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१०८ पार्श्वनाथ मंदिर भव्य दर्शन
शंखेश्वर भारतवर्ष के जैन तीर्थ स्थलों में सर्वाधिक चमत्कारी सर्वसमादृत माना जाता है । शंखेश्वर और नाकोड़ा ये वे दो तीर्थ हैं। जिनके बारे में प्रसिद्ध है कि यहाँ श्रद्धालुओं की मनोवांछाएं पूर्ण होती हैं। श्रद्धालुजन शंखेश्वर तीर्थ की आराधना के निमित्त तीन उपवास करते हैं, जिन्हें परंपरागत शब्दावली में 'तेला' या 'अट्ठम' कहा जाता है। कहा जाता है कि अट्ठम तप के साथ शंखेश्वर तीर्थ की गई आराधना संकटमोचक और सुख-समृद्धिकारक होती है।
शंखेश्वर यानी शंखों का अधिपति । पौराणिक उल्लेखों के अनुसार जरासंध और कृष्ण के बीच हए युद्ध में जरासंध ने श्रीकृष्ण की सेना पर 'जरा' फेंकी तब इसी प्रभु-प्रतिमा के चरणाभिषिक्त जल के द्वारा जरा के प्रभाव को निर्मल किया गया।
संवत् ११५५ में आचार्य देवेंद्र सूरि की प्रेरणा से सिद्धराज जयसिंह के महामंत्री सज्जन शाह ने शंखेश्वर तीर्थ का जीर्णोद्धार करवाया। महामंत्री वस्तुपाल-तेजपाल ने आचार्य श्री वर्द्धमान सूरि के उपदेश से इस तीर्थ का आवश्यक नव-निर्माण करवाया तथा यहाँ परिनिर्मित बावन देवरियों के शिखर पर स्वर्णकलश अभिसिक्त किया। सं. १३०२ में राजा दुर्जनसल्य के द्वारा भी इस तीर्थ के जीर्णोद्धार का उल्लेख प्राप्त होता है।
सम्राट अलाउद्दीन खिलजी के मंदिर-विरोधी अभियान एवं आक्रमणों के तहत इस मंदिर को भी भारी क्षति पहुंचाई गई, किन्तु
उप-शिखर का मनोरम दर्शन
गबज का गहरा स्वरूप
शंखेश्वर के शिखर
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