Book Title: Visuddhimaggo Part 02 Author(s): Dwarikadas Shastri, Tapasya Upadhyay Publisher: Bauddh Bharti View full book textPage 6
________________ प्रकाशकीय यावत् स्थास्यन्ति गिरयः, सरितश्च महीतले। प्रचरिष्यति लोकेऽस्मिन्, तावद्वै बौद्धभारती॥ विगत १९७७ ई० में, बौद्धभारती-ग्रन्थमाला के १२वें पुष्प के अन्तर्गत, आचार्य बुद्धघोषरचित विसुद्धिमग्ग (बौद्ध योगशास्त्र का मूर्धन्य ग्रन्थ) का मूल (पालि) पाठ ही प्रकाशित हुआ था। यद्यपि विद्वानों ने इस ग्रन्थ का आशातीत समादर किया; परन्तु अध्येता छात्रों ने, साथ में हिन्दी अनुवाद न होने के कारण, इसको संगृहीत करने में कुछ उपेक्षा दिखायी। इतने अन्तराल के बाद, आज हम छात्रों की उत्कण्ठा के शमनहेतु ग्रन्थ के मूल पालि-पाठ के साथ उसका हिन्दी रूपान्तर भी प्रकाशित कर रहे हैं। .. यह हिन्दी-रूपान्तर भगवत्कृपा से इतना सुव्यवस्थित लिखा गया है कि अब यह छात्रों के लिये ही ज्ञानवर्धक नहीं, अपितु विद्वानों के लिये भी अत्युपयोगी एवं सहायक हो गया। __ यह हिन्दी-रूपान्तर विषयवस्तु का सम्यक्तया अवबोध कराने के लिये, कुछ अधिक विस्तृत हो गया है, अंत: अब इसे रूपान्तर (अनुवाद) मात्र न कहकर विस्तृत हिन्दी व्याख्या' कहा जाय तो भविष्णु व्याख्याकार के कठिन श्रम का उचित एवं उपयुक्त मूल्याङ्कन होगा। ___ इस हिन्दी व्याख्या की रचयित्री डॉ० तपस्या उपाध्याय, एम. ए., पीएच. डी., हिन्दी जगत् के लिये सुपरिचित ही हैं। आप हिन्दी के सुप्रसिद्ध कवि प्रो० कान्तानाथ पाण्डेय 'चोंच' राजहंस (हरिश्चन्द्र कालेज, वाराणसी) की सुपुत्री एवं पालि साहित्य के जाने माने विद्वान् प्रो० जगन्नाथ उपाध्यायं (भू० पू० पालिविभागाध्यक्ष, सं. सं. वि. वि., वाराणसी) की पुत्रवधू हैं। यह बात हमें आश्वस्त करती है कि आप को हिन्दी, संस्कृत एवं पालि भाषाओं का साहित्यिक ज्ञान कुलक्रमागत एवं परम्पराप्राप्त है, अत: इनकी लेखनी पर विश्वास किया जा सकता है। . इन्होंने, यह व्याख्या लिखते समय, विसुद्धिमग्ग से सम्बद्ध यथोपलब्ध सभी सामग्रियों का-जो कि पालि हिन्दी एवं अंग्रेजी भाषा में यत्र तत्र विकीर्ण थीं, यथाशक्ति गम्भीरतया अध्ययन कर उनका इस व्याख्या में यथास्थान आवश्यक उपयोग व समावेश किया है। यों, यह व्याख्या प्रामाणिकता की मर्यादा से ही स्पृष्ट नहीं, अपितु इससे भी आगे बहुत दूर तक अन्त:प्रविष्ट भी है-ऐसा हमारा विश्वास है। अतः हमारी मान्यता है कि यह व्याख्या लिखकर आपने अपने अध्ययन का संदुपयोग तो किया ही, साथ में पालि-जगत् का भी महान् उपकार किया है। अस्तु। ग्रन्थ के प्रारम्भ में पूर्ववत् विस्तृत भूमिका एवं हिन्दीसंक्षेप भी दे दिये गये हैं! अन्ते च, आर्थिक सौकर्य को ध्यान में रखते हुए, हम इस बार इस विपुलकलेवर ग्रन्थ को हिन्दी व्याख्या के साथ क्रमशः तीन भागों में प्रकाशित कर रहे हैं। जिनमें पहला एवं दूसरा भाग आपके सम्मुख प्रस्तुत किया जा रहा है। अवशिष्ट तीसरा भाग यथासम्भव समय में उपलब्ध हो जायगा-ऐसी आशा है। Erl arrer वाराणसी वैशाखपूर्णिमा, २०५९ वि० । अध्यक्ष, बौद्धभारतीPage Navigation
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