Book Title: Vyavahar Sutram Part 04
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat
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श्री व्यवहारसूत्रम् सप्तम उद्देशकः १३२४ (B)|
किमुक्तं भवति? यथा वक्रयिके शय्यातरत्वचिन्ता कृता तथा तयैव रीत्या क्रयिकेऽपि कर्त्तव्येति नवरं पुनर्वक्रयिकात् क्रयिकस्य नानात्वमिदं-वक्रयिकः कियत्कालं मूल्यप्रदानतो गृहीत:(गृह्णाति), स तु क्रयिकः पुनरुच्चत्वेन गृह्णाति यावज्जीवं मूल्यप्रदानत आत्मसत्ताकीकरोति ॥ ३३२२॥
सूत्रम्-विहवधूया नायकुलवासिणी सा वि यावि ओग्गहं अणुनवेयव्वा, किमंग पुण पिया वा, भाया वा, पुत्ते वा, से वि यावि ओग्गहं ओगेण्हियव्वे॥ २३॥
'विहवधूया नायकुलवासिणी'त्यादि, अस्य सूत्रस्य सम्बन्धमाह-- सागारियअहिगारे, अणुवत्तंतम्मि कोइ सो होति । संदिट्ठो व पभू वा, विहवासुत्तस्स संबंधो ॥ ३३२३॥
इह पूर्वसूत्रात् सागारिकाऽधिकारः शय्यातराधिकारोऽनुवर्तते, तस्मिन् अनुवर्तमानेऽनेन | सूत्रेण कोऽपि सागारिकः, कोऽपि प्रभुरिति प्रतिपाद्यमित्येष विधवासूत्रस्य सम्बन्धः॥ ३३२३ ।।
सूत्र २३
गाथा ३३२१-३३२६ | अवग्रहानु| ज्ञापनाविधिः
१३२४ (B)
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