Book Title: Vyavahar Sutram Part 04
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
View full book text
________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
व्यवहारसूत्रम् सप्तम उद्देशकः
२३२२ (B)
सोऽपि ब्रूयात् - जाव नागच्छते भंडं, ताव अच्छह साहवो । एवं वक्कइतो साहू, भणंतो होइ सारितो ॥ ३३१६॥ 'यावन्नागच्छति भाण्डं तावत् साधवो यूयं तिष्ठथ', एवं वक्रयिकः साधून भणन् सागारिकः शय्यातरो भवति ॥ ३३१६ ॥
देसं दाऊण गते, गलमाणं जइ छएज्ज वक्कइतो । अण्णो वऽणुकंपाए, ताहे सागारितो सो सिं ॥ ३३१७॥
पूर्वस्वामी शालादेर्देशमेकं दत्त्वा क्वाप्यन्यत्र गतः, वर्षाकाले च स देशो गलति, ततस्तं | गलन्तं प्रदेशं वक्रयिकोऽन्यो वाऽनुकम्पया छादयति तदा स तेषां साधूनां सागारिकः शय्यातरः ॥ ३३१७॥
गाथा ३३१४-३३२० वक्रयसालायां
वसने सामाचरी
१३२२ (B)
एतदेव सविस्तरं भावयति
For Private And Personal Use Only

Page Navigation
1 ... 576 577 578 579 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606