Book Title: Vyavahar Sutram Part 04
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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व्यवहारसूत्रम् सप्तम उद्देशकः
१३२८ (A)
सूत्रम्- से रजपरियट्टेसु, संथडेसु, अव्वोगडेसु अव्वोच्छिन्नेसु, अपरपरिग्गहिएसु सच्चेव ओग्गहस्स पुव्वाणुनवणा चिट्ठइ अहालंदमवि ओग्गहे ॥ २५॥
से रजपरियट्टेसु, असंथडेसु वोगडेसु, वोच्छिन्नेसु, परपरिग्गहिएसु भिक्खुभावस्स अट्ठाए दोच्चंपि ओग्गहे अणुन्नवेयव्वे सिया॥ २६॥
‘से रजपरियट्टेसु' इत्यादि सूत्रद्वयम्, अस्य सम्बन्धप्रतिपादनार्थमाहसागारिय साहम्मिय, उग्गहगहणेणुवत्तमाणम्मि । सत्तम अंतिमसुत्तं, ठवंति राउग्गहे थेरा ॥ ३३३४॥
पूर्वसूत्रेभ्यः सागारिकाऽवग्रहग्रहणमनुवर्तते ततोऽपि परतरेभ्यः साधर्मिकावग्रहग्रहणम्।। तस्मिन् अनुवर्तमानेऽवग्रहग्रहणप्रस्तावात् सप्तमस्योद्देशकस्यान्तिमं सूत्रं सूत्रद्वयं राजावग्रहे स्थविराः सूत्रकर्तारः स्थापयन्ति। एषोऽधिकृतसूत्रद्वयसम्बन्धः ॥३३३४॥
अनेन सम्बन्धेनायातस्यास्य व्याख्या- से तस्य भिक्षो राजपरावर्तेषु राजपरावर्तो नाम
२५-२६
गाथा ३३३४-३३३९ राजपरावर्ते
अवग्रहसामाचारी
१३२८ (A)
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