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द्वारिका तथा समवशरण का दृश्य अंकित हैं।
ग्यारहवें गुम्बज में सात पंक्तियां हैं। हाथी-घोड़े, नाट्यकला, भगवान नेमिनाथ के जीवन-प्रसंग, विवाह, दीक्षा आदि एवं गवाक्ष में बैठी राजुल की आकृति मनोरम है।
अठारहवीं से छब्बीसवी देहरी के गुम्बजों में भी कला के विभिन्न पक्षों को उजागर किया गया है। देहरी २६ से २७ के मध्य में विशाल हस्तिशाला निर्मित है। यहां संगमरमर के बेहद सुन्दर १० हाथी हैं। यहां मंदिर निर्माताओं एवं उनके गुरुजनों की प्रतिमाएं भी हैं। २७ से ५० तक की देहरियों में विभिन्न प्रकार के दृश्य अंकित हैं । पचासवें गुम्बज में सुन्दर गहरे जलाशय का कलात्मक दृश्य उभरा
लूणवसही मंदिर के बाहर दायीं ओर कुंथुनाथ का दिगम्बर जैन मंदिर है। वहां से सीढ़ियां उतरने पर काले पत्थर का कुम्भ स्तम्भ है । सन् १४४९ में मेवाड़ के महाराणा कुम्भा ने इसे बनवाया था। यहीं दायीं ओर वृक्षों के मध्य युगप्रधान दादा श्रीजिनदत्तसूरि की छतरी बनी हुई है। इस महान चमत्कारी एवं जैन-धर्म के प्रभावशाली आचार्य दादा जिनदत्तसूरि एवं दादा जिनकुशलसूरि की यहां चरण पादुकाएं है ।
पीतलहर मंदिर - इस मंदिर का निर्माण भीमाशाह ने करवाया था। अतः इसे भीमाशाह का मंदिर भी कहते हैं। मंदिर का निर्माण-काल सन् १३७४-८९ माना जाता है। मंदिर का जीर्णोद्धार गुजरात के सुन्दर एवं गदा ने करवाया था। मंदिर में पंचधातु की भगवान ऋषभदेव की ४१ इंच की प्रतिमा विराजमान है। पंचधातु का परिकर आठ गुणा साढ़े पांच फुट का है। इस प्रतिमा में पीतल की मात्रा अधिक होने से इसे पीतलहर मंदिर कहा जाता है। इस प्रतिमा की प्रतिष्ठा सन् १४६८ में आचार्य लक्ष्मीसागर सूरि के करकमलों से सम्पन्न हुई थी। मंदिर में और भी अनेक संगमरमर की विशाल जिन प्रतिमाएं हैं।
खरतरवसही पार्श्वनाथ मंदिर-मंदिर के बाईं ओर बना यह मंदिर काफी विशाल है। खरतरगच्छ के अनुवायी श्रावक मंडलिक ने इस मंदिर का निर्माण करवाया। अतः इसे खरतरवसही मंदिर कहा जाता है। पालीताना तीर्थ में भी खरतरवसही के नाम से विशाल जिन मंदिर है। इस तीन मंजिले मंदिर में चारों दिशाओं की ओर मुंह किए भगवान पार्श्वनाथ की चार प्रतिमाएं विराजमान हैं, इसलिए इसे चौमुखा मंदिर भी कहते हैं। इस विशाल मंदिर की प्रतिष्ठा सन् १५१५ आषाढ़ कृष्णा १ को आचार्य श्री जिनचन्द्र सूरि के करकमलों से हुई थी।
मंदिर का शिखर तो सुरम्य है ही, साथ ही 'मूलनायक श्री पार्श्वनाथ की श्वेतवर्णीय प्रतिमाएं और उनका परिकर अत्यन्त कलात्मक है। मंदिर के चारों ओर बड़े-बड़े रंगमंडप हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर दिग्पालों, यक्षिणियों, साल भंजिकाओं और स्त्रियों की श्रृंगारिक शिल्प-कृतियां भावाभिव्यक्ति की दृष्टि से मनोरम हैं।
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लूणवसही मंदिर : कला का खजाना
स्तंभ का एक अंश
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