पश्चात् अनेक
'लोंच ता. ३१ अक्टूबर को होने वाला था । । महत्व पूर्ण बातें कहकर अंतमें बोर्डिंगहाउसके
पावापुरी-में दीवाली में महावीर निर्वाग मुख्य संस्थापक दानवीर शेठ माणिकचंदजीको
का उत्सवका सालाना मेना होगा। धन्यवाद देकर वर्तमान संत्राइक झवेरी शेठ जिंतर- श्रावण सुदी ६ को नेमियमुकी ठिाकोरदास पानाचंदनी, मंत्री बल्लुमाई जयंतीका उत्सव हुआ था।
लखमीचंद चौकप्ती, स्थानीय कमेटीके सभापति वर्धामें-इस मासमें सेताल जैन परिषद् शेिठ कस्तुरचंदनी, मंत्री धनराजजी और सुप्रिन्टे. विद्यार्थी परिषदू, जैन वेडिंगका वार्षिकोत्सा न्डेन्ट वीर कालुराम नी परवार जिन्होंने गत १२ विशालकीर्ति पाठशालाका उत्सव आदिके अनेक वर्षसे इस संस्थाकी उत्तम रीतिसे सेवा बनाई उत्सव हुए थे । इसमें नागपुर सत्याग्रहमें जेठ है, धन्यवाद दिया। पानसुपारीके पश्च त उसव मानेवाले सेठ चिरंनीलालनी बड़मास्या आदि करीब ११ पजे सानंद समाप्त हुआ, उसी दिन नैन वीरों का स्वागत किया गया था।
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दिगंबर जैन । *** ********** फलटण-(सत १)के महारामाने अपने तावेके * जैन समाचारवलि। ८४ गांवों में दशहरा पर होता हुआ पशुवध
बंद किया है। .. *
काशीपुर-में बार सुंदरी देवी की बलि मी उदयपुर में अतिशय-५० भंवरलाल बंद हो गई है। नैन विशारद उदयपुरसे प्रकट करते हैं कि कुंथलगिरि-ज० भाश्रमको सेठ कस्तुर. यहांके जैन अप्रवाल मंदिरके ध्वमादंडसे ता. चंदजी परंडावालोंने १००१)का दान किया है। १६-९-२३ से दश दिनं (दशलाक्षणीके) श्री अंतरीक्ष पार्श्वनाथ-का केस नो तक चंदन मिश्रित जलकी बूंदे निकलती रहीं थीं। १५ वर्षेसे चल रहा था उसकी अपीलका चुकादा इसकी खोज उदयपुर सरकारसे भी हुई थी। नागपुरकी हाईकोर्टसे ता. १ अक्टूबरको हुवा हमारे अनुमानसे यह देवकृत अतिशय है। है कि मंदिर का इंतजाम श्वेतांरी करें तथा वे क्योंकि उसमें ऐसा कोई कारण नहीं मालुम मुर्तिके उपर लेप कछोटा कारमोटा लंगोटा आदि पडता नितसे संभव हो कि वर्षाऋतुका व बना सकेंगे। दिगम्बरी क्षु हटाकर पृनन कर दुसरा पानी हो।
सकेंगे। अपनी ओरसे इसकी अपील प्रिवी. जैन वीर-नामक पाक्षिक पत्र भरत दि. कौं सेलमें होनेवाली है। जैन परिषदकी ओरसे बिननौरसे ब्र. शीतल. देश सेवकका स्वागत-बिजनोरमें ला. प्रसादनी व बवू कामताप्रसादमी द्वारा संपादित नेमिशरण नी जैर की देश-सेवामें भाग लेनेहोकर प्राट करने की तैयारी हो रही है । बहुत पर एक दर्षकी रूत कैमें जेल गये थे। वे. करके कार्तिक मुदीसे प्रकट होगा। छूट आने २२ ता. १७ सितम्बरको आपका
धगाल आसाम-प्रा० खंडेलवाल मा। बिजनो में अपूर्व स्वागत हुआ व बारको ८: वार्षिक सव कार्तिक सुदी १५ को होगा। मानपत्र दिये गये थे . जि में एक मानपत्र
कचनेरजी-में कार्तिक सुदी १५ को जैनों का भी था। आपकी देशसेवा अपूर्व है। वार्षिक मेला होगा।
आपका चित्र हमने मंगाया है जो आगामी खास विना मूल्य-जहां-२ शास्त्र भंडारों में अंमें परिचय सहित प्रकट होगा। इष्टोपदेश टीका ग्रन्थ निसकी सरल दोहद-में सेठ माणिकचंद जुबिलीनाग दृष्ट बचनिका पूज्य ब. सीतापादनीने लखन उमें फंडके उपदेशक ब्र. दिग्विजयसिंहजीके पधारचातुर्मासमें ठहर र अतीव परिश्रपसे बनाई है, नेसे शास्त्र व आप सभ द्वरा जैन धर्मकी बड़ी न पहोंचा हो वे डाक व्यय =)॥भेलकर शीघ्र- प्रमावना हुई व ब्रह्मवारीजी को दोहद समाजको ही हमसे मुफ्त मगाले।
'ओरसे 'वक्ताकलाप्नुवानिधि का पद दिया ला. बरातीलाल जैन, पहियागंन, लखनऊ। गया है।
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3-14
दिगंबर जैन।
सर सेठजीकी वर्षगांठका उत्सव- राणगिर-पर हरसिद्धि पर दशहरा के दिन दा० रा० २० सर सेठ हुकमचंद की ५० वीं सेंकडों पशुओं का वध किया जाता था जो हमेशाके वर्षगांठका उत्सव इन्दौर राज्यके प्रधानके सभा. लिये बंद होगया।------------- पतित्वमें जबरी चागमें आश्विर सुदी३को समारोहसे भीड-में कन्याशालाकी स्थापना होगई । हुआ था। समा मंडरकी शोभा अपूर्व थो। डदेपुर-में दिगम्बर जैन धर्मशालाकी इसलिये पूजन, तीन भाषाओं में संचाद, व्याख्यान आदि जरूरत है कि वे शरियानीकी यात्रा जानेवार्कोको होकर सेठ नी का भी व्याख्यान हुआ व विद्या- वहां श्वांबरी व अन्य धर्मशालाओंमें ठहरना र्थियों को ३४९) का परितोषिक बांटा गया। पडता है जहां बहुत कष्ट व अपमान सहन
में व्यायामके खेल व औद्योगिक प्रद. - करना पडता है। हर्षे है कि अग्रवाल दि० मैन र्शनी मी हुई थी। साथमें कंचनबाई श्राविका. मंदिरके पीछे हमारी बहुत सी जमीन है उसपर श्रमका उत्सव भी सौ० रत्नप्रमादेवीके सभापति धर्मशाला बनवाने का निश्चय हुआ है। एक २ स्वमें हुआ था जिसमें मो स्त्रियों के अनेक पा. कमरा तयार करानम करीन ५००) खचं होगा। ख्यान हुए थे। व इनाम बांटा गया था।
यदि दानी महाशय एक २. कमरा बनवावें तो
सहनमें दशवीत कमरे हो जायेंगे। कमरेपर दानीका शामको सब दि० जैनियों को प्रीतिमोजन दिया गया था। .
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नाम अंकित किया जायगा। कमरेकी स्वीका
... विहार उडीसा-प्रा. दि. नैन खंडेल.
रता मेननेका पता इस प्रकार है। पं. स्तनकुमार, वाल सभाका उत्सव ह नारीवागमें कार्तिक सुदी
मैने नर अमाल दि० जैन मंदिर, धानमंडी
उदयपुर ( मेवाड) ७-८ को सेठ तासु वकालनी पांडयाके समा.
पानीपतमें-आश्विन मुदी ८ को ११पतित्व में होगा।
महाशयों को यज्ञोपवीत संस्कार कराने का उत्सव उदयपुर-में पवनाथ विद्यालयका वार्षिको.
५ घंटे तक विधि सहित धूपघामसे हुभा था। सव पौष सुदी १२-१३-१३ को होगा। सब विधि पं. फुजारीलाल व पं० भेषमचंद
सिद्धवरकूट-में भी क र्तिक सुदी ८ से शस्त्रीने कराई थी। व रा० ब० ला० लक्ष्मीचंम० वदी १ तक मेछा होगा।
दजी मी इस कार्य में सामिल हुए थे। यज्ञोपवीत पानीपत-दशलाक्षणी पर्वमें पूज्य ब्र० लेनेवालों में एक भाई नेज्युएट भी हैं। सीतलप्रसादनीके उपदेशसे १३६०) का दानका मनि हए-शांतिसागर जी महारान जो, चंदा हा था जो १५ संस्थाओं को भेना गया है। ब्रह्मचारी से क्षत्लक हुए थे अब भदौं सुदी १४
दहीगांव-अतिशयक्षेत्र जो नातेपुते(सोहा- से निर्ग्रन्य मुनि होगये हैं। पुर)के पास है वहां वार्षिक रथयात्रा का मेला कटनी-जैन पाठशालाकी बोर्डिगके लिये मगति वदी ५-७ को होगा। कई विद्वान व १५ छात्रों की आवश्यकता है। कमसे कम हिंदी भनन मंडली पधारेंगी।
चोथी कक्षा पास विद्यार्थी लिये जायगे।
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७res
(८-अ ) .
दिगंबर जैन। ससनर-में ब्र० छोटेलालके पघारनेसे जैन बोर्डिंग हाउस मरेठ-का १२ अनेक प्रकारके सुधार हुये व पाठशालाकी व्यव- वां वार्षिकोत्सव कार्तिक सुद १-२ ता.९-१० स्था होगई।
नवम्बर को पा० धर्मदास जैनकी धर्मशालामें - महावीर ब्र० आश्रम कारंजा-का होगा इसमें उत्तम २ व्याख्यान करनेवाले व पांचवां वार्षिकोत्सव सेठ हीरालाल कामदार बिनो. उत्तम कविता पढनेवालेको रजतपदक दिये जावेगे। लियाके सभापतित्वमें आश्विन सुदी १२ को
___ ऋषमदाप्त वकील । बड़े मारी समारोह के साथ हुआ था। सुबह से ,
२-मां से मुही ८ वहिन भाम
૧૧ એ વિધિ પૂર્વક યજ્ઞોપવિત ગ્રહણ કર્યું હતું ८ तक दौडने की शर्त, सर्कस जैसे व्यायामके
જે પ્રસંગે ત્યાં પં. દીપચંદજી વણ ખાસ પધાર્યા अनेक प्रकार के खेल हुए जिसमें उत्तीर्ण विद्या- ता. १० सुरेशात तात्य छन. . र्थियों को सोने चांदी के तमगे व २५) बक्षीस महावा-जी ० भ०६० मा दिये गये। सारांश कि यहांकी बाहुबलि व्यायाम
ગમાં રૂપાબાઈ સ્મારક વિદ્યાર્થી મંડળ તરફથી
નાગપુર સત્યાગ્રહમાં જેલયાત્રા ભેગવી આવનાર शाला अतीव उत्तम व अनुकरणीय कार्य कर सास धेयामा गांधी असेश्वरने मादी रही है जिसका सारा श्रेय व्यायामाध्यापक प्रो० ५२ छापे मानपत्र भय ४२वामा . मायु श्री. अमीचंद शाहको है। शामको श्रमरा तु. भानपत्रमा उत्तरमा छ।बाबमासन बर्षिकोत्सव हुआ था जिसमें श्री चारे वकीलने अनुभव व्या ते अन यु तु त्यां
પણ ન ધર્મ પાળી શકાય છે. स्वागतका ख्यान किया, शामलाल दुलासान साभाई-भां पशु मामा २७वनकाबरीने रिपोर्ट पढ़ा फिर विद्यार्थियोंके अंग्रेनी सन २१ वा भोटे ता. २६ सप्टेपरे भान. संस्कृत व हिंदी संवाद हुए व अंतमें समापतिका पत्र अपायुं तु. नाख्यान हुआ जिसमें उन्होंने इस ब० अ श्र.. - ६. नेन पाशामा पानि
મેળાવડો ભાદરવા સુદ ૧૦ ને દિને કોઠારી પનાमके कार्यकी बहुत प्रशंसा की व चवरे वकील व
લાલ દલીચંદજીના સભાપતિ પણ નીચે થયો હતો. महाजन वकीलने सबका आभार माना व उत्सव
જ્યારે પં૦ દીપચંદજી વર્ણ, જેચંદ નાથજી વગેसमाप्त हुआ । उत्सवमें बहारसे बहुतसे माई रेन व्यायाने २४ नामी वयाया ता.
- સુરત-ની દિ. જૈન પાઠશાલાની વર્ષગાંઠ पधारे थे।
ભાદરવા વદી ૫ ને દિને ઉજવાઈ હતી, જ્યારે
20 विधायामाना गायन, व्यायान, संवाद, सरत, श्राविकाश्रम में दश श्राविकाओंकी जगह खाली रास (३२गुथव।) पोरे थयां Cai. है। आनेपाली बाईये शीघ्र ही पत्रव्यवहार करें.
- લાકડા-માં કોઠારી ઉગરચંદ સકલચંદ
- દિવ જૈન પાઠશાળાનું નિરીક્ષણ પં. નંદલાલक्योंकि दीवाली पीछे नया अभ्यासक्रम चालु मेरी सताष यो ता. ५शाणानु होनेवाला है।
સ્થાયી ફંડ થવાની જરૂર છે. પુસ્તકો સાથે ભણ
વવાં જોઈએ તથા ક્રમ પરીક્ષાલયનો રાખવે स मंत्री, श्राविकाश्रम, तारदेव, मुम्बई।
જોઈએ. પંચને પાઠશાળાપર પ્રેમ બહુ છે.
