Book Title: Vishva Prasiddha Jain Tirth Shraddha evam Kala
Author(s): Lalitprabhsagar
Publisher: Jityasha Foundation

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Page 63
________________ विमलवसही-दर्शन भारतवर्ष के प्रमुख पर्यटन स्थलों में माउंट आबू का नाम सदियों से चर्चित रहा है । ऊँची पर्वतमालाओं के बीच विकसित इस पर्यटन-स्थल का प्राकृतिक रूप तो स्वर्ग जैसा ही है। यहां निर्मित देलवाड़ा जैन मंदिर भी विश्व-स्तर पर आकर्षण का मुख्य केन्द्र रहा है। प्रतिवर्ष कम-से-कम पन्द्रह लाख यात्री इस भव्य मंदिर का दर्शन और अवलोकन करने आते हैं। संसार भर में शायद ही ऐसा कोई मंदिर या इमारत हो, जिसकी देलवाड़ा मंदिर में उत्कीर्ण शिल्प से तुलना की जा सके । ताजमहल भारत की भव्यतम इमारतों में से एक गिना जाता है, किन्तु जब कोई पर्यटक ताजमहल पर लुब्ध होने के बाद देलवाड़ा मंदिर पहुंचकर यहां की सूक्ष्मतम शिल्पकला को निहारता है, तो आश्चर्य से ठगा रह जाता है- ओह... ! आश्चर्य... ! अपूर्व-अनूठा.. !! मंदिर में शिल्प का इतना वैविध्य है कि कई दिनों तक इसका निरीक्षण किया जाए, तब भी इसकी बारीकियों की थाह नहीं पायी जा सकती। वस्तुत: देलवाड़ा, राणकपुर और जैसलमेर भारतीय शिल्पकला का प्रतिनिधित्व करते हैं। देलवाड़ा मंदिर ने अनुपम शिल्पकला की शाश्वत सम्पदा को अपने में संजोकर रखा है। उज्ज्वल-धवल संगमरमर से निर्मित यहां के मंदिर एक ओर शिल्पियों की अनूठी कारीगरी को प्रस्तुत करते हैं, वहीं दूसरी ओर वीतराग जिन प्रतिमाएं शांति एवं साधना का संदेश देती हई अपरिसीम सौन्दर्य के साथ आध्यात्मिक वातावरण प्रदान करती हैं ।मंदिर के दर्शन से दर्शक इतना भावाभिभूत हो उठता है कि हृदय के मुंदे वातायन खुल जाते हैं और उसकी चेतना परमात्मा के श्रीचरणों में समर्पित होने को लालायित हो उठती है। ___ 'देलवाड़ा' वास्तव में पांच मंदिरों का समूह है। यहां दो मंदिर तो अत्यन्त विशाल हैं, शेष तीन मंदिर, मंदिर की विशालता के पूरक हैं। शिल्प-सौन्दर्य की सूक्ष्मता, कोमलता और गुम्बजों तथा मेहराबों का बारीक अलंकरण पहली ही नजर में पर्यटकों का मन मोह लेता है । नृत्य और नाट्यकला के उकेरे गए शिल्प-चित्र अद्भुत-अनुपम हैं। मंदिर की छतों पर लटकते, झूलते गुम्बज और मुखमंडल के इर्द-गिर्द फैले परिसर में शिल्पांकित माँ सरस्वती, अंबिका, लक्ष्मी, शंखेश्वरी, पद्मावती, शीतला आदि देवियों की छवियां शिल्पकला के अद्भुत नमूने हैं। शिल्पकला की बारीकी देखने के लिए इन मूर्तियों के नाखून और नासाग्र आदि का अवलोकन ही काफी है। देलवाड़ा-मंदिरों के शिल्पकारों ने छैनी को इस निपुणता से लूणवसही मंदिर: कला का खजाना देरानी-जेठानी गोखलों का ऊपरी भाग 46

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