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गाथा-३
चिपक जाये । यहाँ रेशा नहीं होता फिर वह आधे घण्टे में देह छूट जाये। पाँच मिनट बाद आधा घण्टा रखते हैं, सब बताया था । आहा... हा... ! परन्तु वह प्रदर्शन देखो ! वह अन्दर गिरे, वहाँ उसके कन्धे काँप गये, नक्की हो गया था परन्तु जहाँ अन्दर गिरा, और पैर बाँधा, पहले हाथ बाँधा, फिर वहाँ खड़ा रखकर पैर बाँधते हैं और यहाँ टोपी डालते हैं, उसके एक मरण के यह दुःख के त्रास... अरे... ! चार गति के दुःख का त्रास जिसे लगा हो - ऐसे जीवों के लिये यह मेरा 'योगसार' का उपदेश है - ऐसा कहते हैं। समझ में आया ? जिसे उसमें मिठास वर्तती हो, भव करना हो, अभी कहीं स्वर्ग में जाना हो और सेठाई करना हो, एक-दो सेठ अवतार, 'अहमदाबाद' में 'माणिकचौक' में लेना हो... ऐई...!
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नहीं, नहीं, यह तो वे एक थे न ? 'वगसरा' में कालीदासभाई थे, वे पहले गृहस्थ थे, पैढी थी। 'राम श्रीपाल ' की पैढ़ी थी, लाखोंपति । फिर बेचारे घिस गये। एक स्वयं भाई रह गया था, फिर साधारण घर किया, फिर सुनने आते, महाराज! तुम मोक्ष की बातें करते हो, परन्तु मोक्ष नहीं चाहिए ? तो तुम्हारे क्या चाहिए ? इस अहमदाबाद में माणिकचौक में झवेरी होना है। गधा, तेरा नाम इनके हीरे ढोने के लिए । परन्तु वे भी मजाकिया थे। मैंने कहा - क्या करते हो यह ? माणिकचौक में निकले तो देखे, देखो, यह झवेरी ! देखो यह झवेरी ! लोग एक दिन में देखो कितना ? परन्तु वे हैं क्या ? कहाँ जाना है तुम्हारे ? कि हमें तो अभी झवेरी होना है। परन्तु मर जाओगे, वहाँ गधा नहीं होओगे। फिर दाँत निकालते हैं, ऐसे अवतार जिसे धारण करना है, जिसे जन्म-मरण का त्रास नहीं है, उसके लिये हमारा उपदेश लागू नहीं पड़ता। आहा... हा...! समझ में आया ? एक बात ।
मोक्ष की लालसा धारण करनेवाले को... अब देखो ! अस्ति नास्ति की है। (भव) भय से त्रास और मोक्ष की अभिलाषा । जिसे अकेली मोक्ष की अभिलाषा है । मुझे
छूटना है। देखो, यह पुण्य बन्धन होकर स्वर्ग में जाना यह नहीं रहा। मुझे तो छूटना, छूटना और छूटना है । आहा... हा...! ऐसा 'मोक्खहं लालसियाहं' मोक्ष की लालसा अर्थात् अभिलाषा । मोक्ष की अभिलाषा धारण करनेवालों के लिये यह मेरा योगसार है - ऐसा आचार्यदेव योगीन्द्रदेव कहते हैं। समझ में आया ?
'अप्पास बोहण कयइ' ऐसे आत्मा के स्वरूप को समझाने के प्रयोजन से....