SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 31
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ठीक चल सकता है जब कि उसे उसकी आव श्यकतानुसार मोजन रूपी ईंधन ऐसे रूपमें दिया जावे जिसे कि वह सहन में पचा सके । प्रायः सब रोगोंका असली कारण उसी एक मुख्य चीनक', जिसपर हम रे, जीवनका आधार है अर्थात भोजनका, अनियमित प्रयोग है। उससे यह नतीना निकलता है कि खानपान के स्वाम:-विक नियर्मोपर चलने से हमारी तन्दुरुस्तीकी हात बहुत अच्छी होसकती है। थोडे शब्दोंनें यही स्वास्थ्यका रहस्य है और वैद्यों या डाक्ट की कोई व्यवस्था या औषधि विक्रेताओं के लम्बे चौडे इश्तहार इसे बदल नहीं सकते । नत्र यह बात सब लोग भली प्रकार समझ जायेंगे तभी नये सिरेसे हम लोगोंकी तन्दुरुनीके निंदा होने की उम्मीद की जा सकेगी । उस समय बीमारी किसीकी सहानुभूतिका विषय होनेके बदले हमारे लिये लज्जा और अपमानकी बात होगी । ( २७, • सांससे बडी दुर्गं आती थी। उसे बहुत सम झाने बुझानेपर और फिर भी बहुत डरते डरते, उसने एक नारंगी खानेका निम किया । उसे यह देखकर बडा आश्चर्य हुआ कि नारंगीसे उसे कोई नुक्सान न हुआ । धीरे धीरे उसने विधिपूर्वक नारंगी, नीबू, सेव, अंगूर, मुनक्का और बादाम का इस्तेमाल करना शुरू कर दिया । वह अपना मामूली मोमन मी करता था। एक महीने के मीतर ही उसकी दशा इतनी सुधर गई कि मानों उसके लिये संसार ही बदल गया । उसकी शारीरिक और मानसिक दशाओंमें पहिलेकी बनिस्बत जमीन आसमानका अंतर होगया । उसके शरीर से बडा मारी बोझ उतर गया और सौं मी बिना एक पाईकी दवा के | यह व्यक्ति यद्यपि मेरा फरोश था पर जबतक वह डाक्टरों के इलाज में रहा जो चीन वह रोज बेचता था और जिन्हें खानेको उतका जी मी बहुत चाहता था उन्हीं चीजोंको खाने से वह वंचित रहा । ऐसे और भी बहुतसे उदाहरण हैं। अनेक नरनारी, जिन्होंने फिर अच्छे होने की आशा छोड दी थी और बालक जिनके माता पिता उनकी जिंदगी से हाथ धो चुके थे, इसी स्वाभाविक उपचार और फलाहार की बदौत बिकुल भले चंगे और हट्टे कट्टे होगये हैं । दवाओं का इस्तेमाल अस्वाभाविक हैं । उनके विक साधनों से प्राप्त न होसके, आशा करना भरोसे किसी असाधारण लामकी, जो स्वाभा ठर्थ है । साफ खून ही बीमारियों से बचनेका एक मात्र उपाय है और स्वाभाविक साधनों से खूनकी सफाई और नये खूनकी उत्पत्ति सहज में हो सकती है । ( विज्ञान ) दिगंबर जैन SHOPNOT हमारी उम्र कितनी ही ज्यादा क्यों न हो गई हो हम ' स्वाभाविक साधनोंपर भरोसा कर सकते हैं । मेलर महाशयने अपनी पुस्तक में एक व्यक्तिका कि किया है जिसकी उम्र पचास सालकी थी। वह कब्ज और बदहजमीका लगभग बीस बरस तक डाक्टरों का इलाज करा चुका था । जब मेलर महाशय से उससे भेंट हुई तो वह सालमर तक एक बढे नामी डाक्टरका इलान कर चुका था। उस डाक्टरकी आज्ञा थी कि वह सब तरह के फलसे - चाहे कच्चे हों या पक्के परहेज करे, और दूध का इस्तेमाल खूब करे । वह बहुत दुधा और कमजोर होगया था। एक बड़ा फोडा उसकी गर्दनपर था और उसकी
SR No.543190
Book TitleDigambar Jain 1923 Varsh 16 Ank 12
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMulchand Kisandas Kapadia
PublisherMulchand Kisandas Kapadia
Publication Year1923
Total Pages38
LanguageHindi
ClassificationMagazine, India_Digambar Jain, & India
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy