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दिगंबर जैन । दो मित्रोंका वार्तालाप । टने का कौन हो सकता है यदि आप यह कहेंगे
कि महा । तो मैं हूं : जि महापमा टेकचंद-मित्र र मचम्प यह तो आप क्या करे । महमा नो तात्र पास करती है मानते ही हैं कि इ र समय जैन जातिकी दशा
उनके • तु पर लोग चलनेको समार नहीं होते। एक विचित्र ही रूप में परिवर्तित है परन्तु, अफ..
क. संभ है छोटेको को १ कर भी स सोस है उसकी नादानीपर ? क्योकि जिस मार्ग
गोप का सार ही नहीं पर उसे चलने से रोका जाता है वह उसी मार्ग
तिा है वह उसा मागं पड़ता और न वे उसे भ नको व्यर ही होते हैं। पर चलने को तयार होती है और समझ नेपर हम देखते हैं कि बाल वाई अड़े घरवालोंने ही वाम नहीं आती। क्या यह उपकी अच्छ। चया वृद्ध विशाहकी शक डा को ही समझ है ।
निमसे समान कामाविक की प्रथ। सारी हुई रामचन्द - प्रियवर मेन समाज कुछ मोल और छेट २ मलि चक हो कर बुद्रों नहीं है जो वह अच्छे मार्ग चहगे को तयार शिकार हुई इ मैं कहता हूं कि सम नमें न हो। उसकी न समझोका एक दूसरा ही जितनी कुरीतियां है वस्त्र धनवानों ही के द्वारा कारण हे वह यह कि इस समय समान में कुछ उत्पन्न हुई हैं और यह भी मैं कहता हूं कि वे ऐसे स्वार्थी लोग पैदा हुए हैं जिन्होंने सपानको (कुरीतियां ही के द्वारा मिटती हैं। नष्ट भृष्ट करनेका बीड़ा उठा दिया है, यदि ये टेचर-प्रियवर ! भापकाहि कहना मैं सहर्ष लोग ठीक रस्ते पर भानावे तो सम्भव है कि स्वीकृत करता इं परन्तु शंका इस बातकी है समान भी ठीक रास्ते पर आलगे। धनवान लोगों ने ही तुरं निशं चलाई और धन
टेकचंद-मैं यह कब कहता है कि समाज वान लोग ही समाजकी हटी बालिकाओं के भोलीभाली है, वह तो ज्ञान सम्पन्न चतुर है, शिकार करने वाले हैं परन्तु यदि निर्धन लोग पर मैं यह कैसे मानू कि समन भोली नहीं मान लोगों को गन पुत्रियां न दे तो फिर है। जब कि यह इतना मी विचार नहीं करती धनी लोग मा म उनकी पुत्रियों का शिकार कि जिन कुरीतियोंसे मेरी हानि हो चुकी है कर सके हैं, नहीं नहीं ऐ। वे कदापि नहीं कर और होती जा रही है उनको मैं छेड़ दूं ! ते है । यह दोष तो उनहीं निर्धनों के सिर है कि वह तो पुरानी ही कारकी फकीर जो अनी पुत्रियों को ध के कोमसे धनवानोंको बनी है।
बनते हैं और उसे मनमाना रूप लाते हैं। रामचंद-प्रियवर सुनिये ! कुरीतियों से मुक्त रामचंद-प्रिय ! मैं । वनको दायक होना समानके लिये बड़ी कठिन बात है क्योंकि साहूंगा कि कन्या विकाकी तिकी गड़ जितनी कुरीतियों समाज में प्रचिलत हैं वे सब जमानेवाले वान पुरुष ही है। पान दीजिये, समानके बड़े घरों से ही शुरू हुई हैं अब उनको कि कोई सिंघजी ऐसे हैं कि मिनके ४०