Book Title: Vishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 117
________________ पर कदम रखते ही श्रद्धालुगण भावाभिभूत हो जाते हैं। उन्हें इस महातीर्थ की यात्रा का परम सौभाग्य प्राप्त हुआ है, इस बात से उनका हृदय परमात्मा की कृपा के प्रति कृतज्ञ हो जाता है। | पालीताना तीर्थ को एक प्रकार से मंदिरों का नगर कहा जाता है। जिस एक तीर्थ पर ८६१३ मंदिर और लगभग ३३ हजार मूर्तियां हों, भला उस तीर्थ की तुलना किससे की जाये। सचमुच, ऐसा स्थान तो तीर्थों का तीर्थ है, हर उपमा से ऊपर-अनुपम है। पालीताना की तुलना में केवल पालीताना को ही रखा जा सकता है। सम्पूर्ण विश्व में यही एकमात्र ऐसा पर्वत है जहां इतने मंदिर है। पर्वतमालाओं पर सुशोभित इस तीर्थ पर श्रद्धा एवं कला का ऐसा अद्भुत संगम हुआ है कि मानो जैन-धर्म के प्रति आस्था रखने वाले सज्जनों का धार्मिक वैभव अपनी सम्पूर्ण श्रद्धा तथा भक्ति के साथ मुखर हो उठा हो । पर्वत पर निर्मित नौ टंकों में मोतीशाह सेठ की ट्रंक मंदिरों की जिस भव्यता को लिए हुए खड़ी है, उसकी तुलना आखिर किससे की जा सकती है? दुर्गम पहाड़ों के बीच इतने विशालकाय पाषाणों को ले जाना भी कितना कठिन रहा होगा, लेकिन जब श्रद्धा सिर चढ़कर बोलती है, तो असंभावित कार्य भी संभावित हो जाते हैं। 1 पालीताना को शाश्वत तीर्थ माना जाता है। यहाँ हजारों-हजार लाखों-लाख आत्माओं ने समाधि-मरण स्वीकार किया, महानिर्वाण की महाज्योति का यहां अलख जगाया। जैन-धर्म के चौबीस तीर्थंकरों में से बाईस तीर्थंकरों ने इस तीर्थ की स्पर्शना कर तीर्थ की महिमा को और अधिक बढ़ाया। भगवान ऋषभदेव ने तो इस तीर्थ की ९९ वे 'पूर्व' वार यात्रा की जैन धर्म के प्रथम तीर्थकर श्री ऋषभदेव द्वारा की गई यह महान् यात्रा जैन-धर्म के अनुयायियों के लिए स्वयं एक प्रेरणा है। आज भी प्रतिवर्ष हजारों श्रद्धालु इस तीर्थ की ९९ बार यात्रा करते हैं, जिसे 'नवाणु' यात्रा कहा जाता है। भगवान आदिनाथ का इस महातीर्थ से विशेष सम्बन्ध होने के कारण उनकी आराधना हेतु किये जाने वाले वर्षीतप की तपस्या का पारणा भी लोग यहां आकर करते हैं, जिसे अक्षय तृतीया या आखातीज कहते हैं। प्रतिवर्ष हजारों वर्षीतप के तपस्वी इस तीर्थ की यात्रा करके इस तप की यहां पूर्णाहूति करते हैं। जैन-धर्म तप प्रधान है। वर्षीतप सबसे लम्बा और कठिन तप माना जाता है, लेकिन हजारों जैन प्रतिवर्ष इस तप की आराधना करते हैं। इस तप में एक दिन उपवास किया जाता है और अगले दिन भोजन लिया जाता है; यह क्रम पूरे एक वर्ष तक चलता है। वर्षीतप का पारणा हस्तिनापुर और पालीताना दोनों ही स्थानों पर करने का महत्त्व है। Jain Education International 1 पालीताना वास्तव में पादलिप्तपुर का अपभ्रंश हुआ वर्तमान नाम है । शत्रुओं द्वारा अविजित रहने के कारण इसे शत्रुंजय भी कहा जाता है। शास्त्रों में शत्रुंजय तीर्थ के कुल १०८ नामों का उल्लेख हुआ है, जिनमें पुंडरिक गिरी, विमलाचल, सिद्धाचल आदि नाम प्रचलित हैं। 100 1000 SEELTA For Private & Personal Use Only ito TZEPT Ett 7421274TF CORAT TEOR www.jainelibrary.org

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