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दिगंबर जैन |
( ८-अ )
अभामां बडिसा
हानेर
( ભીલેાડા ) ના શાહ પાનાચંદ ગુલાબચદ ગડીમ નવાવાસથી લખે છે કે “ આસા સુદ ૮ ના રાજ હરસાલ અંબાજી ( દાંતા ) માં હજારા જવાની હિં'સા થતી તે હિંસા આ વર્ષે બંદ થઇ छे. होढसो जसो 1 ( रा ) भारवा सारेसा છેડાવી મુક્યા છે અને દાંતા દરબારે ઢેઢેરા પીટાળ્યા હતા કે કાઇએ જી મારા નહિ, મારશે તે गुन्हेगार थंगे. थे वजने सभा उरी सार वेयवामां यात्री बती. ते हिवसे भारी मुनम तामां हुने! सुह ७ ना शन में प्रभु प्रत्येभाराथी અનતી સ્તુતિ જીત્ર હિંસા બંધ થવા કરી હતી. ને પ્રાંતના કરી હતી. કે આઠમના જીવે બચે અને छत्र हिंसा न थाय तो गोण मास नहीं तो ખાશ નહિ. કુદરત કૃપાએ એમ બન્યું કે ૫૦૦ શ્વેતાંબર જૈના સુદ્ર ૭ ના રાજ અંબાજી આવી પહુંચ્યા. અને પેાતાની ગરદન નમાવી भाताना सगण दुभा रखा हमने जो भारी પણ જીવાને મારવા ઋણું નહિ. તે જો દેવીતે ભેગ તંવા હશે તેા લેશેા. ા જાનવરે તે તેની હદમાં છેાડી મુકા, તેવી કેટલી ટક્કર પકડી અને સરકારી અધિકારીઓ તથા ખુઃ દરબાર તથા મહારાજ કુંવર વીગેરેના હાથ પકડી ઉભા રાખ્યા અને હુથીઆર નીમાં મુકાવી બંધી કરાવી અને સભા કરી સાકર વેચી છા છેડી મુક્યા
""
गोटीटोरिया में शास्त्रसमा तीन दफे होती थी । इस साल मंदिर में सभ बस्त्र देशी थे व सब माई देशी वस्त्र ही पहन कर जाते थे।
अकलतरा में लिं० खूननंद व बंशीलालने दशाक्षणीका उद्यापन किया था जिसमें अन्य सामान के साथ मंदिरजीमें घोती दुपट्टे अछार खादिवत्र शुद्ध खादी के ही दिये थे ।
बड़वानी - मे ब्र. गेबीलालनीके ठहरनेसे शास्त्रमा पूजनादिका अपूर्व आनंद रहा ।
तेरह द्वीप विधान मी हुआ तथा १५६ ) का चंदा संस्थाओंके लिये हुआ था ।
पाढ़म- में जयकुमारजी, पं०जिनेश्वरदासजी, पं० सोनपालनी, बा० ज्योतिप्रसादजी आदिके अनेक व्याख्यान हुए थे ।
कन्नूर में मुनि शांतिसारनी के दर्शनार्थ श्री मगनबहिन, पं० बंशीधरनी, सेठ जीवराज गौतम आदि पधरे थे । वहां त्वचर्चा का आनंद अपूर्व था। कईयोंने व्रत नियम लिये, गोकाक के एक जैन ने ब्र० दीक्षा ली। फलटण, नीरा, लोनंद, सोलापूर, नातेपुते से मी बहुत माईं पच रे थे ।
इस प्रकार वेहट, महेश्ध', राजनांदगांव, सिराना, लखनऊ, होशंगाबाद, नागोर, कुंथलगिरि, वीनारा, मलकापुर, मारोठ, पपोरा, झांसी आदिसे भी यह पर्व सानंद माननेके समाचार मिले हैं।
आवश्यक्ता ।
सचित्र खास अंक के लिये-दिगं र के सचित्र खास अंक के लिये हिन्दी, गुजराती, मराठी, अंग्रेजी, संस्कृत लेख व कविताएँ भेजनेवाले अपने २ लेखादि आठ दिन के भीतर २ भेज देवें ।
संस्थाओंके अप्रकट चित्र व जेलयात्रा हो आनेवाले जैन वीरोंके चित्र व परिचयकी मी हमें तुर्त ही आवश्यता है ।
सचित्र खास अंक १०-१५ चित्रों सहित (१०० पृष्ठका) एक माह में प्रकट होगा । मैनेजर, दिगंबर जैन पुस्तकालय - सूरत ।
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26666566SESECE FEGE
धूम्रपान निषेध |
९ )
दिगंबर जैन ।
०००
दया उठ जाती है । यह एक बड़ी गंदी आदत है । महात्मा टॉल्स्टॉय "लोग नशा क्यों करते हैं" शीर्षक लेखमें लिखते हैं कि:
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( ले० - आर. टी. लाल जैन - फुलेरा ) प्रायः सभी जातिके मनुष्य किसी न किसी रूपमें धूम्रपान करते हैं । इस ही कारण से हमारे भारतवासी दिन प्रतिदिन आळसी, पुरुषार्थ हीन एवं दरिद्री होते जा रहे हैं। आजकल के नवयुवा पहिला शौक बीड़ी (चुरुट) व सिगरेट पीना ही है | बिना सिगरेट व बीड़ीके पं. ये तो वह अपनेको नेंट?मैन (सभ्य पुरुष ) ही समझते । यह सच ही मानते हैं कि तम्बाकू, बीड़ी, एवं सिगरेट इत्यादि मादक पदार्थ शरीरको किसी न किसी रूप में हानिकारक है ।
नहीं
ग्रामीण मनुष्यों ( देहातियों) में अधिकतर हुक्का पीनेका ही रिवाज (रहम) है । यह प्रथा देहातियों में भी दिन प्रतिदिन ताकी पाती ना रही है। यहां बच्चे व बूढ़े सब ही हुक्का पीते हैं। इसलिये देशा छोटे छोटे गांवों) में इस 'प्रथाको रोकना अत्यावश्यक है ।
धूम्रनसे विवेकबुद्धि नष्ट होती है । और एक तरह से यह मद्य से भी खराब है । क्योंकि इसका असर पड़ा हुआ मालूम नहीं होता। यह ऐसी लत है कि जिसके एक दफा भी लग गई, बस फिर तो उसका छूटना ही दुःसाध्य होगया । इससे मनुष्य के पहले खर्चेकी मी एक बड़ी भारी रकम बन जाती है। इसे धान खराब होना है। मुंह में दुर्गंध आने लगती है, दांत . मैले होजाते हैं। मन मलीन होजाता है । हृदयसे
"तम्बाकू पीनेवालों का यही खयाल है कि इससे ( तम्बाकू) चित्त प्रसन्न रहता है, दिमाको साफ करती है और यह शराबकी तरह विवेक बुद्धिको भी निकम्मी नहीं करती है । परन्तु तम्बाकू पीने की विशेष इच्छा जिस हालत में होती है, उप हालतको जरा सावधा नीसे देखिये, आपको विश्वास होगा कि शराब से विवेकबुद्धि पर जो असर पहुंचता है वही भसर तम्बाकूसे मी होता है। जब विषेक बुद्धि मारने की जरूरत पड़ती है, तब लोग जान बूझकर बेहोश होने की इस क्रिशको (तम्बाकूको उपयोग में लाते हैं । यदि तम्बाकू सिर्फ दिमाग साफ करती, या मन प्रपन्न करती तो मनुष्यको उसकी तलफ इ. नी न सताती । लोग यह न कहते कि " एक वार रोटी न मिले तो न सही, पर तम्बाकू विना काम नहीं चल सक्ता
उस बावर्चीने जिसने अपनी मालकिनका खून किया था अपने इनहार में कहा था कि "जब मैं अपनी मालकिनके सोनेके कमरे में कर गले में छुरा भोंक दिया तब वह जमीनपर लेट गई । और उसके गले से खुनकी धार बह चली, बस मेरी हिम्त्रत जाती रही और उस समय मेरे हाथ उसका तमामं न हो सका । तब मैं फौरन दूसरे कमरे में गया और वहां बड़ी देर बैठ मैंने एक सिगरेट पीयी । सिगरेट पीकर वह उस शयनागर में पहुंचा और उसने वह काम पूरा कर डाला |
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दिगंबर जैन |
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( १० )
इस बात से साफ जाहिर होता है कि उस मौर जो तम्बाकू पीने की इच्छा उत्पन्न हुई थी, वह दिमाग साफ करने व आनंद पानेके लिये नहीं, किन्तु उस शक्तिको दवानेके लिये जो उस विचारे हुये कामको पूरा करने से उसे रोक रही थी ।
बालक कम तम्बाकू पीते हैं ? प्रायः तमी जब उनकी निर्दोष बाल्यावस्था समाप्त हो जाती है ।
1
यह कैसी बात है। मनुष्य में जब कुछ नीतिमत्ता (ज्ञान) अ श्री है तो वह तम्बाकू पीना छोड़ देता है । और बुरे फेलो में पड़ते ही वही फिर तम्बाकू पीने लगता है । प्रायः सब ही जुभारी तम्बाकू क्यों पीने लगते हैं ? नियमित जीवन बितानेवाली स्त्रिये तम्बाकू क्यों नहीं पीती ? क्यों बेश्यायें और पागल सम्राळू पीते हैं ? आदत तो है ही, किन्तु इसका असली कारण दिवेक बुद्धि मारने की इच्छा ही है । इसी उद्देशसे यह पीयी जाती है और पीनेपर उद्देश तुरन्त पूर्ण हो भी जाता है ।
प्रायः प्रत्येक तम्बाकू पीनेवाले मनुष्य की हालत देखकर आप मालूम कर सक्ते हैं कि तम्बाकू विवे- बुद्धिको कहां तक दबा सका है | मनुष्य जबतक तम्बाकू नहीं पीता तबतक तो वह स्वयं भी समान आवश्यक नियमोंका पालन करता है । और चाहता है कि दू: रे मी I वैसा ही करें । परन्तु जत्र वह तम्बाकू पीने लगता है तब उन नियमों को भूलकर उनके विरुद्ध काम करने लगता है । साधारण लिखे पढ़ लोग भी तम्बाकू पीस बुरा । त्याज्य और
अपने आनंदके लिये तम्बाकू पीकर दूसरेके स्वा स्थ आराम और शान्तिमें विघ्न उत्पन्न करना मनुष्यत्वके विरुद्ध समझते हैं ।
आजकल भारतवर्ष में तम्बाकू, बीडी, एवं सिगरेट का प्रचार बहुत जोरशोर से है । और दिन प्रतिदिन इनके प्रचारार्थ नये नये कारखाने खुलते दिखाई दे रहे हैं । और हमारे मारतवासी भी इनको अपनाने में कुछ कसर नहीं रखते ।
या वह समय नहीं रहा है कि हम इन मादक पदार्थों द्वारा हमारी विवेक बुद्धिको नष्टकर अपने मनुष्यत्वको खोवें । तथा अपने अमू
द्रव्यको पानीकी तरह बहा देवें । परन्च हमको वह काम करना है कि जिस कामको महात्मा गांधीने पूरा करनेका प्रण किया है ।
प्यारे भारत सपूतो ! कुछ समय के लिये अपने मौन, शौक, एवं आरामको भूल जाओ, और थोड़े समय के लिये महात्माजीके आदेशानुसार अपने सबै गृह कार्य छोड़ देशसेवा में संन होजाओ । यदि आपको किसी तरह की तकलीफ एवं दुःख हो तो उसको सहनशीलता से सहो । तथा कुछ समय के लिये महात्मा गांधीका साथ दे डालो |
आनहीसे भाप लोग धूम्रगन करना छोडदें । और इसमें जो क्रप खर्च होता है उसे देशसेवामें लगाना शुरू करदें, और प्रण कर कि आजसे हम धूम्रगन कभी नहीं करेंगे । इसी से देशोन्नति होने की आशा की जा सक्ती है । देखिये, कवि रूपचंदमीने अपनी सुन्दर कविता में इसका जितना निषेध कि
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ENOPAROK
(११) दिगंबर जैन ।
॥ लावनी॥ धर्म भूक आचरण विगाड़ा, इसका हेतु नहीं रहा इदम् । विवेक जाता रहा हिये से, सबकी झूठी पीये चिलम ।। १ ।।
प्रथम तम्बाकू महा अशुचि है, म्लेछ इसको बनाते हैं।
छूने योग्य नहीं बर कुलके, आने तोय लगाते हैं । ठंडी चिलममें धूम योगते, जीव असंख्य बताते हैं। पीते ही मर जांय समी पह, जिन श्रुतीमें गाते हैं ।
होती इसमें अपार हिंसा, जरा दया नहीं भाती गिलम् ।
विवेक जाता रहा हियेरे, सबकी झंटी पीये चिलम् ॥ २॥ कौम रनीलोके साथ, पीते हैं गई अबरू यह क्या बनी है ? हया दूर कर धर्म लनाते, उन्हीं में जानेकी मत सनी है ॥
बह चर्म गांना पीये पिलायें, उसीने बुद्धि यह तेरी हनी है।
सांस प्रगटकर बदन मछता, प्राण हरनेको यह हरफनी है ॥ लंगाना दमका बहुत बुरा है, पीते तन में पडे खिम् । विवेक जाता रहा हियेसे, सरकी झूटी पिये चिरम ॥ ३॥
थावर अस करि सहित मरा जछ, कुवाहका यह निधान हुक्का ।
मुतोय पड़ते सुनीव मरते, हैं पापका यह निषःन हुक्का ॥ रोग भिन्न होनाय कहें नर, पीते हैं हम यह जान हुक्का। । शुद्ध औषधि करो ग्रहण तुम, अशुचि जान करियो दूर हुक्का ॥
सीख सुगुरुकी यही रूपचन्द, त्यागो जल्द मत करो विलम् ॥ .
विवेक जाता रहा हियेसे सबकी झूटी पीये चिलम ॥४॥ .. और देखिये:
॥कविता॥ जहरकी सास दुष्ट दुलही हलाहलकी।
बीछीकी बहिन पर पंचरूप सानी है। नानी करियारेकी धतूरेकी ममानी, पीतियानी ।
बच्छनागकी नहानमें विरानी है ॥ कहे गंगादत वह बचावे धन्य प्राणी।
भो अफीमकी जिठानी विष खोपरेकी आजी है॥ माहुरकी मौसी महतारी सींधियाकी ।
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दिगंबर जैन।
(१२)
