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________________ (२९) दिगंबर जैन । दधती अवस्था तक २ विवाद हो चुके और दो उत्त के माने (टके करने) का प्रयत्न रात्रि दिन एकतर में हो चुरी परन्तु कर्माकुमार संसा किश करते हैं और किसी न किसी धनवानसे होने शिवजीको कि विपकी वह अपनी पारू दर्शनी हुंडी भंजाकर कर रह गई इकाही पिईनीको संतोष सामोसे घ. भ ते हैं। कोई २ की सौदा ५००) महा। भोर अभी मामा मागों की पूर्तिक में होती है, तो कोई२ पर २०००) तक चढ़ लिये ही गाणी को हार को हजार रुपयों. जाते हैं तो भी वे बने बाता मंजूर नहीं होता कालम दिखाकार ५०-६५ वर्ष अबस्था तत्र तो खरीददार को. १५००) देकर खरीदनी अती विवाह करने की कोशिश करने पड़ती है कहां तक कही जाय यह निघनोंकी हगे और १० वर्ष ही की थी ५ या ७ करतुत पयानों का हल तो किसी से छिरा नहीं हजार खरीदकर मानो मुराद पूरी करने में उसकी, आलोचना फिरसे करना पाठों का समय लगाये । गिर ? - भव विव रिबे कि न खोना है। निंबईजी हुए शा पर ले जाने के लाय और रामचंद्र-मैं भी तो मानता हूं कि यह कन्यायह पुत्री हुई १८ वर्षकी । १८ वर्षकी अवस्था में विक्रया। दोष दोनों पर हैं, धनवानों और निर्ध विचारी दीया विधवा हो जाता है। अब नों३र परन्तु प्रियवर निधनों की अपेक्षा यह बसाईये से म चा की प्रवृत्ति हो ( कन्या विक्र!) दोष धनवानों पर ज्यादे है और कैसे हो कि वृद्धी तामाविक की प्रथा धावानोंहीके द्वारा समाबमें नहीला की सहमा का पटे। मदुमसुम र से प्रबले हुई है और होती नारही है। मैं सत्य मालुम होता है कि सन १९११ ननियों की कहता हूं कि नरसे यह कन्या विक्राका समा हया १२,४ ८ १ ८२ थी परन्तु १९२१ की ना जारी हुआ है तसे विश्वाओंही कद्र हुई मास में रही ११,७८,५९६ असोचिये और निधनोंके सुयोग्य बाल अविवाहित रह कि भार १० वर्ष ६९५८६ कम होगये गये। प्रिपवर ! समानमें ऐसे अनेक गरीबों के यह सब समानके घटने का कारण बालविवाह बालक अविवाहित फिरते हैं जो समाजका कुछ आदि कुरीतियों से ढका कन्या विक्रयका है, उद्धार मी करने. कायक हैं, परन्तु वे बिचारे अब भी हमारी शमान के ल ग नहीं चेते। धनके विना अपना विवाह नहीं कर सक्ते क्यों कि टेचद-प्रियकर आपका कहना बहुत ही जन पेस्तर कन्याके पिताको ५००) या १०००) सत्य है, पर मेसे-समझी कन्या विक्र के साया नगरानाका दिये जाय तप कहीं गरीबों के संभालक निधन और धवार दोनों ही है। पुत्र विवाहे झांय । इतने रुपया निरधनोंके पास क्योंकि बहुत निधन ऐ। ई सो धन लाल. कहां इससे निधनों के पुत्रविवाइसे रहित रह चरे फल पुन पासा विचार नहीं करले और जाते हैं और कोई २ छिपे रुस्तम अपनी काम अपनी कन्या को एक दर्शनी हुंडो सम्झर लालसाओं को पूरा कर पाप कमाते हैं।
SR No.543190
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
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