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शांतिनाथ मंदिर का शिखर: चीनी शैली में निर्मित
जैसलमेर अपनी विशिष्ट कला के लिए विश्व-विख्यात है। यह वह कला-स्थली है, जहां केवल मंदिरों में ही नहीं, नागरिकों की हवेलियों पर भी इतनी सूक्ष्म कोरणी है कि देखते ही बनती है । और तो और सामान्य नागरिकों के मकान भी कला से सुसज्जित हैं । शहर को देखकर यों लगता है मानों यहां के निवासियों में कला के प्रति हृदय से प्रेम था। यहां मंदिरों के तोरण और गुम्बज कला के उत्कृष्ट नमूने हैं, वहीं सेठ साहूकारों के मकानों की छतें और झरोखे झीनी-झीनी खुदाई के बेहतरीन उदाहरण हैं।
न केवल शिल्प की दृष्टि से, वरन् प्राचीनतम ग्रन्थों के संग्रहालय की दृष्टि से भी जैसलमेर का नाम चर्चित रहा है। यहां के ज्ञान-भंडारों में हजारों-सैकड़ों वर्ष पूर्व आलेखित ताड़पत्रीय ग्रन्थ तक उपलब्ध हैं। इन ज्ञान-भंडारों में स्वर्ण-लिखित जैन शास्त्रों के अतिरिक्त प्राचीन शैली के चित्रों का भी अप्रतिम संकलन है। जैसलमेर का ज्ञान-भंडार विश्व के श्रेष्ठतम ज्ञान-भंडारों में एक गिना जाता है।
यद्यपि जैसलमेर की जनसंख्या आज इतनी विपुल नहीं है, किन्तु उल्लेख बताते हैं कि यहां किसी समय २७०० संभ्रान्त जैनों के घर रहे हैं। संतों एवं कवियों ने जैसलमेर तीर्थ की महिमा और गरिमा बखानते हुए इसकी भरपूर प्रशंसा लिखी है।
जैसलमेर तीर्थ का निर्माण तेरहवीं शताब्दी में हुआ है। तीर्थाधिपति श्री पार्श्वनाथ भगवान की प्रतिमा १०५ से. मी. की है जिसकी प्रतिष्ठा आचार्य श्रीजिनकुशल सूरि के सुहस्ते सम्पन्न हुई थी। सं. १२६३ में आचार्य श्री जिनपति सूरि द्वारा यहां प्रतिष्ठा करवाने का उल्लेख मिलता है । आचार्य श्रीजिनराज सूरि के उपदेश से सं. १४५९ में मंदिर का पुनर्निर्माण एवं जीर्णोद्धार कार्य प्रारम्भ हुआ। सं. १४७३ में श्री जयसिंह नरसिंह रांका द्वारा आचार्य श्रीजिनवर्धनसूरि के करकमलों से पुनर्प्रतिष्ठा सम्पन्न हुई।
इस मंदिर के अतिरिक्त किले पर सात मंदिर और हैं तथा शहर में पांच मंदिर हैं, जिनका निर्माण सोलहवीं-सतरहवीं सदी में हुआ है।
जैसलमेर में निर्मित यह मंदिर सूक्ष्म कोरणी की दृष्टि से एक सजीव स्थापत्यीय संरचना का उदाहरण है, जो जैनों के विशदीकरण तथा बहुविविधता की भावना के अनुरूप है। यहां के स्तम्भ, तोरण
और प्रवेश-द्वार शिल्प की दृष्टि से अपने आप में एक आश्चर्य है। शिल्पकारों ने पाषाण का कोई भी अंश ऐसा नहीं छोड़ा है, जहां कला का कुछ-न-कुछ दर्शन न हो। जैसलमेर के मंदिरों में
प्रवेश-द्वार के ऊपरी भाग पर शिल्प के संजीवित शिलालेख
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शांतिनाथ की प्राचीन प्रतिमा
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