यह तम्बाकू दई मारीको किने उपरानी है। चिजको भ्रमाय देत, मनको लुभ य लेत,
गुण को न देखे कछु खाये क्या भलाई है ? दशन विनाश करे मुख में दुर्गव व्हे,
___ उष्णताकी बाधाने रक्तता सुखाई है ।। गर्द के मूत्रवत जामन गायकर,..
कृषीकार वोय पुनि सच ही करित पाई है ॥ धन्य है खवैयनको खाय जो तम्बाकूको,
____समां मांझ दूर होय पुचपुची लगाई है ॥ और देखिये-५० मृधरदासमीने इसका कैसे निषेध किया है
॥दोहा॥ बंदो बीर जिनेश पद, कहों धर्म जगतरे । बरते पंचम काल में, जग जीवन हितकार ।। ताहिन त्यागे धूमप्तों, सारे निज उर जान ॥ देखो चतुर विचारके, तिन सम कौम अयान ॥
॥ चोपाई (छन्द) है जगमें पुरुषास्थ चार, तिनमें धर्म पदारय सार । माके सधे होय सब सिद्धि, या विन प्रगटे एक न रिद्धि । सो पनि देयारूप विन कहो, करुणा बिन जिन धर्म न लहो । यामें छहों कायकी धत, कईहै कहां दयाकी बात ॥ सो सब सुनो सबे बिरतंत, सुनके त्याग करो मति।। हरित कायकी उत्पत्ति हेय, अग्नि संयोग भूमि गनि लेय ।। अग्नि नीर है याको साज, इन बिन सरे नहीं यह कान । काढत धूम बदनते माम, होय समीर कायकी हानि ॥ इह विध पावर दया न होय, असकी त्रास होय पनि सोय । कुंथु आदि जीव या मांहीं, खेचत स्वांस सबै मर नाहीं ॥ उपजे जीव गुडाखू वीच, हुयी है तहां सनकी मीच । हिंसा होय महा अध संच, ऐसे दया पले नहीं रंच ॥ यही बात जाने सब कोय, जंह हिंसा तहां धरम न होय । बहुरि धरम नाश भयों जहां, सकल पदारथ बिनसे तहां ॥ तातें निंद्य मान यह कर्म, पापमूल खोवे धन धर्म ।
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दिगंबर जैन
( १३ )
याद ||
घरे |
यामें कोई न देखे स्वाद, प्रातः होत ही आवे मव्य जीव सामायिक करे, सब जीवन सों समता यह जोरे सत्र याको साज, और सकल विरे घर काम ॥ सेवे याही पुरुष उर अंध, बातें मुखदुर्गंध
उत्तम जीवनको नहीं काम, सिगे हलकहोर उर स्याम ॥
जाको कोई ना आदरे, सो सब बातु यामें परे । या सब पवित्रता जाय, परकी झूठ गहे मन लाय ॥ यास कछु पेट ना भरें, हाथ जर्द मुख- कडुको करे । गिने नया कर रैनि सवार, बुरो व्यसन है लेऊ विचार !! ॥ दोहा ॥ स्वाद नहीं स्वार्थ नहीं, परमारथ नहीं होय । क्यों झटे जग झुक्को, यही अचम्मो मोय ॥ ॥ चोपाई (३) ।
बैठे जहां शोभे नहीं पुरुष वह सहीं । जिहिंसनकी गोट मंझार, काग न शोमा रहे अपार ॥ या नफा नहीं तिल मान, प्रगट होत है से समान । यह विवेक बुद्धि हिरदे घरो, ऐसी मान भूल मत करो ॥ इतनी बिनतीपे हठ गहे, मोह उदय त्याग नहीं वहे । तासों मेरी क्यन साय, लाठी लेय न मारो जाय ॥ ॥ दोहा ॥ सरल चित्त सुन भेद यह, तजे आपतों आप | हठ ग्राही हठ गहि रहे, जिनके पोता पाप ॥ हठी पुरुष प्रति यह वचन, सर्व अकारथ जांहि ।
·
ज्यों कपूरको मेलिये, कूकरके मुखमांहि ॥ भूदरदात मनसों कही, यही यथारथ बात । सुहित जान हृदय धरो, क्रोप करो मत भ्रात || सबहीको हित सीख है, जाति भेद नहीं कोय । अमृता जो कोई करे, ताहीको सुख होय ॥ इति ॥
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पाठक ! यदि आप लोग इसको ध्यानपूर्वक पढके मनन करेंगे, तथा मनुष्य मात्रको इसका " धूम्र गनका" हानि लाभ बतलादेंगे तो मैं आशा करता हूं कि भारतवर्ष शीघ्र उन्नतिके शिखर पे जा विराजेगा । अंतमें श्री महावीरस्वामीसे प्रार्थना करता हूं कि. हे भगवान् ! हमारे भारत सपूतों को शीघ्र सुबुद्धि हो ।
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दिगंबर जन ।
ONOJएक
Vा विदधाति नरस्प ऐषः । अर्थात् इस विशाल क्रोधका प्रताप विश्वमंडल में इस आत्माका जितना नुकप्तान कोव
. करता है, उतना न तो क्रोधित हुए राना और महस (ले०-६० चांदमल काला विशारद पचार )
शत्रु करते हैं। न हरि हस्ती और सदिक क्रोधरूपी उग्र वैरी संयमभाव, सन्तोषभाव, ही कर सकते हैं क्योंकि ये तो अधिकसे अधिक निराकुलता नष्ट करने में अग्निके महश है। यदि हानि कर सकते हैं तो एक मामें केवल अर्थात् जिस तरह अग्नि अखिक वस्तुओंको प्रोहीका घात कर सकते हैं पर यह क्रोध एक क्षणमें बहस तहप्त कर डालती है, उसी तो संसाररूपी कानन को दग्ध करनेवाले धर्मका तरह यह ऋध मी सैंकड़ों व सहस्रों वर्षोंसे नाशकर जन्मनन्ममें अनेक तरहसे दु:खित उपार्जित की हुई पुण्य सामग्रीको एक क्षण में करता है । तस्मात् प्रिय बन्धु भो! ऐसे क्रोधको नष्ट कर देता है। द्वादश वर्ष किया हुआ दीपा. सर्वतया छोड़ देना प्रत्येक जीवका कर्तव्य है। यन मुनिका घोर तप एक क्षण क्रोधके प्रतापसे क्योंकि जबतकहृदय पटल में यह कोष विरा. बिलीन हो गया । सज्जनो ! चिरकालसे उत्पन्न
कालो पत्र जमान है तबतक चाहे व्रत, यम, नियम, जा हुआ प्रेम इसी क्रोधरूपी पिशाचसे एक मिनि- अनशनादिक तप कितने ही क्यों न करो किंत टमें नष्टत्वको प्राप्त हो जाता है। प्रिय वाचक ये सब क्षमाके अभाव में निरर्थक हैं। वृन्द ! क्रोधी मनुष्यसे मस्त लोक बैर-विरोघ प्रिय पाठकगण ! इस विशाल भूमण्डल में करने लग जाते हैं। प्रगाढ़ प्रेम करनेवाला मित्र क्रोधके सदृश कोई प्रबल रिपु नहीं है। क्योंकि भी दुश्मनी करना प्रारम्भ कर देता है । सज्जन देहको धारण करनेवाला शत्रु तो अधिक मधिक पुरुष मुँहसे भी क्रोधी मनुष्यसे भाषण नहीं गाली देना, मारना, प्राणों का घात कर सका करते हैं। क्रोधी मनुष्यमें हिताहित व पूज्यापूज्य है किंतु क्रोधरूपी शत्रु तो मित्रताका नाश बुद्धि नहीं रहती। स्त्री, पुत्र, पिता, माता, कर देता है, दुर्बुद्धि उत्पन्न कर देता है, मित्र वगैरह प्रिय बन्धुओंको यह क्रोधरूपी दुर्भाग्यको खींचकर पास ले आता है । प्राणोंसे राक्षस मनुष्यके हृदयमें प्रविष्ट होकर मरवा प्यारी कीर्तिको नष्ट कर देना है। यद्यपि क्रोध. डालता है। इसी क्रोधके प्रतापसे यह मनुष्य का आधिपत्य प्रत्येक जीवके हृदयस्थानमें : भूमृत व मंदिरसे कूप व कूपिकाओं में गिरकर मौजूद है तथापि उसको परित्याग करके क्षपा आत्म-हत्या कर बैठता है । क्रोवकी बनहसे धर्म रूपी ऐश्वर्यको प्राप्त करना मनुष्य मात्रका भृष्टी दुराचारी निर्दयी असत्यमाषी ईर्षी घृणी उत्कृष्ट कर्तव्य है। क्योंकि देश, काल और असंतुष्टी हो जाता है। कहा है कि दोषं न तं नृपवयो- क्षेत्रमें सर्वया हितकारी क्षमाको धारण करनेसे रिपवोऽपि रुष्टाः कुर्वति केसरि करींद्र महोरग वा। जो फल प्राप्त होता है वह जीवों को तीर्थयात्र', धर्म निहत्य भाकानन दाववहिं यं दोषमत्र जिन विंचामिषेक, जप, होम, दया, उपास,
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(१५)
दिगंबर जैन । ध्यान, वा, अध्ययन, संयम, दान और पूजा बदल तेओने भंडारी नीए जे उपज थाय तेमाथी करनेसे भी प्राप्त नहीं होता अतएव क्षमाको अमुक टका आपवन नक्की कयु हतु. भट्टारकग्रहण करना जीव मात्रका कर्तव्य है। मनु- जीने विहारमा लगमा मातेक वर्ष बीती गया, ध्यका भूषण क्षमा ही है। क्षमावान् मयंकी अने ते अरसामां एक बीनो बनाव बन्यो. जे कीर्ति संपूर्ण पृथ्वीमंडल में विस्तृत होजाती गाम (धुळे)मां आ तीर्थ छे, ते गाम उदेपुर है। क्षमाधारी मनुष्पको प्रत्येक जीव प्रेमकी राज्यना हाथ नीचेना एक राज्यना ताबामा हतुं,ते दृष्टिसे अवलोकन करते हैं । अतएव रानाने पोतार्नु अमुक कार्य थाय एवी घणी सज्जनों ! इस क्रोध रूपी उग्र वैरीको अपने उत्कंठा हती, अने आ मूर्ति उपर घणी आस्था हृदयपटलसे हटाकर समस्त धर्मों में श्रेष्ठ मोक्ष. हती, तेथी तेणे एवो निश्चय कर्यो के जो ते मार्गमें प्रवृत्त करानेवाली क्षमाको चिन्तामणी कार्य पोते इच्छा राखे छे ते प्रमाणे फळोभृत रल समझ कर ग्रहण करने में संकोच मत करो। थाय तो आ दहेरासरजीने ते गाम के जे हदमा
भा तीर्थ आव्युं छे, अने तेनी भासपासनी हद श्री केसरीयाजी तीर्थनी
के जे स्पेनी आवक हन रोनी हती, ते भेट
करवी. देव प्रापथी ते कार्य फलीभूत थयुं, आगाही.
अने पोताना. निश्च । प्रमाणे ते गाम तया ते (लेखक-नवनीतलाल चुनीलाल जरीवाला-मुंबई.) तालुहानी सघळी उपन तथा हको श्री मंदिर
घणा टुं क समय ऊपर श्री केशरीयानी तीर्थनी जीने भेट कर्या. आथो मंडारी नीना हाथमां यात्रा करवानो हख गरने लाम मळ्यो हतो, सबळ राजद्वारी (त्ता आवी. आ सत्तार तेमने अने त्यांना केटलाक दृश्यो तेमन स्थिति जोतां मदांध कीधा, अने भट्ट र कजीनी सत्ता तद्दन मा टुं लखाण दिगम्बर जैन बन्धुभोनी जाण उथवावी काढानां तेणे पग लीवां. ए अर. माटे लखवानी फरज लागी. श्री केशरीयानीनु सामा भट्टारकनी पाछा पार्या, मंडारीनी पासे तीर्थ दीगंबर जैन कोमनो मोटो भाग जाणतुं सघळो हीताव माग्यो. भंडारी नीए पातो खुलासो हशे के ए तीर्थ पोतानी उत्पत्तिथी दिगम्बर आप्यो नहि. ए चर्चा लगग वे वर चाली,
आम्नायर्नु हतुं, अने ते स्थिति लांबा समय कोई पण निश्च । थयो नहिं भने ए समय श्री सुधी चालु रही.
मट्ट र कनीए काळ कर्यो. त्या र बाद भंडारीनीनी - आ दहेरासरनो वहीवट पूज्य भट्टारकनीना सत्तामां कोई दखन माखन रं रघु नहि, एटले हाथमां हतो, तओए एक समये त्यांयी दीवसे दिवसे वधु जुत्त्मी थवा जाग्या.आपणा दि. विहार को अने ते वखते श्री मंदिरजीनो माइओ ते जिल्लामा घणी साधारण हालतमांछे. सघळो कारभार पोताना मंडारीजी के जेभो एक भने भा प्रमाणे होवाथी तेमांना केटलाको आ ब्राह्मण हता तेओने सोंप्यो हतो. या देखरेख मंडारीजीना राज्य बंधारण नोकरी हता,
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ANO
दिगंबर जैन । तेमांनो मोटो भाग खेतीवाडीने लगता राज्यना गर्नु, बीजुं मंडारी जीन अने त्रीजु जैनोनु भने काममां रोकाया हता. त्यार बाद एक वरसे एक सांकल त्यांना रक्षक मीलोन. आ भंडार अत्यार मंडारीजीए एवो हुकम महार पाड्यो के पर्युषण सुधी आन स्थितिमा छे. अने १९४० लगमग पर्वमां पण ते लोकोए बलद विगेरे लइ जा च लु उदेपुरना दीवान साहे। आ मंडारनी तपास लेवा दीवसो माफक काम करवू. लोकोए आ नहिं आव्या हता, पण श्रीजीनो हुकम नहिं होवाथी करवा म.टे अरज करी अने वयं के पर्युषण पर्व जो के तेमने मंडारना बारणां खोलान्यां, पण जेवा धार्मिक दिवसोमां अमो ते काम नहिं अंदर नई शक्या नहि. राज्ये थोडा वखत बाद कर शु. बीजी दरेक बावतमा तमारो हुकम मा- एक कमीटी नीमी जे आ मंदीरजीनी व्यवस्था नीये छीये, अने मानीशं, पण आ बाबतमां तो चलावा लागी. आ व्यवस्था दरम्यान दरेक धार्मिक बाध होदायी हुकम नहिं पाळ शु. वरसे मंदिरमां कोई अने काई फेरफार थतां रह्यो, भंडारीजीए ज्वानमा जणाव्यु के जो तेपनो हुकम जेवा जेवा मुनीमजी आव्या, तेवा तेवा फेरफार नहिं पाळवामां आवे तो जोरजुल्मथी पळवामां थतां रह्यां. वैष्णवो आव्या तेणे वैष्णवोनी शास्त्र आवशे. भा उपरथी त्यांना लोकोए संप करी वाचवानी मंदिरजीनी वचमां बेठक तैयार करावी. गाम छोडयु, अने पासे आवेला Political अने त्यां श्रीमद् भागवत दररोन दश वाग्या पछी Agent पासे फरीयाद कई गया. पोलिटिकल वंचाववानुं च लुं यु. मट्टारकनीनी गादी धीमे एनंटे भंडारीजीने संदेशो कहेवडाव्यो के रैयतने धीमे एक एक चीन ओछी रता कढी नांखी, राजी राखीने राज थई शकशे. रैयतना कार अने अत्यारे आपणु शास्त्र वांचवाने जग्या क्यां जुल्म वर्तावी राज्य नहीं कराय, पण सत्ताना राखवी ते सवाल यई पडयो. श्वेतांबरी मुनीओ बळयी भंडारी नीए ते संदेशानी काई पण दरकार भाव्या, तेमणे भगवानने मांगी व गेरे चढाववानो करी नहि. आ ऊपरयी पोलिटिकल एनंटे उदेपुर रीवान चालु कराव्यो, भने सबळी श्वेतांबरी काम न.री अतरेनी स्थिति जाहेर करी. अने साथे रीतभातो चालु यई गई. फक्त एक क्षु चढ वसलाह आपी के तरतन तेनो कबजो लई लेव. बानु न बाकी राख्यु, ते पण ते दहेरासरना पर. उदेपुर राज्ये तस्तन एक लश्कर मोकली कब मो ताने लईने, नहिं तो ते चढायवानो प्रयाप्त पण ते गामनो वडाव्यो. भा बनाव १९३२नी श्वेतांबरी रमान तरफथी थई गयो, पण तेमां साल लामा थयो. अने स्यारथी ते अस्यार सुधी पाछा पड्या अने ते वात मुलत्वी रही. भावी आन राज्यनी हकुमत चाळे छे. मंडारीजीने तेनी स्थीति जो वधु समय चालु रहे तो दिगंबसत्ता बदल श्रीकेसरीयाजीना मंडारनी उपनमाथी रीओना घळा नाकीना हे ना हको नाश पामे, सेंकडे तेत्रीस टकानी उपज वंशपरम्परा माटे करी अने छेवटे न्यारे सघळा जागे त्यारे शिखरजी
आपी. राज्यनी सत्तामां मंदिर आप्यु, ते दिवसेन अने बीना तीर्थोपा थयु,ते प्रमाणे लाखो रुपीया त्यांना असल मंडारपर त्रण ताला ९डयां-एक रा. खाची पोजाना हकने माटे लढवू पडे. दर वरसे
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( १७ )
दिगंबर जैन ।
यमां मुंबाई पधारनार छे. आ सघळ खुलाशाओ लई एक डेप्युटेशन यापणा अप्रगण्य नेताओनुं उदेपुर नरेश आगळ लई नवं नोइए ने तेमने घळी हकीकत्थी वाफ करवा जोइये अने अरज करवी जोइयेके Management मां आपणो मत रहे भने हानी सळो विगतनी नोंध कई आगळ उपर कोई पण फेरफार सर्वेनी संपति गर थई न शके. जे थयुं होय ते तो धई गयुं, पण भविष्य का नवीन न बनवा पामे एवो बंदोबस्त तो खाल करवोज जोईए. उद्देश्वर नरेश बापणी व्याजी मांगणी ऊपर ध्यान वाप्या वंगर रहेशेन नहिं. आटलं वाथी म वेष्यनी प्रजा माटे आपणे निर्विधन मार्ग करी शकीशुं. मा कार्यमां कांईपण प्रमाद राखत्रामां आवे तो जहर तेषां कांई अनिश्चित कार्य बनवा चोकस संपत्र छे. आ कार्य तीर्थक्षेत्र कमीटी तरफथी उडी ठेवं जोइये. आशा छे के आ नम्र भरजी जैन बन्धुओना हृदयमां उतः शे अने तेओ आ कार्यमां तो प्रयास करवा तत्पर थशे. अतीप इच्छा एन के जैन समाज हवे वधु झगडाना कारणो नहि उमा करी, जैन कोमनुं श्रेय करशे. एन.
एक एक हक नबुद तो जाय छे गये वरसे मंदिरजीनी उरनो नादंड फेरवानी हतो, ते वेम्बओर चढावानी तजवीज करी. एक संघ लगभग हजार माणसनो ते समयपर आवी पुग्यो, भने आ बधी गोठवण थई, पण दिगम्बर जैन समाजना सद्भाग्ये आपणा पूज्य लक श्री देवसागर स्यां हानर होवाथी तेमना प्रतापे से नानुं रक्षण पयुं छे. ते ध्वजा उपर दिगंबर अम्नायनो लेख छे, अने ते भरणा मतप्रमाणे चढावामां आवे छे. भवी रीते अनेक हको नामुद थ. मुख्य दहे (सरनी आसपासनी भमतीमां पण केटलीक प्रतिमानी ओना लेखो घड़ी कढया छे, वेटलाकने श्वेतांबरी लंगोटनुं चिन्ह करवामां पण बाकी नथी राख्युं. देखनगर अत्यार सुधीमां चार पांच समय दर्शन करी भाग्या छे, अने दरेक समय ऊपर कोई नवीनता माकम पडती होवाथी अत्यंत खेद साथे ते जोई केता, पण आ समये बांई पण भा कार्यमा सत्कार्य बनी शके एवं लागावी म लेख बख्यो छे..
