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गुंबज में लटकते सूरजमुखी फूल
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सहित स्थापित हैं । प्रत्येक देहरी के नक्काशीपूर्ण द्वार के अन्दर दो-दो गम्बज हैं, जिनकी छतों पर उत्कीर्ण शिल्पकला दर्शकों को अभिभूत करती है।
मंदिर की दसवीं देहरी के बाहर तीर्थकर नेमिनाथ के चरित्र का दृश्य है। यहाँ भगवान नेमिनाथ की बारात की सक्ष्म कोरणी के अतिरिक्त भगवान कृष्ण की जल-क्रीड़ा का भी उत्कीर्णन हुआ है।
बाईसवीं और तेईसवीं देहरी के बीच एक गुफानुमा मंदिर है, जिसमें तीर्थंकर आदिनाथ की श्यामवर्णीय विशाल प्रतिमा स्थापित है। यह मूर्ति विमलशाह को अंबिका माता के प्रसाद से विमलवसही के निर्माण से पूर्व भूगर्भ से प्राप्त हुई थी। प्रतिमा पुरातात्विक दृष्टि से अत्यन्त प्राचीन है एवं अपना अलग ही महत्व रखती है। मंदिर के इस खंड में छोटी-मोटी अनेक प्राचीन प्रतिमाएं हैं।
तेईसवीं देहरी में अंबिका माता की आकर्षक प्रतिमा है, जो मंदिर के सूत्रधारों की आराधिका रही है । बत्तीसवीं देहरी में श्रीकृष्ण द्वारा कालिया नाग-दमन का दृश्य है । एक ओर कृष्ण पाताल लोक में शेष नाग की शय्या पर शयन कर रहे हैं, वहीं दूसरी ओर कृष्ण-बलदेव अपने साथियों के साथ यमुना के घाट पर गेंद-गुल्ली डंडा खेल रहे हैं। अड़तीसवीं देहरी में सोलह हाथ वाली सिंहवाहिनी विद्यादेवी की कलात्मक मूर्ति है।
बयालीसवीं देहरी के गुम्बज में मयूरासन सरस्वती, गजवाहिनी लक्ष्मी, कमल पर लक्ष्मी, गरुड़ पर शंखेश्वरी देवी की मनोहर मूर्तियां हैं । मूर्ति-निर्माण की सूक्ष्मता दर्शनीय है।
चवालीसवीं देहरी में नक्काशीदार तोरण और परिकरयुक्त श्रीवारिषेण प्रभु की प्रतिमा विराजमान है ।छयालीस से अड़तालीसवीं देहरी के बाहर गुम्बज में सोलह हाथ वाली शीतला, सरस्वती और पद्मावती की मूर्तियां बेहद सुन्दर हैं।
मंदिर का सर्वोत्तम कलात्मक भाग उसका रंगमंडप है । बारह अलंकृत स्तंभों और कलात्मक सुन्दर तोरणों पर आश्रित बड़े गोल गुम्बज में हाथी, घोड़े, हंस, नर्तक आदि की ग्यारह गोलाकार मालाएं
और झूमकों के स्फटिक गुच्छे लटक रहे हैं। प्रत्येक स्तम्भ के ऊपर वाद्य-वादन करती ललनाएं हैं और उनके ऊपर नाना प्रकार के वाहनों से सुशोभित सोलह विद्या देवियों की अत्यन्त रमणीय प्रभावशाली प्रतिमाएं हैं। रंगमंडप से ऊपर की नव नौकी में नौ समकोण आकृतिवाली प्रत्येक अलंकृत छत में विभिन्न प्रकार की खूबसूरत खुदाई है।
मूल गर्भगृह में भगवान ऋषभदेव की अत्यन्त ही सुकुमार और नयनाभिराम मूर्ति प्रतिष्ठित है। गूढ़ मंडप में ध्यानावस्था में खड़ी भगवान पार्श्वनाथ की मूर्तियां भी चित्ताकर्षक है । विमलवसही मंदिर के बाहर हस्तिशाला है, जिसका सन् १९९१ में जीर्णोद्धार हुआ।
लूणवसही मंदिर- यह मंदिर कलाजगत का प्राण है । मंदिर में इतनी बारीक कोरणी की गई है कि दर्शक पहले ही क्षण में अपनी अंगुली दांतों तले ले आता है। छोटे-से-छोटे पत्थरों में विराट से विराटतम को उत्कीर्ण करने में मंदिर के शिल्पी सिद्धहस्त दिखाई देते
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मंदिर के शताधिक गुंबजों में से एक
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DISPEN पाषाणों में खिलते फूल: एक गुंबज
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