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श्री मुनिसुन्नलस्मामी
मूलनायक मुनिसुव्रत स्वामी
राजगृह का पौराणिक दृष्टि से अपना महत्व है। यह भगवान महावीर तथा भगवान बुद्ध की कर्म-स्थली रही है। भगवान महावीर ने राजगृह में बारह चातुर्मास सम्पन्न करके इस जनपद को अपने आध्यात्मिक अमृत से अभिसिंचित किया है। भगवान महावीर के व्रतनिष्ठ लगभग सात लाख श्रावक-श्राविकाओं में से चौथाई लोग तो राजगृह जनपद के ही रहे हैं। इस दृष्टि से यह कहा जा सकता है कि भगवान महावीर का राजगृह जनपद पर अपरिसीम प्रभाव रहा।
भगवान बुद्ध का राजगृह से विशेष सम्बन्ध रहा। वस्तुत: राजगृह के नागरिक धर्म और अध्यात्म का पूरा सम्मान करते रहे। उन्होंने भगवान महावीर और भगवान बुद्ध में भगवत्ता और सम्बोधि की जो सुवास देखी उसी से उन दोनों महापुरुषों का यहां पूरा वर्चस्व रहा। उसी का यह नतीजा है कि राजगृह के इर्द-गिर्द स्थित पर्वतमालाओं एवं कन्दराओं में जैन-मुनि तथा बौद्ध भिक्षु दोनों ही
आत्म साधनारत रहते थे। भगवान बुद्ध के निर्वाण के बाद बौद्ध भिक्षुओं का जो प्रथम सम्मेलन आयोजित हुआ था, वह राजगृह में ही हुआ था। आज हम जिसे 'सप्तपर्णी' गुफा कहते हैं वही वास्तव में बौद्ध भिक्षुओं के प्रथम सम्मेलन/संगीति का स्थान है । राजा श्रेणिक, राजा अजातशत्रु (कुणिक) आदि जिन नरेशों का जैन तथा बौद्ध शास्त्रों में बड़े ही आदर के साथ उल्लेख किया गया है, वे वास्तव में इसी जनपद के नरेश रहे । राजा श्रेणिक को भगवान महावीर के प्रमुख श्रावकों में एक माना जाता रहा है। श्रेणिक ने भगवान से उनके कैवल्य से निष्पन्न ज्ञानानुभूति को रसास्वादित किया और एक सम्राट होते हुए भी अनासक्त और समतापूर्ण जीवन का निर्वाह किया । यह अलग बात है कि श्रेणिक की अपमृत्यु हुई, किन्तु उसने जीवन में इतना पुण्योपार्जन और सम्यक्त्व-प्राप्ति के निमित्त उपलब्ध कर लिये थे कि जैन-धर्म की मान्यता के अनुसार भविष्य में होने वाले चौबीस तीर्थंकरों में अपना स्थान बना लिया। हम जिन्हें पद्मप्रभ स्वामी कहते हैं वे वास्तव में राजा श्रेणिक के ही जीव हैं। ___मेतार्य, धन्ना, शालिभद्र, मेघकुमार, अभयकुमार, जम्बूस्वामी, पूर्णिया आदि आदर्श पुरुषों की जन्मस्थली यही राजगृह नगरी रही।
राजगृह साधना के अतिरिक्त व्यापार, समृद्धि और पर्यटन की दृष्टि से भी अपना महत्व रखती आयी है । आज राजगृह में नगरी के नाम पर केवल ध्वंसावशेष ही बचे हुए हैं लेकिन जैन, बौद्ध और हिन्दु-धर्म का समान रूप से आराधना-स्थल होने के कारण यहां सदा यात्रियों का तांता लगा रहता है। पर्वतों पर स्थित जैन-तीर्थ-भूमि के
मंदिर के चौखट पर उषा की दस्तक
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