Book Title: Vishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 155
________________ श्रवणबेलगोला भगवान बाहुबली का पवित्रतम अतिशयुक्त तीर्थ स्थल है। यह वह तीर्थ-स्थली है जहां भगवान बाहुबली की एक ऐसी प्रतिमा परिनिर्मित है, जो संसार की सबसे बड़ी मूर्तियों में एक गिनी जाती है । सामान्यतया भगवान बाहुबली की भारत में जहाँ पर भी प्रतिमाएं हैं, उनकी ऊँचाई अधिक ही होती है । श्रवणबेलगोला में स्थित बाहुबली की मूर्ति ५७ फीट की है। खास बात यह है कि मूर्ति पर्वत को काटकर बनाई गई है। पर्वत का पत्थर और मूर्ति का पत्थर दोनों संलग्न, संबद्ध और अखंड है। यह पर्वत तलहटी से ५९५ मीटर ऊंचा है। श्रवणबेलगोला के बाहुबली को गोमटेश्वर भी कहा जाता है । 'गोमट' शब्द शिखर का वाचक है। पर्वत के शिखर पर बाहुबली की विशाल प्रतिमा होने के कारण ही यह गोमेटेश्वर के नाम से विख्यात हुई है। इस विराट प्रतिमा की प्रसिद्धि विदेशों तक है। हजारों विदेशी पर्यटक इस विशाल मूर्ति को देखने के लिए यहां तक आते हैं। वार्षिक तीर्थ यात्रियों की संख्या लाखों तक है। प्रति बारह वर्ष में गोमेटरवर बाहुबली का महामस्तकाभिषेक संपन्न होता है। इस अभिषेक में सम्मिलित होना सौभाग्य और पुण्योदय माना जाता है। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी भी इस अभिषेक में सम्मिलित हो चुकी है। राष्ट्र ने बाहुबली की प्रतिमा को अपने अतीत का गौरव मानते हुए इस पर डाक टिकट भी जारी किये हैं। भगवान बाहुबली की यह प्रतिमा विक्रम की ग्यारहवीं सदी में निर्मित हुई थी । प्राप्त ऐतिहासिक संदर्भों के आधार पर राजा गंगरस के प्रधान श्री चामुंडराय की मातुश्री सं. १०३७ में बाहुबली के दर्शन के लिए पोदनापुर जा रही थी। उन्होंने विध्यगिरी पर्वत के सम्मुख स्थित चंद्रगिरी पर्वत पर विश्राम लिया। यहीं उन्हें किसी अदृश्य शक्ति के द्वारा विध्यगिरी पर्वत पर भगवान बाहुबली की इस प्रकार की विशाल मूर्ति स्थापित करने की प्रेरणा मिली। श्री चामुंडराय ने अपनी माँ की इच्छा पूर्ति के लिए अपने धन की तिजोरियाँ खोल दीं । यह एक श्रमसाध्य कार्य था, किन्तु इस निर्माण के पीछे किसी पराशक्ति का भी हाथ रहा। परिणामस्वरूप यह विशाल प्रतिमा साकार हुई। प्रतिमा के प्रतिष्ठा महोत्सव में एक दिलचस्प घटना घटी। श्री चंद्रगिरी पर्वत Jain Education International 138 For Private & Personal Use Only 100 www.jainelibrary.org

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