लखनार हाल दर्शन करवा गया हता, ते समय त्यां देवसागर नामना एक क्षुल्लक श्री बिरानता हता. वात करतां मालम पहयुं हतुं के तेमनी पासे अस भट्टारकजी पासेस वेटलाक लेख तथा आ दहेसर संबन्धी सघळी माहीति हाल मोज्जुद छे, अने तेपनो इरादो एवो हतो के दि० समान तरफथी कांईपण आ जावतमां
लेवा तो मां जे मदद जोइये ते सघली पुरी पाडवा तेओ तैयार रहेशे, तेओ ड्रंक सम
बिल्कुल नया ग्रन्थ | विद्यमान वीस तीर्थकर की २० पूजाएँ
स्वर्गीय कविवर थानसिंहजी टर्टोक निवासीकृत यह पूना अभी ही बड़े २ टाइलों में चिकने कागज पर छाकर तैयार हुई है । पूना के छेद बड़े ही मनोहर हैं । पृ. १८८ सजिल्द मूल्य सिर्फ १ ) अवश्य मंगा लीजिये ।
मैनेजर, दिगंबर जैन पुस्तकालय - सूरत
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- બાહ્ય શુદ્ધિ
અગર ઘેર માટીના સાત ગળા
બનાવવા એટલે કે સાત ભાગ બનાવવા. પછી तःकर्म विचार
* એક હાથથી બીજે હાથ એમ મોટી કરવી હાથ == ===== ઘેઈ ફરી મારી લેવી, એવી રીતે ત્રણ ત્રણવાર - 6 ,
બેઈ હાથ સાફ કરવા. જળાશય હોય તો કેડ (લેખક-એહનલાલ મથુરાદાસ, કાણીસા). સુધી પાણીમાં જઈ પગ દેવા અને ઘેર હોય તે (ગયા અંકથી ચાલુ)
ઢીંચણ સુધી પગ ધોવા. ગુદાએ લાગેલે મલ હાથવતી ઉતારવો નહિ.
બ્રાહ્મણને સફેદ, ક્ષત્રિયને લાલ, વિશ્વને પીળી
અને શુદ્રને કાળી માટી શ્રેયસ્કર છે. તેમજ કંઇપણ જાતને ફળ કે કંદમૂળથી ઉતાર નહિ. પરંતુ સુકાં કાણથી ઉતાર. મળ ત્યાગ
ગૃહસ્થ શ્રાવકે નદી તીરની કે ખેડી સાદ 'કરવા બેસતાં બોલવાને મંત્ર
કરેલી જીવ જંતુ સિવાયની માટી લેવી.
ઉપર લખેલા પ્રકારની માટી જે દેશમાં જે ॐ हीं अत्र क्षेत्रपाल क्षमस्व मां मनु जानीहि
પાત્ર ન મળે ત્યાં તેણે ત્યાં મળે તેવી માટીથી થાના ઘરમાવવાહિ કહું વીવો વારોનીતિ શુદ્ધિ કરવી. વાહા..
ગૃહસ્થ શ્રાવકોએ હંમેશાં અંતર્બાહર શુદ્ધિ પૂર્વ કે ઉત્તર તરફ મુખ રાખી મળમૂત્રને કરવા માટે પ્રયત્ન કરવો જોઈએ કેમકે અંતત્યાગ કરવા બેસવું. અનગળ જળથી શુદા પ્રક્ષા- હર શુદ્ધિ એજ ગૃહસ્થપણાનું મુખ્ય સાધન છે. લન કરવી નહિ.
તેમજ શુદ્ધતા અને સદાચાર સિવાયના મનુષ્યની
સવે ધાર્મિક ક્રિયાઓ નિષ્ફળ જાય છે. જમણે હાથમાં પાણીનું વાસણ રાખી ડાબા. હાથથી ગુદદાર ધેવું. હાથ ધોઈ ફરી ગુદદાર
પગને નીચેથી ઉપરથી ને બાજુથી માટી છેવું. પછી તે સ્થાન છોડી જળાશય કે ઘર તરફ લગાવી ધાવા ને તેટલા દરેક વખત હાથ પણ પ્રયાણ કરવું.
દેવા. ડાબે પગ પહેલો ને પછી જમણો પગ
છે . શુદ્ધિ
પગ દેવાને મંત્ર. શુદ્ધિ બે પ્રકારની છે. બાહ્ય શુદ્ધિ અને અંdરંગ શુદ્ધિ. માટી અને પાણીના વેગથી જે શુદ્ધિ ૩ કમ' ડર્ત માવતે કૃત્રિાનાશક્ષારિતથાય છે તે બાહ્ય શુદ્ધિ. આત્માને પરિણામથી વાહવવ્રાય કહ્યું શુદ્રોન વક્ષારને અને મંત્ર દ્વારા જે શુદ્ધિ થાય છે તે અંતરંગ
___ करोमि स्वाहा ॥
હાથ ધરવાને મંત્ર अपवित्रः पवित्रो वा सुस्थितो दुस्तिोऽपि वा। ॐ ह्रीं ह्यौं असु झुर मसुझुर मुकुक मक ध्यायेत्र नमस्कार सर्व पापैः प्रमुच्यते ॥
___तथा हस्तशुद्धिं करोमि स्वाहा ॥ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्यां गतोऽपि वा।।
ઉપર પ્રમાણે વિધિ થઈ રહ્યા પછી, જે ઇઃ રાત્પરમારનાને પ વાઘાતર શુઃ જળાશથે હાથ પગ જોયા હોય તે ત્યાં નહીં તો . એ મંત્રથી સન્માન કરી નકાર મંત્રનું ધ્યાન ધર આગળ શુદ્ધ અને ગાળેલું પાણી એક લોટામાં
ભરી તે લેટ બાજુ મુકી ઉત્તર કે પૂર્વ તરફ
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- રિવર '
પારલ
મુખ કરી દાતણ કરવા બેસવું. દાતણ નીચે બતા સ્નાન કરવું એમ વિકશાસ્ત્ર બતાવે છે. આપણા વેલા પિકીમાંથી લેવું, તે બાર આંગળ લાંબું ને શાસ્ત્રમાં પણ હમેશ પ્રાત:કાળે સ્નાન કર્યા પછી જ ટચલી આંગળીના અગ્ર ભાગ જેટલું જાડું લેવું. દેવપૂજા, દાન, ઇત્યાદિ કરવાનું જણાવ્યું છે. બેસીને તરતજ બે વખત આચમન કરવું. ત્યાર શરીર પર બીજા મનુષ્ય પાસે યા ગૃહિણી બાદ દાતણ ચાવી દાંત જીભ સાફ કરવાં. પાસે શુદ્ધ તેલ યા કોપરાનું તેલ ચોળાવવું. અને ઉત્તમ દાતણું.
ત્યાર બાદ સ્નાન કરવું. તેલ બીજાની પાસે ચોખદીર, કરંજ, કદંબ, ચિંચ, વેળું, લીમડો, લાવવા ત્રિવર્ણચારમાં જણાવે છે કે – અંધાડ, બેલ, કપાસ, આમળાં એ વૃક્ષનાં દાતણ ઉત્તમ સમજવાં. બીજ, પાંચમ, આઠમ, અગીઆ
तिलकं गुरुहस्तेन मातृहस्तेन मोननम् ॥ રસ ચાદશ તેમજ રવીવાર, વ્યતિપાત, સંક્રાંતિ દિવસ અને પોતાના જન્મ દિવસે અને વ્રતના
અર્થ-સત્પાત્રને દાન પોતાને હાથે કરવું,
શરીરે તેલ ચળવું તે બીજ પાસે ચળાવવું, દિવસોએ લીલા દાતણથી દંત ધાવન કરવું નહિ.
અને ગુરૂ પાસે તિલક કરાવવું. તેવી જ રીતે ભજન ( મુખ ધોવાને મંત્ર.
માતાના હાથનું જમવું શ્રેષ્ઠ બતાવ્યું છે. છે હૂ હીં મુહબ્રક્ષાઢનં યોનિ દવારા આઠમ, ચિદિશ, પાંચમ, રવીવાર અને તેના ૩ નપવિત્રા વઘાવન સોનિ દાણા | દિવસે ઉપરાંત જે દિવસે બહાચર્ય પાળવાનું હોય
સૂર્યોદય થયા પહેલાં દાતણ કરવું નહિ. જે તે દિવસે તેલ ચેળી સ્નાન કરવું નહિ. તેવીજ માણસ સૂર્યોદય થતાં પહેલાં દાતણ કરે છે, તે
રીતે સ્નાન કરવાનો બીજો પ્રકાર બતાવ્યો છે કેપાપી અને નિર્દય ગણાય છે. કોલસા, રેતી, સોમવારે તેલ ચાળી સ્નાન કરવાથી સકીર્તિ વધે છે.. ભસ્મ, નખ, વીટ, ઢાળ, પત્થર વિગેરેથી દાંત મંગળવારે છે , જલદી મૃત્યુ પામે છે. ઘસવા નહિ. ત્રિ. મ. ૨ હોરા ૭૨ બુધવારે
સુવર્ણની પ્રાપ્તિ થાય જે દિવસે લીલું દાતણ કરવાની નાં કહી ગુરૂવારે તેલ ચોળી સ્નાન કરવાથી આયુષ્ય વધે છે. હોય તે દિવસે બાર લોટા પાણીથી દાંત અને શુક્રવારે
કે દ્રવ્યનો નાશ થાય છે. મુખ ધોવું. તેથી શુદ્ધ થાય છે.
' શનીવારે
, આયુષ્ય વધે છે. . ત્રિ. ૧ શ્રોજ ૭૪, પરંતુ વિવાહ, દ્રવ્ય મળે ત્યારે, સુતક ઉતારવું, દાતણ કરતી વખતે આંખ, નાક, કાન, નખ હોય ત્યારે, મિત્રનું કાર્ય સિદ્ધ થાય ત્યારે ગમે અને ખભે તથા કેડને ભામાં પાણીથી સાફ તેવારે સ્નાન કરવાથી દેષ લાગતું નથી, તેલ કરે.
ચેન્યા પછી જીવ જંતુ સિવાયની શુદ્ધ જગ્યાએ જળાશયમાં થુંકવું નહિ તેમ મુખ પણ ધોવું શ્રાવકે પ્રાસુક જળથી સ્નાન કરવું. નહિ, પરંતુ આપણે સુખ એલું પાણી કરીથી
નાન કરવા ચા૨ પાસ , જળાશયમાં આવે નહિ, એવી રીતે લોટો ભરી જે પાણી પર્વત ઉપરથી પડતું હેય, સર્વના :જઈ દૂર મુખ ધોવું. દાતણું કર્યા પછી રત્નત્રય તાપથી તપેલું હોય, પશુના પગથી ડોળાતું હેય ' મંત્રથી ત્રણ આચમન કરવાં.
તેમજ નદીનું વહેતું પાણું પ્રાક માનેલું છે. - સ્નાન વિધિ.
તેવીજ રીતે રેતીના યંત્રમાં નાંખેલું, જેમાં ગંધર સ્નાન કરવાને ઉદ્દેશ્ય વિદક રીતે શરીર સ્વચ્છ કના વાસ હોય તે પણ માફક માનવું
કની વાસ હોય છે. પણ પ્રાસુક માનેલું છે. પણ બનાવવાને છે. ત્યારે ધાર્મિક રીતે શરીર થઇ ફક્ત સ્નાન કરવા પુરતું જ, પીવા માટે નહિ. કરી તેના દ્વારા મન પશુ નિર્મળ કરાવવાનો છે, જે દિ જ સતત સાત દિવસ સુધી સ્નાન મનુષ્ય માત્રે હમેશાં એક વખત ગરમ જળથી કરતો નથી તે શદ્રપણાને પામે છે. માટે હમેશાં
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दिगंबर जैन ।
નાન કરવું જોઈએ. કદાચ દેવવશાતુ રવિવારે ન પહેરવું નહિ તેમજ વસ્ત્ર પહેર્યા પછી અંગ લુછવું બને તો પણ બાકીના દિવસે તે અવશ્ય કરવું. નહિ.
આ દેહ અનેક પ્રકારના મળથી ભરેલો છે. સ્નાન થઈ રહ્યા બાદ વસ્ત્ર પહેર્યા પછી જે તેમજ તેમથી હમેશાં મળ વહેતોજ રહે છે. માથું ભીનું રહી ગયું હેય ને પાણી શરીર પર તેથી તે પ્રાતઃકાલે ૨નાન કરવાથી જ શુદ્ધ બને છે. પડે તો તે સ્નાન નિષ્ફળ જાય છે ને ફરી સ્નાન
જે મનુષ્ય પ્રાત:કાલે ૨નાન કરવાને અસમર્થ હોય કરવું પડે છે માટે માથું પણ પહેલાં લુછી નાખવું તેણે ભયાન્હ કાલે સ્નાન કરવું.
જોઇએ. હવે કેટલાક બંધુઓ નાહીને પહેરવાનું નાન કરવાનું પાણી પતે અગર પિતાની વસ્ત્ર અડધું પહેલું ના પહેર્યું” કરી મંદિર તરફ પત્નિ, શિષ્ય કે પુત્રે આણેલું હોવું જોઈએ. દર્શનાથે દેડે છે, તેમને સમજાવવાની ખાતર
- નીચ અથવા હલકી જતના મનુષ્ય પાસેથી અને શાસ્ત્રમાં બતાવેલા નગ્નનું વર્ણન કરું છું. -પાણી લઈ નહાવું નહિ, તેમજ એક હાથે નહાવું તે તેવા ભાઈઓ ક્રોધે ભરાશે નહિ. એમ નહિ.
આશા છે. બન્ને હાથ મેળવી ચોટલીને ગાંઠ વાળી નમો
નગ્નનું વર્ણન. કાર મંત્રનું ધ્યાન કરી બે આચમન કરી પછી , અપવિત્ર વસ્ત્ર પહેરનારા, અધું વસ્ત્ર પહેરસ્નાન કરવું.
નારા મેલું વસ્ત્ર પહેરનારા, લંગોટી પહેરનારા, | (સ્નાનની વધારે વધી ફરી બીજી વખત ભગવા પહેરનારા, ખેસ અગર અંગરખું ન પહેલખીશ, કેમકે તે હાલની રૂઢિ વિરૂદ્ધ અને બહુજ રીરા એ તમામ નગ્નજ ગણાય છે. લંબાણુવાળી હોવાથી તેને માટે ખાસ પુસ્તક કાળું વસ્ત્ર અને લાલ વસ્ત્ર કદાપિ પહેરવું લખવા વિચાર છે. )
નહિ, પરંતુ સ્ત્રીની વ્યા પર તે વસ્ત્રોને દોષ નથી. ઘેર નાન કરવાનું હોય ત્યારે ઘર તરફ બેસી કાળું અને લાલ વસ્ત્રને શ્રાવક છે પિતાને નાન કરવું, બીજી જગ્યાએ સ્નાન કરવાનું હોય શરીર ધારણ કરે તો તે નરકમાં બહુજ પીડા ત્યારે સૂર્ય તરફ બેસી સ્નાન કરવું, રાત્રે સ્નાન પામે છે. કરવાનું હોય ત્યારે પૂર્વ કે ઉત્તર તરફ બેસી નાન પરંતુ રેશમી વસ્ત્ર અને રૂમાલમાં કાળાપણાનો કરવું. સંધ્યા અને પૂજા કરતા પહેલાં સ્નાન અ- દોષ રહેતા નતી. સ્ત્રીઓને પહેરવાનાં વસ્ત્ર પ્રણવશ્ય કરવું જોઈએ. તેમજ સક્રાંતિ ગ્રહણ હોય એ પહેરવાં નહિ, તેમજ ત્યારે, ઉલટી થઈ હોય, ત્યારે મૈથુન કર્યા પછી, પરાં પર કર્સ્ટ ૧૨ ૨ા ૧૨ બ્રિા . માંસને સ્પર્શ થયો હોય ત્યારે, સુતક સમાસી વય જ કે વાસઃ રાણાવિ શિર્ષ હોત . વખતે, રોગ ગયા પછી સ્મશાનમાં જઇ આવ્યા
- અ. ૩ લોક ૩૦. પછી હું રવમ આવે તે, કઈ મુનિ મરણ પામેલ બીજાનું અન્ન ખાવું, પારકું વસ્ત્ર પહેરવું, ત્યારે અવશ્ય સ્તન કરવું જોઈએ.
પારકી થા ૫ર સુવું, અને પારકી સ્ત્રીના સમાજીભ અને દાંત સારી રીતે ઘસવાને મહા- ગમ કર, એનાથી ઇંદ્રની સંપત્તિને નાશ થાય વરે રાખવો જોઈએ. સ્નાન થઈ રહ્યા પછી જ છે, તે મનુષ્યની તો વાત જ શી? સંધ્યા પૂજા જપ તપ કરવાં નહિ.
