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॥ श्रीवीतरागाय नमः ॥
दिगंबर जैन,
THE DIGAMBAR JAIN. नाना कलाभिर्विविधश्च तत्त्वैः सत्योपदेशैस्सुगवेषणाभिः । संबोधयत्पत्रमिदं प्रवर्त्तताम्, दैगम्बरं जैन समाज - मात्रम् ॥
वीर संवत् २४४९ आश्विन वि० सं० १९७९.
वर्ष १६ वाँ.
पुर्युषण पर्व सानंद पूर्ण हुआ है व स्थान २ पर यह पर्व अनेक प्रका
उत्तम क्षमा । स्की धर्मप्रभावना के साथ मनाया गया था ऐसे समाचार पर्युषणपचके विषय में अम्बत्र प्रकट हैं। पर्युषण पर्वके अंत में हम रे सभीभाई प्रतिपाके दिन परस्पर उत्तम क्षमा कहते हैं व सगे संबंधियों वर्ष भर के आरसंघ के लिये उत्तम क्षमावर्ण के पत्र लिखते हैं यह सामान्य प्रणाली होगई है । हमारे पास मी उत्तम क्षमावणीके अनेक पत्र आये हैं जिन सबका पृथक र उत्तर न दे सकने के कारण हम यहां ही सबसे वर्ष भरके अपराध लिये उत्तम क्षमाकी याचना करते हैं। वर्षभर दिगम्बर जैनमें भी लेख व सत्य समा चारादि लिखने में हमसे किसी भाई का मन क्लेशित हुआ हो तो उसके लिये भी उनसे क्षमा के प्रार्थी हैं। उत्तरक्षमा मात्र मूखसे कहने से नहीं होती परंतु वह क्षमा हृदयकी होनी चाहिये और अबसे उत्तमक्षमा धर्मका पालन हमसे
अंक १२ व.
बराबर होता रहे ऐसा हमें हरएक कार्य व वर्ताव करते समय स्मरण रखना चाहिये । मुंहसे उत्तम क्षमा बोलदेना व पत्र में उत्तम क्षमा लिख देने मात्र से सच्ची- क्षमा नहीं होगी परंतु हृदयसे कषाय भावको त्यागकर सच्चा उत्तमक्षमा धर्मका पालन करना चाहिये ।
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वर्ष
हमरे अंतिम (२४वें) तीर्थकर श्री महावीर स्वामीका निर्वाण पावापु रीमें हुए आम २४४९ हुए हैं । श्री महा वीर प्रभुका निर्माण कार्तिक वदी ( गुजराती अश्विनादी ) ) ) को प्रातःकाल पावापुरी में हुआ था, तबसे हरएक स्थानपर दीपावली उत्सव मनाया जाता है, वीर निर्वाण उस्तव होता है, निर्माण लाडू चढता है व हरएक स्थानपर दिये जलाये जाते हैं । यह दीपोत्सवी (दिवाळी) का त्योहार जो सार्वजनिक हो गया है उसका प्रथम कारण जैनियों का वीरनिर्वाण उत्सव ही है। अमावस्या के प्रातःकाल हरएक मंदिर में वीरनिर्वाण पूजन समय संक्षिप्तमहावीरचरित्र पढ़कर ही निर्वाण कांड भाषा गाथा पढ़ना चाहिये व उसके बाद ही निर्माण लाडू चढ़ाना चाहिये तथा अभिषेकादि करना चाहिये
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वीर निर्वाणो
त्सव ।