Book Title: Vyavahar Sutram Part 04
Author(s): Munichandrasuri
Publisher: Omkarsuri Gyanmandir Surat

View full book text
Previous | Next

Page 582
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री व्यवहारसूत्रम् सप्तम उद्देशकः १३२४ (B)| किमुक्तं भवति? यथा वक्रयिके शय्यातरत्वचिन्ता कृता तथा तयैव रीत्या क्रयिकेऽपि कर्त्तव्येति नवरं पुनर्वक्रयिकात् क्रयिकस्य नानात्वमिदं-वक्रयिकः कियत्कालं मूल्यप्रदानतो गृहीत:(गृह्णाति), स तु क्रयिकः पुनरुच्चत्वेन गृह्णाति यावज्जीवं मूल्यप्रदानत आत्मसत्ताकीकरोति ॥ ३३२२॥ सूत्रम्-विहवधूया नायकुलवासिणी सा वि यावि ओग्गहं अणुनवेयव्वा, किमंग पुण पिया वा, भाया वा, पुत्ते वा, से वि यावि ओग्गहं ओगेण्हियव्वे॥ २३॥ 'विहवधूया नायकुलवासिणी'त्यादि, अस्य सूत्रस्य सम्बन्धमाह-- सागारियअहिगारे, अणुवत्तंतम्मि कोइ सो होति । संदिट्ठो व पभू वा, विहवासुत्तस्स संबंधो ॥ ३३२३॥ इह पूर्वसूत्रात् सागारिकाऽधिकारः शय्यातराधिकारोऽनुवर्तते, तस्मिन् अनुवर्तमानेऽनेन | सूत्रेण कोऽपि सागारिकः, कोऽपि प्रभुरिति प्रतिपाद्यमित्येष विधवासूत्रस्य सम्बन्धः॥ ३३२३ ।। सूत्र २३ गाथा ३३२१-३३२६ | अवग्रहानु| ज्ञापनाविधिः १३२४ (B) For Private And Personal Use Only

Loading...

Page Navigation
1 ... 580 581 582 583 584 585 586 587 588 589 590 591 592 593 594 595 596 597 598 599 600 601 602 603 604 605 606