નાન કર્યા પછી પહેરેલે ભીને લુગડે શરીર , ઉપર પ્રમાણે સ્નાન કરવાથી જ ગૃહસ્થ શ્રાવ- લુછવું નહિ, નહિ તો તે સ્નાન નિષ્ફળ જાય છે. કની અંતર બાહર શુદ્ધિ થાય છે.
એક વસ્ત્રથી ભોજન કરવું નહિ, દેવપૂજા નાન કર્યા પછી ટુવાલ વી શરીર સાફ કરી ક૨વી નહિ, દાન કરવું નહિ. જપ હામ કરવું નહિ પહેરવાના વસ્ત્ર પહેરવું. શરીર લુછેલા લુગડાને તેમજ એક ધોતીયું કડી બે બનાવેલા યા કાડી
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ફરીથી બેડેલા ધાતીયાને પહેરીને ક્રિયા કરીએ તે નિષ્ફળ જાય છે.
પહેરવાનું તે એઢત્રાનું એ બન્ને વજ્રના ચારે છેડા સાબુત હેવા જોઇએ. ફાટેલાથી ધાર્મિક કાય 'થ શકે નહિ.
વાલછાથી તૈયાર કરેલું એટલે કે ઉનનું વસ્ત્ર કે ચામડાનું વસ્ત્ર મુદ્દલ પહેરવુ નિહ,
એવી રીતે શુદ્ધ વસ્ત્ર પહેડા ખેસ ઓઢી પછીજ સર્વે ધાર્મિક કે વ્યવહારિક ક્રિયાએ કરવી.
ઉપર જે આચાર અતાન્યેા છે તે ધનવાનાને માટે બતાવ્યા છે, જે નિસ્પૃહ અને ગરીબ હૈય તેમણે પેાતાની શક્તિ પ્રમાણે કરવા. જેતે બીજી વસ્ત્ર ન પળે તેણે એક વસ્ત્રથી પશુ ચલાવવુ’. ત્રિ. અ. ૩ શ્લોક ૫૦
ત્યારે સ્નાન કરવાને મનુષ્ય અશક્ત હાય ત્યારે ભીના લુગડાથી માથાથી પગ સુધી શરીર લુછી નાંખવું, જેથી તે સ્નાન કર્યાં બરાબર ગણાશે. પાણી એ સ્વભાવથીજ શુદ્ધ છે, તેમાં પણ જ્યારે તેને અગ્નિથી તપાવીએ ત્યારે તે વધારે શુદ્ધ અને છે. માટે પંડિત ટ્રાફ ઉના પાણીથી સ્નાન કરવું શ્રેષ્ટ માને છે.
ઉના પાણીમાં ઠંડુ પાણી નાખવું નહિ તેમજ ઠંડા પાણીમાં ઉતુ. પાણી . નાખવું નહિ, કેમકે તેવી રીતે મેળવવાથી જૈન દનને આધ આવે છે.
વસ્ત્રને જળથી પવિત્ર કરવાનેા મંત્ર. ॐ ह्रीं क्ष्वीं इवीं अहं हं सः परमपावनाय वस्त्रपावनं करोमि स्वाहा ॥
એ મંત્રથી સ્નાન થઇ રહ્યા પછી વસ્ત્રને પવિત્ર કરવું.
વસ્ત્ર પહેરવાના મંત્ર
૭ શ્રેÖસાવહારિળિ સર્વેમહાનન મનોરાને વિનોત્તરીથવારિનિ હૈં મેં હૈં મેં હૈં से तं परिधानोंत्तरीयं धारयामि स्वाहा ॥
એ મંત્રથી પવિત્ર કરેલું વસ્ત્ર પહેરવુ' અને એક આઢવું, ત્યાર બાદ સંધ્યા ગૃહમાં પ્રવેશ કરા ?
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जैन |
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સ્નાન કર્યા પછી યા સ્નાન ન કર્યું' હાય તા પણ આચમન તેા અશ્ય કરવું. કેમકે આચમન કરવાથીજ શુદ્ધ થાય છે.
*એક આચમનમાં એ હાથ, મસ્તક, નાભિ, મુખ, નાક, આંખ, ખભેા, એ મારે અગા એ ૫ થવા જોઇએ.
આચમન માત્ર.
ॐ ह्रीं वीं व वं मं हं सं तं पं द्रां द्रीं हं સઃ હાહા ||
એ મ ́ત્રથી આચમન ત્રણ વખત કરવું. તેના દરેક વખતે મંત્ર કરી પુરી ખેલવે.
આચમન કરી તમેાકાર મંત્રના એકસે આ જપ કરવા. ને સંધ્યા કરવાનેા રિવાજ્ર હુજી આપણા ગુજરાતમાં પણે નથી તેમ પૂત્રથી છે નહ, તેથી લખી નથ”. વળી હાલ જે પાઠે પ્રચલિત છે, તેને રીતસર ગેાઠવવાના છે, જેથી તેને હવે પછી ગાઠવી બહાર પાડીશ.
ધેર જપ કરવાથી જે મૂળ મળે છે તેથી સા સેા ધણું ફળ વનમાં જપ કરવાથી મળે છે. અને પવિત્ર બગીયામાં કે અણ્યમાં જપ કરવાથી હજારઘણું ળ મળે છે. અને પર્વતપર દશ હજાર ધણું ળ મળે છે. નદી પર જપ કરવાથી લાખઘણું ફળ મળે છે. અને દેવાલયમાં જપ કરવાથી કરાડ ઘણું ફળ મળે છે. અને શ્રી જીતેન્દ્રના સમીપમાં જપ કરવાથી અનંત ધણુ ક્ળ મળે છે. ત્રિ-અ૦ ૩ શેફ ૨૩-૨૪ દેશમા નાશ, રાજાના કાપ, શરીરે રાગની પીડા
એ કારણેાથી જો અધ્યાદિ ક્રમ બંધ રહે તાતેના દોષ લાગતા .નથી.
ત્રિ અ॰ ૩ Àાક ૪૩
દેવ, અગ્નિ, બ્રહ્મગુ, વિદ્યા એના સંબંધને લઈ ને સઘ્ધાદિ કાર્ય અટકી પડે તેા દેષ લાગતે નથી.
ત્રિ અ૦ ૩ શ્લોક ૪૪
ઉપર પ્રમાણે ક્રિયા કરી વ્યવસાયમાં પ્રવૃત્ત થવું. મેાજન વિધિ અને શ્રાવકના આચાર તેમજ મધ્યાન્હ અને સય કાલના વિચાર હવે પછી
લખીશ.
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दिगंबर जैन ।
GO.
( ૧૨ )
નામ
જે એને ગુજરાતી સામાયક પાઠે શુદ્ધહરિગીત છંદમાં તેમજ આયાચના પાઠે ગુજરાતી રાગમાં અને સંસ્કૃત સામાયક પોર્ટ ગુજરાતી રાગમાં જોતું હોય તેમણે નિચેતે સ્થળે નોંધવવા વિનતી છે કે જેથી બહાર પડયે મેાંકલી શકાય. ભાઈ ? ક્રિયાથીજ ક બંધાય છે, તે કમ થીજ પર્યાય બધાય છે, માટે દરેક જણનું ત્તવ્ય છે કે શુદ્ધ ર્ષાય પ્રાપ્ત કરવા શુદ્ધ ક કરવાં અને સદાચારમય જીવન ગુજરવું. જાએ શ્રેષ્ટતાઇ સદાચારથીજ મેળવી હતી. અને હાલ તેની જે કઇં ઝ ંખી દેખાય છે, તે પશુ એ સદા ચારના રસ્તા વડેજ, માટે દરેક જૈનનું એક ગ્ છે કે શાસ્ત્રાનુસાર ક્રિયામાં પ્રવર્તી થવું. હાલ કેટલાક બાદ નથી કરતા સધ્યા કે નથી જતા પ્રભુ દના. તેમને મારી કરગરીને વિનંતી છે કે તેમણે હંમેશ પરમાત્માના પવિત્ર મંત્રના જપું કરવા તે દિવસે ન્યાયયુક્ત વ્યવસાય વડે વિતાહવા અને મહાવીર સ્વામીના સાચા સેવક બની રહેવુ. ચારે બાજુથી ઉછરી રહેતા સ્વદેશના જમાનામાં આપણું પણ કર્તવ્ય છે કે આપણે શુદ્ધ હાથ કંતામણ–વણુાટનાં વસ્ત્રારા ઉપયેગ કરવા. આપણા મહાવીર સ્વામીને પશુ હાથની ઢળાજ પ્રિય હતી, જેથી મદિરના ચંદરવા અને શસ્ત્રિજીનાં ખાંધણામાં પણ ખાદી વાપરવુ ચુકવું નહિ.
પરદેશી માલ હાડકાં ઇત્યાદિ અપવિત્ર વસ્તુતી *જીથી બને છે, જેથી શ્રાવકે તેને પહેરવા તા શુ, પણ સ્પર્શે પણ નહિં કરવા જેષ્ટએ ?
તે દશમાં તે। વપરાયજ કેમ ? વળી હાલ વધતા જતા કેશરના અથાગ ભાવને લઇ કેટલાક દુષ્ટ વેપારીએ બનાવટી કેશરના ઉપયોગ કરવા લાગ્યા છે, જેમાં લેાહીમાંસાદિ મિશ્ર હાય છે...માટે જૈતાનું
વ્ય છે કે કાં તા કેશરને ત્યાગ કરવા અગર સુરતથી પવિત્ર કાશ્મીરી કેસર મંગાવી વાપરવું.
કપટ યુક્ત વ્યાપારના આ જમાનામાં જેનાએ જાળવીને ચાલવાનુ` છે. બહારની બીજી કામેાની જેમ જનાએ પ્રથમજ પરદેશી કાપડ નહિ પહેર
વાની પ્રતિજ્ઞા લઈ પછીજ ખાર વ્રતમાંનુ અહિંસા વ્રત લેવાનું છે.
સેવા, અહિં સા અને સ્વદેશી વસ્ત્રના ઉપયેગ એ પણ સદાચારનાંજ અંગ ગણાય છે માટે સરક ના ઉદય કરવા મનુષ્યની સેવા, સ્વદેશી તર પ્રેમ અને અહિંસા મય છત્રન અવસ્ય કરવું જોષ્ટએ. આ બાબતપર વધારે લખવા વિચાર છે, જેથી હાલ તેા આટલેથીજ બંધ કરૂ છું. શાંતિઃ શાંતિઃ શાંતિઃ
લખનાર હુ' છુ' આપ સર્વેને સદાચારમય જીવનથી ઉન્નતિને ઉચ્ચ સ્થળે જોવાને ઉત્સુક – મેહનલાલ મથુરાદાસ શાહુ-કાણીસાં. 1641
ગનજી |
क्या कहें किससे कहें, सुनते नहीं फरियाद भी । સહત મુવિ હૈ, માં, હોળવુ અદ્યાત્ મી ॥૧॥ ऐ कौमके पंचों तुम्हें भी, मौत आयेगी कभी । या भुला दी है कहीं, उसने तुम्हारी याद भी ॥२॥ इस कदर से जुल्म वस्या, कर रहे है पीर मर्द । रोकता कोई नहीं है, ये बुरी बुनियाद भी ॥३॥ વાંતે હૈં ઉંટના ગાનમેં, ઘરી હાય હાય । हो रहे हैं इस तरह घर सैकड़ो बरबाद भी ॥ ४ ॥ होगा नहीं कुछ इक़में, अच्छा, बालदेनो देखना । बेचकर हमको अगर दिलकर रहे हों शाद भी ॥५॥ કૌનકા યો ધર્મ હૈ ! ો શઘ્ર હૈ ઝિયમ જિલ્લા । ब्याह दो बूढ़ों को वो कौनसा उस्ताद भी ॥६॥ ચવ ોના ? અમીરી, તે અમત્તે! યે ગુ, कर रहे हो रस्म आगेको बुरी ईजाद भी ॥ ७॥ ऐ दलालो ! क्या दलालीको हमी बाक़ी रहे ! तान रौशन होगया, छोड़ी नहीं औलाद भी ॥ ८ ॥ होगा अगर 'पन्ना' हमारी आहमें कुछ भी असर । मोम दिल हो जायँगे, जो मिस्ल है फौलाद भी ॥९॥ વજ્રાકાર નૈન, ફ્લેશ । बुकींग क्लार्क ।
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विना अंगके अंगी कैसे। होता है। आधुनिक विद्वत्तमानने क्या कम काम
किया है फिर भी उसका सन्मान वरदेवदास समाजकी भाधुनिक परिस्थिती पर जब हम
आदि विद्वानों काता न होकर तिरस्कारयुक्त नजर डालते हैं, तब इस बात का अनुभव स्वतः होने
हान क्यों होरहा है। छगता है कि इसका उत्थान कैसे हो ।
जाति पोच और मंदिर आदिके सामान रुपये, • मानव हृदय जिसमें धर्म प्रेम एवं समान न्नतिके आदिके हडपनेसे मुक्दमे चहरहें हैं तो क्यों ? भावं न हो, उसे पाषाण कहकर हम दूर हो जाते यह आपसमें द्वेषाग्निका कारण क्या ! एवं समान हैं तथा खाली गर्जन मात्रसे अभिप्राय रखकर के सायेका उपयोग से अपने १ पैसेके देनेसे "जात्युन्नतिके बाजे बनाकर हम अपनेको कृतकृत्य
दुःख होता है वैसा क्यों नहीं हम करते हैं। हम समझने लगते हैं। लेकिन क्या हम सदेव समा- देखते वहां ५.) हायेसे काम चसकता वहां जके उन्नत्यमिलाषी रहते हैं।
र २००) तक खर्च करदिये जाते हैं। समाजमें मैत्री. समानकी दशा कैसी हो रही है, विधवाओंकी ,
वधवाआको भाष वात्सल्य मात्र क्यों नहीं ? आपसमें विरोध संख्या और विधवा होनेके प्रबल कारण कोन एकको देखका एक क्यों जलते हैं। धर्मसे चिाते. कौन हैं इसका विचार कर कौन कमर कप्त दूर को स्थितिकरण और दोष देखकर उपगूहन कौन करनेको तैयार है।
पालते हैं। हम यह अच्छी तरह जान चुके कि हां विवाह धार्मिक होनेसे विधवा विवाह पाप जब हमारा कारण कलाप ही बिगड़ रहा है फिर है ऐसा हम कहते अवश्य हैं । लेकिन विवश हम कैसे अपना व समान जो हम.रे आश्रित है ओंका जीवन जिन कारणोंसे पवित्र बने ऐसे उद्धार कर सकते हैं। अतः यह कहना पड़ता साधन कौन कौन वहांपर हैं । जिस स्थान पर है कि विना अंगोंके क्या अंगी कभी जो कुछ हैं मी वे बहुत ही कम हैं। ... हो सकता है ?
