Book Title: Yogsara Pravachan Part 01
Author(s): Devendra Jain
Publisher: Kundkund Kahan Parmarthik Trust

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Page 11
________________ योगसार प्रवचन (भाग-१) ११ वहाँ एक बंगला है, है... बड़ा मकान ! पाँच-पाँच करोड़, दस-दस करोड़ के बंगले विदेश में होते हैं, राजाओं के। वे तो धूल के बड़े ढेर वहाँ होते हैं परन्तु अन्दर ऐसी आवाज आती है, हे नाथ! तुम पूर्ण हो, वहाँ सामने आवाज (प्रतिध्वनि) आती है कि हे नाथ! तुम पूर्ण हो। ऐसे सिद्ध भगवान को... है? इसलिए यह अन्दर में यह एकाकार होता है, यह वास्तविक प्रतिध्वनि पड़ती है - ऐसा कहते हैं। सिद्ध परमात्मा स्वयं को ध्याने में वे प्रतिछन्द के स्थान पर हैं। जैसे, आवाज करते हैं न? यह परमात्मा की आवाज अन्दर से आती है। 'सिद्ध समान सदा पद मेरो।' 'चेतनरूप अनूप अमूरति, सिद्धसमान सदा पद मेरौ। मोह महातम आतम अंग, कियौ परसंग महा तम घेरौ॥ ज्ञानकला उपजी अव मोहि, कहौं गुन नाटक आगमकेरौ। जासु प्रसाद सधै सिवमारग, बेगि मिटै भववासा वसेरौ॥' (समयसार नाटक, उत्थानिका, श्लोक-११) इस शरीर मिट्टी में धूल में चैतन्य अमृत जैसा सागर भगवान अतीन्द्रिय आनन्द का समुद्र, वह इस कलंक में बसता है, वह उसे कलंक है। समझ में आया? इसी में आता है न? जन्म धारण करना कलंक है। इसी में आयेगा। नहीं? हैं ? इसमें आता है ! एक श्लोक आता है, जन्म करना, वह जीव को कलंक है। शरम, शरमजनक जन्म आता है न? शरम जनक जन्मौं तले... आहा...हा... ! अरे...! एक मैसूर(पाक) चार सेर घी का पिया हुआ हो, उसे मरे हुए गधे के चमड़े में ऐसे ढाँकना, गधा मर गया हो और उसका सड़ा हुआ चमड़ा हो, चार किलो घी का पिया हुआ मैसूर, पाँच किलो, दस किलो बढ़ा अब देश में ले जाना है, डालो गधे के खोले में, डालेगा? अरे........... ! इसी प्रकार यह तीन लोक का नाथ अतीन्द्रिय आनन्द की मूर्ति, उसे मैसूर की उपमा क्या देना? समझ में आया? ऐसा आनन्दकन्द जिसे दर्शन-ज्ञान -चारित्र की पर्याय से पूर्णानन्द को प्राप्त करे - ऐसा जिसका स्वरूप, उसे इस माँस की हड्डियों में रखकर शोभा करना, वह कलंक है, कलंक है। समझ में आया? अशरीरी होने

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