Book Title: shaddarshan Samucchay Satik Sanuwad part 01
Author(s): Sanyamkirtivijay
Publisher: Sanmarg Prakashan
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षड्दर्शन समुच्चय भाग - १, परिशिष्ट - ४ संकेत-विवरण
न्यायवा० ता० टी० : न्यायवार्तिकतात्पर्यटीका,
प्रश० भा, व्यो० : प्रशस्तपादभाप्य व्योगवतीटीका,
न्यायसारः
: न्यायसारः
पात० महाभा० : प्रशस्तपादभाप्यकन्दली टीका
न्यायावता०
: न्यायावतारः,
वृहत्कल्प० मलय० : वृहत्कल्पभाप्यम्, वृ० सर्वज्ञसि० : वृहत्सर्वज्ञसिद्धिः (लघीययत्रयादि
संग्रहान्तर्गतः),
न्यायभा०
: न्यायभाप्यम्
न्यायवि० वि०
: न्यायविनिश्चयविवरण,प्रथमभाग,
बृहदा०
: वृहदारण्यकोपनिपत्,
न्यायवि०
: न्यायविन्दुः
न्याय वि० टी० : न्यायविन्दुटीका
ब्रह्मसू० शां० भा० : ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यम्, ब्रह्मसू० शां० भा० रत्नप्रभा : ब्रह्मसूत्रशांकरभाष्यम् बोधिचर्या० पं० पृ० : वोधिचर्यावतारः.
न्यायसू०
.: न्यायसूत्रम्
न्यायभा०
: न्यायभाप्य,
भग०
: भगवतीसूत्रम्,
प्रभाकरवि०
: प्रभाकर विजय,
भगवद्गी०
प्रकरण पं०
: प्रकरणपंजिका,
: भगवद्गीता, : गनुस्मृति,
मनु०
प्रज्ञा० मलय०
: प्रज्ञापनासूत्रगलयगिरिटीका,
महाभा०
: गहाभारतम्,
प्र० वार्तिकालं०
: प्रगाणवार्तिकालंकारः,
प्र० वा० स्ववृ० टी०: प्रगाणवार्तिकस्ववृत्तिटीका.
माध्यमिक० वृ० : माध्यमिकवृत्तिः, मी० श्लो० : मीमांसाश्लोकवार्तिकम्,
प्रमाणवा०
: प्रगाणवार्तिकग,
मी० श्लो० उपमान०: गीगांसाश्लोकवार्तिकग
प्रमाणसमु०
: प्रगाणसुगञ्चयः
मी० श्लो० प्रत्यक्षसू०: गीगांसाश्लोकवार्तिकग,
प्रमाणप०
: प्रगाणपरीक्षा,
मुण्डक०
: गुण्डकोपनिपत्,
प्रमाणमी०
: प्रगाणगीगांसा,
मूलाचा०
: गूलाचार,
प्रमाणसं०
: प्रगाणसंग्रह,
मैत्रा०
: मैत्रायण्युपनिषद्,
प्रमेयक०
: प्रमेयकगलगार्तण्ड,
यश०
: यशस्तिलकर,
प्रमेयरत्नमा०
: प्रगेयरत्नगाला,
युक्तयनुशा०
: युक्तयनुशासन,
प्रव० टी०
:: प्रवचनसारटीका (जयसेनीया)
योगद० व्यासभा० : योगदर्शनव्यासभाप्या,
प्रश० भा०, कन्द : प्रशस्तपादभाप्यकिरणावली
योगभा०
: योगदर्शनव्यासभाप्यग
प्रश० किर०
: प्रशस्तपादभाष्यकिरणावली टीका,
योगभा० तत्त्ववैशा०: योगभाप्यस्य तत्त्ववैशारदीटीका,

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