धनिक अज्ञ म्हुत कुछ स.मान क्या क्या नहीं सुमतिचन्द्र जैन, उपदेशक महामा। अन्याय कर बैठता है और निर्धन समाज फिर -- मी उनकी तारीफोंका ढेर लगा देती है उनकी नये २ ग्रंथ मगाइये। हो में हां मिला कर कौन नहीं अपनेको धन्य प्राचीन जैन इतिहास प्रथम भाग) समझता, किन्तु क्या गरीब भाई वृद्धका कमी जैन बालबोधक चौथा भाग-इसमें विवाह देखा सुना है। गरीबों के हृष्ट पुष्ट कुंवर ६७ विषय हैं। पृ० ३७२ होनेपर भी मू० सिर्फ क्वरे रह जाते हैं और धनिक विकलांग मी क्यों न १-) है। पाठशाला व स्वाध्यायोपयोगी है। हों ता से १ दिनमें विवाह कर लेते हैं किप्सने आत्मसिद्धि-अंग्रेजी, संस्का, गुजराती ) कब इन बातों (क रणों) पर विचार किया है। जिनेंद्रभजनभंडार ( ७९ मनन ) ।) . अन्याय अत्याचारों का सूत्रपात कहां से शुरू मैनेजर-दि० जैन पुस्तकालय-सरत।
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दिगंबर जैन ।
(२४) लाख (लाह)की उत्पत्तिमें घोर हिंसाके कार्य करते हैं उन भ्राताओंसे
हमारा नम्र निवेदन है कि घृणित कार्यको घोर हिंसा। थोड़ेसे स्वार्थ के लिये त्याग दीजिये । वैरके दखत पर कार्तिक महीने में वीन लगा
-सोनपाल, उपदेशक । या जाता है वैरकी डालीपर बहतसे जीव रहते नोट-हिंसाकारी लाख की चूड़ियोका रिवान हैं उस डालीको १ हाथ प्रमाण काट कर एक २ बंद होना चाहिये तथा दयावान श्रावकों को इस दखतपर १९-२० बी१२ टुकड़े रखते हैं उस हिंसाकारी व्यापारसे धन न पैदा करना चाहिये। टुकड़ेपरसे जीव वैरके दरखत पर चढ़ जाते हैं व ग्रन्थ मंगानेका सुभीता। कच्ची डालीका रस पीते हैं, जन्मते, मरते हैं, पर यदि आपको किसी भी जैन ग्रंथकी कर उस डालीपर चिपट जाते हैं इस तरह छ आवश्यकता हो तो सूरतके "दिगंबर महीनातक जन्मते मरते हैं। एक २ दखत परसे जैन पस्तकालय से हीमगाइये क्योंकि ॥s) आधमन पचीस सर 5॥५ लाहा उतरता है यहां सपी जैन पुस्तकालयोंमें मिलनेवाली पुस्तकें फिर इसी तरह कार लिखे अनुसार वैशाख मही मिलती हैं व कमसेकम पांच रुपयेकी पुस्तकें मगा. नेमें फिर वीन वोया जाता है, यह लाख सुवा- नेसे फी रुपया एक आना “कमीशन" मी म । यह जीव बहुत सुक्ष्म होते हैं १ तोळा दिया जाता है। इस पुस्तकालयका विस्तृत नवीन लाहमें असंख्य जीवों का मांस (कले।र) समझना सूचीपत्र छप रहा है जो आगामी अंकके साथ चाहिये। जिस वक्त लाख डालीरसे छुड़ाई न ती बांटा जायगा । है तो छुड़ानेवालोंके हाय रक्तसे काल होनाते हैं। सोलहकारण धर्म । लेकिन दाखकी उत्पत्ति बंल आशामके हमारे अमी ही नवीन छाकर दुसरीवार तय्यार हुआ माडवासी जनभाईयोंने बहुत जोरसे कर रखा है। है। इसवार इस सोलहकारवा कथा व सोलह बहतों ने त्याग दिया है बंगाल, आसाममें आकर भावनाओं के सोलह वैये भी बढ़ा दिये गये हैं। व यहां पर ऐसी प्रथा देखकर हमारा हृदय बहुत कुछ कढ़ाया घटाया भी गया है । की० ॥) कंगयमान होता है । इससे हमारा अपनी माता नित्यपूजा सार्थ मानियों बाईयोंसे नम्र निवेदन कि इसके चूड़े का इसमें नित्य पूना हिंदी भाषामें अनुवाद सहित पहराव अवश्य करके शीघ्र त्याग देना चाहिये । भी ही नवीन प्रकट हुई है। पृ. १२८ व मैं बहुत दुखके साथ लिखता हूं कि हमारे मु० आठ आने । बंगाल, भाशामके जैनीमाई लाखका व्यवसाय जैन नित्य पाठ संग्रह। विशेषकर करते हैं। व अपनी २ जमीनों में वेरके नामक १६ जैन स्तोत्रोंका गुटका जो अभी दर्खत हैं। लाखका माव ६०) ७.) रुपिया मन नहीं मिलता था फिर मिल रहा है। मू० माठ माने विकता है इससे यह माई लोमके वशीभूत होकर मैनेजर, दिगम्बरजैनपुस्तकालय-सूरत ।
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( २५ )
2010
बाल - परिचर्या और औषधि
सेवन से हानियां |
दिगंबर जैन । केरल अस्मि पंनर, पोला और मुर्झाया हुआ चेहरा, पिके हुए गाळ, बैठी हुई आंखें, निल हुआ पेट और सुख टांगे दूरसे ही उनकी शोकश क अवस्थाका पता देती हैं । माता पिताका साथ उनकी प्रजननार्थ अवस्था और गर्भाधान, गर्भावस्था सरकार संस्कार बालककी
और
इस
लेखक- युत डाक्टर गिरिवर सहाय । इस लेख में अनियमित आहार और औषधो पचार के बुरे परिणाम और मांडव भोजन (स्टाची फुड ) के दुष्प्रयोग दिखाने की चेष्टा की गई है। को! या आपने कभी विचरा शो जनक परिस्थितिके लिये उत्तरदायी ठह कि सभ्य समाज इतनी रोग- वृद्धि क्यों गये मारते हैं, वहां जन्म पाने पर बालकों दिखाई पडती है | मनुष्यबुद्ध और उनकी माताओं के आहार विहारका प्रभाव और घर संगृहीत के चरण पार भी बनाने या बिगाड़ने में कुछ ससे अधिक संपन्न और निरोग प्राणो कम नहीं पढा । बहुधा माता पिता अपने होना चाहिये था, न्तु वास्तव दशा इसके टोंक छोटी उम्र में ही मिठाई खिचाने लगते बिकुल विरत है । हनरों वर्षों से व्यासा है। उस अवस्था में मिठाईका सेवन करने से यिक विसों और भाइयोंने हमारे शारी उनका पाचन हमेशा के लिये बिगड़ जाता है । रिक कारोवा ठेका ले रखा है । वैद्यों और इसी तरह भांतभांतिके गरित्र पदार्थ और भाइयोंकी संख्या दिन-दिन ढो ही जाती मपाले भी उनके कोमल पाचन-संस्थान पर है। मर देखो उत्तरदायों के हार दिखाई बर बुरा प्रभाहते हैं उनको सदा देते हैं । यही गहरी अपघाय और जगह लिये अध्य रोगका शिकार बना देते हैं, जगह आप खुळते ते हैं, तो भी साथ में रोग फैट हो जाते हैं-तन्दुरुस्तीका जगह परीसरा
प
योग्य
दीनाते कि आ.ल नव जानकारी एक पड़ी संख्या में ही विशाल काढके पाली जाती है, और हो शेष सभी उनका स्वस्थ्य और की जी संतो
के कारण वह अतिही गांधी गोद सूती कर जाते हैं और जो बच मी जते तो उनके बिगडे - स्थपके सण माके लिये दुःखमय हो जाता है । प्रस्तुत लेखमें इसी हरविधिक विवेचना की गई है। सभ्यताकी उन्नति साथ मनुष् समाज के व्यंजनों में नई नई ई न दें और उनकी संख्या बढ़ती होती जाती है और हम एक साथ तरह तरहके मोननों का स्वाद लेने के लिये आदी हो गये हैं । दुष,
कभी नहीं होता ।
देशके से पीडित
हजारों बालों को चारों ओर देखते हैं तो क्लेमा कांप उठता है । उनका, शाक, भाजी, अन्न और तरह तरहकी
शारीरिक संघटन
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दिगंबर जैन।
(२६) मसालेदार ची में एक सय खाने में हमें जरा भी विषय में दो डाक्टरों की राय एकप्ती नहीं होती। संकोच नहीं होता, बल्कि उलटा ममा माता इसी तरह वही दवा जो किसी बिमारीके शुरू में है। यही वजह हैं कि इन भिन्न भिन्न गुणव- लाम करती है बाद को नुक्सान पहुंचा सकती भाववाले और बहुधा बेमेल पदार्थोके खानेसे है। ऐसी हालत में दवाओंके इस्तेमालसे किप्ती हमारा हाजिमा बिगड जाता है और उसे दुरु- निश्चत लामकी आशा करना बेकार है । इसके स्त करनेके लिये हमें नित नये चूर्गों और विपरीत हम प्राकृतिक उपचारोंपर हमेशा भरोहकीमों या डॉक्टरों के बहुमूल्य नुस्खोंकी जरूरत साकर सकते हैं। स्वामाविक नियम अचूक पडती है।
____ होते हैं और बीमारी की हालत बदलनेके हाथ । यदि हम उस विषय में जानवरोंसे कुछ शिक्षा साथ वह भी बदलते रहते हैं। किसी स्थानीय ले तो मालूम होगा कि जंगली जनवरों और पंडाके तात्कालिक कष्टको दवा देने में दवाओं का बहुधा हमारे घरेलु जानवर भी-जबतक कि इस्तेमाल बहुधा लामदायक होता है और बहुउनकी स्वामाविक स्वतन्त्रता छिन नहीं जाती तप्ती दशायें खासकर खनिन दवायें और अपनी तन्दुरुस्ती कायम रखने के लिये किसी वनस्पतिक दवाओं के सत इतने तेन और अस्वाडाक्टरकी सहायताके मुहतान नहीं होते । वे भाविक होते हैं कि उनके इस्तेमालसे निस्संदेह अपने खान रानमें स्वाभाविक नियमों के इतने हमारी तन्दुरुस्तीको नुक्सान पहुंचता है और पाबन्द होते हैं कि मनुष्यकी तरह आये दिन कभी जान जोखिममें पड़ जाती है। इसके उहे भांति भांतिके रोगों का सामना नहीं करना विपरीत किसीने यह तो कभी सुना न होगा पडता । इसी तरह मनुष्यों में भी यदि खने कि दवाइये हमारे शरीरकी किसी कमीको स्थाई पीनेके मामले में ठीक ठीक अहतियातका बर्ताव रूपसे पूरा करसकती हैं। पर स्वामाविक नियहोने लगे तो हमारी दशा बहुत जल्द सुधर मोंके अनुकूल चलनेसे यह अमीष्ट सिद्ध हो सकती है और हमारे बीच से बदहनमी, स्वाती, जाता है। पेचिश, सुखा, क्षयी, प्रभृति तरह तरहके रोग सत्र बात तो यह है कि हम प्रकृतिके कार्यो में पीडितोंकी संख्या भी बहुत घ. किती है। बेना दखल न दें तो वह बराबर हमारे जीवनके
बीमारोंका मुकाबिछा केवल दवाओं के भरोसे प्रत्येक क्षण में हमारे शारीरिक सुधारका काम पर नहीं किया जासकता । जबतक खानेपीने चुपचाप बडी सरलतासे किया करती हैं और या तन्दुरुस्तीके अन्य साधारण नियमों के पाल. नये रंग और रेशे बनाती और इसी तरह बेकार नमें काफी अहतित न बर्ता जावेगा इस सम्ब- माद्दको बाहर नि- 'लती रहती हैं। कृति में न्धमें सफलता होना मुशिल है। मासर दवा- नया माद्दा पैदा करने की शक्ति है, दवामें नहीं। ओंके इस्तेमालसे लामके ब.ले ह नि होती है। आदमीका शरीर एक मोगन खानेवाला एनिन और अक्सर यह भी होत है कि एक दवाके समझना चाहिये, यह एंजिन तब ही ही ठक
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ठीक चल सकता है जब कि उसे उसकी आव श्यकतानुसार मोजन रूपी ईंधन ऐसे रूपमें दिया जावे जिसे कि वह सहन में पचा सके । प्रायः सब रोगोंका असली कारण उसी एक मुख्य चीनक', जिसपर हम रे, जीवनका आधार है अर्थात भोजनका, अनियमित प्रयोग है। उससे यह नतीना निकलता है कि खानपान के स्वाम:-विक नियर्मोपर चलने से हमारी तन्दुरुस्तीकी हात बहुत अच्छी होसकती है। थोडे शब्दोंनें यही स्वास्थ्यका रहस्य है और वैद्यों या डाक्ट की कोई व्यवस्था या औषधि विक्रेताओं के लम्बे चौडे इश्तहार इसे बदल नहीं सकते । नत्र यह बात सब लोग भली प्रकार समझ जायेंगे तभी नये सिरेसे हम लोगोंकी तन्दुरुनीके निंदा होने की उम्मीद की जा सकेगी । उस समय बीमारी किसीकी सहानुभूतिका विषय होनेके बदले हमारे लिये लज्जा और अपमानकी बात होगी ।
( २७,
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सांससे बडी दुर्गं आती थी। उसे बहुत सम झाने बुझानेपर और फिर भी बहुत डरते डरते, उसने एक नारंगी खानेका निम किया । उसे यह देखकर बडा आश्चर्य हुआ कि नारंगीसे उसे कोई नुक्सान न हुआ । धीरे धीरे उसने विधिपूर्वक नारंगी, नीबू, सेव, अंगूर, मुनक्का और बादाम का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया । वह अपना मामूली मोमन मी करता था। एक महीने के मीतर ही उसकी दशा इतनी सुधर गई कि मानों उसके लिये संसार ही बदल गया । उसकी शारीरिक और मानसिक दशाओंमें पहिलेकी बनिस्बत जमीन आसमानका अंतर होगया । उसके शरीर से बडा मारी बोझ उतर गया और सौं मी बिना एक पाईकी दवा के | यह व्यक्ति यद्यपि मेरा फरोश था पर जबतक वह डाक्टरों के इलाज में रहा जो चीन वह रोज बेचता था और जिन्हें खानेको उतका जी मी बहुत चाहता था उन्हीं चीजोंको खाने से वह वंचित रहा । ऐसे और भी बहुतसे उदाहरण हैं। अनेक नरनारी, जिन्होंने फिर अच्छे होने की आशा छोड दी थी और बालक जिनके माता पिता उनकी जिंदगी से हाथ धो चुके थे, इसी स्वाभाविक उपचार और फलाहार की बदौत बिकुल भले चंगे और हट्टे कट्टे होगये हैं । दवाओं का इस्तेमाल अस्वाभाविक हैं । उनके विक साधनों से प्राप्त न होसके, आशा करना भरोसे किसी असाधारण लामकी, जो स्वाभा ठर्थ है । साफ खून ही बीमारियों से बचनेका एक मात्र उपाय है और स्वाभाविक साधनों से खूनकी सफाई और नये खूनकी उत्पत्ति सहज में हो सकती है । ( विज्ञान )
दिगंबर जैन
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हमारी उम्र कितनी ही ज्यादा क्यों न हो गई हो हम ' स्वाभाविक साधनोंपर भरोसा कर सकते हैं । मेलर महाशयने अपनी पुस्तक में एक व्यक्तिका कि किया है जिसकी उम्र पचास सालकी थी। वह कब्ज और बदहजमीका लगभग बीस बरस तक डाक्टरों का इलाज करा चुका था । जब मेलर महाशय से उससे भेंट हुई तो वह सालमर तक एक बढे नामी डाक्टरका इलान कर चुका था। उस डाक्टरकी आज्ञा थी कि वह सब तरह के फलसे - चाहे कच्चे हों या पक्के परहेज करे, और दूध का इस्तेमाल खूब करे । वह बहुत दुधा और कमजोर होगया था। एक बड़ा फोडा उसकी गर्दनपर था और उसकी
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दिगंबर जैन । दो मित्रोंका वार्तालाप । टने का कौन हो सकता है यदि आप यह कहेंगे
कि महा । तो मैं हूं : जि महापमा टेकचंद-मित्र र मचम्प यह तो आप क्या करे । महमा नो तात्र पास करती है मानते ही हैं कि इ र समय जैन जातिकी दशा
उनके • तु पर लोग चलनेको समार नहीं होते। एक विचित्र ही रूप में परिवर्तित है परन्तु, अफ..
