Book Title: Yogakshema Sutra Author(s): Niranjana Jain Publisher: Jain Vishva BharatiPage 15
________________ दस GC Wom ६ ६७ ६६ १ ७३ ७५ ३०. आत्म राज्य के अधीश्वर ३१. सुख में फूलो नहीं, दुःख में रोओ नहीं ३२. ज्ञान-सचेतना का उद्घोषक है ३३. तनाव-अधर में नाव ३४. इनके भी बयां जुदा-जुदा ३५. वैज्ञानिक तथ्य ३६. प्रसन्नता अन्त:करण की सहज स्वच्छता है ३७. वचन-वीथी ३८. सुपात्र दान बना देता महान ३६. विकृत मन व्याकुल रहे, निर्मल सुखिया होय ४०. मन उजियारा : जग उजियारा ४१. प्रेम की ईंट से अपने सुख का मंदिर बनाओ ४२. झलकियां ४३. निर्मल चित्त का आचरण ही धर्म है। ४४. सुंदर रहना है तो अपने मिजाज का ध्यान रखना होगा ४५. अर्हत्-वाणी ४६. सब कुछ कहे बिना रहा नहीं जाता ४७. चमड़ी का रंग, मिजाज का ढंग ४८. मुस्कुराइये छोटी बात को बड़ी चिन्ता मत बनाइये ४६. कहते हैं... ५०. एक कोण ५१. कटूक्तियां "५२. आजादी की तड़फ आत्मा का संगीत है ५३. बुरे अन्तःकरण की यातना जीवित आत्मा का नरक है ५४. आपा उलझे उलझिया, आपा सुलझे सुलझिया ५५. उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत ५६. दुःख हिंसा है : हर्ष भी हिंसा है ५७. मनुष्य का सुख सन्तोष में है ५८. धर्म की शरण : अपनी शरण ५६. लघुता से प्रभुता मिले प्रभुता से प्रभु दूर ६०. सुख की राह ६१. ब्रह्मचर्य का पालन मानव पर्याय में ही होता है ६२. साधना की भूमि ६३. मौत हर व्यक्ति को साधक बना देती है ६४. योगक्षेम सूत्र SS SS w w w w w w Wow mro 90 our 6 ० ० १०१ १०३ १०४ १०५ " १०७ १०६ ११२ ११५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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