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योगसार-प्राभृत
सरलार्थ :- जिसप्रकार सरोवर में स्रोतरूप नाली के द्वारा आकर शीतकारक जल ठहरता/ रुकता है, उसीप्रकार जीव में कषाय स्रोत से आकर जडताकारक कर्म ठहरता/रुकता है अर्थात् बन्ध को प्राप्त होता है।
भावार्थ :- यहाँ अवतिष्ठते' पद के द्वारा जीव में कर्मास्रव के साथ में उसके उत्तरवर्ती कार्य का उल्लेख है, जिसे 'बन्ध' कहते हैं और वह तभी होता है जब कर्म कषाय के स्रोत से आता है और इसलिए इस श्लोक में साम्परायिक आस्रव का उल्लेख है। जो कर्म.कषाय के स्रोत से साम्परायिक आस्रव के द्वारा नहीं आता वह बन्ध को प्राप्त नहीं होता और साम्परायिक आस्रव उसी जीव के होता है जो कषाय-सहित होता है - कषाय रहित के नहीं। कषाय रहित जीव के योगद्वार से जो स्थितिअनुभाग विहीन सामान्य आस्रव होता है, उसको ईर्यापथ आस्रव कहते हैं। स्थिति एवं अनुभाग बन्ध का कारण कषाय है, कहा भी है - 'ठिदि अणुभागा कसायदो होंति'- स्थिति तथा अनुभाग बन्ध कषाय से होते हैं। कषाय रहित जीव के साम्परायिक आस्रव मानने पर आपत्ति -
जीवस्य निष्कषायस्य यद्यागच्छति कल्मषम् ।
तदा संपद्यते मुक्तिर्न कस्यापि कदाचन ।।१२४।। अन्वय :- यदि निष्कषायस्य जीवस्य कल्मषं आगच्छति तदा कस्य अपि (जीवस्य) कदाचन मुक्तिः न संपद्यते।
सरलार्थ :- यदि कषायरहित जीव के भी मोहरूप पाप कर्मों का आस्रव होता है, यह बात मान ली जाय तो फिर किसी भी जीव को कभी मोक्ष हो ही नहीं सकता। ___ भावार्थ :- पिछले श्लोक में कषायसहित जीव के साम्परायिक आस्रव की बात कही गयी है - कषाय रहित की नहीं। इस श्लोक में कषाय रहित जीव के भी यदि बन्धकारक साम्परायिक आस्रव माना जाय तो उसमें जो दोषापत्ति होती है, उसे बतलाया है और वह यह है कि तब किसी भी जीव को कभी भी मुक्ति की प्राप्ति नहीं हो सकती। ___ कषाय से भी बन्ध और बिना कषाय से भी बन्ध, तो फिर छुटकारा कैसे मिल सकता है? नहीं मिल सकता और यह बात वास्तविकता के भी विरुद्ध है; क्योंकि जो कारण बन्ध के कहे गये हैं, उनके दूर होने पर मुक्ति होती ही है । बन्ध का प्रधान कारण मिथ्यात्वादि कषाय है; जैसा कि इसी ग्रन्थ के बन्धाधिकार में दिये हुए बन्ध के लक्षण से प्रकट है।
सूक्ष्मता से सोचा जाय तो जब जीव जघन्यभावरूप कषाय से परिणत होता है, तब भी जीव को कषाय/चारित्रमोह का आस्रव एवं बंध नहीं होता है, यह विषय यहाँ समझना आवश्यक है।
प्रश्न :- यह कैसे? उत्तर :- दसवें गुणस्थान में सूक्ष्मसाम्पराय चारित्रधारक मुनिराज सूक्ष्म लोभरूप परिणाम से
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