क. संभ है छोटेको को १ कर भी स सोस है उसकी नादानीपर ? क्योकि जिस मार्ग
गोप का सार ही नहीं पर उसे चलने से रोका जाता है वह उसी मार्ग
तिा है वह उसा मागं पड़ता और न वे उसे भ नको व्यर ही होते हैं। पर चलने को तयार होती है और समझ नेपर हम देखते हैं कि बाल वाई अड़े घरवालोंने ही वाम नहीं आती। क्या यह उपकी अच्छ। चया वृद्ध विशाहकी शक डा को ही समझ है ।
निमसे समान कामाविक की प्रथ। सारी हुई रामचन्द - प्रियवर मेन समाज कुछ मोल और छेट २ मलि चक हो कर बुद्रों नहीं है जो वह अच्छे मार्ग चहगे को तयार शिकार हुई इ मैं कहता हूं कि सम नमें न हो। उसकी न समझोका एक दूसरा ही जितनी कुरीतियां है वस्त्र धनवानों ही के द्वारा कारण हे वह यह कि इस समय समान में कुछ उत्पन्न हुई हैं और यह भी मैं कहता हूं कि वे ऐसे स्वार्थी लोग पैदा हुए हैं जिन्होंने सपानको (कुरीतियां ही के द्वारा मिटती हैं। नष्ट भृष्ट करनेका बीड़ा उठा दिया है, यदि ये टेचर-प्रियवर ! भापकाहि कहना मैं सहर्ष लोग ठीक रस्ते पर भानावे तो सम्भव है कि स्वीकृत करता इं परन्तु शंका इस बातकी है समान भी ठीक रास्ते पर आलगे। धनवान लोगों ने ही तुरं निशं चलाई और धन
टेकचंद-मैं यह कब कहता है कि समाज वान लोग ही समाजकी हटी बालिकाओं के भोलीभाली है, वह तो ज्ञान सम्पन्न चतुर है, शिकार करने वाले हैं परन्तु यदि निर्धन लोग पर मैं यह कैसे मानू कि समन भोली नहीं मान लोगों को गन पुत्रियां न दे तो फिर है। जब कि यह इतना मी विचार नहीं करती धनी लोग मा म उनकी पुत्रियों का शिकार कि जिन कुरीतियोंसे मेरी हानि हो चुकी है कर सके हैं, नहीं नहीं ऐ। वे कदापि नहीं कर और होती जा रही है उनको मैं छेड़ दूं ! ते है । यह दोष तो उनहीं निर्धनों के सिर है कि वह तो पुरानी ही कारकी फकीर जो अनी पुत्रियों को ध के कोमसे धनवानोंको बनी है।
बनते हैं और उसे मनमाना रूप लाते हैं। रामचंद-प्रियवर सुनिये ! कुरीतियों से मुक्त रामचंद-प्रिय ! मैं । वनको दायक होना समानके लिये बड़ी कठिन बात है क्योंकि साहूंगा कि कन्या विकाकी तिकी गड़ जितनी कुरीतियों समाज में प्रचिलत हैं वे सब जमानेवाले वान पुरुष ही है। पान दीजिये, समानके बड़े घरों से ही शुरू हुई हैं अब उनको कि कोई सिंघजी ऐसे हैं कि मिनके ४०
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दिगंबर जैन । दधती अवस्था तक २ विवाद हो चुके और दो उत्त के माने (टके करने) का प्रयत्न रात्रि दिन एकतर में हो चुरी परन्तु कर्माकुमार संसा किश करते हैं और किसी न किसी धनवानसे
होने शिवजीको कि विपकी वह अपनी पारू दर्शनी हुंडी भंजाकर कर रह गई इकाही पिईनीको संतोष सामोसे घ. भ ते हैं। कोई २ की सौदा ५००) महा। भोर अभी मामा मागों की पूर्तिक में होती है, तो कोई२ पर २०००) तक चढ़ लिये ही गाणी को हार को हजार रुपयों. जाते हैं तो भी वे बने बाता मंजूर नहीं होता कालम दिखाकार ५०-६५ वर्ष अबस्था तत्र तो खरीददार को. १५००) देकर खरीदनी अती विवाह करने की कोशिश करने पड़ती है कहां तक कही जाय यह निघनोंकी हगे और १० वर्ष ही की थी ५ या ७ करतुत पयानों का हल तो किसी से छिरा नहीं हजार खरीदकर मानो मुराद पूरी करने में उसकी, आलोचना फिरसे करना पाठों का समय लगाये । गिर ? - भव विव रिबे कि न खोना है। निंबईजी हुए शा पर ले जाने के लाय और रामचंद्र-मैं भी तो मानता हूं कि यह कन्यायह पुत्री हुई १८ वर्षकी । १८ वर्षकी अवस्था में विक्रया। दोष दोनों पर हैं, धनवानों और निर्ध
विचारी दीया विधवा हो जाता है। अब नों३र परन्तु प्रियवर निधनों की अपेक्षा यह बसाईये से म चा की प्रवृत्ति हो ( कन्या विक्र!) दोष धनवानों पर ज्यादे है
और कैसे हो कि वृद्धी तामाविक की प्रथा धावानोंहीके द्वारा समाबमें नहीला की सहमा का पटे। मदुमसुम र से प्रबले हुई है और होती नारही है। मैं सत्य मालुम होता है कि सन १९११ ननियों की कहता हूं कि नरसे यह कन्या विक्राका समा
हया १२,४ ८ १ ८२ थी परन्तु १९२१ की ना जारी हुआ है तसे विश्वाओंही कद्र हुई मास में रही ११,७८,५९६ असोचिये और निधनोंके सुयोग्य बाल अविवाहित रह कि भार १० वर्ष ६९५८६ कम होगये गये। प्रिपवर ! समानमें ऐसे अनेक गरीबों के यह सब समानके घटने का कारण बालविवाह बालक अविवाहित फिरते हैं जो समाजका कुछ आदि कुरीतियों से ढका कन्या विक्रयका है, उद्धार मी करने. कायक हैं, परन्तु वे बिचारे अब भी हमारी शमान के ल ग नहीं चेते। धनके विना अपना विवाह नहीं कर सक्ते क्यों कि
टेचद-प्रियकर आपका कहना बहुत ही जन पेस्तर कन्याके पिताको ५००) या १०००) सत्य है, पर मेसे-समझी कन्या विक्र के साया नगरानाका दिये जाय तप कहीं गरीबों के संभालक निधन और धवार दोनों ही है। पुत्र विवाहे झांय । इतने रुपया निरधनोंके पास क्योंकि बहुत निधन ऐ। ई सो धन लाल. कहां इससे निधनों के पुत्रविवाइसे रहित रह चरे फल पुन पासा विचार नहीं करले और जाते हैं और कोई २ छिपे रुस्तम अपनी काम अपनी कन्या को एक दर्शनी हुंडो सम्झर लालसाओं को पूरा कर पाप कमाते हैं।
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दिगंबर जैन ।
(३०)
...
age
टेकचंद-प्रियवर ! आप अब मुझे यह बतला- REETEEEEEEEEEEEEEEEE इये कि किस तरहसे यह कन्याविकपकी नवर . कृतं। दस्त प्रथा समानसे दूर हो और समाज अच्छी "RE SEEEEEEEEEEEEEEEEEEER नीतिका अवलंबन करे।
(३ :-भारत सी.---गांधी-४२) रागचंद-मित्र टेकचंदजी ! कन्या विक्र की
પ્રવૃત્તિ એ એવી ચીજ છે કે જેના વિના
સંસારનું ગાડું નભવું અશકય થઈ પડે. તેના વિના प्रथाको मानसे हटाने का मुख्य उराय यह है दुनिया शून्परत मासे. २ शुभाशुभ आय ४६५ना कि महासभा यह प्रस्ताव पाप्त करे कि निर्विवा. सुलिभा या मायार सुटिमा मासूम ५3 छ ते हित बालक १५ वर्षकी उमरके नीचे न विवाहे सर्व प्रत्तिनमामारी . मामु न तना जावे और विवाहित पुरुष ३० वर्षकी उमरके । A - A 2 ઉપરજ નિર્ભર છે એમ કહું તો તે કંઈ અતિ
શકિત ભરેલું ગણાશે નહિ. નોકરશાહીને ऊपर न विवाहे नावे, और जो यह ४० और ,
અસહકાર કરી ભલે ભારત સંતાને પિતાનું ४५ वाला प्रस्ताव महासमाने पास किया है वह स्वाd 24 वन नापी शणे परंतु आमा २६ करदिया नावे, दरी बात जो भई अपनी ये मनुष्य मेवा मताशा ने प्रत्तिना मसकन्याके विवाह में हड़के वाले से रुपया लेवे उसे
2. હકારી પિતાનું જીવન ટકાવવા વૃથા પ્રયત્ન કરતો
હોય? મનને કલપના સૃષ્ટિમાં રમતું મૂકવું તે पंचायतकी तरफसे उचित दंड दिया भावे और ५२५ मे प्रवृत्तिमा ४२ . ते२ सान्तरित वही दंड साया देनेवाले को दिया जावे, एवं यह प्रवृत्ति वामां आवेत तसस्थान गरी बात भी उसी प्रस्ताव में मिल रहे, ऐसा कर. नलि. ना ५२३५ मा प्रत्तिना- २०
પ્રવૃતિનો આચારસૃષ્ટિમાં પ્રાદુર્ભાવ થાય છે. ત્યારે नेसे बहुत ही जल्द कन्या विक्रय का का समाजसे
એટલું તે સ્પષ્ટ થયું હશે કે પ્રવૃત્તિએ જીવન दूर हो जावेगा।
છે અને જીવન માં પ્રવૃત્તિ છે-પછી ભલે તે टेकचन्द-मित्रवर आपको धन्य है जो इस सत प्रत्ति खाय या असत् प्रवृत्ति य. तरह कशविक्राकी प्रथाकी दूर करने का दुनियामा या प्रवृत्तिमा इष्टिगाय२ ५३ उपाय मुझे बताया अब मैं मी उसके हटाने का छेते धा धर्म, अर्थ, काम भने मोक्ष में
ચાર પુરૂષાર્થને અનુરૂપ હોય છે કેટલાક ધર્મને જ प्रयत्न जहां तहां करूंगा । और पब मैं घा.
અનુલક્ષી વર્તન રાખે છે, તો કેટલાક પૈસાજ जाता है फिर कभी भारसे मिलूंगा। अच्छा भाववानां पाताना नी सायता मानती लीजिये जय जिनेश । लेखक
બેસે છે; કેટલાક ભેગવિલાસમાં જ રચ્યા પચ્યા
રહે છે, તો કેટલાક વીરલા પુરૂષો મોક્ષને જ જીવ पं. गोरेलाल पंचरत्न प्रेमी नेता अन्तिम श नी प्राdि मनु३५
निवासी। प्रयला मारेछ, धर्म मनमोक्षनाविया
રથી અળગા રહી શકત અથ અને કામનેજ અનુदीपमालिका विधान (दीवाली पूजन) -)
લક્ષી પ્રયત્નો આદરે તો તે અસતુ પ્રવૃત્તિ કહી दीवालीके कार्ड बारह आने सैंकड़ा।
શકાય ધર્મ, અર્થ, કામ અને મોક્ષ એ ચારોને मगानेका पता
એક બીજાને અવિરોધરૂપ સેવવા તેજ સત પ્રવૃત્તિ. भेनेनर, दि० जैन पुस्तकालय-सूरत। स रा ४१२९ तथा मनु०५ ५यिनी सार्थ -
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હિ? જૈન !
0900 -
કતા-જીવનનું અંતિમ ય જે સાચુ સુખ મોક્ષ ત્યાં શાસ્ત્રસ્વાધ્યાય કયાં ગયો? પ્રભુના દર્શન વર્ડ તે સાધી શકાય છે. જે પ્રવૃત્તિઓમાં ધાર્મિક પ્રાપ્ત કરેલ ધાર્મિક ન લીન ચેતન કયાં ઉડી ગયું? અંશ હોતો નથી તે સર્વ વ્યર્થ છે. અસતુ છે, ચારિત્ર કયાં રહું? આ તે નાના છોને પાળવા શકિતના દુરૂપીયોગની પ્રણાલીકાઓ છે અને અને મોટા જીને મારવા એ ધર્મ થયો. આત્મવિકાસ કરવામાં આડખીલીરૂપ છે.
(મારો કહેવાનો હેતુ એવું નથી કે કંદમૂળ ખાવાં, મનુષ્ય જન્મથી મરણ પર્યત પ્રવૃત્તિ પરાય- કીડી મંકોડાને મારવાં, પરંતુ આવી સૂક્ષ્મ અહિંસા ભુજ હોય છે. નદિ કશ્ચિત ક્ષતિ જ્ઞાતુ તિષત્ર- પાળવાવાળા સ્થૂળ અહિંસા કયાં પાલતા નથી ?)
મવત્ એક ક્ષણવાર પણ કમ વિના પ્રવૃત્તિ વિના આપણામાંના ઘા ખરાઓ આ ધર્મ પાળનારા કોઇ રહી શકતું નથી. મોહમાયાએ એટલું પ્રબલ બગભગતે છીએ-પ્રભુને છેતરનારા-ઠગારા સામ્રાજ્ય આપણા ઉપર જમાવી દીધું છે કે કેવા છીએ; પરંતુ આ સર્વનું પ્રાયશ્ચિત પ્રથમ ધર્મની પ્રકારની પ્રવૃત્તિઓ મનુષ્ય પર્યાયની સાર્થકતા સિદ્ધ લગામ ઝાલી રાખવાનો દાવો કરતા પંડિતનાં કરવા અનુરૂપ છે તે આપણને સુજ તું નથી. પુછડાંઓને, ભ્રષ્ટાચાર ભટ્ટારકને પિથીમાંઅનાદિ કાળથી વળગી રહેલી આ મોહ, માયા, ના રીંગણવાળા શાસ્ત્રીઓને, ધર્મને નામે (કર્મ-બંધન) તેથી મુકત થવું તે મનુષ્ય પર્યા- ધતીંગ મચાવનાર સાધુઓ વગેરેને કરવાનું રહ્યું: યની સાર્થકતા છે. જેણે એ સાર્થકતા સિદ્ધ કરી કારણકે આપણુમાં ધાર્મિક સળો ઘર કરી રહ્યા નથી તેણે મનુષ્ય પર્યાય એળે ગાળી છે એમ છે તેને જન્મ આપનાર તેમને ચારિત્રની વિહવ
થિી. આત્મજ્ઞાન થયા વિના કમ લતાજ છે. તે આ જે ઉપદેશ આપે છે તેનાંથી - બંધન શિથિલ કરી શકાતું નથી, અને તે જ્ઞાન અન્યથા પ્રવર્તતા આપણે તેમને જોઈએ છીએ. ધાર્મિક પ્રત્તિઓમાં રોકાયા સિવાય ક્રમશઃ પ્રાપ્ત તેઓ જાતે જ વ્યભીચરી હોય, પરસ્ત્રી પર દૃષ્ટિકરી શકાતું નથી.
પાત કરતા હોય, અસત્ય બોલતા હોય, અનાવશ્યક ધાર્મિક પ્રવૃતિઓમાં રોકાવું.એટલે ચારિત્રમય પરિગ્ર૬ રાખતા હોય, પ્રપંચની જાળ પાથરતા બનવું એ વાત ખરી, કારણકે ચારિત્રને ધાર્મિક હોય, લોભાવિભૂત હેય, તો પછી તેમના ઉપદેશની પ્રવૃત્તિઓ સાથે ગાઢ સંબંધ છે; પરંતુ મંદીરમાં અસર જનસમાજ ઉપર કેવી થશે તે કઢપવું સહેલું જઈ પ્રભુનાં દર્શન કરી, કરેલાં પાપને પશ્ચાતાપ છે. આપણુમાં દેવે ઘણું હોય છે, અને તેમને કરી પ્રભુનાં ગુગુમાનમાં બેત્રણ સ્તવન બેલી બે- પિલવા પુરતું કઈપણ પંડિત વગેરેમાં જોવામાં ત્રણ માળ, કેરવીસ્ત્ર સ્વાધ્યાય કરવાં, આવે છે, તે વિના વિલંબે તેને ગુગુ સ જી ગ્રહી ટીલા ટપકાં કરવાં, સૂમ પર દયા બતાવવી લેવા પ્રેરાઈએ છીએ; અથવા ચારિત્ર પથ પર ચાલવા કંદમૂલ-લીલવણ વગેરે ખાવાની બાધા કરવી, કીડી- પ્રયાસ કરતા મનુષ્યો એની દલીલથી પિતાની મંકોડાને ઘાત ન થાય તે માટે કાળજી રાખવી; ભૂલનું સમાધાન કરી લે છે કે, આવા આવા ભણ્યા અને દુકાને બેસી હલાહલ અસત્ય બેલી સામા ગણ્યા જાણકાર જ્ઞાની એ આવા આવા દેષો કરે માણસનાં ગળાં રંસવાં, ઓછું આપી વધારે લેવું, છે તો પછી આપણાથી એ દેષ થઈ જાય ખે ટાં મા૫-તેલ રાખવાં, માલ ની સેળભેળ કરી એમાં શી નવાઇ ?” આટલા માટે જ આપણ સામાં માને મેવા, વિશ્વાસઘાત કરે, ખોટી. ચારિત્ર સુધારણા માં પ્રગતિશીલ બની શકતા નથી. સાક્ષી પુરવી, ખાટા દસ્તાવેજ કરવા, યોગ્ય જે તેઓ ખરા અગરથી જ જનસમૂહને ધર્મ પથસમય કરતાં વધુ સમય સુધી અતિભંથી હાર પર દેરવા ઈચ્છતા હોય તે પોતાના નિર્મલ મણુ અનજન સંગ્રહ કરી કરોડો ની હિંસાનું ચારિત્રનો નમુનો તેના આગળ કાં ન મૂકે? પોતે કારણથઈ પડવું વગેરે અધર્મના કાર્યો કરવાં, સાસરે જાય નહિ ને ગાંડીને શિખામણુ કાં રે ?
