Book Title: Vishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 124
________________ देवी-देवताओं की प्रतिमाओं की देवरियां है । बीच मार्ग में कुमारपाल कुंड और साला-कुंड भी आते हैं। साला-कुंड के पास जिनेन्द्र-ट्रंक है, जिसमें अधिष्ठित गुरु मूर्तियाँ एवं देवमूर्तियों में मां पद्मावती देवी की प्रतिमा कला की दृष्टि से काफी सुन्दर है। कुछ और आगे बढ़े, तो वहां से रास्ता विभाजित होता है जिसमें एक नव ढूंकों की ओर जाता है तथा दूसरा भगवान आदिनाथ की मुख्य ट्रंक की ओर जाता है । मुख्य ढूंक की ओर जाने पर सर्वप्रथम रामपोल और गाधण पोल दिखाई देती है। आगे हाथी पोल में प्रवेश करते समय सूरजकुंड, भीमकुंड एवं ईश्वरकुंड दिखाई देते हैं। नव ट्रॅकों के मार्ग में पहली ट्रंक सेठ नरशी केशवजी की है। सं. १९२१ में श्री नरशी केशव जी ने इस ढूंक का निर्माण करवाया था। इस मनोरम जिनालय में तीर्थंकर शांतिनाथ की प्रतिमा प्रतिष्ठित MedapaduITICS है। पालीताना : मंदिरों का महानगर दूसरी खरतरवसही ढूंक है । इसे चौमुख जी की ढूंक भी कहते हैं। यह मंदिर इस पर्वत के उत्तरी शिखर पर निर्मित है। शत्रुजय में निर्मित ढूंकों में यह सर्वोच्च ट्रॅक है । काफी दूर से ही इस मंदिर का उत्तुंग शिखर देखा जा सकता है । इस उत्तुंग जिनालय का नव निर्माण सं. १६७५ में सेठ सदासोम जी ने करवाया था। मंदिर में भगवान आदिनाथ की चौमुखजी के रूप में चार विशाल प्रतिमाएं विराजमान हैं। इसी ट्रॅक में तीर्थंकर ऋषभदेव की माता मरुदेवी का मंदिर भी निर्मित है । इसी मंदिर के पृष्ठ भाग में पांडव-मंदिर है, जिसमें पांच पांडव, माता कुन्ती एवं द्रौपदी की मूर्तियां हैं। तीसरी ढूंक का निर्माण छीपा भाइयों ने करवाया, अत: इसे छीपावसही ढूंक कहते हैं । सं. १७९१ में निर्मित इस मंदिर में तीर्थंकर ऋषभदेव मूलनायक के रूप में विराजमान हैं। चौथी ट्रंक साकरवसही है । सेठ साकरचंद प्रेमचन्द द्वारा सं. १८९३ में निर्मापित इस ट्रंक में ऋषभानन, चंद्रानन, वारिषेण और वर्धमान इन चार शाश्वत जिनेश्वरों की प्रतिमाएं विराजित हैं। छठी हीमवसही ढूंक का निर्माण हीमा भाई द्वारा सं. १८८६ में हुआ है। यहां श्री अजितनाथ भगवान मूलनायक हैं। सातवीं प्रेमवसही ढूंक है। मोदी श्री प्रेमचन्द्र लवजी द्वारा सं. १८४३ में निर्मापित इस मंदिर के मूलनायक तीर्थंकर श्री ऋषभदेव HE DO TI fui Ion भक्ति में तन्मय गुजराती शिल्प आठवीं बालावसही ढूंक है । मंदिर का नव निर्माण सं. ११९३ में बाला भाई द्वारा हुआ है। मंदिर के मूलनायक आदिनाथ भगवान नवमी मोतीशाह ट्रॅक है। सेठ मोतीशाह ने इस विशालतम मंदिर का निर्माण करवाया था एवं उनके सुपुत्र खेमचंद ने सं. १८९३ में प्रतिष्ठा करवाई थी। मंदिर अपने आप में कई छोटे-मोटे मंदिरों का समूह है। मंदिर के मूलनायक श्री आदिनाथ भगवान है। प्रेमवसही ढूंक के पास एक विशेष मंदिर बना हुआ है। इसमें तीर्थंकर आदिनाथ की १८ फुट की पद्मासनस्थ विशाल प्रतिमा है। छज्जा मंदिरों का महानगर शत्रुजय 107

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