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राणकपुर: एक नजर
राणकपुर जैन धर्म की श्रद्धा-स्थली और भारतीय शिल्प का अनूठा उदाहरण है। मंदिर के शिल्प को देखने के लिए देश-विदेश से प्रतिदिन आने वाले हजारों-हजार दर्शकों के मुंह से पहली ही नजर में बोल फूट पड़ते हैं – वाह ! लाजवाब !! अप्रतिम !!!
इस विशाल मंदिर में हर इंच पर शिल्प का निखार है, हर ओर कला का आश्चर्य और छैनी का चमत्कार है। परम पितामह परमात्मा श्री ऋषभदेव की पावन छत्र-छांह में इस भूमि का परम भाग्योदय हुआ, तीर्थ खूब फला-फूला, समय के उतार-चढ़ाव के बावजूद नींव से शिखर तक अखंड रहा। प्राकृतिक सौंदर्य के बीच स्थापित यह राणकपुर तीर्थ भारतीय शिल्प का नाभि-स्थल है।
राजस्थान की अरावली गिरीमाला की पहाड़ियों के बीच स्थित यह तीर्थ उदयपुर से ९० कि. मी. एवं फालना स्टेशन से ३३ कि. मी. दूर स्थित है। पत्थरों के अनगढ़ प्राकृतिक सौंदर्य के बीच इस मंदिर की वास्तु कला अपने वैभव के साथ मुखर है। हमारी भारतीय वास्तु-विद्या कितनी बढ़ी-चढ़ी थी और कलाकार कैसे सिद्धहस्त थे. पत्थर में कैसे प्राण-संचार कर देते थे. यह तीर्थ इसका साक्षी है। मंदिर के शिल्प-समृद्ध गुंबजों एवं स्तंभों को देखकर ऐसा लगता है, जैसे भारतीय स्थापत्य की मुद्रिका में जड़े हुए हीरे हों। मंदिर में प्रवेश करते ही लगता है मानो हम देवलोक में पहँच गये हों।
मंदिर के मुख-मंडप के प्रवेश-द्वार के पार्श्व में खड़े एक स्तंभ पर अंकित अभिलेख से ज्ञात होता है कि स्थापत्य कला एवं आध्यात्मिकता को एक साथ अभिव्यक्त करने वाले इस तीर्थ की स्थापना के प्रमुख स्तंभ महामंत्री धरणाशाह एवं शिल्प-निर्देशक देपा हैं। अभिलेख में राणा कुंभा के नाम का भी ससम्मान उल्लेख किया गया है, जिससे प्रतीत होता है कि कला एवं स्थापत्य के प्रश्रयदाता राणा कुंभा का भी इस मंदिर के निर्माण में योगदान रहा।
मान्यतानुसार धरणाशाह राणकपुर के निकटवर्ती 'नांदिया' गांव के निवासी थे। वे मेवाड़ के राणा कुम्भा के मंत्री थे। उनकी कार्य-क्षमता एवं राजनैतिक अनुभवों की प्रशंसा की गई है।
धरणाशाह की इच्छा थी कि वे प्रथम तीर्थंकर भगवान आदिनाथ का एक ऐसा मन्दिर बनवायें जो अपने आप में अनूठा हो। राणकपुर उनकी उसी इच्छा की आपूर्ति है। उन्होंने स्वप में परिदृष्ट 'नलिनी गुल्म' नामक देव-विमान की तरह ही मन्दिर का आकार-प्रकार बनाने का निश्चय किया।
पार्श्वनाथ मंदिर : परिकर का एक भाग
श्रद्धालुओं का अभिवादन करता गजराज