Book Title: Yogasara Prabhrut
Author(s): Amitgati Acharya, Yashpal Jain
Publisher: Todarmal Granthamala Jaipur

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Page 294
________________ ३०४ योगसार-प्राभृत कर्ममल से रहित आत्मा निर्बंध - युज्यते रजसा नात्मा भूयोऽपि विरजीकृतः। पृथक्कृतं कुतः स्वर्णं पुनः किट्टेन युज्यते ।।५०९।। अन्वय : - (यथा) किट्टेन पृथक्कृतं स्वर्णं पुनः (किट्टेन) कुतः युज्यते ? (तथा एव) रजसा विरजीकृतः आत्मा अपि भूयः (रजसा) न युज्यते।। सरलार्थ :- जिसप्रकार किट्ट कालिमारूप मल से भिन्न किया गया शुद्ध सुवर्ण फिर से किट्ट कालिमा से युक्त होकर अशुद्ध नहीं हो सकता; उसीप्रकार जो ज्ञानावरणादि आठों कर्मरूपी रज से रहित हुआ है, वह शुद्ध आत्मा भी फिर से कर्मों से युक्त नहीं होता अर्थात् बंधता नहीं है। भावार्थ :- त्रिकाली शुद्ध ज्ञायकस्वभावी निज भगवान आत्मा में मग्नता करने का अलौकिक शुद्धोपयोगरूप पुरुषार्थ पुनः पुनः विशेषरूप से करते रहने से जो साधक आत्मा बंध के मिथ्यात्वादि कारणों का नाश करके पूर्वबद्ध कर्मों से भी रहित होकर सिद्ध परमात्मा हो गया है, वह कर्मबंध के कारणों के अभाव में फिर से ज्ञानावरणादि कर्मों से नहीं बंधता है। जैसे दूध से दही, दही से मक्खन, मक्खन से घी तैयार हो जाने पर वह घी पुनः दूध आदिरूप नहीं हो सकता; वैसे सिद्ध परमात्मा फिर से संसारी नहीं होते। इसलिए जिनवाणी में कहीं भी भगवान ने अवतार लिया, ऐसा कथन नहीं मिलेगा। एक बार कर्मों से सर्वथा मुक्त हो जाने पर पुनः संसार में आने का कुछ कारण नहीं है। कारण के बिना कार्य न होने का स्वाभाविक नियम है। उपादान कारण बिना कार्य नहीं होता - दण्ड-चक्र-कुलालादि-सामग्रीसम्भवेऽपि नो। संपद्यते यथा कुम्भो विनोपादानकारणम् ।।५१०।। मनो-वचो-वपुःकर्म-सामग्रीसम्भवेऽपिनो। संपद्यते तथा कर्म विनोपादानकारणम् ।।५११।। अन्वय : - यथा दण्ड-चक्र-कुलालादि-सामग्रीसम्भवे अपि उपादानकारणं विना कुम्भः नो सम्पद्यते। तथा मनःवचःवपुःकर्म-सामग्रीसम्भवे अपि उपादानकारणं विना कर्म न सम्पद्यते । सरलार्थ :- जिसप्रकार दण्ड, चक्र और कुंभकार आदि निमित्तरूप अनेक प्रकार की कारण सामग्री का सद्भाव होनेपर भी मृत्पिण्डरूप उपादान कारण के बिना कुम्भ/घटरूप कार्य की उत्पत्ति नहीं होती। उसीप्रकार मन-वचन-काय की क्रियारूप निमित्तकारण स्वरूप सामग्री का सद्भाव/अस्तित्व होने पर भी मिथ्यात्व, अविरति आदि कलुषतारूप उपादान कारण के बिना कर्म की उत्पत्ति नहीं होती। भावार्थ :- उपादान-निमित्त के संबंध में जो निर्णय नहीं कर पाते उनको इस श्लोक में [C:/PM65/smarakpm65/annaji/yogsar prabhat.p65/304]

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