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- દ્વિવર જૈન
હાલમાં જે અસહકારની પ્રવૃત્તિ ચાલી રહી છે અને મળ્યાજ રહે છે, જ્યારે યવન સમાજમાં વા ક્રિશ્ચિ તેની જનતા ઉપર જે અસર થઈ છે તેનું કારણ અને સમાજમાં ઉછરેલા યુવાનને ય ક બનવું યુરોપવાસ એ પણ એક અવાજે કહી રહ્યા છે કે જરી અઘરૂં લાગે ; કાબુ કે તે અસક મહાત્માજી જે ઉપદેશ આપે છે તે પ્રથમ પતા- વૃત્ત કેળવે છે તે તત્વેના તે સમાજમાં નામાં મૂર્તિ મનન કરે છે અને ત્યારબાદ જ ન- અનાલ હે ય છે, તે તે હવે લાજ લુ જ ' સમડ આગળ રજુ કરે છે. તે પંડિતુવય પ્રમાણુમાં હેયે છે હિંદુ સમાજ ધાક લાગ: ઉપદેશક ! આપ પ્રથમ ચારિત્રમય બને અને તેણી ને જેવું છે. આપે છે. તેવું પણ પછી અમને ચારિત્ર પથ પર દોરવા લાયક બને. બોગ્યે જ બી નું કેવું સમજ આપતું માત્ર ઢોંગી બાહ્યાચારથી અમને ધોકામાં નાખવા વૃા ૫ડશે, સામાજીક પરિસ્થિતિ ગમે તેવી હોય પરંતુ પ્રયેન ના કરે. હવે જમાને સાજી થયો છે, જે ગુડાસર મા ડાય તો અનેક પ્રકારની માટે આપને સત્યપરાયણ થવું ઘટે છે. હવે સાંપ્ર. અડચણે આવા છતું સંલિત , ધાક તકારને પોલમપેલ અસહ્ય છે તે આપને લક્ષ લાગણી કેળવી શકાય છે. પાક સુદ 11ખાર ન જ હોવું જોઈએ. મારા ઉપર કુપત થઇ એમાં પશુ કેટલાક સંત પુ િથમ યાની વાતો સામી લેખણી ચલ, વવા જેટલું તે શી પણ હું આપણે વાંચીએ છીએ, અને તે બા કક તપતિ ધારું છું, આપ નહિજ વાપરી; કાર કે પન કરતાં માલૂર પડે છે કે મને આ 4 માં છે તે ને;, દયાન, અંતરાત્માજ કબુલ કરશે કે આપે જ મને આ ઝ પિદા કરનાર અને પરિપત્ર - અને ૨ શબ્દો વાપરવાનું કારણ આપ્યું છે. જે પડિતે જે સસ્કરજ હે ય છેજે પાવર ટી આપણું બ્રહ્મચારીઓ, જે ઉપદેટા, જે ધર્મનેતાઓ જીવન વ્યતિત ક તું પડે તે તેમના કેટલા છે : નિ:સ્વાર્થ પણે શુદ્ધ હૃદયને પિતાના શુદ્ધ ચારિ. હોય છે કે તેઓ શું કારિત પાક અને ત્રને નમને આગળ ધરી જનતાને આત્મજ્ઞાન પણ કેળવવાનું જ રાખે છે. જી, ૫ ને પ્રેરે છે. કરવા ભગીરથ પ્રયત્નો કરી રહ્યા છે તે તે લલચાવે છે: ને કેટલાક એવા હે ય છે કે તે મારે શિરસા વંધ જ છે તેમને વિષે તો મને પ્રેમ પં ; ચરિત કર જે પ્રસંગે તે જ બોલવા તથા લખવાને બીલકુલ હક હે ઈ શકે જ બને છે. ખાતાને છે કે છે અને મને નહિ. અતુ.
લચ ખાવાન પ્રસ . મને અને થિી છે ધાર્મિક અંશ દરેક ૦૧કિતમાં એાછા વત્તા કેમ કરી ? | ક 2 કે છીનું દાન પ્રમાણુ હોય છે જ; પરંતુ તેને જેવું વિશું મળે નોકેર : તેવા સ બહુ જ , ' "કે તે છે તે પ્રમાણમાં તે યકત થાય છે. કેટલાકને તેઓ ગુડ ' પપે છેધાક ત્ત ધાર્મિક લાગણ એ પ્રબળ હોય છે તો કેટલાને જાર છે ૧ . * : 5'' ખરી? શિથિલ હોય; કેટલાક ધાર્મિક લાગણીઓ કરી. એ રીતે પગમાં છે .. ' મિ ત ર ર ર ૪ વાતા દેખાય છે, તો કેટલાકને કેવા પ્રથખ વીર પ ક હી : કેમ ? કે પછી એ રૂદ્ધ પ્રવૃત્ત થઈ પાછા હઠતા માલૂમ પડે છે. રામ બનવું આચર નું કરા પ્રેરે છે અને ગે ઉદાર છે , ઘણું કારો આધારભૂત છે, પરંતુ તેમાં ગૃહ થાય ત્યાં સુધી ધની ડેળ કરે અને કેવા કે ' સંસ્કાર, વ્યવહાર, સબત, અજ્ઞાન વગેરે મુખ્ય ગો પ્રાપ્ત થતાં જે ધર્મ ! નાખે છે. તે . કારણે કહી શકાય, જન સમાજ માં યુકેનને ખરેખ મગભગ ૪ - શ ાય. સને રદ્ધા અહિંસક બનવું ઘણું સરસ લાગે છે કારણ કે તે થવાને શમાં પ્રવે વાલુ : કેવી સમાજ જ એવો છે કે તેમાંથી તેને અનુરૂપ પણ ધાર્મિક અંશને પ.વ મળે છે, જયારે કે આ
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વડોદરામાં યુવક મંડળે દશ ધર્મના વિવે. શ્રાવકો પર કાબૂ પણ ન રાખી શકયા એ અજએ ચનની પત્રિકાઓ છપાવી કૃત વેચી હતી.. જેવું છે !મહારાજે એક પક્ષની પ્રભાવના ન લીધી તેથી ધr[.એલ-માં શા સાંદલચંદ ઝવેરચંદની
પણ વિખવાદ વધ્યા છે. શાસ્ત્ર સભા તથા પુજામાં
બંને પક્ષતા આવીને બેસતા હતા એ તો ખુશી પરની મ ણેકે દશ ઉપવે સ કર્યા હતા. ૩૦ ૦) ઉપજ
થવા જેવું છે, અમે તો ભટ્ટારકછો હજી ૫ સુચિત થઈ હતી.
કરીએ છ્યુિં કે આ પના પ્રભાવ બંને પક્ષ પર આરાસુ–માં ૪૦ ભાઈ નામે અનેક ના એક સરખે જમાવા ને આગલા ૫ છલા ઝધડાકર્યા હતાં. બે પક્ષ હોવાથી જુદી જુદી પૂજ એને નીકાલ ઝહેરથી જતાં પહેલાં કરાવી દઈ ભ થાતી હતી. કુસંપને લીધે વરાડા નીમુલ્યા આપના ગુરૂ ગુણચંદ્રજીના માફક અમરકીતિ મુકી તા. ચાર દાનની ટીપ થઈ હતી. લીંબલા ગામમાં જાઓ. ગ ગચંદ્રજી તે અનેક સ્થળે ઝધડામ પતાવી એક
સ્ત્રી ને ૮ ઉપવાસ કર્યો હતો. આ૫1 હતા._ - ઝહેર -2 એક બાઇએ ૧૬ ઉપવાસ કર્યા બાડાદર-થી શા૦ ફતેચંદ તારાચંદ લખે છે હતા તેમજ બીજા વ્રતો ૫૦-૬૦ ભાઇ આડેનાએ કે હું.રપુર તાબે દેવલ ગામમાં દિ૦ જૈન પાઠ• કર્યા હતાં. અત્રે નરસીપુરના ભાઇએ સ થે ઘણાં શાલા છે તેની પરીક્ષા લેવા હું ગમે તા. ૩૦ વર્ષોથી ઝગડે છે તે મટતાજ નથી. એક બાજુ ધિાથી છે પણ મદદ જ આછી હોવાથી ૩૮ (ઝડેર,)ને બીજી બાજુ ૧ ધર (નરસીપુર) છે આગળ નીભે એમ નથી જેથી જે ની રીતે તીર્થત્રણ વર્ષ થી વરઘોડો પણ બંધ છે. આ વર્ષે ક્ષેત્ર કમેટી તરફથી છાણી નવાગામની પાઠશાળાને ત્યાં ભ૦ સુરેદ્રકીર્તિ જ એ ચામાસ' કરેલું હતું ૬૦) વાર્ષિક મદદ મળે છે, તેમ દેલમાં પણ છતાં કંઈ પણ સમાધાન ન થતાં ઝધડો લેશેષ કંઈ નવુિં તે ૩૦) પણ મદદ મળી જોઇએ. વધ્યા છે. ભટ્ટા૨કજી એક પક્ષી વલ ગ લઇ રહ્યા મા ત ૬ ઘા ડાદરમાં કુપ હોવાથી હુ જોરે ૩પ્યા હતા એ ઠીક નહતુ. ભટ્ટારકજી લખે છે કે મારા વકીલેમાં ખર્ચાઇ ૬ હ્યુ છે. દિગગરીમાં અગી રે તરફથી અષઢ મારા પે લીસ નહિ બેલા વાયલી રિવાજ ન હોવા છતાં કેટલાક હવે મમત લઈ પણ તે ભલે ગમે તેમ હોય પણ પોલીસ આવેલી છે. ઠેલા છે એ અજ” જેવું છે. દેરોળમાં એક એ તે નક્ક જ. ૧ળા આરતી ઉડારવાની તકરારમાં બાઈ એ ૮ ઉપવા લ કર્યા હતા. તથા કર્નદત ચાદરની સાં « થો પડકા ની સવાર સુધી રાત ઉધાપન કર્યું હતું. વળી અત્રે એક કુંભારણે ૧૦ દિવસ દહેરાને દરવાજે પોલીસ ચોકી કરી ૨ડી ઉપવસ હતા જેનુ ઉધાપન કરયુ હતુ. હતી એ દ્રારકની હાજરી માં શોભે ખરું કે ? આ બાઈએ માં ૪ મદિરા કામ કરી અનેક નિયમ એમણે છે કે ઈ કણ રીતે સ૬ કરાવવા જોઇ લીધા હતા. હતા. અસલના ભટ્ટ કે એક રાજા જે કેટલે એજ પ્રમાણે ધારીસણા, સાદા, છાલા, પ્રભાવ પાડી શકતા હતા તો આ ભટ્ટારમુજી વાસણ', ધરી, સદ, જીનામુવાડા, સોનાસણ,
ભાલેજ, અલુવા, પતનાકુવા, બાકરોળ, નનાનપુર, તેને વિચ્છેદ થાય છે. જડવાદને પોષવારૂપ રણાસણ વગેરે અનેક યુળે. આ પર્વ સારી અને પાશવશકિત કેળવવારૂપ જ્ઞાન, દયાના રીતે ઉજવાયાના સમાચાર એકઠા કરીને દિ૦ જૈન ઝરામ સુકવી દૃછે, ધામિ ક્ર અંશને વિશ્વ સ યુવક મંડળ મું થઈ બે મોકલી આપ્યા છે, જે કરે છે. કુલ અને કોલેજોમાં અપાતુ' જ્ઞાન સ્થાન ભાવને લીધે સંક્ષેપ માં જ લઈ શJધા છિયે પાશ્ચિમાત્ય સંસ્કૃતિને-જડવાદને સુવ પ્રકારે પશુ યુવક મંડળના આ પ્રયાસ અતિ ઉત્તમ અને પાપે છે.
(અપૂર્ણ) પ્રશંસનીય છે,
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________________ फिरोजपुर-में पं० नरसिंहवास के पधा-हुये तथा पुस्तकों की प्रमावना हुई। यहां 40 रनेसे व ऐ० पन्नालाल जीके होने से हुन धर्म से पोरवाडोंमें फूट थी जिसको तन मन धनसे प्रमावना हुई / पंसापती मंदिर में लिखित शास्त्र मिटानेवाले स्ठ गोपीकृष्ण जीको मानपत्र दिया। ही पढ़नेका यहां नियम हो गया है। गया / दान की वर्षा मी अच्छी हुई थी। कलकत्ते-में पर्व मानंद व्यतीत हुआ। वम्बइ-में यह पर्व धर्म प्रभावनाके साथ पं० झमन्लालजी, पं० माघरलाल जी शास्त्र व्यतीत हुआ था। हम भी अतिम दो दिन / पढ़ते थे। पं० श्रील ल व पं० रखनलालीके वरचई पहुंचे थे। दोनों मंदिरों नित्य दो कुछ अनुचित दर्ताव से पंचानमें कुछ अशांति दफे शस्त्रपमा होती थी। यहां हमरी मतीनी हुई थी। चंपाव ई (विधवा परी० लल्लुपई प्रेमानंददार) सोलापुर-में रावजीभाई, माणेकचंद अमो. ने 10 उपवास किये थे व अन्य दो बहिनोंने चंद आदि शस्त्र पढ़ते थे। यहां पगईने 10 6-6 उपस किये थे। चरागाईने पारणाके उपवास किये थे। दिन 900) आबू, 100) दश संस्था भोको धुलिया-में २०६पकी तकरार मिटर व 25) श्राविकाश्रम बम्बईको दान किया था। यह पर्व स नंद व्यतीत हुआ था परन्तु अंके चौदसको जुलून मी निकला था। विशेष दिन मालके लिये फिर ताशाही थी। खे! मारवाडी मंदिरमें करीब 200) मालिकका चंदा। इन्दौर-के समी तेरह मंदिरों में नित्य शास्त्र एक हिन्दी स्कूल खोलने के लिये हुआ है जो समा होती थी। पं. कस्तूरचन्द नीके उपदेशसे मंदिरमें ही खुलेगी जिसमें नित्य 6 घंटे हिन्दीके। खुश होकर सर सेट कम चंदजीने उनको एक साथ धर्मशिक्षा मी दी जायगी। मेनेजिंग कमेटी पुणे दर दिया। रात्रिको प्राय: सेठ जी खुद भी नियुक्त हुई है परंतु अभी कार्य चालू नहीं नित्य शास्त्र पढ़ते थे। हुआ है। मलकापुर- 50 मुमतिचन्द उरदेशकके नसीराबाद-में ब्र० चांदमल नीके पवारपधारनेसे विशेष आनंद रहा व 11) उपदेशक नेसे विशेष धर्मध्यानके साथ यह पर्व पतीत पंड़ में हुए थे। हुआ था। नवागाम-में 2 बाईयों ने दश 2 उपवास जयपुर-में पं० मनोहरला शास्त्री व पं. किये थे। यहां क्षुल्लक शांतिसागरजी के उपदेशसे शिवमुखराय जी शास्त्री पदो थे। व. आश्रमें पारशाला में देशी औषधालय खुला है। आ नकळ 10 ब्रह्म व रीव 6 अध्यापक हैं। खंडवा-में पं० बिहारीलाल, पं. कन्हैया- औरंगाबाद-में ब्र हीराकलनीके पधालालजी, पं७ दरबारीलाल जी, पं० कस्तूचंदनी दसे शास्त्र सम में व्याख्यानों का अच्छा आनंद आदिके अनेक व्याख्यान हुए। पाठशाला, रहा। तीन भाइयों ने प.ठशाला के विद्यार्थियों को औषधालय, कुमार सभा आदिके अधिाशन मी आहारदान दिपा थ / "जैनविजय, प्रिन्टिग प्रेस खपाटिया चकला,-सुरतमें मूलचंद किसनदास कापड़ियाने मुद्रित किया। और “दिगम्बर जैन" आफिस, चंदावाड़ी-सुरतसे उन्होंने ही प्रकट किया।